Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ # 1 - 1 - 1 - 1 // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन 26. गुणशतकलित - इस प्रकार उपर कहे गये एवं अन्य सैंकडो गुणोसे युक्त आचार्य होते हैं... सामान्य तया 36 गुणवाले आचार्य होते हैं... विशेष रूपसे तो 36x38 1296 गुणवाले आचार्य महाराज होते हैं... ऐसे 36 गुणवाले आचार्य म. प्रवचनका अनुयोग याने व्याख्यान करनेके लिये योग्य होते हैं... अब अनुयोग को महानगरकी कल्पना करके कहते हैं कि... जिस प्रकार नगरमें प्रवेशके लिये चार द्वार होते हैं वैसे हि अनुयोग याने व्याख्यान विधिके भी चार अनुयोग द्वार हैं... 1. उपक्रम 2. निक्षेप 3. अनुगम .. 4. नय... अब अनुयोगका प्रथम द्वार हैं "उपक्रम"... उपक्रम याने समीप में जाना... अर्थात् जिस शास्त्रकी व्याख्या करनी हो उस शास्त्रके प्रति अपनी अभिमुखता करना, अथवा उस शास्त्रको अपने समीपमें जीस प्रकारसे लाया जाय उसे उपक्रम कहते हैं... यह उपक्रम शास्त्रीय एवं लौकिक भेदसे दो प्रकारका है.... शास्त्रीय उपक्रम 6 प्रकारका है... 1. आनुपूर्वी... नाम... 3. प्रमाण... वक्तव्यता... 5. अर्थाधिकार... 6. . समवतार... लौकिक उपक्रम... 6 प्रकार का है... 1. नाम 2. स्थापना द्रव्य 4. क्षेत्र काल 6. भाव अब दुसरा अनुयोग द्वारा है "निक्षेप" जिससे सूत्रके पदार्थोका निक्षेप-वर्गीकरण किया जाय, उसे निक्षेप कहते हैं... अर्थात् जिस शास्त्र की व्याख्या करनी हो उस शास्त्रका नाम . स्थापना आदि के माध्यमसे परिचय करना... वह निक्षेप तीन प्रकारका होता है... 1. ओघनिष्पन्न निक्षेप.