Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 264 1-1-6-1(49) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन चतुष्पद गाय - हाथी वगैरे... 10 लाख कुल कोटि... उरःपरिसर्प... नाग वगैरे.... 10 लाख कुल कोटि... भुजपरिसर्प... नउला वगैरे... 9 लाख कुल कोटि... नारक 25 लाख कुल कोटि... 26 लाख कुल कोटि... मनुष्य 12 लाख कुल कोटि.. सर्व मीलाकर कुल - 1, 97, 50, 000, कुल कोटि... अब लक्षण द्वार कहतें हैं... नि. 156-157 दर्शन - सामान्य उपयोग स्वरूप... चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन, केवल दर्शन... दर्शन परिणाम... ज्ञान = ज्ञानावरणके दूर होनेसे स्पष्ट तत्त्वबोध स्वरूप... मतिज्ञान आदि... स्व एवं परके बोध स्वरूप जीवका ज्ञान परिणाम... चारित्र- सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्म संपराय एवं यथाख्यात... स्वरूप चारित्र परिणाम.... 2. देशविरति (चारित्राचारित्र) स्थुल प्राणातिपातादिके विरमण स्वरूप श्रावकोंके 12 व्रत... दानादि 10 लब्धि... दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य, एवं श्रोत्र, चक्षु, घ्राण, रसना तथा स्पर्शनेंद्रिय... 6. लक्षण : जीवके साथ सदा रहे, जीवके सिवाय कहिं न रहे... जैसे कि- चेतना... उपयोग- 1. साकारोपयोग... ज्ञान... 5 + 3 = 8 2. अनाकारोपयोग... दर्शन 4 योग... मन - वचन एवं काययोगअध्यवसाय- सूक्ष्म... मनके परिणामसे उत्पन्न होनेवाले अध्यवसायोंके अनेक प्रकार है... 7. 8.