Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 190 // 1-1-3-10(28) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन III शब्दार्थ : कप्पड़-कल्पता है / णे-हम को / कप्पड़-कल्पता है / पाउं-पीने के लिए / अदुवाअथवा / विभूसाए-विभूषा के लिए / IV सूत्रार्थ : हम लोगोंको जल पीनेके लिये कल्पता है, अथवा विभूषाके लिये भी कल्पता है... v टीका-अनुवाद : सचित्त जलका उपभोग करनेवाले शाक्य आदि मतवाले साधुओंको मनाइ करने पर वे कहते हैं कि- हम अपने मनसे (इच्छासे) इन अप्काय-जलका समारंभ नहिं करतें हैं, किंतु हमारे शास्त्रमें यह जल निर्जीव मानकर, उनके उपभोगकी मनाइ नहिं की है... अतः हम साधुओंको पीना कल्पता है, और यह पद दो बार कहनेसे विविध प्रकारके प्रयोजनको लेकर उपभोगकी भी अनुज्ञा दी है... जैसे कि- आजीविक- भस्म- न्यायादि मतवाले कहतें हैं किहमें जल पीना कल्पता है, स्नान करना नहि कल्पता... शाक्य- परिव्राजक आदि मतवाले कहतें हैं कि- स्नान, जलपान, एवं अवगाहन (डूबकी लगाना) इत्यादि हमें कल्पता है... यही बात विस्तारसे कहते हैं... हमारे शास्त्रमें विभूषाके लिये जलका उपभोग करनेका फरमान दीया है... विभूषा याने हाथ-पाउं-मुख-लघुनीति-(पेसाब-मूत्रंद्रिय) वडीनीति (मल विसर्जन-गुदा) इत्यादि धोनेका फरमान है, तथा वस्त्र-पात्र आदि भी धोनेका फरमान है... इस प्रकार स्नान आदि शौचविधि करनेमें कोई दोष नहिं है... इस प्रकार वे कुमतवाले परिव्राजक आदि अपने शास्त्रको आगे करके, पाप-वचनोंसे मुग्ध (भोले-भाले) मनुष्योंको मोहित करने के लिए क्या कहतें है, वह बात अब सूत्रकार महर्षि आगे के सूत्रसे कहेंगे... VI सूत्रसार : जैनेतर परम्परा में सचित्त जल के संबन्ध में क्या व्यवस्था है, इस बात को प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है / यह तो स्पष्ट है कि जल याने पानी की सजीवता को जैनों के अतिरिक्त किसी ने माना ही नहीं / इसलिए जैनेतर शास्त्रों में उसकी सजीवता एवं उसके निषेध का वर्णन नहीं मिलता / इस कारण जैनेतर परम्परा में प्रवृत्तमान साधु-संन्यासी सचित्त जल का उपभोग करते हुए संकुचाते नहीं, क्योंकि उन्हें इस बात का बोध ही नहीं कि यह भी जीव है, चेतन है / इसलिए वे उस की हिंसा से बचने का प्रयत्न न करके, सदा उसके आरम्भ-समारम्भ में संलग्न रहते हैं / सचित्त जल का उपयोग करने वाले विचारकों में भी मतैक्य नहीं है / आजीविक एवं भस्मस्नायी परम्परा के अनुयायी कहते हैं कि हमारे सिद्धान्त के अनुसार सचित्त जल पीने.