Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1-1 - 3 - 8 (26) 185 IV सूत्रार्थ : अपकाय के विविध प्रकारके शस्त्र कहे गये हैं // 26 // v टीका-अनुवाद : परमात्माने जल (अप्काय) के विविध प्रकारके उत्सेचनादि शस्त्र कहे है अथवा तो पाठांतरसे - विविध प्रकारके शस्त्रोंके द्वारा परिणत याने अचित्त हुआ जल का उपभोग कर्मबंधका कारण नहिं बनता. अपाश याने अबंधन है, अर्थात्- साधुओंको सचित्त तथा मिश्र अप्कायको छोडकर अचित्त अप्कायका उपभोग बतलाया है... क्योंकि- ऐसी स्थितिमें कर्मबंधन नहि होतें... तथा जो शाक्य आदि मतवाले साधुलोग सचित्त अप्कायके उपभोगमें प्रवृत्त होते हैं, वे अप्कायके जीवोंकी हिंसा करते हैं और जलमें रहे हए अन्य मच्छलीयां आदि जीवोंकी भी हिंसा करतें हैं... ऐसा करनेसे केवल प्राणातिपात स्वरूप पाप हि लगता है, ऐसा नहिं, किंतु और भी पाप लगतें हैं... यही बात अब, सूत्रकार महर्षि आगे के सूत्रसे कहेंगे... VI सूत्रसार : ___ प्रस्तुत सूत्र में यह बताया गया है कि- शस्त्रों के प्रयोग से अप्काय-जल अचित्त हो जाता है / वे शस्त्र है कि-जिनके द्वारा अप्काय निर्जीव होता है, और वे शस्त्र तीन प्रकार के बताए गए हैं-१-स्वकाय रूप, २-पर काय रूप और 3-उभयकाय स्वरूप अर्थात् अप्दय का शरीर भी अप्काय के लिए शस्त्र हो जाता है और दूसरे पृथ्वीकाय आदि तीक्ष्ण निमित मा साधनों से भी अप्काय-जल निर्जीव हो जाता है / जैनागमों ने जीवों का आयुष्य दो प्रकार का माना है-१-निरुपक्रमी और २-सोपक्रमी। जिन प्राणियों का आयुष्य जितने समय का बन्धा है, उतने समय के बाद ही वे अपने प्राणों का त्याग करते हैं, अर्थात उसके पहले उनकी मृत्यु नहीं होती, उसे निरुपक्रमी आयुष्य कहते हैं अर्थात् किसी उपक्रम या आघात के लगने पर भी उनका आयुष्य तूटता नहीं है, और जो सोपक्रमी आयुष्य वाले जीव होते हैं, उनका आयुष्य शस्त्र आदि का निमित्त मिलने पर जल्दी भी समाप्त हो सकता है / इसका यह अर्थ नहीं है कि वे अपने बांधे हुए आयुकर्म को पूरा नहीं भोगते / आयुकर्म को तो वे पूरा ही भोगते हैं, यह बात अलग है कि बहुत देर तक भोगने वाले आयुष्य को वे किसी निमित्त कारण शीघ्र ही भोग लेते हैं / जैसे तेल से भरा हुआ दीपक रात्रि पर्यन्त जलता रहता है, परन्तु यदि उसमें एक वर्तिका के स्थान में दो, तीन या दसबीस वर्तिका लगा दी जाएं तो वह जल्दी ही बुझ जाएगा / रात्रि पर्यन्त चलने वाला तेल अधिक वर्तिका का निमित्त मिलने से जल्दी ही समाप्त हो जाता है / इसी तरह कुछ निमित्त या शस्त्र प्रयोग से सोपक्रमी आयुष्य वाले जीव भी अपने आयकर्म को जल्दी ही भोग लेते हैं / अप्काय