Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी- टीका 卐 1 - 1 - 1 - 2 // - तेरह प्रदेशवाले द्रव्यकी स्थापना - :- (13) प्रदेश... अब क्षेत्र-दिशा कहते हैं... नि. 42 तिर्यग् = मध्य लोकमें रत्नप्रभा-पृथ्वीके उपर किंतु मेरु-पर्वतके बहुमध्यभागमें जो हो क्षल्लक-प्रतर है वहां उपरके प्रतरमें गोस्तनाकार के रूपमें चार (4) प्रदेश, एवं नीचेके प्रतरमें भी उलटे गोरुजाकारके स्वरूप से चार (4) प्रदेश है यह आठ (8) आकाश प्रदेशमें से चार (4) रुचकं चार दिशाओंके एवं शेष चार (4) रुचक चार विदिशाओंके उत्पत्ति = प्रारंभ स्थान है... अब इन दिशाओंका नाम कहते हैं... ___ नि. 43 . 1. . ऐंद्री (पूर्व-दिशा) 2. . आग्नेयी (अग्नि-कोना) 3. याम्या = दक्षिण - दिशा नैरुति = नैऋत्य - कोना वारुणी = पश्चिम - दिशा वायव्या = वायव्य - कोना सोमा = उत्तर - दिशा ईशाना = ईशान - कोना विमला = ऊर्ध्व - दिशा तमा = अधो - दिश... नि. 44 चार महादिशाएं दो प्रदेशवाली है, एवं दो दो प्रदेशकी वृद्धिवाली है, और चार विदिशाएं एक-एक प्रदेशवाली है उनमें वृद्धि नहिं है... इसी प्रकार ऊर्ध्व एवं अधोदिशा भी द्धि रहित . नि. 45