Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 232 // 1-1 - 5 - 1 (40) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन होती है... वे इस प्रकार- पर्याप्त बादर निगोद से अपर्याप्त बादर निगोद... / अपर्याप्त बादर निगोदसे अपर्याप्त सूक्ष्म निगोद अधिक होतें हैं, और उनसे पर्याप्त सूक्ष्म निगोद अधिकअधिकतर हैं... इस प्रकार चारों प्रकारके निगोद-अनंतकायका अल्पबहुत्व कहा... तथा साधारण वनस्पतिकायके जीव उनसे अनंतगुण अधिक होतें हैं, यह चारों प्रकारकी राशिके निगोदके जीवोंका परिमाण (संख्या) कहा... परिमाण-द्वारके बाद अब उपभोग-द्वार कहतें हैं... नि. 146 1. आहार- फल, पत्ते, किशलय (कुंपल), मूल, कंद और छाल आदिसे बना हुआ आहार... ल >> 2. उपकरण- पंखा, कडे, कवल, कार्गल (कागज) आदि... शयन... खाट पाटिये आदि... आसन... कुर्शी (चेर) आदि... 5. यान... पालखी, आदि... युग्य... गाडा (बैलगाडी) आदि... ____ आवरण... पाटिये, दरवाजे आदि... 8. प्रहरण... लकडी, मुसुंढी आदि... शस्त्रोंके प्रकार... बाण, दातरडा, तरवार, छुरी, आदि गंड (हाथा) आदि स्वरूप उपयोग... >> / इसी प्रकार वनस्पतिकाय का और भी अनेक प्रकारसे उपयोग होता है... नि. 147 1. आतोद्य... पटह (ढोल) भेरी, वांसली, वीणा, झालर आदि... काष्ठकर्म- प्रतिमा, थंभे. बारशाख आदि... गंधांग- बालक प्रियंगु, पत्रक दमनक, त्वक् चंदन उशीर देवदारु आदि... वस्त्र- वल्कल (छालके वस्त्र) कपास (रुइ) आदि