Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी- टीका 卐 1 - 1 - 1 - 4 // पूर्व ही उसके मन में चल रहे सारे विचारों को अनावृत करके उसके सामने रख दिया और उसे संयम पथ पर दृढ करने के लिए उसके पूर्वभव का वृत्तांत सुनाते हुए बताया कि हे मेघ ! तुमने हाथी के भव में जंगल में प्रज्वलित दावानल के समय अपने द्वारा तैयार किए मैदान में अपने पैर के नीचे आए हुए खरगोश की रक्षा करने के लिए, जब तक दावानल शांत नहीं हुआ, तब तक अपने पैर को उठाए रखा, तीन पैरों पर ही खड़ा रहा / जब दावानल बुझ गया, सब पशु-पक्षी जंगल में चले गए तब तुमने अपने पैर को नीचे रखा / पर वह पैर इतना अकड़ गया था कि- हाथी (तूं) धड़ाम से नीचे गिर पड़ा और थोड़ी देर में शुभ भावों के साथ जीवन को समाप्त करके श्रेणिक के घर जन्म पाया / हे मेघ ! कहां खरगोश की रक्षा-दया के लिए घंटों तक पैर को ऊंचे रखने के कष्ट ? कि-जिसके कारण तुम्हें अपने जीवन से भी हाथ धोना पड़ा और कहां साधुओं के चरण स्पर्श से हुआ कष्ट ? तुम जरा सोचो, कि- क्या करने जा रहे हो ? भगवान के द्वारा अपना पूर्व भव जानकर मेघ मुनि की भावना परिवर्तित हो गई / वह चिन्तन-मनन में गोते लगाने लगा और विचारों में जरा गहरा उतरने पर उसे जाति-स्मरण ज्ञान हो गया / भगवान द्वारा बताया गया वर्णन साफ-साफ दिखाई देने लगा / इसी तरह भगवान का उपदेश सुनकर मेघमुनि को जाति-स्मरण ज्ञान हो गया था, और वह मेघमुनि संयम मार्गमें स्थिर हुआ। इस तरह ‘पर व्याकरण' से होने वाले ज्ञान के अनेकों उदाहरण शास्त्रों में उल्लिखित हैं / 3-परेतर-उपदेश ज्ञान प्राप्ति का तीसरा साधन ‘परेतर उपदेश' है / वैसे 'पर' और 'इतर' समानार्थक शब्द समझे जाते हैं / परंतु प्रस्तुत सूत्र में 'पर' शब्द तीर्थंकर भगवान का परिचायक है और 'इतर' अन्य का परिबोधक है / अत: इसका अर्थ हुआ-तीर्थंकर भगवान से अतिरिक्त अतिशय ज्ञान वाले अन्य निर्ग्रन्थ मुनि, यति, श्रमण आदि महापुरूष परेतर हैं / तीर्थकर पद से रहित केवल-ज्ञानी, मनः-पर्यव-ज्ञानी या अवधिज्ञानी आदि विशिष्ट ज्ञानी आप्त पुरुषों के उपदेश से भी अनेक संसारी जीवों को अपने पूर्वभव का भी परिबोध होता है / इस प्रकार के बोध में ‘परेतर-उपदेश' कारण बनता है / इसलिए प्रस्तुत सूत्र में ‘परेतर-उपदेश' को ज्ञान प्राप्ति के बाह्य साधनों में समाविष्ट किया गया है / 'परेतर-उपदेश' ज्ञान प्राप्ति में बहिरंग कारण है / अतः इस साधन से कई जीवों को अपने पूर्व भव का एवं आत्म-स्वरूप का भलीभांति बोध हो जाता है / अ मों में इस तरह ज्ञान प्राप्त करने के कई उदाहरण आते हैं / ज्ञाताधर्मकथांग में लिखा है कि- मल्लि राजकुमारी के साथ विवाह करने के लिए 6 राजकुमार एक साथ चढ़कर आ जाते हैं और शहर को चारों तरफ से घेर लेते हैं / अन्त में उन्हें प्रतिबोध करने के लिए मल्लि राजकुमारी