Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 1 - 3 - 1 (19) 159 श्रुतस्कंध - 1 अध्ययन - 1 उद्देशक - 3 卐 अपूकाय - जल... ' पृथ्वीकायका उद्देशक पूर्ण हुआ, अब अप्कायके उद्देशकका आरंभ करतें हैं... यहां पूर्वक उद्देशकमें पृथ्वीकाय-जीवोंका प्रतिपादन कीया, और उनके वधमें कर्मबंध होता है अतः उनके वधसे विरति करना चाहिये... यह सभी बात हुइ... अब क्रमानुसार अप्कायके जीवोंकी सिद्धि करके उनके वधमें कर्मोका बंध तथा उनके वधके विरमणका प्रतिपादन करते हैं... इस तीसरे उद्देशकके चार अनुयोग द्वार प्रथम कहना चाहिये... नाम निष्पन्न निक्षेपमें अप्कायका उद्देशक है... पृथ्वीकाय जीवोंका स्वरूप जाननेके लिये जो निक्षेप आदि नव द्वार कहे हैं, वे हि नव द्वार यहां अपकायके जीवोंके अधिकारमें समान रूपसे हि बहुत सारी बातें समझ लीजीयेगा... उनमें जहां जहां विशेष बातें हैं, उन्हें नियुक्तिकार श्री भद्रबाहुस्वामीजी कहते हैं... नि. 106 पृथ्वीकायके अधिकारमें जो नव द्वार कहे गये है, वे हि नव द्वार यहा अपकायके जीवोंमें भी घटित करता है... किंतु जो विशेष बातें हैं वे यहां कहतें हैं... विधान - परिमाण = उपभोग = शस्त्र - लक्षण = प्रकार - भेद - प्रभेद... संख्या - प्रमाण उपयोग के प्रकार वध के कारण स्वरूप-लक्षण . 4. अब विधान की प्ररूपणामें अप्काय जीवोंके भेद प्रभेद नियुक्ति गाथासे कहते हैं... नि. 107 अप्कायके जीवोंके मुख्य दो भेद है... 1. सूक्ष्म अप्काय 2. बादर अप्काय