Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ // 1-1 - 1 - 2 // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन ___ 13. पर्या - धर्मा 14. सावित्ती 15. पण्णवित्ती 16. नि. 58 17 नीचे नारकीयोंकी अधोदिशा 18 उपर देवोंकी ऊर्ध्वदिशा ये उपर कहे गये अठारह प्रज्ञापक दिशाओंके नाम है... नि. 59 इन अठारह दिशाओंमें से सोलह दिशाएं शकट-बैलगाडीके उध्धके आकारसे प्रज्ञापकके स्थानमें संकडी और बहारकी और विशाल रही हुइ है, और मल्लक = शरावके आकार जैसी . उपर-नीचेकी दिशा है... क्योंकि वे सरावले के बुध्नाकार के स्थान पे अति अल्प और बाद में अनुक्रमसे चौडी = बृहत् (बडी) होती हैं... इन सभी दिशाओं का तात्पर्य यंत्र से समझ लीजीयेगा... नि. 60 अब भाव-दिशा का स्वरूप कहते हैं... मनुष्यके चार प्रकार सम्मूर्छिमज कर्मभूमिज तिर्यंच जीवोंके भी चार प्रकार . 1. दो इंद्रियवाले 1. तीन इंद्रियवाले अकर्मभूमिज चार इंद्रियवाले अंतरद्वीपज पांच इंद्रियवाले वनस्पति के चार प्रकार काय के चार प्रकार पृथ्वीकाय 1. अय बीज अपकाय 2. मूल बीज 3. तेजःकाय स्कंध बीज वायुकाय 4. पर्व बीज... यह 4+4+4+4=16 सोलह दिशाएं और देव तथा नारक की मिलाकर अठारह भाव दिशांए मानी गई है... संसारी जीवोमें यह अठारह भाव होनेके कारणसे भाव-दिशाका कथन