Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 1 - 1 - 1 - 1 // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन काल 17. केषु ? पुरुष कथम् ? कारण 8. प्रत्यय प्रत्यय सान्तर समवतार 23. 19. कियच्चिरम् ? 20. कति 9. लक्षण 10. नय निरन्तर 11. समवतार भवाकर्ष 12. अनुमत 24. स्पर्शन 25. निरुक्ति... अब सूत्र स्पर्शिक नियुक्ति अनुगम... सूत्रके अवयव याने एक एक पदोंका नय के माध्यमसे शंका- समाधान रूप अर्थकथन करना... यह सूत्रस्पर्शिक नियुक्ति अनुगम सूत्र के आने पर हि होता है और सूत्र तो सूत्रके अनुगम होने पर हि होता है... और यह सूत्रानुगम सूत्रोच्चारण रूप एवं पदच्छेद रूप कहा गया है... अब चौथा अनुयोग द्वार है "नय"... नय याने अनन्त धर्मवाली वस्तु-पदार्थक कोइ भी एक धर्मको मुख्य करके कहना... समझना... जानना... उसे नय कहते हैं... और वह नैगम आदिके भेदसे सात प्रकारका है... नैगम 2. संग्रह व्यवहार 4. ऋजुसूत्र शब्द समभिरुढ एवंभूत-नय अब आचारांग सूत्रके उपक्रम आदि अनुयोग द्वारोंको यथार्थ रूपसे कहनेकी इच्छावाले नियुक्तिकार पू. आ. देवश्री भद्रबाहु स्वामीजी म. सकल विघ्नोके विनाशके लिये मंगलाचरण एवं विद्वान लोग इस ग्रंथको पढे इसलीये संबंध - अभिधेय और प्रयोजनको कहनेवाली प्रथम गाथामें कहते हैं, वह इस प्रकार... नि.१ सभी अरिहंत एवं सिद्धोंको तथा अनुयोग करनेवाले सभी आचार्य आदिको नमस्कार