Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका // 1 - 1 - 6 - 1 (49) 263 अस जीवोंके और भी भेद होते हैं, वे इस प्रकार... 1. बेइंद्रिय 2. तेइंद्रिय 3. चउरिंद्रिय 4. पंचेंद्रिय कृमि, अलसीया, पोरा... कीडी, ज, उद्धेही (उद्धइ)... मक्खी , मच्छर, भमरा, पतंगीया... देव, मनुष्य, तिर्यंच, नरक... इस प्रकार यह त्रस जीवोंका भेद-प्रभेद योनी- आदिके माध्यमसे कहा... कहा भी है कि- पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय और वाउकायकी प्रत्येककी सात लाख- सात लाख योनीयां होती हैं... 7 x 4 = 28 लाख... पृथ्वी आदि... 4 x 7 लाख योनीयां 28 लाख योनीयां. प्रत्येक वनस्पतिकायकी साधारण वनस्पतिकायकी बइंद्रिय जीवोंकी तेइंद्रिय जीवोंकी चउरिंद्रिय जीवोंकी नारक जीवोंकी देव जीवोंकी तिर्यंच पंचेंद्रिय जीवोंकी मनुष्य जीवोंकी 10 लाख योनीयां... लाख योनीयां.. 2 लाख योनीयां... 2 लाख योनीयां... लाख योनीयां... 4 लाख योनीयां... 4 लाख योनीयां... 4 लाख योनीयां.. 14 लाख योनीयां.. कुल 84 लाख योनीयां... इस प्रकार कुल योनीयां चौराशी (84) लाख होती हैं... अब कुल - कोटि का परिमाण कहतें हैं... एकेंद्रिय बेइंद्रियतेइंद्रियचउरिंद्रिय 32 लाख कुल कोटि.. 8 लाख कुल कोटि... 9 लाख कुल कोटि... 7 लाख कुल कोटि... 25 लाख कुल कोटि... 12.5 लाख कुल कोटि... 12 लाख कुल कोटि... हरित (वनस्पति) काय जलचर तिर्यंच पंचेंद्रिय खेचर (पक्षी) -