Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1-1-2 - 1 (14) 133 आदि अंगोपांग नहिं होते हैं, तो भी उनको अंगोपांगादिके छेदन-भेदन स्वरूप वेदना-पीडा तो होती हि है... यही बात स्पष्ट समझाते हुए कहते हैं... नि. 98 पृथ्वीकायको मनुष्यकी तरह अंगोपांग नहिं है, फिर भी छेदन-भेदनादि स्वरूप वेदना तो होती हि है... पृथ्वीकायका आरंभ करनेवाला मनुष्य कितनेक पृथ्वीकायको दुःख देता है, और कितनेक पृथ्वीकायके प्राणोका नाश (वध) करता है... भगवती सूत्रमें दृष्टांत कहा है किकोइक चक्रवर्तीकी सुगंधीचूर्ण पीसनेवाली बलवती यौवना स्त्री आंवला प्रमाण पृथ्वीकायके गोले (पिंड) को इक्किस बार गंधपट्टकके उपर पत्थरसे पीसे (घीसे) तब कितनेक पृथ्वीकायसे संघट्टन हुआ, कितनेक को परिताप (पीडा) हुइ और कितनेक मर गये... जब कि बाकी के जीवोंको उस पत्थरने स्पर्श भी नहिं कीया है... अब वध द्वार कहते हैं... नि. 99 इस जगतमें कीतनेक कुमतवाले साधुके वेष (कपडे) को पहनकर कहते हैं कि- हम साधु हैं... किंतु वे निर्दोष क्रिया स्वरूप साधु-जीवन नहिं जीते हैं... वे इस प्रकार- रात-दिन पृथ्वीकाय जीवोंको पीडा दायक “हाथ-पाउं गुदा इत्यादि धोना" इत्यादि क्रियांओके द्वारा रातदिन पृथ्वीकाय जीवोंको पीडा-दुःख देते है... कि जो शुद्धि अन्य प्रकारसे भी हो शकती है... इस प्रकार साधु-गुणसे शून्य वे लोग सच्चे साधुपनेको धारण नहिं करतें... गाथाके इस पूर्वार्धसे प्रतिज्ञा कही है, अब उत्तरार्धसे हेतु कहते हैं... जैसे कि- अपने को साधु माननेवाले कुमतवाले वे लोग साधु योग्य जीवन नहिं जीते किंतु पृथ्वीकायकी हिंसा करते हैं... जो जो लोग पृथ्वीकायकी हिंसा करते हैं वे साधु नहिं है किंतु गृहस्थ हि है... अब दृष्टांत के साथ निगमन करते हैं... नि. 100 "हम साधु हैं' ऐसा बोलनेवाले पृथ्वीकायकी हिंसा करते हैं, अतः वे गृहस्थके समान हि है... "पृथ्वी सजीव है" ऐसा ज्ञान न होने के कारणसे पृथ्वीकायकी विराधना करनेवाले दोषयुक्त हि है, फिर भी हम दोष रहित हैं ऐसे मानते हुए अपने दोषको नहि देख पाते... और मलीन हृदयवाले अपनी कुमतिकी चतुराइसे निर्दोष अनुष्ठान स्वरूप विरति-चारित्रधर्मकी निंदा करनेके कारणसे अतिशय मलीन बनते हैं... इस प्रकार सच्चे साधुओंकी निंदा करनेसे वे अनंत संसारमें परिभ्रमण करनेवाले होते हैं...