Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1-1-1 - 1 // जगानेवाले होते हैं... 13. मध्यस्थ... अनेक प्रकारके छोटे-बडे-शिष्योमें समचित्त याने मध्यस्थ भाव रखनेवाले होते हैं... देशकालभावज्ञ... देश और काल याने क्षेत्र एवं ऋतुओंके भावोंको जानने वाले होते हैं अतः जहां रत्नत्रय-आराधना गुणकी वृद्धि हो वहां विचरते हैं... 15. आसन्नलब्धप्रतिभ - वाद-विवाद के समय तत्काल प्रतिवादीको उचित जवाब देकर निरुत्तर करनेवाले आचार्य होते हैं.. नानाविधदेशभाषाविधिज्ञ - विभिन्न देशके शिष्योंको अपनी अपनी भाषामें ___तत्त्वबोध देनेवाले होते हैं... 17. ज्ञानाद्याचारपथकयुक्त - पंचाचार में कुशल होनेके कारणसे श्रद्धेयवचनवाले होते 18. 'सूत्रार्थतदुभयविधिज्ञ - व्रत नियमोंके पालनमें उत्सर्ग एवं अपवाद मार्गको अच्छी तरह से जाननेवाले होते हैं अतः स्वयं एवं अपने शिष्यवर्गको मोक्षमार्गमें अखंड प्रयाण प्रस्थापक करनेवाले होते हैं... 19. हेतूदाहरणनिमित्तनयप्रपञ्चज्ञ - मोक्षमार्गक कार्य-कारणभाव तथा उदाहरण एवं अष्टांगनिमित्त और सात नयके विस्तारको जाननेवाले होते हैं... अतः प्रसन्न मुखवाले आचार्य शिष्यवर्गको मोक्षमार्गमें होनेवाले संदेहको दूर करते हैं... 20. ग्राहणा-कुशलः - अनेक युक्ति एवं प्रयुक्तिओंसे तत्त्वबोध देने में कुशल होते हैं... 21. स्वसमयपरसमयज्ञ - अपने जैनमतके सभी शास्त्रोंको जानने के साथ साथ अन्यमतोंके शास्त्रोंको भी जाननेवाले आचार्य होते हैं... ऐसे होनेके कारणसे हि भव्यात्माओंमें जिनमतकी स्थापना एवं अनुराग (पक्षपात) स्पष्ट करते हैं... 22. गंभीर - आनेवाले कष्टोंको समभावसे सहन करके अपने मोक्षमार्गमें अखंड प्रयाणवाले रहते हैं... 23. दीप्तिमान् - चारित्र एवं तप के तेज से प्रभावशाली होते हैं अतः कोइ भी आदमी उनका पराभव कभी भी नहिं करतें... किंतु नम बन जाते हैं... 24. शिव - कल्याणके कारण होते हैं, अतः आचार्य जहां बिचरते वहां मारी मरकी वगैरह उपद्रव शांत हो जाते हैं... 25. सौम्य - सभी जीवोंके नयनोको हर्षित कराकर मन को प्रसन्नता देते हैं...