Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी- टीका 1-1 - 4 - 5 (38) 215 दंड नहिं करुंगा... अन्य मतवाले जो हैं, वे अन्यथा बोलतें है, और अन्यथा करतें हैं, यह बात अब, सूत्रकार महर्षि आगे के सूत्रसे कहेंगे... VI सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में प्रबुद्ध पुरुष के यथार्थ जीवन का चित्रण किया गया है। इस बात को हम पहले ही बता चुके हैं कि- जब तक जीवन में ज्ञान की ज्योति प्रज्वलित नहीं होती, तब तक क्रिया में आचरण में तेजस्विता नहीं आ पाती / इसलिए अग्निकाय के आरम्भ से कितना अनर्थ एवं अहित होता है, इस बात का परिज्ञान होने के बाद मुमुक्षु उस कार्य में प्रवृत्त नहीं होता / इससे स्पष्ट हो जाता है कि- ज्ञान के बाद ही प्रत्याख्यान की अभिरूचि होती है, और आचरण के लिए कदम उठता है, अतः ज्ञानपूर्वक किया गया त्याग ही, वास्तविक आत्म विकास में सहायक होता है / भगवती,सूत्र में बताया गया है कि- गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से पूछा- हे भगवन् ! कोई जीव यह कहता है कि- मैंने प्राण, भूत, जीव, सत्त्व कि हिंसा का त्याग कर दिया है, अतः यह प्रत्याख्यान सुप्रत्याख्यान है, या दुष्प्रत्याख्यान है ? भगवान महावीर ने कहा-हे गौतम ! यह प्रत्याख्यान सुप्रत्याख्यान भी है और दुष्प्रत्याख्यान भी, भगवान के हकार-नकार युक्त उत्तर को स्पष्ट समझने की अभिलाषा से गौतम स्वामी ने पुनः पूछा-भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं ? भगवान ने कहा-हे गौतम ! जो जीव, जीव-अजीव आदि तत्त्वों को भली-भांति नहीं जानता, और त्रस एवं स्थावर के स्वरूप को भी नहीं पहचानता .है / वह व्यक्ति यदि कहता है कि- मैंने प्राण, भूत, जीव, सत्त्वों की हिंसा का त्याग कर दिया है, तो वह सत्य नहीं, अपितु झूठ बोलता है / क्योंकि- वह तीन करण एवं तीन योग से असंयत है / अव्रती है / पाप कर्म का त्यागी नहीं है। किंतु पापक्रिया युक्त है, असंवृत है, एकान्त दण्ड रूप है; एकान्त बाल-अज्ञानी है, इस लिए उसका प्रत्याख्यान, दुष्प्रत्याख्यान है / और जो मनुष्य जीवाजीव एवं त्रस-स्थावर आदि तत्त्वों का ज्ञाता है और यदि वह कहे कि- मैंने प्राण, भूत आदि की हिंसा का त्याग कर दिया है, तो वह सत्य बोलता है, क्योंकिवह तीन कारण एवं तीन योग से संयत है, व्रती है; पाप कर्म का त्यागी है, पापक्रिया रहित है, संवृत्त है, एकान्त पंडित याने ज्ञानी है, इसलिए उस का प्रत्याख्यान, सुप्रत्याख्यान है / अस्तु, इससे स्पष्ट हो गया कि- ज्ञान पूर्वक किया गया त्याग ही, कर्म बन्धन को तोड़ने में सहायक होता है, एवं निर्जरा का कारण बनता है / अस्तु, प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि- मुमुक्षु अग्निकाय के आरम्भ-समारम्भ को जानने के पश्चात् उममें प्रवृत्त नहीं होता / जब तक वह उसके स्वरूप को भलीभांति नहीं