Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan

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Page 308
________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका // 1-1-5-7 (46) 249 इस कारण उसे साधु न कह कर गृहस्थ कहा है / इस बात को बताते हुए सूत्रकार महर्षि . आगे का सूत्र कहेंगे... I सूत्र // 7 // // 46 / / लज्जमाणा पुढो पास, अणगारा मो त्ति, एगे पवदमाणा जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वणस्सइ-कम्मसमारंभेणं वणस्सइसत्थं समारभमाणा अण्णे अणेग-रूवे पाणे विहिंसंति, तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेदिता, इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाइमरणमोयणाए, दुक्खपडिघाय-हेउं, से सयमेव वणस्सइसत्थं समारंभइ, अण्णेहिं वा वणस्सइसत्थं समारंभावेड़ अण्णे वा वणस्सइ-सत्थं समारभमाणे समणुजाणइ, तं से अहियाए तं से अबोहीए, से तं संबुज्झमाणे. आयाणीयं समुट्ठाय सोच्चा भगवओ अणगाराणं वा अंतिए, इहमेगेसिं नायं भवति- एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु निरए, इच्चत्थं गड्डिए लोए, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वणस्सइ-कम्मसमारंभेणं वणस्सइसत्थं समारंभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसड // 46 || II संस्कृत-छाया : ... लज्जमानाः पृथक् पश्य, अनगाराः वयं इति एके प्रवदन्तः यदिदं विरूपरूपैः शस्त्रैः वनस्पतिकर्म-समारम्भेण वनस्पतिशस्त्रं समारभमाणा: अन्यान् अनेक रूपान् प्राणिनः विहिंसन्ति, तत्र खलु भगवता परिज्ञा प्रवेदिता, अस्य चैव जीवितव्यस्य परिवन्दन-माननपूजनार्थं, जातिमरणमोचनार्थं, दुःखप्रतिघातहेतुं सः स्वयमेव वनस्पतिशस्त्रं समारभते, अन्यैः वा वनस्पतिशखं समारम्भयति, अन्यान् वा वनस्पतिशस्त्रं समारभमाणान् समनुजानीते, तं तस्य अहिताय, तं तस्य अबोधिलाभाय (अबोधये) सः तं सम्बुध्यमान: आदानीयं समुत्थाय, श्रुत्वा भगवतः अनंगाराणां वा अन्तिके, इह एकेषां ज्ञातं भवति - एषः खलु ग्रन्थः एषः खलु मोहः, एषः खलु मारः, एषः खलु नरकः, इत्यर्थं गृद्धः लोक: यदिदं विरूपरूपैः शस्त्रैः वनस्पतिकर्मसमारम्भेण वनस्पतिशस्त्रं समारभमाण: अन्यान् अनेकरूपान् प्राणिनः विहिनस्ति // 46 / / III शब्दार्थ : लज्जमाणा-लज्जा करते हुए / पुढो-विभिन्न वादियों को / पास-तू देख, एगे-कुछ एक व्यक्ति / अणगारामोत्ति-हम अनगार है, इस प्रकार / पवदमाणा-बोलते हुए। जमिणंजो ये / विरूवरूवेहिं-अनेक तरह के / सत्थेहि-शस्त्रों से / वणस्सइ कम्मसमारम्भेणवनस्पति कर्म समारंभ से / वणस्सइ सत्थं-वनस्पति शस्त्र का / समारंभमाणा-समारम्भ करते हुए / अण्णे-अन्य / अणेगरूवे-अनेक प्रकार के / पाणे-प्राणियों की / विहिंसंति-हिंसा करते हैं / तत्थ-वहां वनस्पति के विषय में / भगवया-भगवान ने / परिण्णा पवेदिता

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