Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका म 1 - 1 - 1 - 1 // स्वरूप है... भगवता = भग = ऐश्वर्य आदि छ (6) पदार्थ... जिनके पास हो वह भगवान् होते है, उन्होंने... एवम् = "इस प्रकार" याने इस ग्रंथमें जो कुछ कहा है उस प्रकार आख्यातम् = कहा है... इससे यह फलित हुआ कि- आगम अर्थसे नित्य है... अर्थात कृत्रिम याने अनित्य नहिं... इह - इस विश्वमें - क्षेत्र में - प्रवचनमें - आचारांग सूत्रमें अथवा तो शस्त्रपरिज्ञा अध्ययन में... कहा है... ऐसा क्रियापदका संबंध जानीयेगा... अथवा तो इह = इस संसार में एकेषाम् = ज्ञानावरणीयादिकर्मोसे घेरे हुए कितनेक जीवोंको नो सञ्ज्ञा भवति = यहां संज्ञा - समझ - स्मरण - और जानकारी ये सभी शब्द एकार्थक है... अर्थात् - समझ नहिं है... यहां तक “पदार्थ" कहा... अब पदविग्रह४. पदविग्रह - इस सूत्रमें सामासिक पद न होने के कारणसे पदविग्रह नहिं दिखाया जाएगा... चालना - यहां शिष्य प्रश्न करता है कि- अकारादिक प्रतिषेधक लघु शब्द होते हुए भी प्रतिषेध के लिये नो शब्दको क्यों ग्रहण कीया ? प्रत्यवस्थान - प्रश्नका जवाब देते हुए कहते हैं कि- आपकी बात सही है... किंतु बहुत हि आगे-पीछेकी लंबी दृष्टिको ध्यानमें लेकर हि नो शब्द का ग्रहण कीया है... वह दृष्टि इस प्रकार है- यदि अ या न वगैरह प्रतिषेधक शब्दको ग्रहण करतें तब सर्व प्रकारसे निषेध हो जाता है... जैसे कि- न घटः = अघटः - ऐसा कहने से घडेका सर्व प्रकारसे निषेध हो जाता है... किंतु हमें इस प्रकारका सर्व-निषेध इष्ट नहिं है... क्योंकि- प्रज्ञापना- सूत्रमें कहा है कि- सभी जीवोंको दश संज्ञा होती है... अतः उन सभी का भी प्रतिषेध हो जाता है... इसलिये यहां सूत्रमें नो-शब्द देश-निषेध के लिये ग्रहण कीया है... वे दस संज्ञा निम्न प्रकारसे है... श्री गौतम स्वामीजी, श्री महावीर स्वामीजीसे पुछते हैं कि- हे भगवन् ! संज्ञा कितनी कही गइ है ? हे गौतम ! संज्ञा दश है...