Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 246 ॐ१ - 1 - 5 - 5 (44) // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन इस प्रकार शब्दादि गुणसे जो दोष होते हैं, वह बात अब सूत्रकार महर्षि आगे के सूत्रसे कहेंगे... VI सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में शब्दादि पांच विषयों को लोक कहा है / जो व्यक्ति मन, वचन और शरीर से विषयों में आसक्त है, उसे अगुप्त कहा है / मन से विषयों का चिन्तन करना, वाणी से उन्हें प्राप्त करने की प्रार्थना करना और शरीर से उन्हें पाने का प्रयत्न करना, यह त्रियोग की अगुप्तता है / जिस व्यक्ति के तीनों योग विषयों में ही लगे रहते हैं, वे लोग जिनेन्द्र भगवान की आज्ञा में नहीं है। इसका स्पष्ट अभिप्राय यह है कि- वीतराग भगवान की आज्ञा, विषयों में आसक्त होने की नहीं है, किन्तु त्रियोगको विषयों से गुप्त-गोपन करके रखने की है / कारण यह है किविषयों में आसक्त व्यक्ति रात दिन संसार में ही उलझा रहता है और इस कारण वह संयमकी सम्यक् साधना-आराधना नहीं कर सकता / और जिनेश्वर भगवानकी आज्ञा संयम-साधनाकी है, न कि संसार बढ़ानेकी / इस अपेक्षा से शब्दों में आसक्त व्यक्ति के लिए कहा गया है. कि वह जिनेश्वर भगवान की आज्ञा में नहीं है / I इस विषय को स्पष्ट करने के लिए सूत्रकार महर्षि आगे का सूत्र कहेंगे... सूत्र // 5 // // 44 // पुणो पुणो गुणासाए वंकसमायारे || 44 // संस्कृत-छाया : II पुन: पुन: गुणास्वादः, वक्रसमाचारः // 44 // III शब्दार्थ : पुणो-पुणो-बार-बार / गुणासाए-शब्दादि गुणों का आस्वादन करने से वह मनुष्य। वंक समायारे-असंयम का सेवन करने वाला हो जाता हैं / IV सूत्रार्थ : बार बार शब्दादि गुणोंका आस्वाद होता है, इससे वळ (असंयम) का आचरण होता है // 44 // V टीका-अनुवाद : बार बार शब्दादि विषयगुणमें लुब्ध ऐसा यह जीव अपने आत्माको शब्दादि विषय