Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 卐 1 -1-1-1 // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन - भाव आचीर्ण - ज्ञानाचारादि पंचाचार... और उनका प्रतिपादक यह आचारांग ग्रंथ... आजाति - उत्पन्न होना... जन्म देना... यह भी नामादि भेदसे चार प्रकारसे है... तद्व्यतिरिक्त द्रव्य आजाति = मनुष्य आदि जन्म और भाव-आजाति = पंचाचारको उत्पन्न करनेवाला यह आचारां ग्रंथ... ' आमोक्ष - मुक्त थर्बु ते मोक्षयह भी नामादि भेदसे चार प्रकारका है... तद्व्यतिरिक्त द्रव्य आमोक्ष - केदखाना - बेडी से मुक्ति... और भाव आमोक्ष - आठ प्रकारके कर्मोसे मुक्तिके कारण स्वरूप यह आचारांग ग्रंथ.... यह सभी पद एकार्थक हि है... क्योंकि- कुछ विशेषता को छोडकर सभी से एक हि कार्य पंचाचार सिद्ध होता है... जैसे कि- इंद्र के पर्यायार्थक शक्र... पुरंदर... वगैरह... नि. 8 सभी तीर्थंकरों के गणधर तीर्थ प्रवर्तनके समय सर्व प्रथम आचारांग सूत्र कहते हैं और बादमें शेष ग्यारह अंग सूत्र गुंथतें हैं... नि. 9 बारह अंग सूत्रमें आचारांग सूत्र प्रथम कहनेका कारण यह है कि- पंचाचार हि मोक्षका उपाय है और यह आचारांग सूत्र हि चरण-करण का प्रतिपादन करता है... और जो साधु पंचाचारमें स्थिर होता है वह हि शेष ग्यारह अंगसूत्रोंको पढनेके लिये योग्य हो सकता है... इसीलीये हि द्वादशांगीमें सर्व प्रथम आचारांग सूत्र लिखा है... अब "गणी" द्वार कहते हैं गण याने साधुओंका समूह अथवा गुणोंका समूह... ऐसा गण है जिन्हें वे "गणी" कहलाते है... जो साधु पंचाचार में स्थिर होता है उसे हि “गणी' पद दीया जाता है... यह बात नियुक्तिमें कही है... नि. 10 ___ जो साधु आचारांग सूत्र पढता है वह हि पंचाचार अथवा क्षमा आदि को अच्छी तरह से जानता है, इसीलिये जो साधु पंचाचार में स्थिर है उसे हि सर्व प्रथम गणी पद दीया .