Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 1 - 4 - 3 (34) // 211 ग्रह, नक्षत्र आदि तेजका पराभव... और भाव-अभिभव याने परीषह तथा उपसर्गकी सेना तथा ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय एवं अंतराय कर्मोका क्षय... क्योंकि- परीषह एवं उपसर्गादिकी सेनाके विजयसे निर्मल चारित्र प्राप्त होता है, और विशुद्ध चारित्रसे हि ज्ञानावरणीयादि कर्मोका क्षय होता है... और उन घातिकर्मोके क्षयसे हि निरावरण एवं अप्रतिहत ऐसा केवलज्ञान प्रगट होता है... सारांश यह है कि- परीषह, उपसर्ग, ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय एवं अंतरायका पराभव करके, केवलज्ञान पाकर उन वीर पुरुषोंने यह अग्नि को शस्त्र और संयम को अशस्त्र देखा है... और वे वीर पुरुष प्राणातिपातादि पापोंसे संयत हैं, तथा सदैव मूल एवं उत्तर गुण स्वरूप चारित्रकी प्राप्तिमें निरतिचारवाले होनेसे यत्नवंत हैं तथा मद्य, विषय, कषाय, विकथा एवं निद्रा स्वरूप प्रमादके त्यागसे सदैव अप्रमत्त हैं... ऐसे स्वरूपवाले वीर पुरुषोंने केवलज्ञान चक्षुसे दीर्घलोकशख और अथरत्र याने संयम को प्राप्त कीया है... यहां “यत्न' शब्दसे ईर्यासमिति आदि गुण समझीयेगा और “अप्रमत्त' शब्दसे मद्य आदिसे निवृत्ति (विरमण) समझीयेगा... इस प्रकार श्रेष्ठ पुरुषोंने कहे हुए अग्निशस्त्र के अपाय (उपद्रव) को देख कर अप्रमत्त साधुजन अग्निकायके आरंभका त्याग करतें हैं... इस प्रकार अनेक दोषवाले अग्निशस्त्रको जानकर भी, जो शाक्य आदि साधु एवं गृहस्थ लोग उपभोगके लोभसे, प्रमादके आधीन बनकर अग्निशस्त्रका त्याग नहिं करतें हैं, अतः उन्हें होनेवाले अशुभ-विपाक को बतलाते हुए सूत्रकार महर्षि आगेका सूत्र कहेंगे... VI सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में यह बताया गया है कि- पूर्व सूत्र में अग्निकाय रूप शस्त्र एवं अशस्त्र रूप संयम के स्वरूप को जानकर अग्निकाय के आरम्भ से निवृत्त हो कर संयम में प्रवृत्त होने की जो बात कही गई वह नितांत सत्य है, क्योंकि- वीर पुरुषों ने अर्थात् सर्वज्ञ एवं सर्वदर्शी पुरुषों ने उसे देखा है / अतः अग्निकाय के आरंभ-समारंभ से निवृत्त होने रूप संयम मार्ग, सर्वज्ञ द्वारा प्ररूपित होने से वास्तविक पथ है; इसमें संशय को जरा भी अवकाश नहीं इस तरह सूत्रकार ने मुमुक्षु के मन में ज़रा भी संशय पैदा न हो, इस दृष्टि से प्रस्तुत सूत्र के द्वारा मुमुक्षु के मन का पूरा समाधान करने का प्रयत्न किया है / हम सदा देखते हैं कि- जब किसी बात पर किसी प्रमाणिक व्यक्ति की सम्मति मिल जाती है, तो व्यक्ति को उस बात पर पूरा विश्वास हो जाता है / अतः सूत्रकार ने इस बात को परिपुष्ट कर दिया