Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी-टीका 卐१-१-५-१(४०) 229 नि. 137 * जहां एक जीव श्वास योग्य पुद्गल लेता है वहां वह श्वास सभीके लिये होता है, इसी प्रकार जहां बहुत जीव श्वास ग्रहण करते हैं वह एक को भी होता है... क्योंकि- साधारण वनस्पतिकाय जीवों की परिस्थिति हि ऐसी हैं... अब जो वनस्पति बीजसे अंकुरित होतें है, वे किस प्रकार प्रगट होते हैं, वह कहतें हैं.. नि. 138 जीवोंकी उत्पत्ति स्थानको योनि कहतें हैं... बीजकी अवस्था दो प्रकारकी होती है. योनि-अवस्था.और अयोनि-अवस्था... अर्थात् अक्षतयोनि और क्षतयोनि... जीवने त्याग कीया हुआ बीज जब तक योनि-अवस्थाका त्याग नहिं करता तब तक वह बीज योनिभूत अर्थात् अक्षतयोनि कहा जाता है... उस योनिभूत बीजमें जीव उत्पन्न होता है... वह बीज का जीव अथवा अन्य कोई भी जीव वहां आकर उत्पन्न होता है... सारांश यह है कि- जब उस बीजके जीवने आयुष्यकर्म क्षय होनेसे बीजका त्याग कीया हो, उसके बाद जब उस बीजको पृथ्वी और जल आदिका संयोग मीले तब 'कभी (सायद) वह हि जीव आकर उत्पन्न होता है, अथवा तो और कोइ जीव आकर उत्पन्न होता है... अब जो जीव मूल रूपसे उत्पन्न हुआ हो वह हि जीव प्रथम (पहले) पत्र स्वरूप भी बनता है... क्योंकि- मूल-पत्तेको एक हि जीव बनाता है... पृथ्वी, जल और काल (समय) की अपेक्षा वाली यह हि बीजकी उत्पत्ति है... यह बात नियम सूचक है... बाकीके किशलय (कुंपल) आदि सभी अवयव मूल-जीवके परिणाम नहीं होतें, किंतु अन्य जीव आकर उत्पन्न होतें हैं... कहा भी है कि- सभी किशलय (कुंपल) उत्पन्न होती वख्त अनंतकाय साधारण होते हैं... और बादमें प्रत्येक होतें हैं... ऐसा सूत्रमें कहा है... . अब साधारण वनस्पतिकायका लक्षण कहतें हैं... नि. 139 1. चक्रक = जिस वनस्पतिके मूल, कंद, छाल, पत्ते, फुल और फल आदिको तोडनेसे यदि चक्र के आकारसे समान टूकडे हो, वह चक्र क साधारण वनस्पतिकाय... 2. ग्रंथि = पर्व अथवा तो भंग (तुटने) का स्थान, कि जो चूर्ण (रजःकण) से व्याप्त (भरपुर) हो, वह... अथवा जिस वनस्पतिको तोडने (भांगने) से पृथ्वीके सरीखे भेदसे जलसे भरे केदार (क्यारे) के उपर शुष्क-तरिकाकी तरह पुटभेदसे तुटती है, वह अनंतकाय (साधारण) है...