Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 210 1 - 1 - 4 - 3 (34) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन D दहनादि रूप व्यापार का नाम खेद है और उसका परिज्ञाता खेदज्ञ कहलाता है / अशस्त्र शब्द का अर्थ है- संयम / क्योंकि- शस्त्र से जीवों का नाश होता है, उन्हें वेदना-पीड़ा होती है, परन्तु संयम से किसी भी जीव को वेदना, पीड़ा एवं प्राण हानि नहीं होती / इसलिए संयम को अशस्त्र कहा है / अस्त जो अग्नि के स्वरूप का ज्ञाता होता है वही संयम का अराधक होता है / और जो संयम के स्वरूप को भली-भांति जानता है, वही अग्निकाय के आरम्भ से निवृत्त होता है / इस तरह संयम एवं अग्निकायिक आरम्भ निवृत्ति का घनिष्ट संबन्ध स्पष्ट किया है / ___ यह तत्त्व महापुरुषों के द्वारा माना एवं कहा गया है, यह बात अब सूत्रकार महर्षि आगे के सूत्र से कहेंगे... I सूत्र // 3 // // 4 // वीरेहिं एवं अभिभूय दिटुं, संजएहिं, सया जत्तेहिं, सया अपमत्तेहिं // 34 // II संस्कृत-छाया : वीरैः एतद् अभिभूय दृष्टं, संयतैः सदा यतैः, सदा अप्रमत्तैः // 34 // III शब्दार्थ : संजएहि-संयत पुरुष / सया-सदा / जत्तेहि-यत्न-शील / सया-सदा / अप्पमत्तेहिंप्रमाद रहित, रह कर / वीरेहि-वीर पुरुषों ने / अभिभूय-परिषहों को जीत कर तथा पूर्णज्ञान को प्राप्त कर / एयं-इस अग्निकाय रूप शस्त्र को / दिडे-देखा है / IV सूत्रार्थ : वीर पुरुषोंने इस संयमको मोहको हटाकर देखा है, ये वीर पुरुष, सदैव संयत, यत्नवंत एवं अप्रमत्त हैं... V टीका-अनुवाद : घनघाति चारों (4) कर्मोके क्षयसे प्रगट हुए केवलज्ञान स्वरूप लक्ष्मीसे विराजमान वीर याने तीर्थंकरोंने अर्थसे उपदेश दीया, और गणधरोंने सूत्रसे सिद्धांत बनाये है, उन शास्त्रोंमें अग्नि को शस्त्र और संयम को अशस्त्र बतलाया है... और उन्होंने संयमका आचरण करके मोहका नाश (अभिभव) कीया है... ___अभिभव के नामादि भेदसे चार निक्षप होतें हैं, उनमें नाम एवं स्थापना निक्षेप सुगम हैं... और द्रव्य अभिभव याने शत्रु सेना आदिका पराजय... अथवा तो सूर्यके तेज-प्रकाशसे चंद्र,