Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 268 卐१-१-६-१(४९)卐 श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन I सूत्र // 1 // // 49 // से बेमि संतिमे तसा पाणा, तं जहा- अंडया, पोयया, जराउया, रसया, संसेयया, समुच्छिमा, उब्भियया उववाइया, एस संसारेत्ति पवुच्चड़ // 49 // II संस्कृत-छाया : सोऽहं ब्रवीमि, सन्ति असाः प्राणिनः, तद्-यथा-अण्डजा: पोतजाः, जरायुजाः, रसजा:, संस्वेदजाः, सम्मूर्छिमाः उद्भेदजाः, औपपातिकाः, एषः संसारः इति प्रोच्यते // 49 // III शब्दार्थ : से-वह मैं / बेमि-कहता हूं / इमे-यह / तसा-स / पाणा-प्राणी / संति हैं / तंजहा-जैसे कि / अण्डया-अण्डे से उत्पन्न होने वाले कपोत आदि पक्षी / पोयया-पोतज रूपसे जन्मने वाले हाथी आदि / जराउआ-जरायुसे वेष्टित उत्पन्न होने वाले गाय, भैंस, बकरी, भेड़ और मनुष्य आदि प्राणी / रसया-विकृत रससे अत्यधिक खट्टी छाछ, कांजी आदि में उत्पन्न होने वाले जीव / संसेयया-स्वेद पसीनेसे उत्पन्न होने वाले जूं, लीख आदि जीव / समुच्छिमा-समूच्छिम उत्पन्न होने वाले चींटी, मक्खी; मच्छर, बिच्छू आदि जीव / अभिययाउद्भिदज-उभेद से उत्पन्न होने वाले पतंगे, तीड, बहूटी आदि / उववाइया-उपपात से उत्पन्न होने वाले देव और नारकके जीव / एस-यह अष्ट प्रकार के स जीव / संसारेत्ति-संसार है अर्थात् इन त्रस जीवों को संसार / पवुच्चई-कहा जाता है / IV सूत्रार्थ : वह मैं (सुधर्मास्वामी) कहता हूं कि- त्रस जीव है, वे इस प्रकार- अंडज़, पोतज, जरायुज, रसज, संस्वेदज, संमूच्छिम, उद्भिदज और औपपातिक... यह संसार कहा गया है... // 49 // V टीका-अनुवाद : इस छठे उद्देशकके प्रथम सूत्रका संबंध पूर्वकी तरह समझीयेगा... परमात्माके मुखकमलसे प्रगट हुइ वाणीसे वस्तु-पदार्थक तत्त्वको जैसा है वैसा हि समझकरके, में सुधर्मास्वामी हे जंबू ! तुम्हें कहता हूं कि- बेइंद्रिय आदि उस जीव हैं, और उनके आठ प्रकार हैं... 1. अंजज- अंडेसे उत्पन्न होनेवाले... पक्षी, गीरोली आदि... 2. पोतज- हाथी, वल्गुली (गीदड) 3. जरायुज- जरायुके साथ जन्म पानेवाले- गाय, भेंस, बकरे, घंटे (भेड), मनुष्य आदिः.. 4. रसज- छास, चावलका पसाव (ओसामण) दहीं तीमन (सूप - दाल - कडी) आदिमें