Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 1 - 1 - 1 47 नहीं करता / ‘णो सण्णा' से यह ध्वनित नहीं होता कि किन्हीं जीवों में संज्ञा-ज्ञान का सर्वथा अभाव है / क्योंकि आत्मा में ज्ञान का सर्वथा अभाव हो ही नहीं सकता / ज्ञान आत्मा का लक्षण है / उसके अभाव में आत्मस्वरूप रह नहीं सकता / जैसे-प्रकाश एवं आतप के अभाव में सूर्य का एवं सूर्य के अभाव में उसके प्रकाश एवं आतप का अस्तित्व नहीं रह सकता। भले ही घनघोर घटाओं के कालिमामय आवरण से सूर्य का प्रकाश एवं आतप पूरी तरह दिखाई न पड़े, यह बात अलग है / परन्तु सूर्य के रहते हुए उनके अस्तित्व का लोप नहीं होता / उसकी अनुभूति तो होती ही रहती है / इसी तरह ज्ञान का सर्वथा अभाव होने पर आत्मा का अस्तित्व ही नहीं रह जाएगा / अतः ज्ञान का सर्वथा अभाव नहीं होता / क्योंकि आहार-संज्ञा, भय-संज्ञा, मैथुन-संज्ञा, परिग्रह-संज्ञा आदि संज्ञाएं तो प्रत्येक संसारी प्राणी में पाई जाती है। इन्हीं संज्ञाओं के आधार पर ही जीव का जीवत्व सिद्ध होता है / यदि इन संज्ञाओं का अभाव मान लिया जाए तो फिर आत्मा में चेतनता या सजीवता नाम की कोई चीज रह ही नहीं जायगी। अस्तु, संज्ञा का सर्वथा निषेध करना आत्मतत्त्व की ही सत्ता नहीं मानना है / और यह बात सिद्धान्त से सर्वथा विपरीत है / इस लिए सूत्रकार ने 'असण्णा' का प्रयोग न करके ‘णो सण्णा' का प्रयोग किया, जो सर्वथा उचित, युक्तियुक्त, न्याय-संगत एवं आगमानुसार है / प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त 'सण्णा' शब्द का अर्थ संज्ञा होता है / संज्ञा चेतना को कहते हैं और वह अनुभवन और ज्ञान के भेद से दो प्रकार की है / अनुभवन संज्ञा के सोलह भेद हैं या यों कहिए कि जीव को सोलह तरह की अनुभूति होती है 1 आहारसंज्ञा-क्षुधावेदनीय कर्म के उदय से आहार-भोजन करने की इच्छा होना / भयसंज्ञा-भयमोहनीय कर्म के उदय से खतरे का वातावरण देख, जान कर या खतरे की आशंका से त्रास एवं दुःख का संवेदन करना या भयभीत होना / 3 मैथुनसंज्ञा-वेदोदय से विषयेच्छा को तृप्त करने की या मैथुन सेवन की अभिलाषा का होना / परिग्रहसंज्ञा-कषायमोहनीय के उदय से भौतिक पदार्थों पर आसक्ति, ममता एवं मूर्छा भाव का होना / 5. क्रोधसंज्ञा-कषायमोहनीय कर्म के उदय से विचारों में एवं वाणी में उत्तेजना या आवेश का आना / 6 मानसंज्ञा-कषायमोहनीय कर्म के उदय से अहंभाव, गर्व या घमंड का अनुभव करना। 7 मायासंज्ञा-कषायमोहनीय कर्म के उदय से छल-कपट करना /