Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ // 1-1-1-1 // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन D क्योंकि... यह आचारांगसूत्र श्रुतज्ञान है... ज्ञानाचारकी विधिसे श्रुतज्ञानकी उपासना करनेसे सम्यग् ज्ञान होता है, और सम्यग्ज्ञान से हि सम्यक्चारित्र एवं सम्यक् तप सुलभ होता है... और इन दोनोसे घातिकर्मोकी निर्जरा होती है... अन्यत्र भी कहा है कि- तीन गुप्तिसे गुप्त ऐसा ज्ञानी एक श्वासोच्छ्वासमें इतने सारे कर्मोका क्षय करता है कि- उतने कर्मोका क्षय करनेमें अज्ञानीको करोडों वर्ष लगता है... मंगल शब्दकी निरुक्ति करते हुए कहते हैं कि- मुझे जो संसारसे मुक्त करे वह मंगल... अथवा तो - शास्त्रका विनाश न हो वह मंगल... इस विषयमें अधिक बातें जो है वे अन्य ग्रंथोसे जाननेका प्रयत्न कीजीयेगा... अब आचारांग सूत्रका आरंभ करते हुए कहते हैं कि- आचारांगसूत्रका अर्थ कहना वह आचारांगानुयोग... सूत्र कहने के बाद अर्थका कहना वह अनुयोग... अथवा तो छोटे छोटे सूत्रका . विस्तृत अर्थ कहना वह अनुयोग... इस अनुयोग को विशेष रूपसे समझनेके लिये इन निम्नोक्त द्वारोंका आश्रय लेना चाहिये... 1. निक्षेप... 2. . एकार्थक... ल निरुक्ति... - विधि... प्रवृत्ति... ॐ केन ? ॐ कस्य ? तद्-द्वारभेद ॐ लक्षण 10. तद्-योग्य पर्षदा 11. सूत्रार्थ... अनुयोग-पद के निक्षेप के सात प्रकार है। वे इस प्रकार- 1. नाम, 2. स्थापना, 3. . द्रव्य, 4. क्षेत्र, 5. काल, 6. वचन एवं 7. भाव... 1. नाम निक्षेप... सुगम है...