Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी-हिन्दी-टीका // 1-1-1-1 // तव्यतिरिक्त द्रव्य संज्ञा के तीन भेद... सचितादि प्रकारसे... 1. सचित - हाथ से संकेत - इसारा - अथवा सचित आहार - पानी की संज्ञा - इच्छा = अभिलाषा... 2. अचित - ध्वज आदि से देवमंदिरका संकेत... 3. मिश्र - प्रदीप याने दीपक के द्वार संकेत (इसारे) को समझना... भाव संज्ञा भी दो प्रकारसे है... अनुभव - भाव - संज्ञा... ज्ञान - भाव - संज्ञा... 2. अब यहां अल्प व्याख्यावाली प्रथम ज्ञानसंज्ञा कहते हैं... और वह मतिज्ञानादि भेदसे पांच प्रकारकी है... उनमें भी केवलज्ञान संज्ञा = क्षायिक भाववाली है... मति - श्रुत - अवधि - मनःपर्यवज्ञान = क्षयोपशमभाववाले है... 2: - अनुभव भाव संज्ञा = जीवोंको अपने कीये हुए कर्मोके उदयसे होनेवाली संज्ञाको अनुभवभाव संज्ञा कहते हैं. इस अनुभव संज्ञा के सोलह (16) भेद है... नि. 39 1. आहार संज्ञा - आहार की अभिलाषा - यह आहारसंज्ञा तैजस शरीर तथा असातावेदनीय कर्मक उदयसे होती है... भयसंज्ञा = त्रास स्वरूप है... परिग्रह संज्ञा = मूर्छा = आसक्ति स्वरूप है... मैथुन संज्ञा = स्त्री - पुरुष - नपुंसकवेदके उदय स्वरूप यह संज्ञा मोहनीय कर्मके उदयमें होती है... सुख संज्ञा = सातावेदनीय कर्मके उदयसे होती है... दुःख संज्ञा = असाता वेदनीय कर्मके उदयसे होती है... मोह संज्ञा = मिथ्यात्व मोहनीय कर्मके उदयसे होती है... विचिकित्सा संज्ञा दुगंच्छनीय पदार्थोंको देखनेसे मुंहको घुमाना इत्यादि लक्षण स्वरूप यह संज्ञा मोहनीय कर्मके उदयसे होती है... .6. 8.