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आओ संस्कृत सीखें
पाठ - 2 1. गुप् रक्षण करना, धूप, विच्छ् (गण 6) पण और पन् धातु को अपने अपने अर्थ में अपना 'आय' प्रत्यय लगता है। उदा. गुप् + आय + अ (शव्) + ति = गोपायति ।
धूप् + आय् + अ (शव्) + ति = धूपायति । 2. पण और पन् धातु आय प्रत्यय लगने पर परस्मैपदी होते हैं।
उदा. पणायति, पनायति ।
कभी - पणायते, पनायते । 3. गुह् धातु के उपांत्य स्वर का गुण होने पर यदि उसके बाद स्वरादि प्रत्यय हो तो ऊ होता है। उदा. गुह् + अ + ति
गोह् + अ + ति
गूह + अ + ति = गृहति । 4. कृप् धातु के ऋ का ल तथा र् का ल् होता है।
कृप् + य + ते = क्लृपयते कृप् + अ + ते कप् + अ + ते
कल्प् + अ + ते = कल्पते 5. शद् (शीय) धातु, शित् प्रत्ययों पर आत्मनेपदी होता है।
उदा. शीयते । 6. क्रम् धातु के पहले उपसर्ग न हो तो आत्मनेपदी भी होता है- क्रमते । 7. फैलना, उत्साह रखना तथा बढ़ने के अर्थ में क्रम् धातु आत्मनेपदी होता है।
उदा. शास्त्रे अस्य क्रमते बुद्धिः । 8. 'आरंभ करना' इस अर्थ में प्र तथा उप उपसर्ग सहित क्रम् धातु आत्मनेपदी होता
. उदा. प्रक्रमते उपक्रमते रन्तुं ।