Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ // 1 - 1 - 1 - 1 // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन श्रुतज्ञान की प्राप्ति के लिए गुरु चरण सेवा ही पर्याप्त नहीं है, परन्तु उनके निकट में रहना भी आवश्यक है / गुरु के निकट में स्थित रहना दो अर्थों में प्रयुक्त होता है- (1) सदा गुरु के पास या उनके सामने ही रहना, अतः समय पर उनकी सेवा कर सके, उन्हें किसी काम के लिए इधर-उधर से आवाज़ देकर न बुलाना पड़े / (2) उनकी आज्ञा में विचरण करना / अपनी प्रवृत्ति उनके विचारानुसार रखना / क्षेत्र से दूर रहते हुए सदा उनके पथ का अनुगमन करना भी उनके निकट में बसना है / इसी भावना को ध्यानमें रखकर शिष्य को अन्तेवासी भी कहा है / अन्तेवासी का यह अर्थ नहीं है कि वह सदा उनके साथ या पास में ही रहे / आवश्यकता पड़ने पर वह क्षेत्र से दूर भी जा सकता है, परन्तु उनके विचारों एवं आज्ञा से दूर नहीं जाता / अतः श्रुत ज्ञान प्राप्ति के इच्छुक साधक को द्रव्य और भाव दोनों तरह से गुरु के निकट रहना चाहिए / 'आवसंतेणं' पद इन्हीं भावों का परिचायक है। _ 'भगवया' यह पद भगवत् शब्द का तृतीयान्त प्राकृत रूप है / इसका अर्थ है- भगवान ने / भगवान शब्द भग से बनता है / भग शब्द की व्याख्या करते हुए एक आचार्य लिखते है "ऐश्वर्यस्य समयस्य, रूपस्य यशसः श्रियः / ज्ञानवैराग्ययोश्चापि, षण्णां भग इतीङ्गना // " अर्थात्-सम्पूर्ण ऐश्वर्य, रूप, यश, कीर्ति, श्री, ज्ञान, और वैसग्य इन छह संपदाओं के समुदाय को भग कहते हैं / अत: उयत संपदाओं से जो युक्त हैं; उसे भगवान कहते है "भगः-ऐश्वर्यादिषडर्थात्मकः सोऽस्यास्तीति भगवान् / " 'अक्खाय' यह क्रिया पद है / इसका अर्थ है-कहा / इससे स्पष्ट होता है कि आचाराङ्ग सूत्र भगवान के द्वारा कहा गया है / इससे दो बातें स्पष्ट होती हैं / एक तो यह कि आगम किसी व्यक्ति द्वारा कहे गए है, जिसका विस्तृत विवेचन हम पीछे के पृष्ठों में कर आए हैं / दूसरी बात यह सामने आती है कि आगम अनादि काल से चले आ रहे हैं / किसी तीर्थंकर भगवान ने इनकी सर्वथा अभिनव रचना नहीं की / उन्हों ने तो अनादि काल से चले आ रहे आगमों का अर्थ रूप से कथन मात्र किया है / अतः इस दृष्टि से आगम सादि भी हैं और अनादि एवं कृतत्व-रहित भी हैं / उनके सादित्व पर हम विचार कर चुके हैं / यहां आगमों के अकृतत्व एवं अनादित्व पर विचार करेंगे / ___ परन्तु, यह कथन भी अपेक्षा से है, ऐसा समझना चाहिए / क्योंकि जैन विचारकों की भाषा स्याद्वादमय रही है / उन्हों ने प्रत्येक वस्तु एवं प्रत्येक विचार पर स्याद्वाद की भाषा में सोचा-विचारा है / आगम के सादित्व-अनादित्व अर्थात् आगम के मूल स्रोत की आदि निश्चित तिथि है या नहीं ? दोनों पर गहराई से चिन्तन किया है / आगमों में यह बात स्पष्ट रूप से