Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी-हिन्दी-टीका 卐१-१-१-२॥ 53 % 3D अब प्रज्ञापक - दिशाओंका स्वरूप कहते हैं... नि. 51 प्रज्ञापक = विद्वान् पुरूष जहां कहीं भी रहकर निमित्त - लक्षण कहते हैं तब उनके मुखताली दिशा पूर्व समझीयेगा और पृष्ठ-पीछे की दिशा पश्चिम कही गइ है... इस प्रकार प्रवचन-कथा कहनेवाले के लिये भी यह हि सुझाव दर्शाया है... शेष - काकीकी दिशाओंको पहचानने के लिये कहते हैं... नि. 52 प्रज्ञापक के दायें हाथ की और दक्षिण दिशा तथा बायें हाथ की और उत्तर दिशा... इन चारों दिशाओंके बीच चार अन्य विदिशाएं हैं... नि. 53 . इन चार दिशा एवं चार विदिशा = आठ दिशाओंके बीचमें अन्य भी आठ दिशाएं होती है इस प्रकार सोलह (16) दिशाएं शरीरकी उंचाइ एवं चौडाई के नापकी तिरच्छी (साइड) दिशाएं है... .नि. 54 चरण = पैरके नीचेकी और अधोदिशा... एवं मस्तकके उपरकी और उर्वदिशा... इस . प्रकार 16 + 2 = 18 अठारह प्रज्ञापक दिशाएं है... नि. 55 इस प्रकार प्रकल्पित दश एवं आठ दिशाओं के नाम अनुक्रमसे कहते हैं... नि. 56 1. पूर्व 2. 3. 3. दक्षिण पूर्व - दक्षिण कोना (अग्नि) दक्षिण - पश्चिम कोना (नैऋत्य) पश्चिम - उत्तर कोना (वायव्य) उत्तर - पूर्व कोना (ईशान) 5. पश्चिम उत्तर 8. नि. 57 सामुत्थाणी 10. कपिला 11. खेलनीया 12. अहिधर्मा