Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 30 // 1-1-1-1 // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन आहार संज्ञा खाने की इच्छा = अभिलाषा... 2. = भय संज्ञा मैथुन संज्ञा परिग्रह संज्ञा डरना - गभराना - भयाकुल होना... कामक्रीडा - कामभोगकी इच्छा... वस्तु - पदार्थक संग्रहकी इच्छा क्रोध करना - गुस्सा करना.... अभिमान करना क्रोध संज्ञा मान संज्ञा माया संज्ञा माया - कपट करना - ठगना... लोभ संज्ञा पौद्गलिक पदार्थोकी इच्छा - आसक्ति... ओघ संज्ञा विशेष समझके विना सामान्यसे इच्छा... लोक संज्ञा _ - लोक व्यवहारको अनुसरना... इन दश संज्ञाओंका सर्वथा प्रतिषेध करने से दोष लगता है, क्योंकि सभी जीवोंको इन दश संज्ञाओं में से कितनीक संज्ञाएं तो होती हि हैं... इसलिये नो-शब्दसे देश-प्रतिषेध किया है... यह नो-शब्द सर्व-निषेध एवं देश-निषेध वाचक है... वह इस प्रकार - "नो-घटः" ऐसा कहनेसे श्रोता को घट का सर्वथा अभाव हि प्रतीत होगा... और कहनेवाले का भी यह हि अभिप्राय होता है... कहा भी है कि- नो-शब्द प्रस्तुत अर्थका समस्त प्रकारसे निषेध करता है; और उसके कुछ अवयव अथवा अन्य धर्मोका सद्भाव भी बताता है... अतः यहां इस सूत्रमें नो-शब्द सर्व संज्ञाओंका निषेध नहिं करता किन्तु विशिष्ट संज्ञा का हि निषेध करता है, जैसे कि- जिससे आत्मा आदि पदार्थोका स्वरूप एवं गति-आगति इत्यादिका ज्ञान हो ऐसी संज्ञा का निषेध बताते हैं... अब नियुक्तिकार हि सूत्रके अवयवों के = पदों के निक्षेपार्थ को कहते हैं... नि. 30 नामादि भेदसे संज्ञा के चार निक्षेप होते हैं नाम-स्थापना - सुगम है... द्रव्य संज्ञा - ज्ञ शरीर - भव्य शरीर - तदव्यतिरिक्त भेदसे तीन प्रकार है...