Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 146 1 - 1 - 2 - 3 (16) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन शस्त्रं समारम्भयति, अन्यान वा पृथिवी शस्त्रं समारभमाणान समनुजानीते // 16 // III शब्दार्थ : खलु-यह शब्द वाक्यालंकारार्थ में है / तत्थ-पृथ्वीकाय के समारम्भ में। भगवयाभगवान ने / परिण्णा-परिज्ञा का / पवेड्या-उपदेश दिया है / चैव-निश्चय ही / इमस्सइस / जीवियस्स-जीवन के लिए / जाइ-मरण-मोयणाए-जन्म-मरण के दुःखों से छुटकारा पाने के लिए और / दुक्खपडिघायहेउं-दुःखों के नाश के लिए / से-वह सुख की इच्छा करने वाला / सयमेव-स्वयं ही / पुढ़विसत्थं-पृथ्वी काय का घात करने वाले शस्त्र का / समारम्भईसमारम्भ करता है / वा-अथवा / अण्णेहि-अन्य के द्वारा / पुढ़विसत्थं-पृथ्वी की हिंसा करने वाले शस्त्र से / समारंभेड़-समारंभ कराता है / वा-अथवा / अण्णे-अन्य / पुढविसत्थं-पृथ्वी का समारम्भ करने वाले शस्त्र से / समारंभते-समारम्भ या प्रयोग करने वाले को / . . समणुजाणइ-अच्छा जानता है, उसका समर्थन करता है / IV सूत्रार्थ : वहां निश्चित हि भगवंतने परिज्ञा कही है... कि- इस जीवितका वंदन मानन एवं पूजनके लिये तथा जन्म मरणसे छुटनेके लिये और दुःखोंका नाश करनेके लिये वे लोग स्वयं हि पृथ्वीशस्त्रका प्रयोग करते हैं, अन्यके द्वारा पृथ्वी-शस्त्रके प्रयोगको करवाते हैं, और जो लोग स्वयं हि पृथ्वी-शस्त्रका प्रयोग करते हैं उनकी अनुमोदना करते हैं || 16 || ... v टीका-अनुवाद : पृथ्वीकायके वध स्वरूप समारंभके विषयमें श्री वर्धमान स्वामीजी यह परिज्ञा कहते हैं कि- इस तुच्छ जीवित के वंदन सन्मान एवं पूजनके लिये तथा जन्म-मरणसे छुटनेके लिये और दुःखोंके विनाशके लिये यह शाक्य आदि मतवाले साधु विषयसुखके लालचु हैं, और दुःखोंसे डरतें हैं, अतः स्वयं (खुद) पृथ्वीका आरंभ-समारंभ-वध करतें हैं, अन्य जीटों से पृथ्वीकायका वध करवातें हैं तथा पृथ्वीकायका वध करनेवालोंका अनुमोदन करतें हैं... जिस प्रकार वर्तमान कालमें, उसी हि प्रकार भूतकालके और भविष्यत्कालमें भी... और मन-वचन तथा कायासें इस प्रकार 3 x 3 x 3 = 27 प्रकारसे पृथ्वीकायका वध करनेवालोंका क्या होता है वह बात अब सूत्रकार महर्षि आगेके सूत्रसे कहेंगे... VI सूत्रसार : मनुष्य भौतिक जीवन को सुखमय-आनन्दमय बनाने के लिए कई प्रकार के पापकार्य करते हुए नहीं हिचकिचाता / वह अपने जीवन को सुखद एवं ऐश्वर्य-सम्पन्न बनाने के लिए पृथ्वीकाय आदि छः काय के जीवों की या यों कहिए कि- सभी जाति के जीवों की हिंसा करता