Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 174 1 - 1 - 3 - 5 (23) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन धातु का तात्पर्य है-जानना। अस्तु 'अभिसमेच्चा' का अर्थ हआ सम्यक प्रकार से जानकर / इस तरह प्रस्तुत सूत्र में सूत्रकार ने यह कहा है कि- भगवान की वाणी से अप्काय के जीवों के स्वरूप को जानकर, भगवान की आज्ञा के अनुसार उन की यतना करे / अब सूत्रकार अप्काय में जो चैतन्य-संजीवता है; उसका अपलाप न करने की प्रेरणा, आगे के सूत्रसे कहेंगे... I सूत्र // 5 // // 23 // से बेमि, नेव सयं लोगं अब्भाइक्खिज्जा, नेव अत्ताणं अब्भाइक्खिज्जा... जे लोयं अब्भाइक्खड़ से अत्ताणं अब्भाइक्खड़, जे अत्ताणं अब्भाइक्खड़ से लोयं अब्भाइक्खड़ // 23 / / II संस्कृत-छाया : सोऽहं ब्रवीमि, नैव स्वयं लोकं प्रत्याचक्षीत, नैव आत्मानं प्रत्याचक्षीत / य: लोकं अभ्याख्याति सः आत्मानं अभ्याख्याति, यः आत्मानं अभ्याख्याति सः लोकं अभ्याख्याति // 23 // III शब्दार्थ : से-वह (मैं) तुम्हारे प्रति / बेमि-कहता हूं कि- / णेव-नहीं / सयं-अपनी आत्मा से / लोयं-अप्काय रूप लोक का | अब्भाइक्खिज्जा-अभ्याख्यान-अपलाप करें। अत्ताणंआत्मा का / अब्भाइक्खिज्जा-णेव-निषेध नहीं करना चाहिए / जे-जो व्यक्ति / लोयं-अप्काय रूप लोक का / अभाइक्खइ-निषेध करता है / से-वह / अत्ताणं-आत्मा का / अब्भाइक्खइ-निषेध करता है / जे-जो / अत्ताणं-आत्मा का निषेध करता है / से-वह / लोयं अभाइक्खड-अप्काय रूप लोक का निषेध करता है / . IV सूत्रार्थ : वह मैं (सुधर्मास्वामी) तुम्हें कहता हुं... कि- अप्काय लोकका तुम खुद अपलाप न करें, और आत्माका भी अपलाप न करें... जो (मनुष्य) लोकका अपलाप करता है, वह आत्माका अपलाप करता है, और जो आत्माका अपलाप करता है, वह लोक (अपकाय) का अपलाप करता है || 23 // V टीका-अनुवाद : "से" शब्दका अर्थ है “वह मैं" अथवा तो "तुम्हें" कहता हूं कि- तुम स्वयं अप्काय जीवोंका अभ्याख्यान न करें... अभ्याख्यान याने अपलाप अथवा तो जुठा आरोप... जैसे कि