Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
View full book text
________________ 270 // 1-1-6-1(49) // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी:काशन अस का अर्थ है-“अस्यन्तीति असाः--असनात्-स्पन्दनात् असाः जीवनात्प्राणाधारणात् जीवाः असा एव जीवाः असजीवाः / " अर्थात् जो प्राणी त्रास पाकर उससे बचने के लिए चेष्टा करते हों, एक स्थान से दूसरे स्थानको आ जा सकते हों, उन्हें उस जीव कहते हैं / या हम यों भी कह सकते हैं कि जिनकी चेतना स्पष्ट परिलक्षित होती है, जो अपनी शारीरिक हरकत एवं चेष्टाओंके द्वारा सुख-दुःखानुभूति करते हुए स्पष्ट देखे जाते हैं, वे अस जीव कहलाते हैं। अस जीव द्वीन्द्रिय से लेकर पञ्चेन्द्रिय तक के प्राणी होते हैं और वे असंख्यात हैं / पर उनके उत्पत्ति स्थान आठ माने गए हैं और प्रस्तुत सूत्र में उन्ही का उल्लेख किया गया है वे इस प्रकार हैं १-अंडज - अंडे से उत्पन्न होने वाले- कबूतर, हंस, मयूर, कोयल आदि पक्षी / २-पोतज- पोत-चर्ममय थैली से उत्पन्न होने वाले- हाथी; वल्गुनी, चर्मजलूक आदि पशु। 3-जरायुज - जेर से आवेष्टित उत्पन्न होने वाले- गाय, भैंस, मनुष्य इत्यादि पशु एवं मानव४-रसज- खाद्य पदार्थों में रसके विकृत होने-बिगाड़नेसे उसमें उत्पन्न होने वाले द्वीन्द्रियादि जीव-अधिक दिनको खट्टी छाछ; कांजी आदि में नन्हीं-नन्हीं कृमिएँ उत्पन्न हो जाती हैं / ५-संस्वेदज- पसीने से उत्पन्न होने वाली - जूं-लीख आदि / ६-समूर्च्छन- स्त्री-पुरुष के संयोग विना उत्पन्न होने वाले - चींटी, मच्छर, भ्रमर आदि जीव-जन्तु / ७-उद्भिदज - भूमि का भेदन करके उत्पन्न होने वाले - टीड, पतंगे इत्यादि जन्तु / ८-औपपातिक- उपपात - देव शय्या एवं कुंभी में उत्पन्न होने वाले देव एवं नारकीके जीव / संसारमें जितने भी त्रस जीव हैं, वे सब आठ प्रकारसे उत्पन्न होते हैं / इस तरह समस्त त्रस जीवोंका इन आठ भेदोमें समावेश हो जाता है / और इनके समन्वित रूपको ही संसार कहते हैं अर्थात् जहां इन सब जीवोंका आवागमन होता रहता है, एक गतिसे दूसरी गतिमें संसरण होता है, उसे ही संसार कहते हैं / क्यों कि जीवोंके एक गतिसे दूसरी गतिमें परिभ्रमण करने के आधार पर ही संसार का अस्तित्व रहा हुआ है / इसी कारण इन उत्पत्तिशील या भ्रमणशील जीवों को संसार कहा गया है / त्रस जीवोंके उत्पत्ति स्थान के संबन्ध में एक और मान्यता भी है / तत्त्वार्थ सूत्रके रचयिता वाचक श्री उमास्वातिजी, त्रस जीवोंके उत्पत्ति स्थान, तीन प्रकारके मानते हैं- समूर्च्छन,