Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ // 1-1 - 1 - 1 // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन है... इनमें से - आचार, ब्रह्मचरण, शस्त्रपरिज्ञा ये सभी शब्द नामनिष्पन्न निक्षेप योग्य हैं.... . अंग, श्रुतस्कंध ये शब्द ओघनिष्पन्न निक्षेपके योग्य हैं... संज्ञा, दिक् ये सभी शब्द सूत्रालापक निष्पन्न निक्षेपके योग्य हैं... अब इनमें से किस शब्दके कितने निक्षेप होते है यह बात नियुक्तिकी तीसरी गाथामें कहते हैं... नि. 3 उपर कहे गये शब्दोंमें से चरण पदके 6 निक्षेप एवं दिक् पदके सात (7) निक्षेप होते हैं... यहां क्षेत्र एवं काल आदिको यथासंभव समझीयेगा... और शेष सभी पदोंका नाम-स्थापना-द्रव्य एवं भाव ऐसे चार-चार निक्षेप होते हैं.... . नि. 4 नाम आदि चारों निक्षेपोंकी सर्वव्यापकता दर्शाते हुए पू. आ. देव श्री नियुक्ति की चौथी गाथामें कहतें हैं कि- जहां जहां चार से अधिक निक्षेपा कहे गये हो वहां वे सभी निक्षेपोंसे पदोंका अर्थ स्पष्ट करें... किंतु जिन पदोंके अधिक निक्षेप न कहे गये हो वहां नाम - स्थापना - द्रव्य एवं भाव ये चार निक्षेपा तो अवश्य कीजीयेगा... नि. 5 अब अन्यत्र कहे गये प्रसिद्ध पदोंके अर्थकी लाघवता के लिये नियुक्तिकार पांचवी गाथामें कहते हैं कि- आचार पदके निक्षेप हमने दशवैकालिक सूत्रके क्षुल्लकाचार अध्ययनके प्रसंगमें एवं अंग पदका उत्तराध्ययन सूत्रके चतुरङ्गाध्ययनके प्रसंगमें कहे हैं अतः यहां जो कुछ विशेष है वह भावाचार के विषयमें है, अतः भावाचार के विषयमें कहते हैं... नि. 6 भावाचार का एकार्थक पर्याय शब्द... भावाचार की प्रवृत्ति किस प्रकारसे हो वह... भावाचारकी प्रथम अंग रूपता का कथन... भावाचार के आचार्यके कितने प्रकारके स्थान... भावाचार के परिमाण का कथन... भावाचार का स्वरूप क्या है ? यह कथन... भावाचार का समवतार कहां हो ?