Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 76 # 1-1-1-4 श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन तब इस का अर्थ हुआ कि-उत्पत्ति शील या जन्मांतर में संक्रमण करने वाला / प्रस्तुत प्रकरण में 'औपपातिक' दोनों अर्थों में प्रयुक्त किया जा सकता है / फिर भी शीलांकाचार्य आदि सभी टीकाकारों ने प्रस्तुत प्रकरण में उक्त शब्द को उत्पत्ति अर्थ में ही प्रयुक्त किया है। प्रस्तुत सूत्र में " एगेसिं णो णायं भवति " ऐसा उल्लेख किया गया है / इससे यह भलीभांति स्पष्ट हो जाता है कि संसार के सभी जीवों को बोध नहीं होता, ऐसी बात नहीं है। बहुत से जीवों को ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम के कारण इस बात का परिबोध हो जाता है कि " मैं उत्पत्ति-शील हूं / " मैं अमुक गति से आया हूं और यहां से मरकर अमुक गति में जाऊंगा / मेरी आत्मा का स्वतन्त्र अस्तित्व है, इत्यादि / इससे यह प्रश्न उठता है कि जिन जीवों को उक्त बातों का परिज्ञान होता है, वह नैसर्गिक-स्वभावतः होता है या किसी निमित्त या साधन विशेष से होता है / इस प्रश्न का समाधान अगले सूत्र में किया जाएगा। I सूत्र // 4 // से जं पुण जाणेजा सह संमइयाए परवागरणेणं अण्णेसिं अंतिए वा सोचा, तं जहापुरत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, जाव अण्णयरीओ दिसाओ अणुदिसाओ वा आगओ अहमंसि, एवमेगेसिं जं नायं भवति - अस्थि मे आया उववाइए, जो इमाओ (दिसाओ) अणुदिसाओ वा अणुसंचरइ, सव्वाओ दिसाओ अणुदिसाओ, सोऽहं // 4 // II संस्कृत छाया : स यत् पुनर्जानीयात् सह सन्मत्या (स्वमत्या), परव्याकरणेन अन्येषामन्तिके वा श्रुत्वा, तपथा-पूर्वस्या वा विद्याया आगतोऽहमस्मि यावत् अन्यतरस्या विद्योऽनुविधो वा आगतो अहमस्मि / एवमेकेषां यद् ज्ञातं भवति, अस्ति मे आत्मा औपपातिकः, योऽस्या दियोऽनुदियो वा अनुसंचरति, सर्वस्या दिशोऽनुविधः, सोऽहम् / III शब्दार्थ : से-वह ज्ञाता / पुण-यह पद वाक्य सौन्दर्य के लिए प्रयुक्त किया गया है / संमइयाएसन्मति या स्वमति / परवागरणेणं-तीर्थंकर के उपदेश के / सह-साथ / वा-अथवा / अण्णेसिं अन्तिए सोच्चा-तीर्थंकरों से अतिरिक्त अन्य उपदेष्टाओं से सुनकर / जं-जो जाणेज्जाजानता है / तंजहा-वह इस प्रकार है / पुरत्थिमाओ वा दिसाओ-पूर्व दिशा से। आगओ अहमंसि-मैं आया हूं / जाव-यावत्-यह पद यह अपठित अवशिष्ट पदों का संसूचक अव्यय है / अण्णयरीओ-विदिशा से / आगओ अहमंसि-मैं आया हूं / एवमेगेसिं-इसी प्रकार किन्हीं जीवों को / जं-जो / णायं-ज्ञात / भवति-होता है, वह यह है कि, मे-मेरा / आया-आत्मा। उववाइए-औपपातिक-जन्मान्तर में संक्रमण करने वाला / अत्थि-है। जो इमाओ दिसाओ