Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 110 1 - 1 - 1 - 9 // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन १-शीत योनि- जिस उत्पत्ति स्थान में शीत स्पर्श पाया जाए उसे शीत योनि कहते हैं / २-उष्ण योनि- जिस उत्पत्ति स्थान का स्पर्श ऊष्ण हो उसे ऊष्ण योनि कहा है / 3-शीतोष्ण योनि- जिस उत्पत्ति स्थान का स्पर्श कुछ शीत और कुछ ऊष्ण है, उसे शीतोष्ण योनि कहा है / ४-सचित्त योनि- जो उत्पत्ति स्थान जीव प्रदेशों से अधिष्ठित है, संयुक्त है, उसे सचित्त योनि कहते हैं / ५-अचित्त-योनि- जो उत्पत्ति स्थान जीव प्रदेशों से युक्त नहीं है, उसे अचित्त योनि कहा है। ६-सचित्ताचित्त योनि- जिस उत्पत्ति स्थान का कुछ भाग आत्म प्रदेशों से युक्त है और कुछ भाग आत्म प्रदेशों से रहित हो, उसे सचित्ताचित्त योनि कहते हैं / . ७-संवृत्त योनि- जो उत्पत्ति स्थान प्रच्छन्न हो, अप्रकट हो, आंखों द्वारा दिखाई नहीं देता हो, उसे संवृत्त योनि कहते हैं / ८-विवृत्त योनि- जो उत्पत्ति स्थान अनावृत्त हो, खुला हो उसे विवृत्त योनि कहते हैं।। ९-संवृत्तविवृत्तयोनि- जिस उत्पत्ति स्थान का कुछ भाग प्रच्छन्न हो, आवृत्त हो और कुछ भाग अनावृत्त हो, उसे संवृत्त - विवृत्त योनि कहते हैं / गर्भज मनुष्य, तिर्यंच और देवों की शीतोष्ण योनि होती है / तेजस्कायिक- अग्नि के जीवों की योनि ऊष्ण है, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रय जीवों की तथा संमूर्छिम पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च एवं सम्मूर्छिम मनुष्य और नरक के जीवों की शीत, ऊष्ण और शीतोष्ण तीनों तरह की योनियां होती हैं / देव और नारक जीवों की योनि अचित्त होती है / गर्भज तिर्यञ्च और मनुष्यों की योनि सचित्ताचित्त होती है / पांच स्थावर, तीन विकेलन्द्रिय, संमूर्छिम पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च और सम्मूर्छिम मनुष्य, इन भी जीवों की सचित्त, अचित्त और सचित्ताचित्त तीनों तरह की योनियां होती है। नारक, देव और एकेन्द्रिय जीवों की योनि संवृत्त होती है / गर्भज तिर्यञ्च और मनुष्यों की योनि संवृत्त-विवृत्त होती है / तीन विकलेन्द्रिय, संमूर्छिम पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च और सम्मूर्छिम मनुष्य आदि जीवों की योनि विवृत्त होती है / इस तरह योनियों के नव भेद होते हैं / इनका उल्लेख प्रज्ञापना सूत्र में मिलता है।