Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 162 1 - 1 - 3 - 1 (19) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन वह हाथीका जीव द्रव और चेतन माना गया है, ठीक इसी हि तरह अप्काय जीव भी द्रव स्वरूप चेतन हि है... अथवा तो उदक (जल) प्रधान अंडे, अभी उत्पन्न हुए उदकाण्डे, उनमें रहा हुआ रस-मात्र कि- जहां पक्षीके चंचु आंखे आदि अंगोपांग अवयव स्पष्ट रूपसे प्रगट नहिं हुए है फिर भी सचेतन माना गया है... बस इसी प्रकार अप्काय जीवोंको मानना चाहिये... जैसे कि- हाथीका कलल प्रमाण शरीर जब महाकाय हाथीके स्वरूपमें परिणत (प्रगट) होता है तब हि सुगमतासे उसे जीव समझा-माना जाता है अभी उत्पन्न हुआ याने सात दिनका समझना चाहिये... क्योंकि- हाथीके उत्पत्तिके पहेले सात दिनोंकी अवस्थाको कलल कहते हैं... उसके बाद उसे अर्बुद आदि शब्दोंसे पहचाना जाता है... पक्षीओंके अंडे में भी उदक (जल) शब्दका ग्रहण इसी अर्थमें हि है... प्रयोग इस प्रकार है- जल सचेतन है, शस्त्रसे नष्ट न होनेकी स्थितिमें... द्रवत्वके कारणसे... हाथीके शरीरके निर्माणके मुख्य उपादान कारण स्वरूप कलल की तरह... सचेतन विशेषण इसलीये ग्रहण कीया है किप्रश्रवण (पेसाब-लघु नीति) द्रव होते हुए भी अप्काय नहिं माना है..... इसी प्रकार- जल सजीव है, अनुपहत द्रव होनेके कारणसे... पक्षीके अंडे में रहे हुए द्रव कललकी तरह... इसी प्रकार जल अपकाय जीवोंका शरीर हि है... क्योंकि- वे छेदन योग्य है, भेदन योग्य है. फेंकने योग्य है, भोजन (पीने) योग्य है, भोग्य : भोगने योग्य है, सुंघने योग्य है, स्वाद करने योग्य है, स्पर्श करने योग्य है, दृश्य = देखने योग्य है, द्रव्य - वस्तु स्वरूप है, इसी प्रकार और भी शरीरके सभी धर्मोको घटित करें... गगन = आकाशको छोडकर शेष सभी भूत (पंचभूत) के रूपवालापना, आकारवालापना इत्यादि धर्मोको घटित करें... जैसे गाय-बैलके सास्ना (गले की गोदडी) सींगडे (शृंग) आदि की तरह... प्रश्न- रूप, आकार आदि (पंचभूत) भूतके धर्म परमाणुओंमें भी घटित तो होते हि हैं, अतः यह हेतु-कारण अनैकांतिक दोषवाला है... उत्तर- नहि, ऐसा नहि है, क्योंकि- जो यहां अप्कायमें छेदन योग्य इत्यादि हेतु-कारण बताये है वे सभी इंद्रियके व्यवहारमें समझे = जाने जा शकते हैं... परमाणु ऐसे नहिं है... अतः इस प्रकरण में अतींद्रिय परमाणुका ग्रहण नहिं किया है... अथवा तो यह विपक्ष हि नहिं है क्योंकि- सभी पुद्गल द्रव्य, द्रव्य शरीरके रूपसे तो हमने स्वीकारा हि है, विशेष तो यह है कि- जीव सहित शरीर और जीव रहित शरीर... इस प्रकार शरीरकी सिद्धि होनेसे- अब अनुमान प्रमाणका प्रयोग करते हैं... . हिम आदि सचेतन है, अप्काय है इसलिये, अन्य जलकी तरह...