Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan

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Page 314
________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका // 1-1-5-8 (47) 255 - समस्त लक्ष्ण वनस्पतिमें भी स्पष्ट दिखाई देते हैं और यह लक्षण उन्हीं में पाए जाते हैं, जो सजीव हैं / निर्जीव पदार्थों में ये गुण नहीं पाए जाते / इससे स्पष्ट हो जाता है कि इन गुणोंका चेतना के साथ अविनाभाव संबन्ध है / क्योंकि- जिस शरीर में चेतना होती है, वहां उक्त लक्षणों का सद्भाव होता है और जहां चेतनता नहीं होती है वहां उनका भी अभाव होता है / यथा-जहां धूम होता है वहां अग्नि अवश्य होती है / इसी न्याय से पर्वत या दूरस्थ स्थानपर स्थित अग्नि न दिखाई देने पर भी धूम को देख कर अनुमान प्रमाण से यह निश्चय कर लेते हैं कि उस स्थान पर अग्नि हैं / क्योंकि- धूम और अग्नि का सहचर्य है, अविनाभाव संबन्ध है अर्थात् यों कहिए कि धूम का अस्तित्व अग्नि के बिना नहीं होता / इसी तरह उक्त लक्षणों एवं सजीवता का अविनाभाव संबन्ध है / जहां उक्त लक्षण होगें, वहां सजीवता अवश्य होगी। इसी न्याय से वनस्पति की सजीवता को हम भली-भांति जान एवं समझ सकेंगे / हम देखते हैं कि- मनुष्य माता के गर्भ से जन्म धारण करता है और जन्म के पश्चात् प्रतिक्षण अभिवृद्धि करता हुआ बाल, युवा एवं वृद्ध अवस्था को प्राप्त होता है / उसी तरह वनस्पति भी योग्य मिट्टी, पानी वायु एवं आतप का संयोग मिलने पर बीज में से अंकुरित होती है और क्रमश: बढ़ती हई बाल्य, यौवन एवं वृद्ध अवस्था को प्राप्त होती है / पेड़पौधों एवं लत्ताओं से यह क्रम स्पष्ट दिखाई देता है / मनुष्य और वनस्पति दोनों के शरीर में चेतना भी समान रूप से है / चेतनाका लक्षण या गुण ज्ञान है और ज्ञानका अस्तित्व दोनों में पाया जाता है / कुछ पौधोंकी क्रियाओंके संबन्धमें देखते-पढ़ते हैं, तो उस से उनमें भी ज्ञानके अस्तित्व का स्पष्ट आभास मिलता है। जैसे धात्री और प्रपुन्नाट आदि वृक्ष सोते भी हैं और जागृत भी होते हैं / वे अपनी जड़ों में गाड़े हुए धनको सुरक्षित रखने के लिए अपने शाखा-प्रशाखाओं को फैलाकर उस स्थानको आवृत्त कर देते हैं / और वर्षा काल में मेघ की गर्जना सुनकर तथा शिशिर ऋतुमें शीतल वायु का संस्पर्श पाक अंकुरित हो उठते हैं / बांसका पौधा भी मेघकी गर्जना सुनकर अंकुरित होता है / और मद विकृत कामिनीके पैर का संस्पर्श पाकर अशोक वृक्ष हर्षातिरेक से पल्लवित एवं पुष्पित होता है, पुरूषके हाथका संस्पर्श पाते ही लाजवन्तीका सुकोमल पौधा अपने आप को संकोच लेता है, उसके पत्ते सिकुड़ जाते हैं / और इस बात को भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बोस ने वैज्ञानिक साधनों के द्वारा प्रत्यक्ष में दिखा दिया कि कुछ पौधे अपनी प्रशंसा से प्रभावित होकर प्रफुल्लित हो उठते हैं और निन्दा-तिरस्कार के शब्दोंसे विकर्षित होकर मुा जाते हैं / यह सभी क्रियाएं, वनस्पति में भी ज्ञान के अस्तित्व को सिद्ध करती है। क्योंकि ज्ञान के अभाव में ऐसा हो नहीं सकता / इससे वनस्पति में भी ज्ञान है ऐसा मानना चाहिए / मनुष्य के हाथ-पैर आदि किसी भी अंग-उपांग को काट देते हैं, तो वह अंग मा

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