Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 132 #1 -1 - 2 - 1(14) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन यह कहना चाहतें हैं कि- भूमिके दान में भी शुभफलकी प्राप्ति लोकव्यवहारमें मान्य है किंतु लोकोत्तर व्यवहारमें तो स्पष्ट हि पृथ्वीकायकी विराधना हि है... अब शस्त्र द्वार कहते हैं... शस्त्रके दो प्रकार है 1. द्रव्य शस्त्र 2. भावशस्त्र... द्रव्यशस्त्र के भी दो भेद है... 1. समास द्रव्यशस्त्र 2. विभाग द्रव्य शस्त्र... अब समास द्रव्य-शस्त्र का स्वरूप कहतें है... नि. 95 हल, कुलिक, विष (जहर) कुद्दाली, आलित्रक, मृगशृंग, काष्ठ, अग्नि, मल-विष्टा, मूत्र, . ' यह सभी समास (संक्षेप) से द्रव्य शस्त्र है... नि. 96 अब विभाग द्रव्य शस्त्रका स्वरूप कहते है... स्वकायशस्त्र - परकायशस्त्र उभयकाय शस्त्र पृथ्वीकाय का पृथ्वीकाय शस्त्रपृथ्वीकाय का जल, अग्नि आदि... .. पृथ्वीकाय का पृथ्वी-जल मिश्रित शस्त्र... पृथ्वीकाय का पृथ्वी-अग्नि मिश्रित शस्त्र... पृथ्वीकाय का पृथ्वी-वायु मिश्रित शस्त्र... पृथ्वीकाय का पृथ्वी-वनस्पति मिश्रित शस्त्र... पृथ्वीकाय का पृथ्वी-त्रसकाय मिश्रित शस्त्र... यह सभी द्रव्य शस्त्र है... अब भाव-शस्त्र कहते हैं... दुष्ट (अशुभ) मन-वचन तथा काया स्वरूप असंयम हि भाव शस्त्र है... अब वेदना द्वार कहते हैं... नि. 97 जिस प्रकार मनुष्यके शरीरके पाउं-हाथ आदिके एक अंग या प्रत्यंगके छेदन- . भेदनादिसे जीवको दुःख होता है, उसी हि प्रकार पृथ्वीकाय-जीवोंको भी वेदना-पीडा होती है... जो कि- पृथ्वीकाय जीवोंको मनुष्यकी तरह हाथ-पाउं, मस्तक, गरदन, पेट, पीठ, आंख, कान