Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र आहोरी-हिन्दी-टीका 卐१-१-५-१ (40) 233 माला- नवमल्लिका, बकुल, चंपक, पुन्नाग, अशोक, मालती, विचकिल (मोगरो) आदि... घ्मापन- इंधनसे जलाना... * 8. 9. वितापन... शीत (ठंड) दूर करनेके लिये लकडी जलाना... तेल... तिल, अलसी, सरसों, इंगुदी, ज्योतिष्मती, करंज आदि... उद्योत... वर्ति (दीवेट) तृण, चूडा, काष्ठ आदिसे इस प्रकार वनस्पतिकायके उपभोगके स्थान = प्रकार कहकर, अब उपसंहार करते हुए कहतें हैं कि नि. 148 इस प्रकार दो गाथाओंसे कहे गये कारणोंको लेकर साता-सुखके लिये मनुष्य प्रत्येक एवं साधारण वनस्पतिकायकी हिंसा करता है... जीव अपने वैषयिक साता-सुखके लिये अन्य वनस्पति आदि जीवोंको दुःख होता है.... अब शख द्वार कहतें हैं... द्रव्य और भाव भेदसे शसके दो प्रकार है, और उनमें द्रव्यथरके भी समास तथा विभाग ऐसे दो भेद है, उनमें समास द्रव्यशास्त्रका स्वरूप कहतें नि. 149 1. कल्पनी = जिससे वनस्पति छेदी जाये वह२. कुठारी = कुहाडी - पेड-वृक्ष काटनेका साधन... 3. असियग-दात्र हंसिया गंडासा (दातरडु 4. दात्रिका - छोटी हंसिया (दातरडी) 5. कुद्दालक - कुदाली, कुदाल, खंता 6. वासि वांसलो वसूला (फरसी) 7. परशु - कुहाडी, फरसी, कुहाडो... यह सभी वनस्पतिके शस्त्र हैं तथा हाथ, पाउं, मुख, अग्नि आदि सभी, सामान्यसे