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आओ संस्कृत सीखें 9. सूर्य, चंद्र आदि के उगने के अर्थ में आ पूर्वक क्रम् धातु आत्मनेपदी होता है।
उदा. आक्रमते सूर्यः । 10. विकरण प्रत्यय लगने पर परस्मैपदी में क्रम् आदि का स्वर दीर्घ होता है।
उदा. क्रामति, आत्मनेपद में क्रमते 11. विकरण प्रत्यय लगने पर ष्ठिव्, क्लम् गण ४ तथा आ + चम् दीर्घ होता है।
उदा. ष्ठीवति । क्लाम्यति । आचामति । 12. स्वर के बाद में छ द्वित्व - Double होता है।
उदा. तरु + छाया = तरुच्छाया । 13. वर्ग के तीसरे और चौथे व्यंजन पर पूर्व के धुट् व्यंजन के बदले उसके वर्ग का तीसरा व्यंजन होता है।
उदा. सस्ज्, सज् इस नियम से सज्ज, सज्ज् + अ + ति = सज्जति
पहले गण के धातु ऋ (ऋच्छ्) = जाना (परस्मैपदी)| यम् (यच्छ्) = नियम में रखना (परस्मैपदी) क्रम् = पैदल चलना (परस्मैपदी)| शद् (शीय) = नष्ट होना (परस्मैपदी)
आ+क्रम् = आक्रमण करना(परस्मै.) | ष्ठिव् = थूकना (परस्मैपदी) निस्+क्रम् = निकलना (परस्मैपदी)| सङ्ग् (सज्) = आसक्त होना (परस्मैपदी) गुप् = रक्षण करना (परस्मैपदी)| सस्ज् = सज्ज होना (परस्मैपदी) घ्रा (जिघ्) = सूंघना (परस्मैपदी) कृप् = समर्थ होना _ (आत्मनेपदी) चम् = चाटना (परस्मैपदी)| पण् = व्यापार करना (आत्मनेपदी) दंश् (दश्) = डंक मारना (परस्मैपदी)| पन् = स्तुति करना (आत्मनेपदी) ध्मा (धम्) = फूंकना (परस्मैपदी)| गुह् = छिपाना (उभयपदी) म्ना (मन्) = मानना (परस्मैपदी)। रञ्ज् (रज्) = रागी होना (उभयपदी)