Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 66 // 1- 1 - 1 -3 卐 श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन घट, पट आदि वस्तुओंका भी रूप आदि गुण प्रत्यक्ष हि है, अतः घट-पट वस्तुएं प्रत्यक्ष हि है... ___ घट आदि पदार्थोके विनाशको मरण नहि कहतें अतः चैतन्य भूतगुण नहि है किंतु चैतन्य आत्माका गुण है... अन्य जीवोंमें, छोडने योग्य वस्तुओंका त्याग एवं ग्रहण करने योग्य वस्तुओंका ग्रहण क्रियाको देखनेसे, अनुमान प्रमाण के द्वारा आत्मा (जीव) की सिद्धि होती है... इसी प्रकार उपमान... आगम आदि प्रमाणसे जीवकी सिद्धि होती है... किंतु यहां जिनेश्वरोंके स्वाद्वाद - सिद्धांतका आदर करना जरूरी है..... जैसे कि- मैं आंखोसे कमल पुष्प देखता हूं... यहां आंखोके द्वारा देखनेवाला मैं आत्मा हूं, कि- जो शरीरमें रहा हुआ हूं... जैसे मकानकी खिडकीसे बाहारकी वस्तुओंका देखनेवाला आदमी अलग है और मकानकी खिडकी अलग है... मकानकी खिडकी, वह आदमी नहि है, और आदमी, वह मकानकी खिडकी नही है इत्यादि... शेष = अन्य मतों के शास्त्र अनाप्त प्रणीत होने के कारणसे अप्रमाण है... (प्रमाणित नहिं है...) यहां... आत्मा है... ऐसा माननेवाले क्रियावादी है... आत्मा नहिं है... ऐसे माननेवाले अक्रियावादी है... और उन्हींके कुमतमें अंतर्भूत होनेके कारणसे अज्ञानवादी और विनयवादीओंका भेद-प्रभेदसे 383 पाखंड-मत कहे गये है... वे इस प्रकार... 180 क्रियावादी 84 अक्रियावादी अज्ञानवादी 32 विनयवादी 383 प्राखंड मत... जीव, अजीव, आश्रव, बंध, पुण्य, पाप, संवर, निर्जरा और मोक्ष यह नव पदार्थ है... 9 x 2 = 18 स्व एवं पर-भेदसे... 18 x 2 = 36 नित्य एवं अनित्य-भेदसे... 36 x 5 = 1.0 काल-नियति-स्वभाव-ईश्वर एवं आत्मके भेद से कुल 180 भेद... क्रियावादीके है... ये सभी आत्माका अस्तित्व स्वीकारते हैं... वे 180 भेद इस प्रकार होते हैं... 1. अस्ति जीवः स्वतः कालतश्च नित्यः