Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
View full book text
________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका // 1-1 - 1 - 3ज दशवी है उत्पत्ति... अब सत्, असत्, सदसत्, अवक्तव्य, सदवक्तव्य, असदवक्तव्य, सदसदवक्तव्य इन सात प्रकारसे जीव आदि नव पदार्थ जाने जा नहि शकतें, और जाननेका कोई प्रयोजन भी नहिं है... भावना इस प्रकार है... सन् जीवः इति कः वेत्ति ? असन् जीव: इति को वेत्ति ? किं वा तेन ज्ञातेन ? जीव सत् है ऐसा कौन जानता है ? अथवा तो ऐसा जाननेका क्या प्रयोजन है ? जीव असत् है ऐसा कौन जानता है, और ऐसा जाननेका क्या प्रयोजन = कारण है ? इसी प्रकार अजीव आदिमें भी प्रत्येकको सत् असत् इत्यादि सात सात प्रकार हए... अत: 94.7 = 83 और आगे कहे जाएंगे वे चार भेद जोडनेसे 3 + 4 = ७भेद अज्ञानवादीके हुए... वे चार भेद इस प्रकार है... 1. भाव याने पदार्थोकी उत्पत्ति सत् है, ऐसा कौन जानता है ? अथवा तो यह बात जानने से क्या ? इसी प्रकार 2. असती 3. सदसती और 4. अवक्तव्य स्वरूप भाव-पदार्थोंकी उत्पत्ति है ऐसा कौन जानता है ? अथवा तो ऐसा जाननेकी क्या जरुरत है ? - शेष (सप्तभंगी के) तीन विकल्प तो पदार्थोकी उत्पत्ति के बादमें हि होनेवाले है, अतः वे यहां नहि होते हैं... इस प्रकार 3 + 4 = 67 अज्ञानवादीके हुए... . तत्र - सन् जीवः इति कः वेत्ति ? भावार्थ : कोइक जीवको विशिष्ट ज्ञान होता है कि- जो अतीन्द्रिय ऐसे जीव आदि पदार्थोंको जानेगा, किंतु उन जीव आदि पदार्थोंको जाननेसे कुछ भी फल नहिं है... वह इस प्रकार- क्या यह जीव नित्य, सर्वव्यापी, अमूर्त और ज्ञानादि गुणोंसे युक्त है या इन गुणोंसे रहित है ? और ऐसा जाननेसे कौनसा पुरुषार्थ सिद्ध होता है ? अतः अज्ञान हि कल्याणकर है... क्योंकि- समान अपराधमें भी जो अनजान से अपराध करता है उसको लोकव्यवहारमें थोडा दंड होता है, और लोकोत्तर व्यवहारमें भी जीववध आदि दोष अनाभोग और सहसात्कारसे होने पर बाल साधु को अल्प (थोडा) एवं जान-बुझकर अपराध करनेवाले युवा साधु, वृद्ध साधु, उपाध्याय और आचार्यको यथाक्रम उत्तरोत्तर अधिक-अधिक प्रायश्चित होता है... इस प्रकार अन्य विकल्पोमें भी स्वयं समझ लीजीयेगा... - अब विनयवादीओंके बत्तीस (32) भेद... वे इस प्रकार... देव, राजा, साधु, ज्ञातिजन, स्थविर (वृद्धि) अधम, माता, पिता इन आठोंके प्रति (1) मनसे शुभ विचार - आदर -