Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका ॐ 1 - 1 - 5 - 9 (48) // 257 जैनागम सर्वज्ञके द्वारा उपदिष्ट है / डा. बोस ने भगवान महावीर द्वारा उपदिष्ट बातको वैज्ञानिक साधनों से प्रत्यक्ष दिखाकर विश्वके वैज्ञानिकोंको वनस्पतिमें चेतनता मानने के लिए बाध्य कर दिया, इसके लिए वे साधुवाद के पात्र हैं / इस तरह यह स्पष्ट हो गया कि वनस्पति सजीव है / अतः उसका आरम्भ करने से पाप कर्म का बन्ध होगा और संसार परिभ्रमण बढ़ेगा, इस लिए साधुको उसके आरम्भसमारम्भका त्याग करना चाहिए / इसी बातका उपदेश देते हुए सूत्रकार महर्षि आगे का सूत्र कहेंगे... सूत्र | // 9 // // 48 // एत्थ सत्थं समारभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाता भवंति, एत्थ सत्थं असमारभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिणाया भवंति, तं परिणाय मेहावी नेव सयं वणस्सइसत्थं समारंभेज्जा, नेवण्णेहिं वणस्सइसत्थं समारंभावेज्जा, नेवण्णे वणस्सइसत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा, जस्सेते वणस्सइसत्थसमारंभा परिण्णाया भवंति, से हु मुणी परिण्णायकम्मे त्ति बेमि // 48 // . II संस्कृत-छाया : एतस्मिन् शस्त्रं समारभमाणस्य इत्येते आरम्भाः अपरिज्ञाताः भवन्ति, एतस्मिन् शस्त्रं असमारभमाणस्य इत्येते आरम्भाः परिज्ञाताः भवन्ति / तं परिज्ञाय मेधावी नैव स्वयं वनस्पतिशस्त्रं समारभेत, नैवाऽन्यैः वनस्पतिशस्त्रं समारम्भयेत्, नैवाऽन्यान् वनस्पतिशस्त्रं समारभमाणान् समनुजानीयात् यस्य एते वनस्पतिशस्त्रसमारम्भाः परिज्ञाताः भवन्ति, सः खु मुनिः परिज्ञातकर्मा इति ब्रवीमि // 48 / / III शब्दार्थ : एत्थ-इस वनस्पतिकाय के विषय में | सत्थं-शस्त्र का / समारंभमाणस्स-समारंभ करने वाले को / इच्चेते-यह सभी / आरंभा-आरंभ-समारंभ / अपरिण्णाया-अपरिज्ञात / भवंति-होते हैं / एत्थ-इस वनस्पतिकाय के विषय में / सत्थं-शस्त्र का / असमारम्भमाणस्ससमारम्भ नहीं करने वाले को / इच्चेते आरम्भा-यह सभी आरम्भ / परिणाया भवन्तिपरिज्ञात होते हैं / तं परिण्णाय-उस आरम्भ का परिज्ञान करके / मेहावी- बुद्धिमान पुरुष / णेव सयं-न तो स्वयं / वणस्सइसत्थं-वनस्पति शस्त्र का / समारम्भेज्जा-आरम्भ करे / णेवण्णेहिं-न अन्य से / वणस्सइसत्थं-वनस्पति शस्त्र का / समारम्भावेज्जा-समारम्भ करावे। णेवण्णे-और न अन्य व्यक्ति का, जो / वणस्सइ सत्थं समारंभंतेऽवि-वनस्पति शस्त्रका आरम्भ कर रहा है / समणुजाणेज्जा-समर्थन ही करे / जस्सेते-जिसको यह /