Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी- टीका 1 - 1 - 1 - 3 65 जन्ममें क्या मैं मनुष्य था ? या तो नरक या तिर्यंच अथवा देव ? और इस मनुष्य जन्मसे मरण होने पर मैं जन्मांतरमें देवादि चार प्रकारमेंसे क्या बनूंगा ? इस प्रकारकी संज्ञा नहिं होती.. यहां यद्यपि सभी जगह भावदिशाका एवं प्रज्ञापक दिशाका हि अधिकार है, तो भी पूर्व के सूत्रमें स्पष्ट हि प्रज्ञापक- दिशा ग्रहण की थी, किंतु यहां तो भावदिशा हि समझीयेगा... शिष्य प्रश्न करता है कि- यहां संसारी जीवोंको दिशा या विदिशासे आवागमन रूप विशेष संज्ञाका निषेध करते हैं, न कि- सामान्य संज्ञा का, और यह संज्ञा भी संज्ञी-जीवको हि होती है... कहा भी है कि- धर्मी होने पर हि धर्म चिंतन कीया जाता है... और वह जीव प्रत्यक्ष आदि प्रमाणके विषयसे पर = अतीत होनेके कारणसे जानना मुश्केल है... वह इस प्रकार - यह आत्मा = जीव इंद्रिय प्रमाणका विषय नहीं बनता... क्योंकि- आत्मा अतीन्द्रिय है... और आत्मा का अतीन्द्रियत्व, हि स्वभाव से विप्रकृष्ट होने के कारणसे हि माना गया है, और अतीन्द्रियत्व इसलिये भी कहा है क्योंकि- आत्माके साहजिक कार्यादिके चिह्नका संबंध ग्रहण नहि होता है... = अनुमान-प्रमाणसे भी आत्मा ग्रहण नहिं होती है... क्योंकि- आत्मा इंद्रियोंको प्रत्यक्ष नहिं होनेके कारणसे आत्माको सामान्यसे भी ग्रहण करना असंभव है... = उपमान-प्रमाणसे भी आत्म ग्रहण नहिं हो शकती है... और आगम-प्रमाणकी दृष्टिसे कहते हैं तब भी अनुमानके अंतर्गत होनेके सिवाय बाह्य वस्तुमें संबंध नहिं होने से, प्रमाण का अभाव माना है... अथवा तो प्रमाण मानें तो भी आगम-वचनों में परस्पर विरोध दिखाइ पडता है, और आगम के सिवाय भी सकल वस्तुओंका बोध तो होता हि है... = अर्थापत्ति - प्रमाणसे भी आत्मा नहि जानी जा शकती... इस प्रकार प्रत्यक्ष - अनुमान - उपमान - आगम और अर्थापत्ति यह पांच प्रमाणके सिवाय छठे प्रमाणका विषय होने से आत्मा का अभाव हि माना जाएगा... . प्रयोग इस प्रकार है आत्मा नहिं है... क्योंकि- प्रत्यक्ष आदि पांच प्रमाण का विषय नहिं बनती... जैसे कि - गद्धेके शिंग... इस प्रकार आत्माका अभाव सिद्ध होने पर विशिष्ट संज्ञाका हि निषेध हो जाएगा... और ऐसा होने पर इस सूत्रका उत्थान हि नहिं होगा... उत्तर- यह सभी बाते गुरुकी सेवा नहि करनेवालोंकी हि है... जब कि- गुरुकी सेवा करनेवालोंकी बात इस प्रकार है आत्मा प्रत्यक्ष हि है... 2. क्योंकि- आत्माका ज्ञान-गुण स्वयंको अनुभव सिद्ध है... जैसे कि- विषयोंकी स्थिति स्वसंवेदनसिद्ध होती है....