Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रीमदमुनि बुद्धिसागरजी छत
भजन पद संग्रह.
भाग बीजो.
प्रसिद्ध कर्ता, अध्यात्मज्ञान प्रसारक मंडल.
For Private And Personal Use Only
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
श्रीमद्बुद्धिसागरजी ग्रन्थमाळा. ग्रन्थांक
योगनिष्ठ मुनिराज श्री बुद्धिसागरजी कृत भजनपदसंग्रह भाग बीजो.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
गाम रीदरोलवाळा, शेठ. खवदास काळीदासनी सहायताथी,
छपावी प्रसिद्ध करनार.
अध्यात्मज्ञानप्रसारक मंडळ.
किमत रु००-८-०.
वीर संवत २४३५.
सत्यविजय प्रीन्टींग प्रेस. पांचकूवा नवादरवाजा
अमदावाद.
सने १९०८०
For Private And Personal Use Only
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
|| भजनपद द्वितीय भाग संग्रह ॥ ॥ उद्देश भूमिका. ॥
काव्यमा अदभूत शक्ति रहेली छे, आनंदनुं स्थान काव्य छे, सर्व काव्यमा श्रेष्ट काव्य आत्मज्ञाननुं छे. आत्मज्ञानथी आत्मानी उन्नति थाय छे, ज्ञान ध्यान वैराज्य नीति विगेरे सद्गुणोथी जग उन्नति भूतकाळ इ हती वर्तमानमां थाय छे अने भविष्य मां थशे, आत्मानी अनंतशक्तियाने खीलववा माटे आत्मज्ञाननो अपूर्व महिमा छे, उच्च विषयोनां काव्यो आत्माओने उच्च करे छे. आत्मानुं उच्च जीवन आत्मानंदथी थाय छे. अमानंदनी खुमारी आत्मप्रभुनी उपासनाथी थाय छे. कोइ कोइ समयमां आत्मामांथी कोइ कोइ विषयनी स्फुरणा प्रगटी नीकले छे. भिन्न भिन्न विषयो - नीभिन्न भिन्न स्फुरणाओ द्रव्य क्षेत्र काळ भावधी काव्य छंदमां उत्पन्न भेली तेनो संग्रह आ भजन संग्रह द्वितीय भागमां करवा मां आव्यो छे, स्वाभाविक स्फुरणाओनुं जे उत्थान थाय छे, तेमां अपूर्व आनंदशक्ति रहेली छे के ते स्फुरणामय भजनाने वांचतां गातां श्रवण करतां भव्यजीवोने विद्युत्नी पेठे चमत्कारी असर थाय छे, तेनो अनुभवीओने अनुभव थाय छे, जेटला प्रमाणमां आत्मज्ञान ध्यानना उच्चाशयथी हृदय खेडायलुं होय छे, तेटला प्रमाणमां हृदयमांथी उच्चाशयनी आत्मज्ञान ध्यान वैराग्य नीति विगेरे गायनद्वारा स्फुरणाओ बहार प्रकाशे छे, अमारु चातुर्मास संवत् १९६३ नी सालनुं साणंदमां हतं. त्यांथी विहार करी गोधावीमां मास कल्प कर्यो हतो ते समये, छंद विगेरेमां केटलाक आद्यना ६० पानामां लखेला उद्गारो नीकळ्या हता, त्यार बाद गोधावीथी विहार करी कारतक वदी ७ ना रोज अमदावाद आववानुं थयुं हतुं ते प्रसंगे ६० थी १५० सुधीना भजन पद जोडायां हतां, त्यारवाद अमदावादथी पोशवदी १२ ना रोज विहार करी शाहीबागमां शेठ लल्लुभाई रायजीना बंगलामां केदलांक पदो, गायनो विगेर
For Private And Personal Use Only
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रच्यां हतां त्यांची अडाणज, उंवारसद, रांधवजा थइ माणसा गाममां अवायुं हतुं त्यां १५० थी ते ३०० त्रणसें पाना मुधीनां पदो जे जे समये स्फुरणा आवी ते ते प्रसंगे जोडायां हतां, चैतन्य शक्ति प्रकाश नामनो ग्रंथ श्री तारंगाजीमां रचायो हतो तेने अत्र दाखल कर्यो नथी. बाकीनां पदो, वरसोडा, लोदरा, रीदरोल; खेरालु, कलोल, उंझा, भोयणी विगेरे ठेकाणे उनाळानी रुतुमां विहारमां शांत समये जोडायां हतां. जे जे विषयनी स्फुरणाओ नीकळी छे तेने वांची मनन करी भव्य जीवो उच्च पदने प्राप्त करो, सद्गुण ग्राहक दृष्टिथी जे भव्यजीव वांचशे सांभळशे तेनुं सारु थशे. केटलाक गंभीर आत्मज्ञानना तथा योगना पदोमां समजण न पडे वा अपेक्षा न समजाय तो ज्ञानि सदगुरुने पुछी निर्णय करवो, जिनाज्ञा विरुद्ध लवायुं होय ते संबंधी मिथ्या दुष्कृत दउर्छ, सद् गुणदृष्टिथी भव्यजीवो आत्मानंद मेळवो.
गाम रीदरोलवाला मुश्रावक शा. रीखवदास कालीदासभाइए भजन संग्रह बीजो भाग छपावी प्रसिद्ध कयों छे. रीखवदासभाइ जैनधर्मना पूर्णरागी अने उत्साही छे, जैनधर्मनां दरेक कृत्यमां तन मन धनथी भाग ले छे. रीदरोल के जे पोतार्नु गाम छे त्यां तीर्थकर भगवान्नी तिष्टा १९६३ ना जेठ शुदी बीजे थइ हती. त्यारे आगेवानी' भाग लेइ आठ हजारना आशरे रुपैया खा हता, साधु साध्वीनी भक्तिमां यथाशक्ति शुभ उद्यम करे छे, ज्ञानना उयोतमां अने केळवणीना फेलावामां आवी रीते धन खर्चे छ. माटे ते भाइने धन्यवाद पूर्वक धर्मलाभाशी दउं छ. वळी आ साथे आ भजन संग्रहना प्रुफशीट मुधारवामां सहाय करवामां सुश्रावक भाइश्री मणीलाल नथुभाइ दोशी बीए ए घणी मदद करी छे. माटे तेमने स स्नेह धर्मलाभाशिष आपवामां आवे छे. ॐ शांन्तिः शान्तिः शान्तिः
आ पुस्तक वेचवाथी जे कीमत उपजशे ते सघळी रकम ज्ञान खाताना बीजा पुस्तको छापवामां वपराशे..
For Private And Personal Use Only
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
.
.
..
M
भजनपदसंग्रह भाग बीजानी
अनुक्रमणिका. विषय- नाम. पत्रम् आत्माने स्वस्वरूपोपदेश ३४ नवपदस्तुतिः १-१० संसारनी असारता उपदेशछंद ११-१७ स्वार्थ स्वरूप मुख दुःखमां समभाव१७-१९ परमार्थ स्वरूप वचनामृत १९ ब्रह्मचर्य नीति वचनामृत २०-२१ सत्यमाहिमा विनयामृत
२२ दान महिमा गुरुविनय
२२ कपटस्वरूप मित्रलक्षण
२३ उपकार महिमा आत्माने स्वरूप रमणतानी प्रभातियुं प्रेरणा
२४ प्रभातियुं बीजं व्यवहार धर्मनी महत्ता २५ योगमहिमा व्यवहार धर्म महत्ता २५ आत्माने सत्य शिक्षा ब्रह्मस्वरूपोपदेश २६ आत्म व्यान महिमा आत्माने जागृति भावना आत्माने हित शिक्षा उपदेश
२७ ज्ञान स्तुतिः दयामां सर्व धर्मावतार २८ उज्ज्वलध्यान धर्म प्रभाव २. श्रीमहावीर प्रभु स्तुति ४९ भक्ति माहात्म्य ३० श्रीवर्धमान जिनस्तुति ५१ आत्म प्रभुनी स्तुतिः ३१ सद्गुरु स्तुति निद्रा त्याग
३२ आत्माने अलखदेशोपदेश ५२ शुद्ध चेतवणी उपदेश ३३ : जीवने चेतवानो उपदेश ५३ हार नहि
३४ समाधि
४
0
४८
For Private And Personal Use Only
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
आत्मानुभव स्वरूप सम्प प्रेरणा
मुनि सद्गुरुस्तुति श्रीवीरस्तुति
अनुभवद्वा सप्तति
ब्रह्मचर्य महिमा
नवतत्व स्वरूप
आतम अनुभव रटना असल फकीरीनी खुमारी ६१
राम राम रटना
कृष्णस्तवन
आत्म विज्ञप्ति नेमनाथभक्ति
आवश्यक स्मृति
श्रावक हित शिक्षा
दया महिमा
अलख देशगान
मायाथी दुर रहेबानो उपदेश
चेतनने उपदेश
जीवने जागवानी
उपदेश पामर जीवनी स्थिति जाग जिवडा जाग
www.kobatirth.org
जिवडा पद चेतिले चेतिले
१९
प्रभुरटन उपदेश
५५
सत्य महिमा
५७
सत्य जाग्रति प्रेरणा
५८
दिव्यशिक्षा
५९ स्वार्थ महिमा
६०
६१
६३
६३
६४
६५
६७
६७
७६
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वीत वेळा पाछी नहि
आवे
शब्द सृष्टि विद्वत्ता
चेतचेतन
समयनो उपयोग
८१
८१
बाह्य ममतानो त्याग
सत्य धर्म
गुरुभक्त स्थिति
वीरस्तवन
७७
आत्मस्तुति ७८ कलिकाल महिमा अने
कृत्योपदेश
७८
वचनामृत दुहा ७९ जैन बोर्डींग विवेचन
अलख देशमा हंसने प्रेरणा
* * * * *
For Private And Personal Use Only
૮૨
८३
८८
ሪ
८९.
अथ श्री सिद्धाचल दुहा ८९
९८
८४
८५
८५
८६
८७
ܘ
७९
१०५
८० इरिया बहियाना भेद १०६
हुने मा
१०७
पतिवृता स्त्री
१०७
सुधारा
१०८.
१०३
१०५
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भक्ति
१९० श्रीसद्गुरु कृपा महिमा १४४ गुरुपद स्तुति १११ देवसेवा आत्मोन्नतिना उपायो ११३ आत्माने उपदेश १४६ नीति पद
११४ हित वचनामृतम् १४७ कर्तव्य बोध ११५ मूर्ख संगति दुखरुप छे १४९ सर्वनुं भलु इच्छयूँ ११६ धर्मफल महिमा १५१ दुर्जन लक्षण ११७ प्रभुस्तुतिः सज्जन लक्षण ११८ अंतरप्रदेश ध्वनि गान १५३ विद्यार्थि शिक्षण ११९ प्रभुप्रेम खुमारीना उद्शिष्य लक्षण ११९ गार संयत सद्गुरुलक्षण १२० सामान्य हितबोध २५६ सुखनुं स्थान १२१ देहस्थ आत्मानी परमामति श्रुत ज्ञान ए मनहर १२२ मावस्थानु भान १५७ परम कृपा वचन १२३ समय शिक्षाना उद्गार १५७ मुनि गुरु स्तुति १२३ वखतना विचित्र रंग १५८ गुरुमभाव . १२८ क्लेश विटंबना १५८ वचनामृत पहेलु १३३ मल्लिजिन स्तुतिः वचनामृत बीजू १३४ संप महिमा बालकोने हित शिक्षा १३५ चिदानन्ददगार सुधारा श्रीसंखेश्वर मराठी शाखी १३९ असार दुनिया सज्जाय १६३ आत्मज्ञान १३९ घडीमां नवनवारंग २६३ श्रीपार्श्वस्तवन १४० माया पाशनी सजाय १६४ श्रीपार्श्वस्तुति १४२ अन्तत्ति स्वाध्याय १६५ श्रीवीर प्रभु स्तुति १४३ कपट महिमा श्रीसद्गुरु स्तुतिः १४४ दुवकर संसार स्वरूप
of
०
०
१३७ स्वार्थ महिमा
For Private And Personal Use Only
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२०१ २०२
सजाय १६६ निन्दा जगत् जीवोना विचारनी ज्ञान माहिमा
विचित्रता १६७ कर्मस्वरूप जगत्नी अस्थिरता १६७ शिष्य स्वरूप जरातो विचार १६८ दारु विषे सन्त
१६९ चोरी वचननी टेक पाळ्या विषे १६९ उद्यम महिमा शरीरमा आत्मा देव
ध्यान समान छे १७०
गंभीरगुण पुण्यने पापनो फेर १७१
योग स्वरुप धर्म अने पापनो फेर १७१
आत्म जागृति जीवोपदेश
२०४ ध्यानोद्गार
१७२ समय हितोपदेश
सत्संग
૨૦૧ चित्तमां चेत
धिकारवा योग्य २०५ १७३
धन्यवाद आपवा योग्य २०७ काम विषय स्वरूप १७४
मोह स्वरुप
२०८ विवेक
१७५
समाधि स्वरूप २१० लघुता गुण महिमा
२१० लघुता विषे विनय महत्ता १७७
शुद्ध स्वरूप प्रेममा सर्वनी
ऐकयता . २११ क्षमा महत्ता
गुरु स्तुतिः
२१३ लोभ स्वरूप
शुद्ध स्वरुप विचार २१३ गुरु भक्ति महिमा
अनन्त शक्तिथी खीलq २१४ क्रोध स्वरूप
आनन्दघन
२१५ सन्तसमागम महिमा १८५ भावना समान संस्कार शोक विषे १८७ फल
२१६ आळदोष
१८७ ध्यान जीवन
१७६
१७६
साधु
For Private And Personal Use Only
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भक्तिमेवा २१७ गुरुस्तवनम्
२४० विषय त्याग २१८ सारी शिक्षा २४१ दुनियादारी २१९ उपाधि
૨૪? ब्रह्मरस २२० स्वरूपोद्गार
२४२ सद्गुण दृष्टिभावना २२१ आत्माना दयाना उद्गार२४३ विचारीने सर्व कर २२३ सूती वखते आत्मोदगार धर्मनी सजाय २२५ आवश्यक २४३ परमप्रभु गान २२५ भेदए भेद आप्यो २४४ चिद्घन गान २२६ आत्मदेशोन्नतिना आवे श्रीयशोविजयजी स्तुति २२६ शोदगार २४५ अन्तरमा सुख २२७ सहुनुं सारु इच्छो . २४७ आत्मोपयोग २२८ केम उंघेछे ૨૪૮ चेतवणी २२८ पर पंचात
२४८ अमूल्य शिक्षा २२९ हारु कोइ नथी २४९ ध्यान प्रेरणा २३० इष्टदेवर्नु आवाहन ૨૫૦ आत्मा ध्येय २३१ पैसा परास्थिति प्रेरणा २३२ गप्पां
२५१ चेतन दर्शन २३३ चिदानन्द
રપર गुरु शरण
२३३ राजानुं लक्षण अनन्त ज्ञान भंडार
शाश्वत चेतन ૨૫૬ आत्मा
२३४ इश्वर स्तुतिः २५७ अन्तर सुख २३६ कीर्ति
२५८ राजयोग
२३६ काया अने चेतनचर्चा २५९ योग रहस्य २३८ विषय
२६१ जाहेर चेतवणी २३९ आनन्द ल्हेर ૨૬૨ प्रभात भावना २३९ वीर जिन दर्शन स्तवन २६२
२५१
For Private And Personal Use Only
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२९६
अवधूतगान २६४ सदाचार
२९३ सामायक स्वाध्याय २६४ करोड लाखोपति २९४ श्री वीर प्रभु स्तवनम् २६६ दृष्टिराग
२९४ सुधारो
२६७ गाडरीयो प्रवाह २९५ मनुष्य कार्य २६८ ॐकार स्तुतिः नृपति कार्य २६९ दुनिया बगीचो ३०१ अकल
२७. मन मानेलं मीटुं ३०२ नीति
२७१ आत्मसत्ता गान ३०१ हिंमत
२७२ नवधाक्रिया भक्ति स्वाअभिमान छाजतो नथी २७३ व्याय
३०५ काम अने ब्रह्मचर्यनो
चेतन स्वाध्याय १४
सहजानन्द स्वाध्याय ३१५ संवाद
२७४
परमबोध स्वाध्याय
२८७ आत्मज्योतिः
३१५
आत्मरूद्धि स्वाध्याय ३१६ संकटमां समता
जीवजागृति स्वाध्याय ३१७ देहमां दीवो ૨૮૮
मोहत्याग स्वाध्याय ३१७ सर्वनुं सारु थाओ ૨૮
अमदावाद जैनश्वेतांबर मोह उंघ
कोन्फरन्स गायन ३१७ चेत जीव
पंचमी परभाव परिहार प्रभु स्वरूप उपाधिमां दुःख २९? भावनगरनी जैनश्वेतांबर झळहळ ज्योतिः २९२ कोनफरन्स गायन ३२१
૨૮૭
२८९
२९०
२९
क्रिया
For Private And Personal Use Only
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
.
.
.
0
भव्यजीवोए आ अशुद्ध वाक्योने नीचे प्रमाणे शुद्ध करेला छे तेम पुस्तकमां सुधारवा प्रयत्न
करवो, पुस्तकमांवांचीने अवश्य शुद्धिकरखी, ॥ श्री भजनपदसंग्रह द्वितीयभागनी शुद्धि पत्रिका ॥ पत्र लीटी अशुद्ध समभाव
समभावे साधले
साधीले ३१ १३ सायो
साधो 3३१ वकत्री
की ३२ १९. आत्मा
आतमा दूकर
दुष्कर ૩૬ ૨૦ देही ३६ २१ व्यापिया व्यापियो ૪૧ ૨૦ हारो
तारो कबी बुहोत झळक थतां
थातां युगप्रधानो युगप्रधानो समज्याविण भूल्या अणसमज्याथी खडा
दुःखडां ६४ १६ झान
ज्ञान ६५१८ रहे
रह्यो ૭૧ ૧૩ मळशे
श्वासमाहि श्वासमांटि
देहो
कबु होत
झळके
૧૭
भळशे
For Private And Personal Use Only
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
९० ૨૫
२२ ૧૪
जीव
૧૦૭ ૧૦૧ ૧૨
૧૩ ૧૧
प्रयो
११०
१७
घट
૨૨
૨૮ १२९
पुंडरीकने पुंडरीक रागद्वेष तो दूर रागद्वेष दूरे आत्म जे सिद्धाचल वंदता ते सिद्धाचल वंदतां पच्चिशी
वत्रीशी
प्रेयर्या बाहिरंग
बहिरंग प्रमदा पतिव्रता धर्मो, प्रमदा पतिव्रताना धर्मों घट वात चात
वात वातमा अपमानजे
अपमानजो वृतने
व्रतने सदभाव
सदभाव दवे मनिा
मानी विरा
वित्त आत्म
जीव वारी
वारो अगत्मा
जगत्मा चावा
ध्यावा सररिका
सरीखा जवि
जीव धारवा
धारवाने ढोर छे
दोर छे जग
१४६ १४९
१५४ १५९
१४
१६१ १६१
१२ १९
१७७ १७८
For Private And Personal Use Only
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नामे
२०२ १३ २०३११ २०५३ ૨૨૦ ૨૦ २२५ ११ ૨૩૦ ૨૨ ૨૩૨ ૨૪ २४४ १६ २१८
२५९
गंभर
गंभीर
नासे तव
तत्त्व निराभिमानी निरभिमानी वाजांथी
बाजीथी व्यापो
व्याप्यो समजायजी समजायरे भेद आपो भेद आप्यो जाशोरे
जोशोरे तारो वास क्यों वास कों प्रमुखरूप
प्रभु स्वरूप प्रणव मंत्र ॐकार दि. प्रणव मंत्र ॐकार लमांच्यातां दिलमां व्यावता प्रणवमत्र
प्रणव मंत्रे कुतकाथी
कुतर्कोथी खरथी
स्वरथी एकीले
एकीलो शक्ति
व्यक्ति
तारी
२६०
२९१४ २९७
२९७ ३०३
२४ २०
.
३१७
१८
-
For Private And Personal Use Only
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वचनामृत. नकामो समय गाळवाथी पाछळथी पश्चातापपात्र बनवू पडे छे. समयनी किंमत नथी. समयनी अमूल्यता समज्या विना जीव चेती शकतो नथी. फोगट गप्पा मारवाथी महत्ता प्राप्त थती नथी. धर्मकार्यमांज स्वजीवननी साफल्यता उत्तम पुरुषो समजे छे. कोइनी आजीजी नहि करतां प्रमाणीकपणाथी आत्मोन्नति करवामां प्रयत्नशील थवं. वक्ताना हृदयनो मर्म जाण्याथी सुज्ञपणुं प्राप्त थाय छे. वक्तार्नु हृदय अवगाहवामा परीक्षकनी हुंशियारी छे. वक्ता अने श्रोतानां हृदय भिन्न होय तो मर्मास्वाद चखातो नथी. श्रीतानां हृदय प्रकाशवामां वक्तानी हुंशियारी छे. सर्व ज्ञानमा अनुभवज्ञान उत्तम छे. ज्ञानिनुं हृदय भव्य जीवोने उत्तम प्रकाश आपे छे. स्वयंभुरमणसमुद्रनुं अवगाहन थाय पण ज्ञानिना हृदयतुं अवगाहन थंq दुर्लभ छे. मनुष्य क्षणे क्षणे न, शीखे छे. पोतानी उत्तमता अन्यने देखाडवा करतां पोताना आत्माने देखाडवी तेमांज कार्यदक्षता छे. वक्ताना वचनपर श्रद्धा थयाविना भक्तिभाव उत्पन्न थतो नथी. योग्यता विण सद्गुणनी प्राप्ति थती नथी विचार, उच्चार अने आचार ए त्रण वस्तु एकस्थाने होय तो पूर्ण भाग्यनुं चिन्ह जाणवं. नीतिधर्मनुं स्वरुप वीतरागमभुए यथार्थ कर्वा छे.विनयभक्ति विना आत्मशक्ति खीलती नथी. हे गौतम, समय मात्रपण मा प्रमाद कर, आ वाक्यनी उत्तमता पुनः पुनः विचारवा योग्य छे.
धर्मोनतिमा प्रभावना उत्तम अंग छे. आध्यात्मिक ज्ञान वाळू जीवन सत्यसुख आपे छे. कार्य अने ध्यानी चित्तनी एकाग्रतायी कार्यसिद्धि करे छे. श्री वीर प्रभुए आत्मशक्तिनं अद्भूत स्वरुप
For Private And Personal Use Only
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उपदेश्युं छे, पण समज्याविना अन्तरमां अन्धारुं छे. आत्मस्वरुप - रमणतामां चित्तवृत्ति विश्रांत थतां सहजानन्दनी खुमारी प्रगटे छे. उपादेयबुद्धि अने उपादेयनुं आचरण महा दुर्लभ छे. हेय, ज्ञेय अने उपादेयनुं यथार्थ स्वरूप समजवाथी सत्यविवेक प्रकटे छे. शब्द, ज्ञान अने वस्तु ए त्रण प्रकारना पदार्थ छे, ज्ञानरूप अनि सर्व कर्म बाळीने भस्म करे छे. खरखर सत्यमुख अन्तरमां छे.
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
For Private And Personal Use Only
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भजन पद संग्रह,
भाग २ जो. ॥ ॐनमः नवपदस्तुतिः॥
॥ १ अरिहंतपदस्तुति ॥ धन्य धन्य दीवस ने धन्य घडी छे आजे-ए राग.
अरिहंत नमो भगवंत सदा सुखकारी, तीर्थंकर नामोदयथी जग जयकारी, त्रिज्ञान सहित तीर्थकर गर्भे आवे, इन्द्रादिक मुरगिरि गर्भोत्सव विरचावे. ॥१॥ प्रभु जन्मे त्यारे सर्वे इन्द्रो आवे, प्रभु ग्रही करतलमां सुरगिरिपर लेइ जावे, जन्मोत्सव करीने प्रभुने गृह पधरावे, नंदीश्वर दर्शन करी कृतारथ थावे. ॥२॥ भोगावली कर्मो क्षीण थातां जयकारी, दीक्षोत्सवपूर्वक संयम ले हितकारी, स्थिर ध्यान धरीने घातिक कर्म खपावे, केवलज्ञाने जिन समवसरण सुहावे. ॥ ३ ॥ भवि आगळ धर्म कथीने तीर्थज थापे, रत्नत्रयी लक्ष्मी औदयिक वाणी आपे, नवतत्वोने षड्द्रव्योने जिन भाखे, जिनवचनामृतनो स्वाद भवि जीव चाखे. ॥४॥
For Private And Personal Use Only
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रुतज्ञाने धर्मनुं स्थापन जिनजी करता, सिद्धोने जणावी उपकारी पद वरता, ते माटे अर्हन् चन्दन पहेलु भाख्यु, जो जो नवकारे काल अनादि दाख्यु. ॥ ५ ॥ प्रभु शुधा पिपासा योगे अन्नने पाणी, लेवे निरवद्य कहे जिनवरनी वाणी, जव आयुष्य अवधि प्रभुनी पुरी थावे, प्रभु एक समयमां सिद्ध स्थानमां जावे. ॥६॥ जगलोचन जिनवर महा उपकारी देवा, कर भावे चेतन तीर्थकरनी सेवा, अरिहंत अनंत थया थाशे ने थावे, लळी लळी प्रणमुं तीर्थंकर साचा भावे. ॥ ७ ॥
२ सिद्धपद स्तुतिः॥
उम्पय छंद. सिद्ध भजो भगवंत, प्रभु शिव सुखना भोगी, निर्मल क्षायिक भाव, थकी निश्चयथी योगी, धरी अचल अवगाह, मुक्तिना स्थान सुहाया, सर्व कर्मथी मुक्त, सिद्ध शिव नगरी राया, अज अमर परम जिनराजने, वन्दतां दुःख जाय छ. स्वामी सेवकभाव नहि ज्यां, शर्म अनंतुं थाय छे ।। १ ।। वन्दो पूजो सिद्ध बुद्धने निशदिन ध्यावो, सिद्ध बुद्ध परमात्म विभुने निशदीन गावो, सिद्ध सनातन परम महोदय शिवमां वसीया,
For Private And Personal Use Only
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
क्षायिक नव लब्धिना, भोगी शिवसुख रसीया, सिद्ध बुद्धना ध्यानथी तो, आतम तेवो थाय छे, श्वासोश्वासे समरवाथी, जन्म जरा भय जाय छे ॥ २ ॥
३ आचार्यपद स्तुतिः
छप्पयछंद. पाळे पञ्चाचार पळावे वॅरिवर साचा, ज्ञानी ध्यानी कथन करे.छे जिननी वाचा, वीर जिनेश्वर तीर्थ चलावे भाव दयाथी, शासनना सुलतान सूरिवर वीर गयाथी. गच्छ सूरीश्वर सेवीए आचारज सुखदाय छे द्रव्य क्षेत्रने काल भावे, सूरिवरा परखाय छे. सूरि विना नहि गच्छ, शास्त्रमा परगट भाख्यु, वसे गच्छमां सुमुनि सूत्रकृतांगे दाख्यु, रत्नत्रयिनी प्राप्ति गच्छे वास कर्याथी, आराधक भवि होय सूरिनी आण धर्याथी, सङ्घनायक सेविए भवि क्य धन्य ते मुनिवरा, सूत्रार्थ दाता जैनगच्छे-पति प्रकट मुख जयकरा. संप्रति शासन नायक सूरिवर वन्दन कीजे, व्यवहारे वर्तिने निश्चय सत्य ग्रहीजे, सूरिवरोनुं मान कर्याथी शासन वृद्धि, वृत धारक सूरिवर सेव्याथी शाश्वत सिद्धि, जैन धर्मोद्धारमा शूर सूरिवरा सुलतान छे, चतुर्विध सुसङ्घ प्रणेता सूरिवरा भगवान् छे.
२
For Private And Personal Use Only
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
४ उपाध्यायस्तुतिः
॥ छप्पय छंद ॥
उपाध्याय गुणखाण ज्ञानना दरिया भाख्या, भणे भणावे सूत्र सत्य जे करता व्याख्या, पर द्रव्यादिक जाण सदा संयमने पाळे, शिष्यादिक परिवार धर्मना पन्थे वाळे, उपाध्याय भगवाननुं बहु, मान करो जय जयकरा, गच्छमां युवराजसमा ते, भव्य वृन्द अति सुखकरा. १ जैन धर्ममां धीर वीर संयमने साधे, पञ्चाचार धुरीण तत्त्वने जे आराधे, भव्य चतुर्विधसंघ सर्वने शिक्षा आपे, समजावीने बालसाधुने संयम थापे, उपाध्याय पदने नमो भवि वन्दन वार हजार छे, संप्रति वाचक मुनिने नमतां सेवतां भव पार छे
५ साधुपदस्तुतिः
धन्य धन्य दीवस ने धन्य घडी छे आज-ए राग.
संयम खप करता मुनिवर वन्दो भावे, संयत सेवाथी निर्मल संयम पावे, सरसवने मेरु अन्तर श्रावक साधु, मङ्गलकारी सुनिवर पढ़ने आराधु, धन्य धन्य दीवस ने धन्य घडी ते लेखो, जब मुनिवरदर्शन पुण्योदयथी पेखो,
For Private And Personal Use Only
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
संयत सद्गुरुजी पञ्च महाव्रत धारी, कञ्चन कामिनी त्याग करे अनगारी, जाणे ते भव मुक्ति पण जिनवर दीक्षा, व्यवहारे वा विण नहि आतमशिक्षा, घरबार तीने मुनिवर संयम साधे संयम सेवाथी आतम अनुभव वाधे. सद्गुरु मुनिवर छे वन्दनना अधिकारी नहि गुरु गृहस्थी संयमना गुण धारी, महातीर्थ मुनिवर जंगम जे आराधे ते श्रावक साचो रत्नत्रयीने साधे.
६ दर्शनपदस्तुतिः
राग उपरनो. नमो दर्शन चेतन स्पर्शन शिव मुखकारी दर्शनथी सम्यग् ज्ञान लहो जयकारी, व्यवहार अने निश्चयथी दर्शन कहीए. बेनी प्राप्तिथी शाश्वत मुखडा लहीए. दर्शनथी भवनी नियमा सूत्रे भाखी, सहु आगम ग्रंथो दर्शनना छे साखी, नमो दर्शन पद भक्तिथी दर्शन पावो, दर्शन भक्तिथी दर्शन मोह हठावो
U
७ ज्ञान पदस्तुतिः
गग उपरनो. प्रणमो प्रणमो नाणस्स सदा उपकारी,
For Private And Personal Use Only
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मति श्रुत अवधि मनःपर्यव केवल भारी, स्वपरप्रकाशक ज्ञाने शासन चाले, ज्ञाने भवि प्राणी जीवदयाने पाले, णमो बंभीलीवीए आये भगवइ भाख्यु, ज्ञानीए ज्ञानतणुं फल घटमां चाख्यु, भवि ज्ञान न निन्दो ज्ञानि निन्दा वारो, गुरुगमथी ज्ञान ग्रहीने चेतन तारो. महिमा छे अपरंपार ज्ञाननो साचो, निशदिन भवि प्राणी ज्ञानाभ्यासे राचो, जिनवाणी श्रुत आधार हाल छे जाणो, श्रुत ज्ञान ग्रहीने शाश्वतपद मन आणो. जाणो नव तत्त्वादिक जिनवरनी वाणी समजी सम्यग् भवजलधि तरशो प्राणा, नमो ज्ञान सदा दिनमाणि जेवं उपकारी, प्रणमुं भावे हुँ ज्ञान सदा जयकारीः
८ चारित्र पदस्तुतिः चल चेतन जिनमन्दिर जइए-ए राग ॥ चरण करण धारी मुनिवन्दु मोक्षे संचरवा रंक जनो पण चरण ग्रहे छे मुक्तिवधु वरवा जीनजी महा भाग्य, धन्य ते वीतराग, विज्ञानी पण दीक्षा लेवे भवजलधि तरवा. चरण० ॥१॥ धन्य ते चारित्र, होय भव्य पवित्र, इन्द्रादिक पण मुनिने वंदे कर्म कटक हरवा. चरण ॥२॥
For Private And Personal Use Only
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
महिमा मोटो सार, चरणतणो अवधार
द्रव्यवेष वण केवलीने नहि वंदननो अधिकार. चरण० ॥२॥ सर्व सुखकारी, धन्य अनगारी
बुद्धिसागर मुनिने वंदो, नहि कोनी परवा. चरण० ॥ ४ ॥
९ तपःपदस्तुतिः
राग आशाउरी.
तपपद शिव सुखकार भवियां तपपद शिव सुखकार. लब्धि अट्टाविश तपथी प्रगटे,
भवियां० १
भवियां ० २
भवियां ० ३
भवियां ० ४
भवियां ० ५
भवियां० ६
पहेलुं मङ्गल सार
ते भव मुक्ति जाणे जिनवर
तो पण तप तपनारकर्म निकाचित पण क्षय करतं,
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तपथी सहु तरनार - तप तपीया मुनिरत्न संवत्सर धन्य तेनो अवतार - अद्भुत ज्ञाननो महिमा मोटो
कां नावे पारबुद्धिसागर तप तपीया मुनि
बंदु वार. हजार
नवपद गीत.
राग बनजारो.
नमुं नव पद जग जयकारी, अद्भुत महिमा छे भारी.
For Private And Personal Use Only
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१०
नवपद ऋद्धि घट दाखी, ज्यां सूत्रसिद्धान्तो साखी लेजो उरमांहि उतारी
नमुं. १
मयणासुंदरी श्रीपाल, पाम्या छे मंगलमाल, आम्बील तपने दील धारी
निश्वयव्यवहारे दाख्यां गुणगुणीविभागे भाख्यां, च निक्षेपा अवतारी
अन्तरनी शक्ति आपे, परमातम पदमां थापे, नव पदनी छे बलीहारी पदपिंडस्थादिक भेदे, नव पद ध्याने सुख वेदे, सहु कर्म कलंक विडारी,
नव पदनुं ध्यान धरीजे, आतमनी लक्ष्मी वरीजे, पामो भव जलधि पारी
नव पदनो साचो यंत्र, नव पदनो ए महा मंत्र
ए नव पद मंगलकारी
स्मरो नवपद श्वासोश्वासे, सिद्धि ऋद्धि-घटवासे बुद्धिसागर अवधारी
For Private And Personal Use Only
नमुं. २
नमुं. ३
नपुं. ४
नमुं. ५
नमुं. ६
नमुं. ७
नमुं. ८
मनहरछंद.
मन माने ते खावो पीवो भाइ दुनीआमां, जेवी जेवी क्रिया तेवो कर्मनो तो बन्ध छे, मन मकलाइ अरे फुलण फजेती करी, अन्तरना ज्ञानविन देखता तो अन्ध छे. चेतननो बोध रोध करे धन घातीयांनो, चेतनप्रकाशथकी सुगति पमाय छे. धीनिधि कछे एम सत्य वात जाणवाथी, अलख अलख मुख योगियो तो गाय छे, ॥ १ ॥
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
म्हारु अने हारु एम भेद पाडी भूल करे चेतनना बोधविण जीवडा कूटाय छे, चार गतिमांहि भमी ममीने तो दुःख लह्यां, अन्तरनी भूलथकी भवमां भमाय छे. चेतनना बोधविण चेतन तो जड जेवो, चेतनना बोधविण चेतन चूकाय छे. धीनिधि कहेछ एम चेतजे चतुरजन, घडी सवालाखनीतो जोतामांहि जाय छे. ॥२॥
मनहरछंद. करीने विचार भाइ दुनीआमां देखी लेजे, गाडी वाडी लाडी सहु मायानी जंझाळ छे, धनपति नरपति सुरपति मुख सहु अज्ञानथी मानी लेइ मोह्या जीव बाल छे. शोध कर बोध कर चित्तमां चतुर जन प्रमदाना पाशमांहि शाने जकडाय छे. जाग जाग जीव जरा ज्ञानथी विचारी जोने नित्य एक चेतन छे सत्य समजाय छे. ॥१॥ जरूर जरूर जीव जोने जरा अन्तरमा अन्तरना ज्ञानथकी दोष सहु जाय छे. शाताशातावेदनीने समभाव वेदी लेजे अन्तरना ज्ञानथकी समभाव थाय छे. श्वास ने उच्छ्वासमांहि जीवन बहे छे जीव लोक कहे मोटो तने न्हानो थइ जाय छे. धीनिधि कहे छे एम चेतन तुं चेती लेजे जिनवाणी गुणखाणी शरण सदाय छे. ॥२॥
For Private And Personal Use Only
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१२
जीवने उपदेश.
मनहरछंद:
अरे जीव जरा चित्तमांहि तो विचारी जोने जनन मरण दुःख शाने तेह थाय छे. कर्म छे कारण तेनुं कर्मनो विनाश कर कर्मai aies रागद्वेपथकी आय छे. राग अने द्वेषभाव कर्मना विनाश थकी नाश द्रव्यकर्मतणो पलकमां थाय छे. thani मरण जेनुं जीवता ते जगमोहि, जाग जाग दीलमांहि चतुर चूकाय छे. अन्तरना ज्ञान माटे गुरुनुं शरण कर, गुरुगम सेवनाथी सत्य तो जणाय छे. ज्ञानी ध्यानी मुनि गुरु शरण शरण कर चेतन स्वरूप मुनिकरुणाभी पाय छे. जडमां जगत् सहु जकडाणुं जाणी लेइ, सुखनी तो आश एक चेतनमां धारजे. धनिधि कहे छे एम शिवसुख पामवाने, राग अने द्वेष दोय चित्तमांथी वारजे.
मनहरछंद.
चेतन चतुर घेत आयु वही जाय अरे, मायाथी मस्तान थइ शाने भटकाय छे. बालने युवानवय चाली जाय चेत चित्त, बानी उन्नति स्थिर रही न रहाय छे. संयोगथी मळ्यो सह कुटुम्ब कबीलो देख, म्हारु म्हारु मानी मूढ मन मकलाय छे.
For Private And Personal Use Only
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जडना संबंध थकी न्यारो छे चेतन तुंहि, अज अविनाशी एकरूप तुं कहाय छे. ॥॥ निरञ्जन निराकार निर्मल परम ब्रह्म, सिद्ध बुद्ध हंस तुंहि आनन्दनुं स्थान छे. योग लेश्या मन वाणी देह थकी न्यारो तुहि, देहव्यापि चेतननुं ज्ञान ते प्रमाण छे. असंख्यप्रदेशघन ज्ञानमय चेतन छे, तुंहि तुहि रटनामां आनन्द अपार छे. अकल प्रभुनुं रूप ज्ञानथी कळाय अहो, धीनिधि परम ब्रह्म नित्य निराकार छे.
मनहरछंद. जाणवानुं बहु एक आदेय चेतनरूप, जीवमां अनन्तगुण ज्ञानथी समाय छे जिनवाणी गुणखाणी विवेकथी दलिआणी, शुद्ध एक चेतनने योगियो हि ध्याय छ; सत्ताथी समानसिद्ध चेतनने ध्याइएज, व्यक्तिरुप थावे गुण सत्ताना तो ध्यानथी; शुद्धध्यानउपयोगे शुद्ध तो चेतन थाय, स्थिरचित्त ध्यान कर गुरुगम ज्ञानथी. ॥१॥ लटपट खटपट झटपट तजी जीव, शुद्ध बुद्ध रूप हारुं स्थिरचित्त ध्यावजे; फरी फरी नहि मले समय सुजाण अरे, सत्ताए रहेली शुद्ध बुद्धताने पावजे; अशुद्ध चेतन तुहि चार गति रूप छेज,
For Private And Personal Use Only
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
१४
ती शुद्धताथी भेद भाव जाय छे; सिद्धांतनो सार सत्य समज चेतन एज धीनिधि चेतन प्रभु कोइ जन पाय छे. मनहरछंद.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ २ ॥
जननी समान सहु ललनाने मानी लेजे, परधन पत्थर समान चित्त धारजे; पोताना चेतन सम सहु जीव गणी लेइ, मन वच कायाथकी कोइने न मारजे; वंदन निन्दक पर चित्तनी समानताज, अशुभ विचार थकी चेतनने वारजे; खेली निजरूपमांहि शूरवीर थइ जीव, ratfarकी झट पोताने तुं तार जे. लप छप गप छप तजीने चेतन हवे, स्थिर योग थकी एक आतमने ध्यावजे; परमां प्रवेश थकी चित्तडुं चंचल थायः माटे हितशिख हवे ध्यानमांहि लावजे; भूली सहु दुनीयानुं भान एक ध्यान थकी, साध्यमांहि सुरतानी लीनता लगाडजे; धनिधि कहे छे शूरवीर थइ जीव हवे, विजय विजय वाद्य वेगथी वगाडजे.
For Private And Personal Use Only
मनहर छंद. दिनमणि ज्ञानमणि स्पर्शमाणे जगधणी, दुःखहर सुखकर आनंद निधान छे; अलख खलक मांहि साच अन्यकाच सहु, 'चेतनानुभव सत्य अमृतनुं पान छे;
॥ १ ॥
॥ २ ॥
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अन्तरना ज्ञानथकी जाण्या अहो ज्ञेय सह, अन्तरना ध्यानमांहि योगियो मस्तान छे; सत्य जिनवाणी जाणी धीनिधि तुं चेती लेजे, चेतन विनानुं अन्य जाणजे तोफान छे. ॥१॥ ज्ञान अने क्रिया थकी मोक्षनो तो पन्धवहे, जरुर समयण दीलमां विचारजे; जिनवाणी सत्यजाणी सहहणा कर भवी, रत्नत्रयी ग्रही जीव पोताने तुं तारजे; अष्टसिद्धि नवनिधि रूद्धिनो भण्डार तुंहि, अनंत अनंत ज्ञेय ज्ञानथी जणाय छे; धीनिधि चेतन झट चित्तमांहि चेती लेजे, अनंत अनंत सुख तुजमां समाय छे. ॥२॥
मनहरछंद. पामीने मनुष्यभव पाप कर्या लाखो गमे, तेनी यादी करी जीव पश्चाताप कीजीए; हवेथी न पाप थाय एवं तो वर्तन राख, निजमां रमणताथी शिवसुख लीजीए; भूल्यो त्यांथी फेर गण हवेथी न भुल थाय, स्मृति एवी खातां पीतां चालतां तुं राखजे; विचारीने वेंण बोल विवेकथी सत्य तोल, ध्यानामृतस्वाद भवि प्रेमधरी चाखजे. ॥१॥ चेत अरे जीव जरा चित्तमा विचारी जोने, जडमां रमणताथी जड जेवो थाय छे; मोतिचारो हंस चरे विष्टाथी न प्रेम धरे, अरे हंस जीव केम विष्ठामां मुंझाय छे.
For Private And Personal Use Only
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जाति जीव हारी तेवी गीत तो अन्तर राख, चेतन स्वरूपमांहि चेतना समावजे; धीनिधि चेतनरूप पड नही भवकूप, परम स्वरुपमांहि चेतना रमावजे. ॥२॥
मनहरछंद. जड अने जीव दोय परिणम्यां पिंडमांहि, भेदज्ञानदृष्टिथकी भिन्न भिन्न धारजे. पय जल मिल्यां हंस चंचुथकी भिन्न करे, विवेकथी जीवहंस कर्मने विदारजे. कर्मनो संयोग तेनो अति जे वियोग थाय, सत्य मोक्ष दीलमांहि चेतन विचारजे. चेतननुं रूप जपे कर्म तो अनंत खपे, दर्शननी शुद्धताथी स्वरूप निहारजे. दुनीयाना प्रेमभाव विषना भरेला सहु, जाणी जीव शुद्ध प्रेम अन्तरमा धारीए. आधि व्याधि उपाधिथी भरेल भवाब्धि आतो, चरणना यानथकी चेतनने तारीए. पोते तो पोताने कहुं चेत झटपट अरे, वीती वेळा फरी कदी लेश नहि आय छे. धानिधि चेतन हवे वार न लगाड काइ, खरा तो बपोरे चौटामांहि शुं लुटाय छे. ॥२॥
मनहरछंद. दुर्लभ मनुष्य भव लही जीव चेत अरे, मुगुरुसंगतिथकी विवेक पमाय छे; भणीने भणतर भाइ विनयने धारवो,
For Private And Personal Use Only
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१.७
विनयधी विद्यातात जगमां सोहाय है. भलवाते स्वार्थिना संगथी भरमानुं नहि, देवगुरु मातपिता प्रेमे पाय लागवं; लप छप गप छप वात सहु तजी शिष्य, विद्यानी वृद्धिने माटे व्हेला नीश जागं. दोहरा . जन्मीने जगमां करो, धर्म कर्मनां काज कूळदीपक पुत्रो थतां, रहेति कूळनी लाज. ॥ १ ॥ नवरा काळ न गालिए, उद्यम सुखनुं मूळ; हितशिक्षा मनमां धरी, पुनः पुनः नहि भूल. ।। २ ।।
सुख दुःखमां समभाव स्थिति.
मनहर छंद.
शाता ने अशाता दोय वेदनीना बंध छेज, धमांहि अन्ध वने मोहिनी संबंध छे. धनी मोटाइ एतो मोह मूळ जाण अहो, जिनवाणी जाण्याविना देखतातो अन्ध छे. सुख दुःख समभावे ज्यारे तो वेदाय छेज, त्यारे सत्य सुखनुं तो भान दील थाय छे. धीनिधि चेतन प्रभु सेवना पमाय ज्यारे, त्यारे जन्म जरा भय आधि व्याधि जाय छे. १ हेय ज्ञेय उपादेय ज्ञान थकी अरे जीव, नव तत्त्व विचारीने चरणने पाळजे. पंचाचार धरी शुद्ध व्यवहार निश्चयतः, आवश्यक क्रिया थकी दोषो सह टाळजे.
3
For Private And Personal Use Only
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ध्येय ध्यान ध्याता एकतानमांहि चेतन छे, प्रमेय अनंत ज्ञान प्रमाणथी पेखजे. भिन्नाभिन्न प्रमेयथी प्रमाण जाणीने जीव, धीनिधि स्वरूप सत्य ध्यानमांहि देखजे.
२
मनहरछंद. संसारमा सुख नहि धनके मोटाइ मांहि, संसारमा सुख नहि भोजनथी धारजे; संसारमा मुख नहि बालयुवा वयविषे, संसारमा सुख नहि पुत्रथी विचारजे; गयां दुःख आवे दुःख भोगवातां दीन दुःख, चारगतिमांहि दुःखततितो अपार छे; संसारनी झाळमांहि सुखनी आशाए जीव, फस्यो दुःख लहे सुख नहीं तलभार छे. ॥१॥ संसारमा मुख नहि गाडी वाडी लाडी धकी, संसार असारमांहि मुख न जराय छे; भ्रांतिथी भूलेल झांझवाना जल मृग पेठे, सुखनी आशाए जीव ज्यां त्यां खूब धाय छे; जडमां न सुख अरे कहुं जीव सत्य खरे, चेतनमां मुख सत्य चित्तमांहि धारजे; सत्य मुखमणिधाम नहि जेनुं रूप नाम,. धीनिधि चेतन मुख सत्य तुं विचारजे. ॥२॥
मनहरछंद. उपशम क्षय उपशम अने औदायिक, क्षायिकने परिणामी पंच ए विचारजो;
For Private And Personal Use Only
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
उपशम दोयभेद चरणने समर्कित, अष्टादश भेद क्षयोपशमना धारजो; ज्ञान चार ऋण छे अज्ञान ऋण दर्शनने, दानादिक लब्धि पंच तेमांहि मेलावजो; समकित चारित्रने संयमासंयम एम, भेद क्षयोपशमना चित्तमां रमावजो. चार चार गतिने कषाय तीन लिंग वळी, पड लेश्या अज्ञान मिथ्यात्वने निवारजो: असिद्धता असंयम एक विश भेद गणो, औदयिक भावनाए दिलमांहि धारजो; रत्नत्रयी दानादिक पंच अने समति, नवभेद क्षायिकना तेरमे पमाय छे; जीवने भव्यत्व अभव्यत्व ए त्रण भेद, परिणामि भावनाए स्वभावे सुहाय छे. दोहरा.
वचनामृत.
मनहरछंद.
बैरीमो विश्वास तज-सरल सुजन भज,
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private And Personal Use Only
॥ १ ॥
पंचभावना भेद ए त्रेपन थया रसाल; छठो सन्निपात छेज कहेता दीन दयाळ ॥ १ ॥ उपादेयने हेय. छे ज्ञेयभाव छे पंच;
आत्म स्वभावे लीनता रहे न आश्रव रंच. ॥ २ ॥ मनन स्मरण विवेचना करतां सत्य विवेक बुद्धिसागर आत्ममां शोधो धरीने टेक.
॥ २ ॥
॥ ३ ॥
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥१॥
गुरुजन हितशिख जूठ नहि जाणजे; धननो कुव्यय कदी करजे न प्राण पडे, परनारी वेश्यासंग दीलमां न आणजे; कुपन्थ कुग्रन्थ त्यजी वीरनां वचन भजी, समाकित सद्दहणा दिलमां ठसावज; जिनवाणी सत्य जाणी आदरजे हितआणी, सत्यसार पामी जीव शिवपुर जावजे. गुरु गम ज्ञानविना भण्यामां तो भूल थाय, गुरुगम ज्ञानविना निर्णय न थाय छे; गुरुगम ज्ञानविना पडया छे भणेल जीव,, गुरुगम ज्ञान थकी शंका सहु जाय छे; गुरुगम ज्ञानविना पन्थनी न सुज पडे, गुरुगम ज्ञानविना गमार गणाय छे; गुरुगम ज्ञानविना पन्य मही प्रगटे छे, धीनिधि कहे छे गुरुगम सुखदाय छे.
नीतिवचनामृत.
॥ मनहरछंद. ॥ मुजन सङ्गति कर गुण सहु चित्त धर, मूढजन सङ्ग तजो मुगुरुनी सेवना; व्यसनिनो सङ्ग त्यज वित्तसम वेष सज, सत्य वात समजीने असत्य उवेखना; बोले तेवो बोल पाळ कोइने न देजे आळ, कजिया कुसम्प त्यजी सम्पने वधारजे; इर्ष्या अभिमान क्रोध वेर झेर वारी सहु,
For Private And Personal Use Only
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२२
कोण हं ने कोण मारु तत्व ए विचारजे ॥ १ ॥ बाल ख्याल तजी भाइ धर्मनी गणी सगाई, वीजन टेकनेक हृदयमा राखजे; चोरी जारी चुगलीने निन्दा दोष परिहरी, सत्यटेक धारी कदी जूटुं नहि भाखजे; विनय विवेक घरी वृद्धजन अनुसरी, नीति रीति दुनीआमां टेकथी जमावजे; वीर जिन वचननी सत्यता धरीने दील, धीनिधि चेतन प्रभु उघथी जगाव जे. मनहरछंद. चेत जीव चित्तमांहि संसार असारमांहि, म्हारु व्हारु वारी सह धर्मचित्त धारजे; विषयने विषसम गणी भाइ ज्ञानथकी, महा दुःखदायी काम चित्तथकी वारजे; जैन धर्म धारवाने भवदुःख वारवाने, ज्ञानि मुनि सङ्ग करी तत्त्वने विचारजे; महा पुण्य योगे मळ्यो मनुष्यनो भव अरे, वारंवार जीव कह पोताने तुं तारजे. प्रीतिमांहि भीति जाणी राख नीति धर्मनी तुं संयोग छे जेनो तेनो वियोग विचारजेः अलख अरूपी हि अन्तरमां जाणी लेइ, मोह शत्रु सेनाने तुं ज्ञान खड्ने मारजे; समय विचार सह समजीने चेतन तुं, उपादेय एक हारु रूप अवधारजे; धीनिधि चतुर चित्त समजीले सानमांहि, पामीने मनुष्यभव हवे नहि हारजे .
॥ १ ॥
For Private And Personal Use Only
॥ २ ॥
॥ २ ॥
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ विनयामत ॥
मनहरछंद. विनयथी मान जाय विनयथी सुख थाय, विनयथी विद्या सहु भणवाथी ओव छे; विनयथी वेर जाय विनयथी झेर जाय, विनेय सुशिष्य मनमांहि बहु भावे छे; मन्त्रमांहि नवकार खगमांहि हंस सार, सहु गुगमांहि तेम विनय विख्यात छे; विनयथी यश थावे सहुलोक गुण गावे, विनय विहीन जन रासभनो भ्रात छे. विनय विवेक तात विनयथी उच्चजात, विनयथी नात जातमांहि सुख पावे छे; विनयथी क्रोध जाय मन- इच्छित थाय, विनयथी शिवपुर झट जन जावे छे; आवळनां फूल जेवो विनय विनानो जन, मोरपूठ जेवो जन विनय विनानो छे; धीनिधि कहे छे सहुगुण आववानुं द्वार, विनय विनय एक गुणतो मनानो छे.
॥१॥
॥२॥
-
--
-
गुरु विनय.
मनहरछेद. गुरुनो विनय मुखकारी दुःखहारी अहो, गुरुनो विनय गुण घणा दील लावे छे गुरुना विनयविना शिवपुर दूर बहु, गुरुना विनय थकी दोष सहु जावे छे;
For Private And Personal Use Only
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
२३
गुरुना हुकमने तो मान बहु आपवाथी, गुरु आण प्रतिपाल सुशिष्य गणाय छे; गुरुना विनय विना शिष्य छे सूकर सम, कांह्या कान कूतरीनी अवस्था पमाय छे. शाणो के सरदार होय नृपतिके रंक होय, गुरुना विनय विना गमार गणाय छे; गुरुना विनय थकी सहु ज्ञान सांपडे छे, गुरुना विनयं विना दुःख वहु पाय छे; गुरुनो विनय (शिवपुर पन्थ प्रकट छे, सद्गुरु प्रेमभाव विनय शृंगार छे; धीनिधि कहे छे दील विनयने धारवाथी, विमल सफल जगजन अवतार छे.
मित्रलक्षण.
मनहरछंद.
संकटमां सहाय करे स्वार्थ नहि दील घरे, दोप सहु ढांके अने मुखे गुण गाय छे; मित्रनो उदय देखी दीलमां आनन्द घरे, हित शिख आपवाथी कबु न रीसाय छे; समय सुजाण होय मित्रना न दोष जोय, गुह्यवात मित्रनी ते क्यांय न प्रकाशतो. दीर्घदृष्टि गुणवन्त नीतिमान लज्जावन्त, मित्र महा अवतार सृमित्र प्रभासतो. समचित्त कुलवय धर्म जाति नीति वित्त, मित्रनी मित्राइ जगमांहि सुखदायी छे;
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private And Personal Use Only
॥ १ ॥
॥ २ ॥
॥ १ ॥
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
૪
धर्मनी मित्रा गुणदायी सर्व मित्रतामां अभयकुमार आर्द्रा पेठे वखणाइ छे; मूर्खनी मित्राइ कोइ काळमां न कर भाइ, मूर्खनी मित्राइ दील दुःखतति क्यारी छे; घरडानी लाकडीने आंधळानी आंख जेवो, श्रीनिधि सुधर्मी मित्र पुण्ययोगे यारी छे. ॥ २ ॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आत्माने स्वरूप रमणतानी प्रेरणा.
छप्पय छंद.
चेतन चतुर सुजाण चित्तमां चेती लेजे, ब्रह्मानुभव रंगे सङ्गे निशदिनं रहेजेः पर निजमां समभाव चेतना ध्याने वाळो, चिन्मय चेतन रटन करीने जीवन गाळो; अनुभवयोगे पामीर ते चिदानन्द शाश्वत खरो, बुद्धिसागर ध्यानयाने भवसागरने झट तरो ॥ १ ॥ अखण्ड स्थिर उपयोग आत्ममां प्रकटे ज्यारे, झळके ज्योति शुद्ध ब्रह्मनी घटमां व्यारे; पडे न परमां चेन घेन विषयादिक नासे, फरतां हरतां ध्यान योगथी स्थिरता भासे; शब्द विषयथी दूर छे ते चेतनता समजो खरी, बुद्धिसागर सत्य ज्योति चेतननी दिलमां धरी ॥२॥
व्यवहार धर्मनी महत्ता.
छप्पय छंद.
मूकीने व्यवहार धर्म केइक भूल्या,
For Private And Personal Use Only
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शुष्कज्ञानथी केइक भव जंझाळे झूल्या; परम्परागम त्यजीने भवदरिये कै डूल्या, शाब्दिक तार्किक पण्डितमाने केइक फूल्या; रही मायाना पाशमां जीव सोऽहं मुखथी उच्चरे, बुद्धिसागर ज्ञान विण ते भवसागरने क्युं तरे. ॥ १ ॥ कहेणि सम रहेणी नहि जेनी ते नहीं मोटा, बोली बणगां फूंके तेना नहीं छे तोटा; ज्ञान लही विरतिने वीरला सज्जन पामे, इन्द्रादिक ज्ञानी विरतिने शीर्षज नामे धन्य धन्य जगमा अहोते बोले तेने पाळता, बुद्धिसागर ज्ञानी ते पाप पङ्क पखालता. ॥२॥
व्यवहारधर्ममहत्ता.
छप्पयछंद. धरि धर्म व्यवहार टेकथी केइक तरिया, धरि धर्म व्यवहार मुक्तिने केइक वरिया; धरि धर्म व्यवहार थया केइ गुणना दरिया, धरि धर्म व्यवहार सिद्धमां केइक ठरिया; जल विना जेम वृक्ष देखो उभुं त्वरित सूकाय छे, व्यवहार धर्म जलाभावे तीर्थ वृक्ष छेदाय छे. ॥१॥ मूळविना नहि वृक्ष वृक्ष विण क्यांथी डाळां; जलविना नहीं भरियां जाणो नद ने नाळां, मात विना नहि पुत्र पुत्र विण कोनो वापा; वदन विना नही वेण होय शुं वचन विलापा, कारण विना न कार्य छे, जग समज समज भवि सानमा व्यवहार धर्म विना नहि छे भाव धर्म सुतानमा ।। २।
For Private And Personal Use Only
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
धरि धर्म व्यवहार जगत्मां जय वर्तावे, धरि धर्म व्यवहार जगत्मा कीर्ति पावे धरि धर्म व्यवहार स्वर्गने शिवमा जावे; धरि धर्म व्यवहार तत्वने बहु फेलावे, व्यवहार धर्म लद्या विना मयुर पृष्ठवत् मानवी, बुद्धिसागर ज्ञानथी भवि हितशिक्षा दिल जाणवी. ।।३।।
ब्रह्मस्वरूपोपदेश.
झुलणा. ध्यान कर ब्रह्मनुं ध्यान कर ब्रह्मन, ब्रह्म चेतन प्रभु तुं कहायो; शुद्ध उपयोगथी शक्ति व्यक्ति जगे, शुद्ध रूपे प्रभु तुं मुहायो. ध्यान. ॥ १॥ कर्मनी वर्गणा खेरवे ध्यानथी, ध्यानथी सत्य संतोष आवे; ध्यानथी अनुभवे जागती ज्योत त्यां,
आतमा मुक्तिनुं शर्म पावे. ध्यान. ॥ २ ॥ ब्रह्म ते आतमा आतमा ब्रह्म छे, वीर वचनो यथा सत्य सेवे; वचन सापेक्षथी ब्रह्मने जाणतां, दान निजनुं सदा नीज देवे. ध्यान. ॥ ३ ॥ सप्त नयथी कह्यो भाव साचो लह्यो वचन एकान्तनी वात जूठी; वचन निरपेक्षथी भाव मिथ्या लहे, ब्रह्मनी वात निरपेक्ष बूठी. ध्यान.॥४॥
For Private And Personal Use Only
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ध्यान. ॥ ५॥
ब्रह्म निरपेक्ष संग्रह नये मानतां, ब्रह्ममां भ्रान्तिथी भूल थावे; वचन सापेक्ष संग्रह नये मानतां, व्यक्तिनी भिन्नता सत्य पावे. सूक्ष्म ज्ञानि प्रभु गुरुगमे धारिने, समजजो सप्त नयथी प्रमाता; तत्ववादे ग्रहे आतमा ब्रह्मने, बुद्धिसागर मुनि ब्रह्म माता.
ध्यान. ॥६॥
आत्माने जागृतिभावनो उपदेश.
झुलणा. जागरे आतमा जागरे आतमा, मोहनी उघमां चोर टूटे; वित्त दारा अने विपयनी वासना, पाशथी शत्रुओ खूब कूटे. जाग.? वृत्ति बाहिर्वहे कर्म आठे आहे, आतमा भ्रान्तिथी भान भूल्यो; क्रोधने मानथी लोभ मायायकी, लक्ष चोराशिमां खूब झूल्यो. जाग.२ पामी मानवपणुं पुण्य उत्कर्षथी, मुक्ति साधन अरे ते विसायु; खूब अपकृत्यथी पाप गाडं भर्यु, जाव, नरकमां केम धार्यु. जाग.३ श्वास उच्छवासथी जीव आयु घटे, खबर नहि कालनी केम थाशे; कालनुं कृत्य ते आ क्षणे कीजिए,धर्मथी आ भवाब्धि तराशे. जाग.४ कोटि धन आवशे नहि कदी साथमां, पाप ने पुण्य साथेज आवे; दान करजे सदा धर्म वाटे मुदा, दानथी आतमा मोक्ष पावे. जाग.५ स्मरण कर देवतुं शरण जे दीननु, साधुना दर्शने पुण्य थावे; साधु दर्शनथकी साधु वन्दनथकी, कोटिभवनां कर्यां पाप जावे. जाग.६ साधुना सङ्गथी आतमा जागतो, तीर्थ जङ्गम मुनि भव्य सेवो; तीर्थ जंगम मुनि कल्पवेली अहो, पुष्करावर्तना मेघ जेवो. जाग.७
For Private And Personal Use Only
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२८
साध ले सिद्धिने धर्मव्यवहारथि, भक्ति उत्साहथी यत्न धारो; धर्म करणी करी फोक थावे नहीं, धर्मथी आवशे दुःखआरो. जाग. ८ उंघ त्यागी अहो देह देवळ विषे, शुद्ध चेतन प्रभुने जगाडो; बुद्धिसागर सदा भावना मोगरी, स्मरणनो घण्ट हेते वगाडो. जाग.९
दयामां सर्वधर्मावतार.
झुलणाछन्द. दोलमा रहेम आणी अरे मानवी, दुःखिया प्राणियोने उगारो धर्म मोटो दया राखवी जीवनी,माणिने प्राण जातां न मारो. दील.? धर्मर्नु मूळ प्राणी दया मोटकी, मूळना विण नहीं होय डाळां; रहेम दृष्टि विना होय नहि धर्मको,स्वर्गना बारणे वन्ध ताळां.दील.२ वारि अग्निथकी प्रगटतो नही कदी, रेत पीले नही तेल आशा; रहेम दृष्टि विना धर्म नहि मानवी,चासणी बीन क्यांथी पतासा-दील.३ आपणो आतमा अन्यनो तेहवो, सर्वने मृत्यु, दुःख मोडं; माणिने मारतां पाप लागे घणुं, रहेम दृष्टि विना कृत्य खोटुं.दील.४ पापना पोटले पेट पापी भरे, खड्ग बंदूकथी जीव मारी; पापथी पातकी दुःख पामे घj,जाय अन्ते मनुज जन्म हारी दील.५ यत्र हिंसा तिहां धर्म नहि लेश छे, दुःखिया प्राणियोने उगारो;
मथी मानवी दील लावी दया, धर्म साचो दयाथी विचारो.दील.६ पशु अने पक्षिओ छाणना जीवडा, तेह मानव थशे कोइ काळे; नीच पण प्राणिया उच्च अवतार ले,शास्त्रनी दृष्टिथी कोइ भाळे.दील.६ धर्म नहि को दया सारिखो जगत्मां, दीलमां मानवी ले विचारी; वीर भगवाननी सांभळीने दया,धर्म ते जाणजो सत्य धारी. दील.७. सर्वनो आतमा एक सरखो गणी, आत्मवत् राखजो सर्व दृष्टिः बुद्धिसागर अहो मानवी देव छे, जेह करतो दया मेघदृष्टि. दील.९
For Private And Personal Use Only
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२९
धर्मप्रभाव.
झुलणाछन्दः धर्म कर आतमा धर्म कर आतमा, धर्मथी होय संसार पारो; धर्म करतां कदी धाड आवी पडे, पूर्वना कर्मथी ते विचारो. धर्म ? धर्मथीं देवता धर्मथी मानवी, धर्मथी नरपति श्रेष्ठ थाव; धर्मथी इष्ट संयोग आवी मळे, धर्मथी दुःखदौर्भाग्य जावे. धर्म २ अग्नि पण जल हुवे सर्प माला हुवे, धर्मथी कीर्ति जगमां गवाती; धर्मथी सिद्धिने पामतो मानवी, धर्मथी रूद्धियो सहु पमाती. धर्म ३ धर्मना तेजथी मेघ वर्षा करे, धर्मना तेजथी वाय वायु; धर्मना तेजथी रात्रि दीवस थता, धर्मना तेजथी दीर्घ आयु. धर्म ४ मानवी उंघतो धर्मपण जागतो, धर्मनुं बांधिए सत्य भातुं; चोर चोरे नहीं अग्नि बाळे नहीं, समज जो धर्मनुं सत्य खातुं. धर्म ५ धर्मथी परभवे उच्च अवतार ले, धर्मथी पाप सर्वे प्रणांशे; धर्मथी लब्धियो जीवने संपजे, धर्मथी सर्व बुद्धि प्रकाशे. धर्म ६ पग पगे रूद्धियो प्रगटती धर्मथी, धर्मथी दुनीआ हाथ जोडे; .. धर्म हीरो तनी मूढ मानव अरे, पापना पत्थरे शीर फोडे. धर्म ७ सत्य आनन्दने मोज छे धर्मथी, पूर्वभवनां कर्या आज पावे; .. हालना धर्मने भोगवे परभवे, पामतो फल यथा बीज वावे. धर्म ८ आम बावळ अने लींबडो आंबली, मानवी जे रूचे तेहि वावो; वाविए जेहवू पामिए तेह, नास्ति तेमां जरा कोइ दावो. धर्म ९ धर्मनां बीज वाचो सदा प्रेमथी, चालजो धर्मथी मुक्तिवाटे; बुद्धिसागर अरे चेतजे आतमा, माल छे मुक्तिनो शीर साटे. धर्म १०
भक्तिमाहात्म्य.
झुलणाछन्द. भक्तिकर भक्तिकर भक्तिकर देवनी, सारमा सार जिन नाम सार्च;
For Private And Personal Use Only
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
देवना गानथी दल निर्मल बने,देवनी भक्ति विण सर्व काचं.भक्ति.? लुण विण भोजने रस जरा नहि पडे, भक्ति विण सेवना सर्व लुखी; देवनी भक्तिथी सत्यसुख सम्पजे,भक्तिविण प्राणिया थाय दुःखी.
भक्ति.॥२॥ श्वास उश्वासमां स्मरण कर देव, ध्येयरूपे सदाजिनधारी; प्रेमनी भक्तिमां आंतरू नहि कशं,देवनी स्थापना मूर्ति प्यारी. भक्ति.३ भक्तिनां अंग सर्वे ग्रही भावथी, सेविये ते सदा सुखकारी; भक्तिविण पार नहि होय संसारनो,भक्तिथी टेव टळशे नठारी भक्ति.४ भक्ति आधीन विभु आतमा भवतरे, भक्तिथी स्वर्ग सिद्धि सुहावे; देवनी भकित पण जीवना सन्मुखी, भकितकर्ता सदा सिद्ध थावे.
भक्ति. ॥५॥ देवनी भाकितथी शकित शुभ जागती,चित्त लय भक्तिथी भव्य भाळो; भक्तिमां मिष्टता संपजे स्हेजमां, भक्तिना मार्गमां आयु गाळो.
भक्ति. ॥ ६॥ भक्तिमां चित्तवृत्ति तणो रोध छ, भक्तिथी ज्ञाननी ज्योति जागे; भक्तिथी आन्तरू नहीं प्रभुर्नु कदी, भक्तिथी भक्तनी भ्रान्ति भागे.
भक्ति . ॥ ७॥ भक्तिना तोरमां जोर छे कंइ नg, भक्तिनो योग कलिकाल मोटो; भगतिया तेल जेवी लहो भक्तिने, भक्तिनो योग नहि भाइ छोटो.
भक्ति. ॥ ८ ॥ भक्ति साकारनी साधिए सत्यथी, भक्ति साकारमा चित्तलागे; पगथियु मुक्तिनुं भक्ति छे आद्यमां, चित्त चेतन प्रभु भक्ति जागे.
भक्ति. ॥ ९ ॥ भक्ति भळती रहे योगना रङ्गमां, भक्ति पण योग छे योग भक्ति; बेउ भेळां रहे नाम जूदां लहे,भक्तिना योगथी सत्य शक्ति.भक्ति.१०
For Private And Personal Use Only
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भक्ति गङ्गा समी तीर्थ साचुं गणुं, भाक्तना योगमां भूल नावे; भक्तिथी शुन्य वृत्ति वहे वाह्यमां, भक्तिथी सत्य आनन्द थावे.
भक्तिः ।। ११ ॥ भक्तिनी धूनमां देव छे आतमा, भक्ति रसथी रसिक कहावे; भक्तिना पगथिये पाद मूकया थकी, जन्म मृत्यु तणां दुःख जावे.
भाक्ति. ॥ १२ ॥ भक्तिथी सहुमळे मोह माया गळे, भक्तिना भोजने भूख भागे; भक्ति अमृत तणुं पान कीधा थकी, प्राणि रंगाय नहि अन्य रागे.
भक्ति. ॥ १३ ॥ भक्तिनी औषधी रोग सहु टाळती, भाक्तना भावथी नित्य राचं भक्ति भगवन्तनी भेद सहु भागती, देव भक्ति सहीत ज्ञान साचुं.
भाक्ति. ॥ १४ ॥ शुद्ध भावेरमी भाक्ति साची लह, आत्मनी भक्तिना केइ भोगी; बुद्धिसागरं निराकारनी भक्तिने, ज्ञानथी साधता केइ योगी.
भक्ति. ॥ १५ ॥
आत्मप्रभुनी स्तुतिः
अलणाछंदः सर्व शक्ति धणी योग चिंतामणि, योगना पगथिये पाद मूको; अष्ट छे पगथियां योगनां आतमा, पामी अवसर कदि ते न चूको.
सर्व. ॥१॥ यम अने नियम आसन तणा भेद बहु, चित्त उत्साहथी भव्य साघो; पाणने साधिए पूरकादि थकी, पांचमा भेदथी खूब वाधो. सर्व. २ धारणा धारिए ध्यानमां लीनता, एम अभ्यासथी शक्ति प्रकटे;
For Private And Personal Use Only
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३२
आठमा पथिये पाद मूक्या थकी, चित्तना दोषनो भार विघटे.
सर्व. ।। ३ ।।
सत्य आनंदी पूर्णता पामतां, कार्य सिद्धे मटे सहु उदासी; हेतु पंचे मळे कार्यनी सिद्धता, जैनस्याद्वाद तत्त्वे विलासी. सर्व. ४ सर्व सत्ता गुणो व्यक्ति भावे हुवे, कर्मोपाधि तदा दूर जावे; हंस निर्मल हुवे खेल खेले नवा, समयमां सिद्धि स्थाने सुहावे. सर्व. ५ रत्ननी मंजुषा तां दीधुं खरूं, कुंचिथी उघडतं तेह तालु ता उद्घाटन पामे यथा, आत्म रूद्धि तथा दील भा. सर्व. ६ मृत्तिका निर्मली कुंभनो हेतु छे, मृत्तिका कुम्भनुं रूप पावे; दण्ड सामग्रिथी कीजिए कुंभने, मृत्तिका व्यक्तिता रूप थावे. सर्व. ७ तेम सत्तापणे रूद्धियो सर्व छे, आत्ममां मृत्तिका पेठ जाणो; साधने साधिए व्यक्तिता आत्मनी, उद्यमे कार्य सिद्धि प्रमाणो. सर्व. ८ आत्म भावे रही रीजिए गहगही, पारका दोष देखो न प्राणी; पारका दोषने देखतो ज्यां लगी, त्यां लगी नहि हुवे तेह नाणी. सर्व . ९ दोष दृष्टि टळे मोह माया गळे, साधने साधतो मुक्ति सारी; बुद्धिसागर लहे शुद्धता बुद्धता, जन्मने मृत्युनां दुःखवारी सर्व १०
निद्रा त्याग.
झुलणाछन्द:
घ नहि आतमा उंघ नहि आतमा, उंघतां काल वीव्यो अनादि; उंघतां आतमा दुःख पाम्यो बहु, भूलियो शुद्ध चैतन्य यादी. उंच. १ उघथी आळ सत्य जोयुं नहीं, उघथी कार्य करं विसायै; उघमां शत्रु छें आपणो आत्मा, सत्य जीवन अहो जाय हार्ड, उंघ. २ खड्ग चौधार निद्रा बडी वैरिणी, उंधमां कर्म बंधाय जाणो;
संघथी ज्ञानने ध्यान भूले सहु, उघथी दुःखडां दील आणो. उंघ. ३
For Private And Personal Use Only
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सर्वनो घात वक: अहो उंघ छे, उंघमां टेकनी भूल थावे; उंघने टाळतां उंघने खाळतां, भान चेतनत' दील आवे. उघ. ४ द्रव्यने भाव भेदे अहो उंघ छे, जगत्मां भावथी उंघ मोटी; रागने द्वेषथी रमणता बाह्यमां, भाव निद्रा अहो केम छोटी. उंघ.५ भावथी उंघता मोहना जोरथी, अटकता प्राणिया दुःख पावे; विविध काया ग्रही घोर संसारमां, भटकतां पाररे केम आवे.उंघ.६ त्याग दूकर अहो त्याग दुष्कर अहो, भाव निद्रा तणो भव्य भाळो; बोलतां चालतां उंघतां प्राणिया, भाव निद्रा तणो एह चाळो.उंघ.७ उंघनी लहेरमां झेर छे मोटकुं, उघमां दुःखनो पार नावे; जागरे आतमा पामि सम्यक्त्वने,भोर वेळा अहो बोधि भावे. उंघ.८ उंघनी घेनमां घोर रात्री अहो, उंघ मिथ्या महा दुःखदायी; जागने आतमा पामी सम्यक्त्वने-भक्ति उत्साहने चित्त लायी उंघ,९ उंघने त्यागरे उंघने व्यागरे-चित्तमां चेतना शुद्ध धारी, बुद्धिसागर सदामुक्तिना पंथमां-जागिने चालजे शीख सारी.उंघ.१०
शुद्ध चेतवणी उपदेश.
झूलणाछंद. चेतरे मानवी चेतरे मानवी, चित्त चकडोळमां केम झूले; मोहना फंदमां फोक फसियो अरे, तत्व विद्यालही केम भूले. चेतरे.१ मोहना तोरमां भान भूल्यो अरे, कामने क्रोधथी जन्म हार्यो; ज्ञान वैराग्यने शुद्ध चारित्रथी, आतमा शुद्ध रूपे न धार्यो. चेतरे.२ विषयना वृक्षने वावतो प्रेमथी, प्राप्त थाशे फलो तो नठारां; तत्त्व बुद्धि धरी मोह माया हरी, वावजे धर्मनां वृक्ष सारां. चेतरे. ३ पाणिमा माछठे जेम तरस्युं रहे, तेम अज्ञानथी चित्त धारो; ज्ञानना पाणिमां आतमा माछठे, प्रेमथी आतमा भव्य तारो. चेतरे.४ चेतजे आतमा सारमा सार छे, शुद्धरूपे प्रभु तुं प्रकाशी;
For Private And Personal Use Only
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बाद्य व्यवहारमा उघजे योगथी, ध्यानमां जागजे रे विलासी. चेतरे.५ रात्रिमा दिवमने दीवसमां रात्रि छे, समजता ज्ञानथी ज्ञान योगी; बुद्धिसागर सदा चेतजे ज्ञानथी,योगि पण तुं सदा छे अयोगी. चेतरे.६
हार नहि.
झुलणाछंद. हार नहि आतमा हार नहि आतमा, पुण्य योगे मनुषजन्म धार्यो; विषयनी वासना पासना बंधथी,हाथ हीरो चढयो फोक हार्यो हार.१ मारुं माझं करी नाचियो भव विषे, माझं माझं करी फोक फुले; जन्म त्यां मृत्यु छे चेतजे आतमा, सद्गुरु संगथी नेत्र खुले. हार.२ काळनी पांख छे जगत्मां कारमी, झडपी ले जीवने एक फाळे; केइ चाल्या अने चालशे प्राणिया. मूढ शुं मोहमां दीन गाळे. हार.३ लक्ष्मीना लोभमां थोभ छे नहि जरा, ज्ञानथी देखतां सर्व खोडं स्वमनी सुखलडी भूख भागे नहि,सत्य छे ज्ञानिनुं वाक्य मोडं हार.४ मणि अने रत्ननी खाण पामी अरे, शीदने पत्थरोने उपाडे; पुण्य योगे लही भव्य तेजंतुरी, रमतमां मूढरे शुं उडाडे. हार. ५ रत्न चिन्तामणि हाथमां आवीयुं, फेंकिदे धूळमां हीन भागी; पामि रससिद्धिने पापना योगथी,त्यागि दे मानवी मोह रागी.हार.६ चेत चेतन जरा ज्ञानथी जागिने, साधि ले सत्य तुं कृत्य सारं; बुद्धिसागर सदा चेतजे चित्तमां, शुद्ध चैतन्यनुं रूप ताम, हार. ७
आत्माने स्वस्वरूपोपदेश.
झलणाछन्द. अलखना पन्थमां चालजे आतमा, नात ने जात सर्वे विसारी; ज्ञानना योगथी तत्त्वने पामिने, शुद्ध चारित्रता दील धारी अलख..
For Private And Personal Use Only
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दुग्धमां जल मळ्युं हंस जूढं करे, तादृशी दृष्टिने धार प्यारा; तत्त्वदृष्टि धरी तत्त्वने पारखो, योगविद्या लही सत्य धारा अलव. २ दृष्टि स्याद्वादनी वाद सहु टाळती, खाळती कर्मनो वेग ज्ञाने; शुद्ध उपयोगथो अनुभवे आतमा सत्य आनन्दने तत्त्वभाने.अलख.३ ज्ञेयने ध्येय आदेय छे आतमा, ज्ञानथी ज्ञेयवस्तु प्रकाशी; ज्ञेय ने ज्ञानरूपे सदा जे रहे, वस्तुधर्म सदा छे विलासी. अलख. ४ सविए आतमा सेविए आतमा, देह देवळ रहीने प्रकाशे; तारिये आतमा तारिए आतमा, जागतां कर्मनो फन्द नासे.अलख.५ बन्ध सद्भावथी मुक्ति छ जीवनी, वन्ध नहि त्यां लहो केम मुक्ति; मुक्तिनी युक्तिमां मुंझता मानवी,मोह अज्ञानथी करी कुयुक्ति अलख.६ अलखनो देश निर्भय सदा शोभतो, अलखना देशमां सत्य शान्ति; अलखना देशमा सत्य आनन्द छे, अलखना ज्ञानथी जाय भ्रान्ति.
अलख. ७ वीर वचनोथकी जाणिए अलखने, सात नयथी खरो अर्थ धारी त्यागि एकान्तने अर्थने धारिये,पामिए सत्यथी मुक्ति नारी अलख.८ अलखना खेलमां भेल नहि कर्मनो, खेलिए अलखनो खेल रागी; बुद्धिसागर सदा अलखनी धूनमां, सत्यचैतन्यनी ज्योति जागी.
अलख. ॥१॥
संसारनी असारता.
झुलणाछन्द: सर्व संसारना भाव छ कारमा, सार तेमां नथी सत्य भानु रूप जूदां धरे प्यार त्यां शुं करे, समजजे आतमा सत्य दाखं. सर्व. १ क्षणिक आनन्दमां मोहथी मुंझीने, भव्य मानवपणुं केम हारे; आजने काल करतां थकां मानवी,काळ आयुः हरे को विचारे. सर्व. २
For Private And Personal Use Only
Page #49
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बाह्य आनन्दनो रङ्ग छे अभिनवो, नष्ट तेतो थशे चित्त धारा; आधिने व्याधियी मुक्त कर आतमा,समजिने सत्यने केम हारो. सर्व.३ लक्ष चोराशिमां विविध देहो धर्या, मोह अज्ञानथी पार नाव्यो; आतमा सत्य जाण्यो लही ज्ञानने,दीलमां ते सदा खूब भाव्यो. सर्व.४ जूठ संसारमा सार छे नहि कशें, तत्त्वदृष्टिथकी ले विचारी; वर्णने वेष लिङ्गादिके धर्म नहि, भ्रान्तिमां भूलतां छे खुवारी. सर्व. ५ सद्गुरु सङ्गथी समजरे धर्मने, धर्मथी पाप सघळां प्रणाशे; साधनन्ति स्थीति पामतो आतमा, धर्मथी शुद्ध रूप प्रकाशे. सर्व.६ वित्तना फन्दमां दुःखना कन्द छे, सत्य वैराग्यथी ते विचारोः सत्यानन्दमां रमणता राखवी, जाप अजपाथकी जीव तारो. सर्व.७ फोक झघडा करी धर्मना फन्दमां, केम. आयुः अरे भव्य गाळो; तत्त्व नहि अन्यथा कोइ काळे यतुं,सत्यसारांशथी धर्म पाो. सर्व. ८ वीर वचनो सदा सर्व सापेक्ष छे, समजिए ज्ञानने दील धारी; । बुद्धिसागर सदा मुक्तिना पन्थमा, वीरवचनो महा उपकारी. सर्व. ९
स्वार्थस्वरूप.
झुलणाछन्द. स्वार्थना फन्दमां सर्व दुनिया फसी, तत्त्वनी वात दीलमां न धारी; खेलता नाचता बोलता दोडता,पामता प्राणिया दुःख भारी.स्वार्थ.? स्वार्थना छंदमां सत्य स्वप्ने नहीं, स्वार्थना जलधिमां मीन प्यासी; स्वार्थनी छांयडी केरडा जेहवी,स्वार्थनी जगत्मां और फांसी.स्वार्थ.२ स्वार्थथी सत्य छानुं रहे छे सदा, स्वार्थथी दुःखनो पार नावे; स्वार्थना पाशमा प्रागिया जे पडया , विविध देही ग्रही दुःख पावे.
स्वार्थ. ३ जगतमां व्यापिया स्वार्थ छे महाबली, सर्व जगजंतुने ते नचावे;
For Private And Personal Use Only
Page #50
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
स्वार्थनी भ्रान्तिमा ब्रह्मनी भूल छे, स्वार्थथी मोटका पाप थावे.
स्वार्थ. ॥४॥ स्वार्थमा सहु फॅस्या कोइ विरला बच्या, स्वार्थथी पापनी वात थावे; स्वार्थी धर्मनी चक्षुए अन्ध छे,स्वार्थथी पापर्नु अन्न खावे.स्वार्थ.५ दोपर्नु मूळ छे स्वार्थ अवनी विषे, स्वार्थथी मानवी सत्य हारे मात पुत्रो हणे बाप पुत्री हणे,स्वार्थना दोषथी जीव मारे. स्वार्थ.६ जगत्ना स्वार्थमां न्याय छे नहि कशो,जगत्ना स्वार्थमां दुःख मोडे; मोह अज्ञानथी स्वार्थनी आशमां, बोलता प्राणिया वेण खोटं.स्वार्थ.७ स्वार्थनी धूनमां देव भासे नहीं, स्वार्थनी धूनमां मंजन भूले; स्वार्थना त्यागथी सत्य तो सांपडे, सत्य आनन्दता दील खूले.
स्वार्थ. ॥ ८ ॥ सङ्गति गुरुतणी सर्व मुखमूल छे, प्रार्थना पाशने तेहि कापे बुद्धिसागर सदा स्वार्थने त्यागिए, ध्यान कीजे मुदा ब्रह्म जापे.
स्वार्थ. ॥ ९॥
परमार्थ स्वरूप.
झूलणाछन्दः वात परमार्थनी सत्य छे जगत्मां, वात परमार्थनी दील धारो; संत्य परमार्थमां प्रकट परमातमा,सत्य परमार्थथी दुःख आरो. वात.१ सत्य परमार्थमां धर्म सहु सम्पजे, सत्य परमार्थथी पाप जावे देवनी कोटि पण हस्त जोडी रहे, अप्सराटन्द बहु गुण गावे. वात. २ सत्य परमार्थथी सत्य उपकार छे, सत्य परमार्थथी मुक्ति पामे; आत्मथी भिन्न नहि सत्य परमार्थ छे, देवतावृन्द पण शीर्ष नामे. वात. ३ सत्य परमार्थमां दुःख आवी पडे, डगो नहि तेहथी धैर्य हारी; जय सदा सत्य परमार्थनो जगत्मां,स्वार्थ त्यागी करो तत्र यारी.वात.४
For Private And Personal Use Only
Page #51
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
धर्मर्नु मूळ छे सत्य परमार्थमां, सत्य परमार्थन मूळ साचं सत्य परमार्थनी आगळे जाणिए, प्राण दारा अने राज्य काचं वात.५ प्राणियोनी दया सत्य परमार्थमां, सत्य परमार्थमां सत्य बुद्धि सत्य परमार्थथी आतमा देव छ, सत्य परमार्थथी आत्मशुद्धि. वात. ६ वैरने झेर इर्ष्या टळे सहजमां, मुक्तिनुं वारणुं खरित खूले; प्रेम सहु जीवपर सत्य परमार्थथी, सत्य परमार्थथी पाप भूले. वात. ७ कल्पचिन्तामणि सूर्यने चन्द्रथी, सत्य परमार्थनुं काम मोठं सत्य परमार्थनी साधना दुर्लभा,भव्य नहि जाणिये दील छोटुं. वात.८ शूर सजन जनो सत्य परमार्थना, कार्यमां शीरने दूर मूके प्राण पण जो पडे धैर्य हारे नहीं, सत्य धारी कदी ते न चूके 'वात. ९ सत्य परमार्थमां धर्मनो स्वार्थ छ, सत्य परमार्थनी टेक साची; बुद्धिसागर सदा सत्य परमार्थमां,भव्य प्राणी रहो नित्य राची. वात १०
ब्रह्मचर्य.
झुलणाछन्द. सत्यनी टेकथी धारजो शियलने, शियलना मन्त्रथी सर्व सिद्धिः शियल धार्या थकी देव पाणी भरे, शियलना मन्त्रथी सर्व रूद्धि.
सत्य. ॥१॥ शियलथी मानवी कार्य धायाँ करे, शियलना तेजथी भूत नासे शियलना तेजथी प्राप्ति छे ब्रह्मनी, शियलना तेजी सत्य भासे.
सत्य. ॥२॥ मन वचः कायथी शियलने धारतां, देवनी कोटि पण शीर्ष नामे; शियल सन्नाहथी शस्त्र बागे नहीं, शियलना तेजथी दुःख वामे.
सत्य. ॥ ३ ॥
For Private And Personal Use Only
Page #52
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
डाकिणी शाकिणी भूत सहु नासतां, शियलना तेजथी भव्य जाणो; मन्त्रनी सिद्धियो शियलना तेजथी, शीलथी होय नहि भय कशानो.
सत्य. ॥ ४ ॥ वचननी सिद्धि पण शियलना तेजथी, शियलना तेजथी सत्य शान्ति शियलनुं तेज छे .सूर्यथी मोटकुं,शियलना तेजथी देहकान्ति. सत्य.५ शियलनी सिद्धिमां सर्व सुखडां वसे, सर्व वृतमां सदा शील मोटुं; शियलने जलधिनी उपमा शास्त्रमां, वेण जाणीश नहि भव्य छोटुं.
सर्व. ॥ ६ ॥ शियलना तेजथी योगनी सिद्धियो, शियलना तेजथी होय मुक्तिः द्रव्यने भावथी शियलने धारवं, सर्व सिद्धान्तनी एह युक्ति. सर्व. ७ पामिए वल घणुं शियलना तेजथी, शियलना तेजथी दीर्घ आयु; । शियलना तेजथी सर्व रोगो टळे, वीर तीर्थकरे एम गायु. सर्व. ८ द्रौपदी कुन्ती ने मदनरेखा सती, शियलना तेजथी शान्ति पाम्यां; सर्व सङ्कट टळे च्हाय तेतो मळे, शियलना तेजथी दुःख वाम्यां.९ ब्रह्मचर्ये सदा भव्य राची रहो, शियलने टेकथी दील धारो; बुद्धिसागर सदा शियलना तेजथी, पामिए दुःखनो भव्य आरो.
सर्व. ॥ १०॥
सत्यमहिमा.
झूलणाछन्दः सत्य वाणी वदो सत्य वाणी वदो, सत्यवादी सदा भव्य मोटा; जूठ वचने अरे सत्यने हारिए, जाणजो जूठथी दुःख गोटा. सत्य. १ सत्य बोली भवी कीर्ति कमला लहो, सत्यमां सर्व धर्मो समाया; सत्य छे दिनमणि सारि चळकतुं, सत्यथी शोभती जाण काया.
सत्य. ॥ २॥
For Private And Personal Use Only
Page #53
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सत्यमां धर्म, मूळ छे जाणजो, धर्मना म्हेलनो सत्य पायो; सत्यने बोलतां धर्मने तोलिये, सत्य महिमा जगत्मां गवायो. सत्य. ३ सत्यथी अन्य को धर्म भासे नहीं, सत्यथी धर्मनो पन्थ चाले; सत्यथी देव दानव करे चाकरी, सत्यथी मुक्तिना म्हेल म्हाले. सत्य.४ नामने स्थापना द्रव्यने भावथी, भेद चारे लहो सत्य साचं, सर्व उपदेशनुं मूळ छे सत्यमां, सत्यनी प्राप्ति विण सर्व का. सत्य.५ रूद्धिने सिद्धि सहु सत्यना हाथमां, जगत्मां मानवी कीर्ति पामे; वचननी सिद्धि पण सत्यनी पांखडी, भव्य जीवो ठरे एक ठामे. सत्य.६ सत्य बोल्या थकी कर्मनी नष्टता, सत्य बोल्या थकी ब्रह्म प्राप्ति; आधिने व्याधि उपाधियो नासती, सत्यना वेणथी ज्ञान व्याप्ति. सत्य.७ राम हरिचन्द्रनी सत्य वाणी थकी, जगत्मां पूज्यता तेहि पाम्या; सत्य वाणी वदे टेकथी तेहने, इन्द्र चन्द्रादिके शीर्ष नाम्या. सत्य. ८ सत्य बोलो सदा सत्य बोलो सदा, सत्यमा विजय छे मान साचुं; सत्यनी टेकथी जन्मनी सफलता, जूठनुं वेण छे सर्व काचं. सत्य.९ सत्यमां विजय छे सत्यमा विजय छे, सत्यथी सर्व दुःखो प्रणाशे; बुद्धिसागर सदा सत्य बोल्या थकी,रुद्धिने सिद्धियो सर्वपासे. सत्य.१०
दानमहिमा.
. झुलणाछन्द. दानने देइए दानने देइए, दान दीधा थकी पुण्य वृद्धि; दानथी स्वर्गनी प्राप्ति छे सहजमां दानधी होय सर्वत्र सिद्धिदान.१ थाय वशमां सहु वैरियो दानथी, स्वर्ग पाताळमां कीर्ति गाजे दानथी देवता सेवता चरणने, दानथी मुक्तिनां शर्म छाजे. दान.२ दान दीधां थकी सर्व दोषो टळे, दानथी धर्मर्नु बीज वावे; साधुने प्रेमधी दान दीधा थकी,प्राणिया मुक्तिमा शिघ्र जावे.दान.३
For Private And Personal Use Only
Page #54
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दान छ पंचधा सूत्रमा भाखियुं, अभयसत्पात्री स्वर्ग सिद्धि शालिभद्रे लही क्षीरना दानथी,वसन भोजन अने दिव्य रूद्धि दान.४ दानथी मानिनां मानतो जाय छे, दानथी शत्रुओ मित्र थावे; दुःख अग्नि प्रशम दानना मेघथी, दानथी लक्ष्मीनी लील पावे. दान.५ अमर ते जगत्मां सत्य दातार छे, दान संवत्सरी वीर आपे; सर्व तीर्थेश पण दानने आपता, दानथी दुःख दौर्भाग्य कापे. दान. ६ दानथी दुःखीनां दुःख दूरे टळे, दानथी कर्ण जगमां गवायो दानथी पामिए मान अवनी विषे,मेघरथ दानथी शान्ति पायो. दान.७ दान दीधा थकी तीर्थकृत् थाइए, दानने देइए भव्य हाथे; बुद्धिसागर सदा दान देतां थकां, हस्तथी धर्मतो होय साथे, दान.८
कपट स्वरुप.
अलणाछन्दः कपटना फन्दथी चपट छे सत्यरे, दीलमा धारजे भव्य प्राणी; कपटमां काळ विकराळ वासो करे,कपटथी कार्यमांधूलधाणी. कपट.? कपटथी मल्लिजिन वेद स्त्री बांधियो, कपटथी मानवीवदन काळु; कपटथी खोदतां तो पडे पापियो, कपटथी मुक्तिना द्वार ताळू. कपट.२ कपटथी केइ पॅड्या नरकमां रडवड्या, कपटमां कर्म बंधाय भारे; कपटविषक्षनी छांयमां दुःख छे, कपटथी मानवी जन्म हारे. कपट.३ पाप त्यां कपट छे कपट ते कर्म छे, कर्मथी जीव उंचो न आवे; कपटनी खाइमां प्राणिया जे पॅडया, दुर्गति दुःखने तेह पावे. कपट. ४ कपट दावाग्निमां जीवडा जे पॅडया, जीववानो नथी एक आरो; कपट किम्पाकना वृक्षने छेदिने, आतमाने अहो भव्य हारो. कपट. ५ कपट कजियातणुं मूळ छे जगन्मां, कपटथी देशनो ध्वंश थावे । कपटथी राज्यलक्ष्मी तणो नाश छे,नरकमां जीवडा दुःख पावे. कपट.६
For Private And Personal Use Only
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
કર
आतमा तारजो आतमा तारजो, कपटनी कापिने सर्व फांसी; कपट फांसी पडया धर्म जे साधता, देखता आवती दील हांसी. कपट.७ विजयसिंहे रॅच्युं कपट बहु कारमुं, तेहथी हिन्दुओ सर्व हार्या; कपट करनार ते दुःख पाम्या बहु, सर्व अन्ते गया तेह मार्या. कपट. ८ कपटथी कोइ काळे भो नहीं अरे, कपट छे पापमां पाप मोडं; कपट आवेशमां कार्य अवछं हुवे, कपटथी कर्म नहि थाय छोटं. कपट.९. कपटने त्याग वचन मन कायथी, कपटना त्यागथी सद्य मुक्ति; बुद्धिसागर सदा सरलता राखिए, तेहथी पामिए सत्य युक्ति. कपट.१०
उपकारमहिमा.
झलणाछन्द. कार्य उपकारनां कीजिए मानवी, लक्ष्मीथी लीजिए सत्य ल्हावो; ज्ञानिने स्हायथी सत्य उपदेशथी, सत्य आनन्दने भव्य पावो.कार्य.? धर्म उपदेशथी सत्य उपकार छे. जीवने दुःखमांथी वचावो; जीवननी सफलता सत्यउपकारमा, कार्य परमार्थनां दील व्यावो.
कार्य ॥२॥ भव्य उपकारिना दीलमा छे दया, दील उपकारिनुं स्वच्छ रहेवे; धन्य छे जगत्मां जन्म उपकारिनो,स्वर्गने सिद्धिपण तेह लेवे.कार्य.३ बाह्यमा क्यां रमो मोहवनमां भमो, कार्य उपकारनां दील धारो; जगत्मां मान पामो अहो प्राणिया,सत्य उपकारथी जीव तारो.कार्य.४ पूज्य तीर्थेश्वरा देशना देइने, प्राणिना स्तोकने शिघ्र तारे; परम उपकारमा कर्मनो नाश छे,जन्मनी सफलता सत्य सारे.कार्य.५ राचशो स्वपर उपकारमा मानवी, परम उपकारथी कार्य सिद्धि बुद्धिसागर सदा सत्य उपकारथी,पामिए सत्य चैतन्य रूद्धि.कार्य.६
For Private And Personal Use Only
Page #56
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रभातियु
झालणाछन्द. चेत चेतन प्रभु रटन कर आपनु, अलख निर्भय विभु तुं मुहायो; कर्म कर्ता कयो कर्म भोक्ता कह्यो,लक्ष चौराशिमां खुव जायो चेत.? उंघ नहि आतमा पामि मानवपणुं, ज्ञान वैराग्यथी ध्यान धर तुं राम रहेमान तुं शिव धाता हरि,आप बंधाय अब आप तर तुं. चेत.२ आत्मज्ञाने विभु व्यक्तिधी नहि कदा, शुद्धरूपे प्रभु तुहि समायो; भक्ति भगवन्तनी चित्तमां जागतां, ज्योति झगमग भइ स्थान पायो.
चेत. ॥ ३ ॥ शक्ति सिद्धि सकल जागती ध्यानथी,ध्यानथी कर्म सघळां विडारे शुद्ध निर्मल बनी मुक्तिसुख भोगवे, ज्ञानवैराग्यथी मोह मारे.
चेत. ॥ ४ ॥ जाग अब आतमा शूर थइ साहिबा, मोह माया थकी रही उदासी; बुद्धिसागर हवे टेक धारी प्रभु, अलखनी धुनमां सिद्धवासी.चेत.५
प्रभातियु.
झुलणाछन्द. जाग अब आतमा जाग अब आतमा,दील नवकारर्नु स्मरण कीजे; कोण हुँ शाथकी आवियो क्या थकी, कृत्य शुं आतमा केम छीजे.
जाग. ॥ १॥ हेय आदेयने ज्ञेय शुं जग विपे, आज लगी आत्महित शुं विचार्युः चेत चेतन प्रभु उंघ नहि आळमु, मोह मायाथकी जीवन हार्य.
जाग. ॥ २ ॥ श्वास उश्वासमा आयुरे जाय छे, वीतियुं जीवन नहि फेर आवे; राज राणा गया देव दानव गया, अमर नहि कोइ जगमां रहावे.
जाग. ॥ ३ ॥
For Private And Personal Use Only
Page #57
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
धर्म झट कीजिए साथ ते आवशे, देख मनमा सदा ते विचारी; बुद्धिसागर सदा ज्ञानथी जागजे, त्याग वैराग्यथी ध्यान धारी.
जागः ॥ ४ ॥
योगमहिमा.
झलणाछन्दः योग विद्यातणुं धाम चेतन प्रभु, शक्ति सिद्धो समी रहि प्रकाशी; योगविन् मानवी चित्तमां ध्यानथी, पिण्ड ब्रह्माण्ड भावो विलासी.
योग. ॥ १ ॥ भूतमय वृत्तिथी भ्रान्तिमां भूलता, वृत्तिथी परप्रभु न प्रकाश्या; वृत्तिथी परमभु पामे नहि वैखरि, शुकल ध्याने पराभाव वास्या.
योग. ॥२॥ दीप ज्योतिः परे ज्योत ज्यां जागती, सहज उपयोगमा लीन वृत्ति; श्वास उश्वासनी मन्दता स्थीरता, बाह्यमां जाणिए शून्यवृत्ति. योग. ३ चक्र पड् भेदवां वायुनां पिण्डमां, गगन गढ चालवू वंकनाले; ज्योति झळहळ जगे शोक चिन्ता भगे, हंसलो शान्तिसुखमांहि
म्हाले. योग. ॥ ४ ॥ त्वरित शिवत्वनी प्राप्ति छे सहजमां, ग्रन्थी भेदी लहे मुक्ति साची; जीवतां मुक्तिनां सुख जे पामता, सिद्धि ते पामतो सत्य राची. योग.५ सत्य उत्तम अहो योगविद्या ग्रहो, योगना भोगमां भव्य राचो; चित्तलय चेतना शुद्धता ज्यां हुवे, योग महिमा लहो पिण्ड साचो.
योग. ॥६॥ पिण्ड ब्रह्माण्डनी ऐक्यता आत्ममां, शुद्ध उपयोगी जेह जागे; अष्ट सिद्धि सदा हस्त जोडी रहे, चित्त रंगाय नहि वाह्यरागे. योग.७
For Private And Personal Use Only
Page #58
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
लब्धि सिद्धि तणुं स्थान तुं आतमा, जाग चेतन प्रभु शुद्ध भावे; उंघ नहि आतमा अलखना पन्थमां, अनुक्रमे योग सिद्धि मुहावे.
योग. ॥८॥ अलखनी धूनमां भासता दिनमणि, भक्ति उत्साहथी यत्न धारो; बुद्धिसागर सदा ज्योतमां जागजे, शुद्ध चेतन प्रभु चित्त प्यारो.
योग. ॥९॥
आत्माने सत्यशिक्षा.
झुलणाछन्द. सत्याशिक्षा सदा आतमा मानजे, नित्य आनन्दना भोग माटे; ज्ञानि सङ्गे रहो ज्ञान साचुं लहो, चालजे मोक्षनी सत्य वाटे.सत्य.१ मूर्ख सङ्गत तजो देव अर्हन् भजो, शरणुं गुरुन करो भव्य प्राणी देह ममता तजो मोक्ष साधन सजो, सत्य सिद्धान्तनो सार ताणी.
सत्य. ॥२॥ मोह माया हरो ध्यान उत्तम धरो, जाप अजपा जपो तत्त्वरागी; वास एकान्त ध्याने सदा राचिए, शुद्ध रूपे सदा चित्त जागी.
सत्य. ॥३॥ कटुकता लींबनी भोगनी तेहवी, दुःखदायी तजोने विकारो, भोग मारब्धना वेदिए बाह्यथी,भिन्न अन्तरथकी दील धारो. सत्य.४ भोग रोगो करी लेखवो मन विषे, मोहना हेतुने दूर वारो; श्वास उश्वासमां आयु जावे अरे, त्वरित चेतन अरे भव्य तारो.
__सत्य. ॥ ५॥ जाय परभावमां श्वास उश्वासरे, भव्य भूले अरे शुं विचारी; , पामि मानवपणुं चेतजे चित्तमां, भूलतां दुःख पामीश भारी. सत्य.६
For Private And Personal Use Only
Page #59
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ज्ञान श्रद्धा ग्रही भक्ति शक्ति लही, यत्न करजे प्रभु प्रेम धारी; बुद्धिसागर हवे चेतजे चित्तमां, विषयतृष्णा तणा वेग वारी. सत्य.७
आत्मध्यानमहिमा.
झूलणाछन्दः अलख निर्भय प्रभु देहमां व्यापियो, ज्ञान व्यापक विभु तुं सुहायो; ज्ञाननी ज्योतमां ज्ञेय भासे सकल, अकल अक्षर अरूपी कहायो.
अलख. ॥१॥ ज्ञेय भासक स्वतः चिद्घनानन्द तुं, भान भूली वस्यो तुं शरीरे; लाख चोराशिमां जन्म मृत्यु कर्या, कर्मथी चउगतिमां फरीरे.
अलख. ॥ २॥ कर्म कर्ता अने कर्म भोक्ता प्रभु, कर्म हा प्रभु तुं कहावे; आप भावे रमे कर्म कोटी खपे,कर्मना नाशथी सिद्ध थावे.अलख.३ कर्मने खेचतो कर्मने छंडतो, अन्य भावे अने स्वस्वभावे; कर्मनी वर्गणा आवती जावती,दोयपरिणामथी ते मुहावे.अकलख.४ दोय परिणाम ते भिन्न काले कह्या, वचन तीर्थेशनां सत्य जाण्यां; चारगति जाववा छेदवा तुं प्रभु, वचन सापेक्ष मनमांहि आण्यां.
अलख. ॥ ५ ॥ बन्ध परिणामथी धर्म उपयोगथी, सकल सिद्धान्तनो सार भाख्यो व्यक्तिथी व्यापियो देहमांहि प्रभु, व्याप्य व्यापक नये सत्यदाख्यो.
अलख. ॥ ६॥ सिंह तुं साहिबा कर्मपिंजर पडयो, जोइ ले चित्तमांहि विमासी; कर्मनो भार शो आप भावे रमे, कर्म छेदी हुवे सिद्धवासी. अलख. ७ चुंथतो शुं प्रभु कर्मनां चुंथणां, विषय मिष्टान्नने वित्त राची; सर्व पुद्गलतणुं कार{ रूप ए, भंड पेठे रह्यो केम माची. अलख.८
For Private And Personal Use Only
Page #60
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जिन] साहिबा दीन परभावथी, जागतां सर्व शक्ति प्रकाशे; बुद्धिसागर प्रभु आतमाराम तुं, ध्यानथी ध्येय रूपे प्रभासे. अलख.९
॥ १
॥
आत्माने हितशिक्षा.
इन्द्रविजय छन्दः चेतन चित्त विचार अहो सहु जीवन व्यर्थ सदाय कहे छे आतम तत्व लहे सफलो भव वीर जिनेश्वर सत्य कहे छे. आदररे जीव सादरथी दील धर्म सदा मुख शाश्वतकारी धीनिधि आतम मान अरे शिख वीर जिनेश्वर तत्त्व विचारी मान अने अपमान समा गण मित्र तथा अरिभाव समाना आतम ते परमातम साहीव ध्यान थकी कवी बुहोत न छाना अन्तर धर्म धर्या विन निष्फल कष्ट क्रिया सौ चित्त सुजाणो श्वास उछास विपे मुनि नाणथी मुक्ति लहे मनमां इम आणो ध्यान धरो भली भात सदा घट वाह्य उपाधि सदा दुर वारी विश्व विषे सुखकारक ध्यानज चेतन तत्त्व विचारज धारी
For Private And Personal Use Only
Page #61
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
થવ
ज्योति तदा हृदय झलके भवी कर्म कलंक बघा हरनारी धीनिधि चेतन सेवनथी यति धर्म ही सुख शाश्वत भारी
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ज्ञानस्तुति.
भुजंगी छंद.
सदा ज्ञानने वन्दिए भव्यभावे मनुष्यो लही ज्ञानने मुक्ति पावे, विना ज्ञान भव्यो गणो अन्ध जेवा, सदाज्ञाननी कीजिए भव्य सेवा ? जिनेन्द्र प्रभु ज्ञानने मुख्य भाखे, लही ज्ञानने तीर्थने सुरि राखे सदा सूर्यवत् जेह तत्व प्रकाशी, भवी प्राणियो ज्ञानना नित्य प्यासी २ उपादेयने यने ज्ञेय भावा सदा ज्ञानमां भासता ते स्वभावा जुओ श्वासप्रश्वासमा भव्य नाणी करे कर्मनी नष्टता सत्य जाणी सदा ज्ञाननी ज्योतमां सर्व भासे सहु ज्ञाननी ज्योतिथी कर्म नासे विना ज्ञान भव्यो न होवे विवेकी विना ज्ञानथी धर्मना को नटेकी 8 नमो ज्ञानने सत्यनुं जे प्रकाशी, कहो ज्ञानने उपमा गङ्ग काशी; दिले शोभतुं ज्ञान उद्योतकारी, श्रुत ज्ञानने वन्दना निव्य म्हारी. ५ जुओ सूत्रमां ज्ञान छे तीर्थ साधुं श्रुत ज्ञानना तीर्थमां नित्य राचुं; भणावो गणावो भणो भव्य भावे, श्रुत ज्ञानथी दोषना वृन्द जावे. ६ ग्रहो ज्ञान साधुं विनेय प्रकाशी, जगत्मां घणं दीपतुं जे विलासी; नमुं मुदा ज्ञानने पाय लागी, अहो बुद्धिथी चेतना शुद्ध जागी. ७
उज्वल ध्यान.
दोहरा • एकरूप हूं द्रव्यथी, एकरूप हुँ सश्व;
हुं तूं शम्या विकल्प सहु, शुद्ध, बुद्ध सुखतच. १
For Private And Personal Use Only
Page #62
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
४९.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शुद्ध तत्र उपयोगथी, प्रगटे सत्यानन्दः अनुभवता ज्ञानी अहो, समजे शं मतिमन्द २ उपादान निमित्त दोय, भेदे धर्म कथाय जिनवरनी वाणी ग्रहे, भेद भाव सहु जाय. ३
श्री महावीर प्रभुस्तुतिः
चोपाइछन्द.
॥ १ ॥
॥ ३ ॥
|| 8 ||
वीर जिनेश्वर लागूं पाय, शरण शरण तूं छे सुखदाय; अडवडियांनो तुं आधार, तार तार सेवकने तार. जगमांसाचो तूं छे देव, सुखकर साची त्हारी सेव; हुं हुं पापीनो शिरदार, धाशे केवा मुज अवतारभणी भणीने भूल्यो भान, निशादन परभावे गुलतान; उता नहीं अन्तर्ज्ञान, ए सौ जाणो छो भगवान्. मननी चंचलता नहि मटी, लेश न परनी ममता घटी; मन मर्कटना अवळा फेर, वर्ते छे अन्तर अन्धेर. अमूल्य जीवन चाल्युं जाय, पण पस्तावो लेश न थाय; मोहे मुंझ्यो पामर जीव, पर स्वभावे रमे सदीव. केवल ज्ञानि जाणो सहु, जाणताने शुं बहु कहु; मनहुं मुझे मायाझाळ, अन्तरनो आवे नहि ख्याल. अहो गति शी मारी थशे, मळियुं जीवन चाल्युं जशे; हा हा जीवन सर्व, फोगट फुली कीधा गर्व. खरे दीवस मारे अन्धार, शीरीते पामिश भवपार; खरो एक त्हारो आधार, करजे पापीनो उद्धार. समजीने नहि करु प्रयत्न, ग्रह्यां न ज्ञानादिकै त्रिरत्न; ठाठ माठमां हार्यो सार, जिनजी व्हारो छे आधार ॥ ९ ॥
॥ ५ ॥
॥ ६ ॥
॥ ८ ॥
For Private And Personal Use Only
॥२॥
॥७॥
Page #63
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शिक्षा अन्तर्मा नहि वशी, विषयेच्छा मनथी नहि खशी अभिमाननो प्रगटे तोर, व्याप्यु मोह नृपतिनुं जोर. ॥ १० ॥ सिंह समो पण थयो शियाल, च्यो माया खटपट झाळ; कर्मविपाकी आवी पडे, मुंझीने मोही लडथडे. धीर वीरता हार्यो सहु, समतामृतनो लेश न लहुँ; बूडे कांठे आव्युं झाझ, जिनजी राखो सेवकलाज. ॥ १२ ॥ ठरवा, तुजविण नहि ठाण, वीरनामनुं साचुं व्हाण; वीरनामथी सहेजे तरू, वीरनामथी फेर न फरू. ॥१३॥ तव खोळामां बालक शीर्ष, तारो जिनवरजी जगदीश तारो पूरो पापी बाल, करूणाथी करजे संभाल. ॥ १४ ॥ अनेक त्हारा नामे तर्या, क्षेमे मुक्ति ललना वर्याः कनक अग्निथी निर्मल थाय, तुज नामे मुज आतमरायः||१५|| प्रभुने मळतां नासे भेद, ध्याने हळशुं थअभेद; प्रभु स्वरूपे एकाकार, ध्याता ध्येय स्वरूपे.धार. ॥१६ ।। वीर स्वरूपे श्वासोश्वास, जावे तो छे कर्म विनाश; ध्याने चेतन वर्ते खास, निजमां निजनो पामे वास. ॥१७॥ जिनने भजतां मुख निर्वाण, वीरभक्तिथी छे कल्याण वीर प्रभु वाणी विश्वास, वीर प्रभुनो टुं हुं दास. ॥ १८ ॥ अजरिज वीर प्रभुनो दास, भेद न दास प्रभुमा खास; अनन्तभवनां नासे पाप, वीर प्रभुनो जपतां जाप. ॥ १९ ॥ वीरभक्तिमां जीवन जशे, जन्म सफलता त्यारे थशे; जिनवर रटना श्वासोश्वास, राग दोषना तोडे पास. ।। २० ॥ होजो वन्दन वारंवार, भूलुं नहि तारो उपकार बुद्धिसागर बालक तार, सेवकनो करशो उद्धार. ॥ २१ ॥
For Private And Personal Use Only
Page #64
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्री वर्धमान जिनस्तुतिः
मालिनीछन्द:
भवजल निधि पोतः, वीर विश्वेश देवा, सुगति सुखद नेता, सारता देव सेवा: समय समय नाणी, आण व्हारी प्रमाणी, सरस वचन जाणी, आदरे भव्य वाणी. स्तवन नमन कीजे, तत्त्वनुं सार लीजे, प्रभु वचन लहीने, भव्य प्राणी तरीजे; यतिपति नतदेवा, दीलमां नित्य गावं, समय सरस पामी, मुक्तिमां शिघ्र जावं. शरण शरण म्हारे, नाथ तुं छे दयालु, चरण कमल सेवा, नाथ देजो कृपालु; स्तवन नमन कीजे, कर्मनां दुःख कापे, नव गुण गण भावे, ध्येयनुं रूप मापे. गत मलिन विरागी, बन्दु पाय लागी, तुजविण नहि राचं, बाल व्हारोज रागी; जनन मरण फेरा, भागशे वीर नामे, धनिधि मुनि नमे छे, प्रेमथी अष्ट यामे.
सद्गुरु स्तुति.
मालिनी छन्द.
सरस सुखद सेवा, सेव्यनी तो कहावे, गुरु वचन लहीने, मोक्षमां भव्य जावे; शरण शरण साधुं शिष्यनुं दुःख कापे,
3
For Private And Personal Use Only
॥ १ ॥
॥२॥
॥ ३ ॥
Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
ܐܝ
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अज अमर साचुं, मोक्षनुं स्थान आपे. गहन समय वाणी, बोध तेनो प्रकाशे, गुरुगम विण काचं, ज्ञान चित्ते न भासे; चरणकमल सेवा, पूर्वपुण्ये लहीजे, गुरुवदन निहाळी, सत्य शान्ति ग्रहीजे. जिवन सफल थावे, सद्गुरु प्रेम भावे, गुरु नयन पाथी, दुःख दौर्भाग्य जावे; प्रतिदिन गुरु वन्दं, धर्मनुं दान दाता, सरस वचन बोधे, सर्व वस्तु प्रमातासुगुण गण खजानो, सद्गुरु प्राणदाता, सुरतति पति वन्दे, सत्य ले भव्य भ्राताः जनक शरण त्हारु, आशरो एक म्हारे, धनिधि मुनि नमे छे, तुं तरे शिष्य तारे. ॥ ४ ॥
आत्माने अलखदेशोपदेश.
ललित.
अलख देशमां हंस चालकुं, अलख देशमां हंस म्हालवं, अलख देशनी धून धारवी, अशुभ जीवनी ठेव बारवी ॥ १ ॥ खलकमां खरे ब्रह्म सत्य छे, अलखना विना अन्य काच छे, अलख धूनमां लक्ष्य छे खरु, अलख देशने प्रेमथी वरु ।। २ ।। अलख रङ्गमां राग छे खरो, अलख गङ्गमां स्नानने करो; अलख यानथी अब्धिने तरो, अलख धूनधी कर्मने हरो. ॥ ३ ॥ अलख देशमां क्लेश ना कदा, अलख देशने पामिए यदा, अलख ज्योतथी सर्व भासतुं, अलख ज्योतथी कर्म नासतुं ॥ ४ ॥ अलख सत्य छे पिण्ड जागतो, अलख धूनमां भव्य रागतो,
For Private And Personal Use Only
॥ १ ॥
॥ २ ॥
॥ ३ ॥
Page #66
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
५३
अलख आत्मना ध्यानमां रहूं, अलख शान्तिने प्रेमधी लहुं. ॥५॥ अलख ज्योतमां जागवुं सदा, अलख ज्योतमां दुःख ना कदा, अलख देशनी धूनमां रहे, अलख तत्त्वने योगियो लहे || ६ ||
जीवने चेतवानी उपदेश.
मुखडा क्या जोवे दर्पणमां - ए राग.
जीवडा.
जीवडा. २
जीवडा चेतीले चटपटमां, खुंच्यो शुं खटपटमांसगपण काचां छे दुनीआनां, मायाना तरकटमां काच कुंभ सम काया काची, मोह वने जीव अटमां. जीवडा. १ तन धन योवन जुटुं जगमां, समज समज तुं घटमां; काळ कोळीओ व्हारो करशे, झडपीले झटपटमांलक्ष्मी ललनानी लालचथी, लाग्यो शुं लटपटमां अणाधार्थी उठीश अंते तुं, काळ पकडशे चटमांशाब्दिक तार्किक पण्डित बनीने, भूल्यो शुं घटपटमां; आत्मज्ञान विण सत्य न लहियुं, पडियो भव अरहट्टमां. जीवडा. ४ अप्पा सो परमप्पा समजी, अवर कशुं दील रटमां; बुद्धिसागर अन्तर ध्याने, मुक्ति लहे जीव झटमां.
जीवडा. ३
जीवड़ा. ५
समाधि
सवैया एकतीसा.
आत्मसमाधि जगमां मोटी, तारे मवोदधिनी पार. चिन्मय चेतन आपस्वभावे, शाश्वतसुख वेदे निर्धार; सद्गुरु ज्ञानी मुनि अवलंबी, आत्म समाधि पामो सार, स्थिरोपयोगे चेतन ध्यावी, अनन्त सुख पायो नरनार ॥ १ ॥ बाह्य वस्तुमा इष्टानिष्टे, मुंझ्यो आतम भूली भान,
For Private And Personal Use Only
Page #67
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
राग दोषथी कर्मग्रहीने, भ्रमण करे भवमां नादान; रत्नत्रयीनी प्राप्ति विण आ, जाणो फोगट मनु अवतार, स्थिरोपयोगे चेतन ध्यावो, अनंत सुख पामो नरनार. ॥२॥ दर्शन नाण अने वळी चरणे, पामो साचो मोक्ष सुपन्थ, तत्त्वार्थमांहि साचुं भाख्यु, साख पूरे छे बहुला ग्रन्थ; रत्नत्रयी मळतां छे मुक्ति-एक एकथी कदी न धार, स्थिरोपयोगे चेतन ध्यावो, अनन्त मुख पामो नरनार. ॥ ३ ॥ पिण्डस्थादिक चार भेदथी, ध्यायो चेतन सुख भरपुर, अप्पा सो परमप्या परगट, चेतनथी मुक्ति नहीं दूर; तिरोभाव चेतन गुण सत्ता, आविर्भावे कृत्य विचार, स्थिरोपयोगे चेतन ध्यावो, अनन्त मुख पामो नरनार. ॥४॥ अशुद्ध भावे पुद्गल कर्ता, हर्ता शुद्ध स्वभावे भव्य, अन्तरना उपयोगे रहेवू, भाव धर्मन ए कर्तव्य; . शुद्ध स्वभावे शक्ति प्रगटे, कर्म मर्मनो नासे भार, स्थिरोपयोगे चेतन थ्यावो, अनन्तमुख पामो नरनार. ॥५॥ भासे ज्ञेयस्वरुपे मुख पण, ज्ञाने ज्ञाता चेतनराय; उपशम क्षयोपशम ने क्षायिक, सत्यधर्म चेतन कहेवाय; सुखनी भारा जग जयकारा, प्रगटे चेतनमां जयकार, स्थिरोपयोगे चेतन ध्यावो, अनन्त सुख पामो नरनार. ॥६॥ धर्म ध्यानना पाया चारे, भावो भक्तिथी सुखकार; चार भावना मैत्री आदिक, ध्यातां नासे मिथ्याभार, स्थित्युत्पत्ति व्ययनो योगी, अशुद्ध परिणातने हरनार; स्थिरोपयोगे चेतन ध्यावो, अनन्त सुख पामो नरनार. ॥७॥ स्मरजो श्वासोश्वासे चेतन, केवलनाणी सुखनी खाण; तप जप संयम चेतन हेते, करशो पामी जिनवर आण,
For Private And Personal Use Only
Page #68
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
५५
बुद्धिसागर सद्गुरु सङ्गति, करजो धरीने सद्व्यवहार; स्थिरोपयोगे चेतन ध्यावो, अनन्त सुख पामो नरनार ॥ ८ ॥
आत्मानुभव स्वरूप. सवैया एकतीसा •
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अनुभवना प्यासि तुं हंसा, अलखस्वरूपी छे निर्धार, सोहं सोऽहं चिन्मय चेतन, ब्रह्म स्वरुपी ज्ञानाधार; जकडाणो शुं माया झाले, भूलीने पोतानुं भान स्वयं प्रकाशी परमकाशी, चेतन घर पोतानुं ध्यान ॥ १ ॥ आंखे सारूं खोडं देखे, आंख मिचाये ते सहु फोक, हुं ने मारुं सहु छे मिथ्या, ममता करता फोगट लोक; म्हारुं हारुं भूली हंसा करतं शाश्वत गुणनो प्यार, निर्भय देशी सिद्ध समोवड अनंत गुणनो छे दातार. || २ || इष्टानिष्ट सहु मिथ्या, पुद्गलमां भासे नहि सार, स्थिरोपयोगे वीर्य शक्तिनी, प्राप्ति चेतनमां ले धार; शक्ति अनंति चेतन प्रकटे, करतां पिंडस्थादिक ध्यान, नमुं नमुं हुं चेतनराया, शुद्ध बुद्ध त्राता भगवान्. अकल कला जगजीवन व्हारी, महिमा व्हारो अपरंपार, श्वासोश्वासे अजपाजापे, अनुभव ज्योति प्रकटे सार; अहो धन्य तु आतमराया, निराकार वर्ते साकार, बुद्धिसागर अवसर पामी, आतम तुं पोताने तार.
॥ ३ ॥
|| सम्प प्रेरणा ॥ सवैया एकतीसा. जागो झटपट जैनबन्धुओ, द्वेष क्लेशने त्यजशो खार; वैर झेरने दूर करने, एकमेकथी कीजे प्यार;
For Private And Personal Use Only
118 11
Page #69
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ ३ ॥
मत मतान्तर झघडा त्यागी, धमिजनोनी कीजे व्हार, जैन बान्धवो हळीमळीने, सम्पीने चालो संसार ॥ १ ॥ सम्यग ज्ञान विना गोटाळो, वात वातमां पडिया भेदः सङ्घ चतुर्विध सम्प न वर्ते, ते देखतां प्रगटे खेद, सम्प करीने खेद नीवारो, सफल करो मानव अवतार; जैन बान्धवो हळीमळीने, सम्पीने चालो संसार ॥ २ ॥ त्रिशलानन्दन वीर जिनेश्वर, विरहे जिनशासन छेदाय; धार्मिक केळवणी नहि मळतां, मिध्यात्वी जैनो थइ जाय, जागो वीरना भक्तो जैनो, करशेो जिनशासन उद्धार; जैन बान्धवो हळी मळीने, सम्पीने चालो संसार. धर्म धुरंधर पूर्वाचार्यो, थई गया शासन सुलतान, कमर कसीने जैन पताका, वर्ताची पामीने ज्ञान, जैन धर्मनी वृद्धि कीधी, हेमचन्द्र जेवा जयकार, जैन बान्धवो ही मळीने, सम्पीने चालो संसारतन मन धनथी ज्ञान भणावो, सङ्ग चतुर्विध करशो सहाय, जूनां पुस्तक फेर लखावो, जैनाभ्युदय सरल उपायः सहाय करीने श्रमण भणावो, उपदेशे करवा तैयार, जैन बान्धवो हळीमळीने, सम्पाने चालो संसार. पण्डित थतां मुनिवर मण्डल, जैनोन्नतिनां करशे काम, व्याख्यानाने कधी रचीने, पूर्व सूविर राखे नाम; ते माटे मुनिमण्डल स्हाये, धन खर्चे श्रावक नरनार, जैन बान्धवो हळीमळीने, सम्पीने चालो संसार. जागो भव्यो आळस त्यागी, शिक्षा सारी गुणशो कान, धर्मप्रेमने दीलमां धारी, त्याग करोने मिथ्या मान; झापानीझनी पेठे जैनो, जागो श्रावकने अणगार,
118 11
॥ ५ ॥
|| $ 11
For Private And Personal Use Only
Page #70
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
५७
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जैन बान्धवो हळीमळीने, सम्पीने चालो संसारः ॥ ७ ॥ मिथ्यावाद दूर करीने, धार्मिक सारां कीजे काज, धर्म फैलाव करो जैनो, तेथी रहेशे जाति लाज; बुद्धिसागर जैनोदयनां, कार्यों करवां थइ हुशियार, जैन बाraat हळमळीने, सम्पीने चालो संसार ॥ ८ ॥
मुनि सद्गुरु स्तुति.
सवैया एकतीसा •
नमो नमो मुनिवर सुखराजा, बैरागी त्यागी शुरवीर, पञ्च व्रतोने मेमे पाळे, धर्म ध्यानमां वर्ते धीरः देश देश विहार करीने, उपदेशे छे नर ने नार, नमो नमो मुनिवर सुखराजा, वन्दन होजो वारंवार ॥ १ ॥ सङ्घ चतुर्विधमां जे म्होटा, जिनशासनमां जे सुलतान, जैनोन्नतिमां जीवन गांळे, धर्मरत्ननुं देता दान; साचं जंगम तीर्थ मुनीश्वर, भवोदधि तारे नरनार, नमो नमो मुनिवर सुखराजा, वन्दन होजो वारंवार ॥ २ ॥ श्रावकने मुनिवरनुं अन्तर, छिल्लरने सागर उपमान, परम प्रभुमां मुनिवर भाख्या करता पिण्डस्थादिक ध्यानः त्रिज्ञानी पण वीर जिनेश्वर, दीक्षा लेवे मुनिनी सार, नमो नमो मुनिवर सुखराजा, वन्दन होजो वारंवार ॥ ३ ॥ मुनिवर वैयावृत्ये राचो, करशो मुनिवरनुं बहु मान, मुनि विना नहीं सङ्घ कहावे, आवश्यकमां मुनि भगवान, सुरि वाचक पण मुनिवर वेषे, सङ्घ चतुर्विधना आधार, नमो नमो मुनिवर सुखराजा, वन्दन होजो वारंवार ।। ४ ।। व्रत उच्चरवां मुनिनी पासे, आगममां भाख्युं छे स्पष्ट,
•
4
For Private And Personal Use Only
Page #71
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
५८
समकित उच्चरं मुनि पासे, नहि माने ते भूले भ्रष्टः द्रव्य क्षेत्र ने कालज भावे, मुनि मण्डल वर्ते जयकार, नमो नमो मुनिवर सुखराजा, वन्दन होजो वारंवार ॥ ५ ॥ सप्त क्षेत्रमां मुनिवर श्रमणी, आव्यां छे समजो ते वात, तुच्छ बुद्धि ने बैर झेरथी, करवो नहि मुनिषदनो घात; मुनिमण्डलना अभ्युदयथी, थाशे जिनशासनउद्धार, नमो नमो मुनिवर सुखराजा, चन्दन होजो वारंवार ।। ६ ।। समकितदाता मुनिवर गुरुजी, जगमां तारो बहु उपकार, विजयपताका जिनशासननी मुनिवरथी मानो निर्धार; वीरनी पाढे मुनिवर घेपे, सूरिवर वेसे छे जयकार, नमो नमो मुनिवर सुखराजा, बन्दन होजो वारंवार ॥७॥ चरण करण सेवनमां शूरा, ज्ञान ध्यानमां काढे काळ, कनक कामिनी त्याग करीने, त्यागी जूठी मायाझाळ; हरिभद्र श्री हेमचन्द्रने, वाचक यशोविजयजी सार, नमो नमो मुनिवर सुखराजा, चन्दन होजो वारंवार ॥ ८ ॥ युगमघानो मुनिवर वेषे, शासन शोभाना करनार, पुण्यवन्तने मुनिवर दर्शन, अमृतसम लागे सुखकार; बुद्धिसागर पञ्चमकाळे, मुनिवर गुरुनो छे आधार, नमो नमो मुनिवर सुखराजा, बन्दन होजो वारंवार ॥ ९ ॥
श्री वीरस्तुतिः
सवैया एकतीसा.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जय जय वीर जिनेश्वर तारक, सत्य सेव्य व्हारो आधार; नवतवादिना उपदेशे, कीधो छे तें बहु उपकार, क्षायिकभावे निर्मल दर्शन, ज्ञाने शोभो श्री जिनरायः
For Private And Personal Use Only
Page #72
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
परम महोदय जिनवर वन्दु, वे कर जोडी लागुं पाय. ॥१॥ नय सप्त ने चार प्रमाणे, षड् द्रव्यो भाख्यां निर्धार; सप्त भङ्गीमां रचना कीधी, अनेकान्तमतनी सुखकार, देशोदेश विहार करीने, समजाव्या ते सत्योपाय; परम महोदय जिनवर वन्दु, बेकर जोडी लागुं पाय. ॥२॥ दर्शन ज्ञान चरित्रे मुक्ति, विस्तारे समजाव्युं तेह; श्रावक साधु धर्म बताव्या, समजाव्या छे पञ्चे देह, औदायिक आदि पञ्चभावने, काथैया मुखथी तें जिनराय; परम महोदय जिनवर वन्दु, बे कर जोडी लागुं पाय. ॥ ३ ॥ दया धर्मना धोरी स्वामी, तीर्थंकर भव तारणहार; सङ्घ चतुर्विध महा तीर्थने, स्थापी कीघो छे उपकार, द्रव्य क्षेत्र ने काल भावथी, तत्त्व कथ्यां छे तें जिनराय, परम महोदय जिनवर वन्दु, वे कर जोडी लागुं पाय. ॥ ४ ॥ बहु उपकारी शिव सुखकारी, गुण त्हारा छे अपरंपार; तवगुण ध्यातां ध्येय स्वरूपे, ध्याता थावे छे निर्धार, बुद्धिसागर करुणा करशो, शरण शरण तुं छे मुखदाय; परम महोदय जिनवर वन्दु, वे कर जोडी लागुं पाय. ॥५॥
नवतत्त्वस्वरूप.
सवैया एकतीसा. जड चेतन आस्रव ने संवर, निर्जर बन्ध अने छे मोक्ष, सप्त तत्त्व ए चित्त विचारी, समजीने प्रत्यक्ष परोक्ष; अजीव आस्रव बन्ध त्रण ए, हेय विजाति हृदये धार, समजी चेतन सम्यग् ज्ञाने, भवजलधि तरशो नरनार. ॥ १ ॥ जीव संवर निर्जर ने मुक्ति, उपादेय तत्त्वो छे चार,
For Private And Personal Use Only
Page #73
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सम्बर निर्जर मोक्ष तत्त्वनो, साचो छ चेतन आधार; ज्ञेय सदा छे तत्त्वो साचां, चउ निक्षेपे छे अवतार, समजी चेतन सम्यग् ज्ञाने, भवजलधि तरशो नरनार.॥ २॥ जड चेतन वे तत्वो कहिए, वे तत्त्वोमां सर्व समाय, विवेक दृष्टि प्रकटन अर्थ, सप्त तत्त्व पण छे सुखदाय; सात नयोथी सप्ततत्वनो, समजो गुरुगमथी विस्तार, समजी चेतन सम्यग् ज्ञाने, भवजलधि तरशो नरनार. ॥ ३ ॥ आश्रवना वे भेदो पाडे, पुण्य पाप बे तत्त्वो थाय, नवतत्वो सिद्धान्ते गायां, ज्ञानीने सर्वे समजाय; सापेक्षे तत्त्वोनी व्हेंचण, करशे आगमनो भणनार, समजी चेतन सम्यग् ज्ञाने, भवजलधि तरशो नरनार ॥४॥ नव तत्त्वोना भेद घणा छे, जिन आगममां भाख्या सार, षड्द्रव्योमा तत्त्व समातां, भाखे श्री गौतम गणधार; बुद्धिसागर तत्त्वोनुं नव, वर्णन करतां नावे पार, समजी चेतन सम्यग् ज्ञाने, भवजलधि तरशो नरनार. ॥५॥
.राग कान्हरो.
पद. आतम अनुभव रटना लागी, सुरता अन्तरमा स्थिर जागी
आतम. ॥ १॥ चिद्घन चेतन मनमां व्यावो, सोऽहंसोऽहं पदथी गावो
आतमः ॥ २॥ जळपडुजवत् अन्तरन्यारो, स्थिर उपयोग होय उजियारो.
आतमः ॥३॥ समतासरोवर हंसा खेले, संवरथी आस्रव हडसेले.
आतमः ॥४॥
For Private And Personal Use Only
Page #74
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अनुभवामृत क्षण क्षण पीवो, शुद्धस्वरूपे निशदिन जीवो.
आतम.॥५॥ क्षायिकभावे निजपद मळवू, बुद्धिसागर निजपद भळवू.
आतम. ॥६॥
असल फकीरीनी खुमारी.
गजल. फकीरी त्यां न दीलगीरी, फकीरी अर्पती सिरि; फकीरी दुःख हरनारी, फकीरी सुख करनारी. फकीरी. १ फीकरनी फाकीओ भरवी, फकीरी दीलमां धरवी; फोगट नहि फंदमां फूलं, भणीने भाव नहि भूलुं. फकीरी. २ जगत्मां जागवं ज्योतिः, खरूं शोधु जीवनमोति; अमारे शोध साचुं, हमारे छोडवू काचुं. फकीरी. ३ हमारे चालवू देशे, हमारे आत्मना वेषे; हमारे सर्वनुं सहेवू, भलामां नित्य चित्त देवू. फकीरी. ४ अलखना प्रेममा तरवू, अलखना प्रेममां फरवू; बुद्धयब्धि प्रेमना प्यारा, फकीरी वेष छे न्यारा. फकीरी. ५
ओधवजी संदेशो कहशो श्यामने-एराग
रामपद. राम राम रटना लागी छे ज्ञानथी, पिंडे परगट वसियो आतमराम जो रामराम. ॥१॥ निजगुण रमतो राम कहायो आतमा; जीव चेतन आतम सहु एनां नामजो. रामराम.
For Private And Personal Use Only
Page #75
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
६२
उपशम क्षयोपशमने क्षायिक भावयोः रंगाया जीवो ते माटे राम जो, समता सीता सतीना स्वामी रामजी; नामी पण निश्चयथी जे निर्नाम जो. अभिमान रावणने मारी लावीया, समता सीता सतीने जे निज घेरजो; अनंत सुखडां पाम्या ते श्री रामजी, भोगवता ते मुक्ति सुखनी ल्हेर जो रामराम. ॥ ३ ॥ पिण्ड सृष्टिकर्ता हर्त्ता श्री रामजी;
नहि ब्रह्मांडता कर्त्ता कहेवाय जो..
पिण्डे वसीने अपिण्ड आतम ओळख्यो; सत्यराम आतम पिण्डे परखाय जो. रामराम ॥ ४ ॥ पिण्डतजीने के रामो सिद्धिया; ash रामो सिद्ध थशे निर्धारजो, रामराम रटनाथी आतम राम थै; पामे भवसागरनो जल्दी पार जो. समज्याविण भूल्या रामनामथी मानवी; शब्दभेदथी करता ताणताण जो, रामनाम लक्ष्यार्थे राम जगावीने;
रामराम ।। ५ ।।
पामो अनुभव रङ्गे सुखनी खाण जो. रामराम ॥६॥
"अप्पा सो परमप्पा" पिण्डे राम छे; अनेकान्त दर्शनथी तेनुं ध्यानजी, बुद्धिसागर रामराम रटना थकी; शुद्ध बुद्ध चेतनजी श्री भगवान जो.
For Private And Personal Use Only
रामराम. ॥२॥
रामराम. ||७||
Page #76
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कृष्णस्तवन. ओधवजी संदेशो कहेजो श्यामने-ए राग. औदयिक जलधिमां शुं उंघो कृष्णजी, रत्नत्रयी लक्ष्मीना स्वामी धीर जो, अनन्त निजगुण सृष्टिपालक विष्णुजी, गिर्वाणी धारक गिर्धारी वीर जो, औदयिक. ॥१॥ समकित चक्र सुदर्शन हृदये धारता, मोहारि जागो अलबेला नाथजो, जागतां दुष्टो सहु दूरे भागशे, कोइ न शत्रु भरशे तुजथी बाथजो. औदयिक. ॥२॥ प्राणपति परकर्ता भोक्ता तुं थयो, परस्वभावे रमतां श्रीभगवानजो, आप स्वभावे रमतां सुखडां सहु लहे, जाग जाग चेतनजी लावी भानजो. औदयिक ॥ ३ ॥ परकर्ता परभोक्ता स्वामी नहि हुवे,
आप स्वभावे रमतां आतमरामजो, निजगुण कर्ता परगुण हर्ता ध्यानथी, कृष्ण विष्णु ए छे सहु आतम नामजो. औदयिक ॥ ४ ॥ अनेकान्त दर्शनथी चेतन कृष्ण छ, शुद्ध चेतना गोपी विनवे व्हालजो. बुद्धिसागर सप्त नयोथी आतमा, ध्यावो गावो प्रगटे मङ्गल माल जो. औदयिक ॥ ५ ॥
॥ आत्मविज्ञप्ति ॥ ॥ वहेंचरों भक्तिनां भाइ नाणां ए राग. ॥ आतमा अरजी आ उरमा स्वीकारो, थ्याने पोताने तो तारोरे.
आतमा.
For Private And Personal Use Only
Page #77
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
६४ पुद्गलनां चुंथणां चुथ्यां अज्ञानथी, आव्यो न चुथतां ते आरो; भ्रान्तिथी भूली न जायुं स्वरूप में, आशरो एक छे तमारोरे.
आतमा. ॥ १ ॥ हरिहर देवता ब्रह्मा ने शक्ति, केइक तीर्थ विचारो, तुजमाहि सर्वे समायां छे तीर्थो, वीनति आ दोलमांहि धारोरे.
आतमा. ॥२॥ देवनो देव अने राणानो राय तुं, प्रभु तुं माणधीरे प्यारो, श्रद्धा कहे मुज स्वामिजी व्हाला, झालोने हाथ तमे मारोरे.
आतमा. ॥ ३॥ अन्तरमा शोध तुं साचा साहिबने, दुःखनो आवशेरे आरो, बुद्धिसागर चेत चेतन चतुर तुं, अन्तरमा होय उजियारोरे.
आतमा. ॥ ४ ॥
नेमनाथभक्ति. वहेंचरों भक्तिनां भाइ नाणां-ए राग. नेमजी अरजी आ उरमा स्वीकारो, मने साचो छे आशरो
तमारोरे. नेमजी. अन्तरमा ताप ने बाहिर ताप छे, ज्यां त्यां छे दुःखनो तपारो स्वमामां दुःखनां वरसे छे वादळां, मोटा आ दुःखथी
उगारोरे. नेमजी ।। १॥ पाछळ दुःख ने आगळ :खडा, दुःखी लागे छे जन्मारो तरछोडो नहि मने दीनदयालु, हस्त ग्रही हवे तारोरे. नेमजी २ भक्ति के भाव नहि अन्तरमा झान नहि, मुखथी करुंछु लवारो. दोषनी पोठ आ बाळ तमारो, तार्या तो वीण नथी आरोरे.
नेमजी ॥ ३॥
For Private And Personal Use Only
Page #78
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
साह्य करोने प्रभु शरणुं तमारू, तारोने सांभळी पोकारो, बुद्धिसागर व्हारे आवोने वापजी, करजो सेवकनो उद्धारोरे.
नेमजी ॥ ४ ॥
आवश्यकस्मृतिः
अर्ह अह समरतां, लाहिए भवनो पार; सत्यदेव अरिहन्त छे, तेनो मुज आधार. ॥१॥ सूतां खातां बेसतां, चालंतां अरिहन्त; जे भाव प्राणी समरशे, थाशे शर्म अनन्त. ॥२॥ अरिहन्त महामन्त्र छे, स्मरजो नर ने नार; मङ्गल मोटु जाणिए, होवे जग जयकार. ॥३॥ मनुष्य भव पामी भवी, दो करवानां काम; देनेका टुकडा भला, जपना आतमराम. ॥ ४ ॥ बुद्धिसागर ज्ञानथी, वे वातो दिल धार; दयाधर्म हृदये धरि, जपवो श्री नवकार. ॥५॥ बुद्धिसागर वात दोय, समजी घटमां धार; दया धर्मनी सेवना, करवो परउपकार. ॥६॥ मुसाफर जीव जगतमां, दान धर्म कर भाइ; आंख मिचाए कल्पना, जूठी एह सगाइ. ॥७॥ आतम ते परमातमा, घट घट रहे समाइ; बुद्धिसागर प्रेमथी, कुंचि गुरुए बताइ. ॥८॥ करवानुं बहु काम छे, पामी मनु अवतार; मोहे मुंझी शुं मरे, चेती आतम तार. ॥९॥ ज्ञान विण जीव अंध छे, सान विना ते ढोर;
For Private And Personal Use Only
Page #79
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दान विना ते डंट छे, विण उपकारे घोर. ॥ १० ॥ देव गुरु नहि सेवीआ, कीधो नहि उपकार; जिनवर जाप कर्यो नहि, फोगट तस अवतार. ॥११॥ भक्त सन्त संतापिया, दीयां दीनने दुःख सत्य धर्म समज्यो नहि, लजवी जननीकूख. ॥१२॥ गुरुनिन्दा बहु पातकी, गुरुनिन्दा बहु पाप; गुरुनिन्दक मुख देखतां, अशुभ दिन सन्ताप. ॥१३॥ दया धर्म जगमां वडो, दया धर्म सुखकार; दया नहि त्यां धर्म नहि, समजो नर ने नार. ॥१४॥ बुद्धिसांगर तत्त्वने, समजी घटमां धार; आतम सरखा जीव सहु, समजी कोइ न मार. !!१५|| हिंसा जूठ चोरी अने, व्यभिचार महा दोष; दया क्षमा उपकार शिल, सत्य धर्म सन्तोप.॥१६॥ जो तुं समजे धर्मने, यथाशक्तिथी आप; बुद्धिसागर प्रेमथी, खरा भक्तनी छाप. ॥ १७ ॥ गुरुकृपाथी पामिए, सत्य शान्ति आराम; गुरुकृपा विण बापडा, लहे न आतमराम. ॥ १८ ॥ गुरुनी आज्ञा लोपिने, चाले निजमति छन्दः ज्यां त्यां भटकी दुःख ले, जाण्या विण मतिमन्द. ॥१९॥ बोले ते पाळे नहीं, करे प्रतिज्ञा भङ्ग; रौरव दुःखो नरकमां, पामे जीव कुरङ्गः ॥२०॥ चित्त स्थिर जेनुं नहीं, करतो उधां काम; लोक हसे दुःखो लहे, मूर्ख दुःखनुं ठाम. ॥ २१ ॥ मनमां आवे ते करे, पञ्च कहे ते फोक; अवळा प्राणी बापडा, लहे न सुखडा लोक. ॥२२॥
For Private And Personal Use Only
Page #80
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सद्गुरु शिक्षा लोपिने, मूर्ख शिष्य पस्ताय; कोह्या काननी कुतरी, पेठे ठाम न पाय. ॥ २३ ॥
श्रावकहितशिक्षा.
व्हाला वीर जिनेश्वर-ए राग. श्रावक हितशिक्षा तुं हृदये सारी धारजे रे, हिंसा चोरी चुगली निंदा दोषो वारजे रे साची श्रद्धा जिननी राखी, आतम अनुभव, अमृत चाखी, पाताने तुं भवजलधिथी तारजे रे. श्रावक. १ श्रावकनां व्रत उच्चरी टेके, करजे कृत्यो धर्म विवेके; कर्माष्टक क्रोधादिक शत्रु विडारजे रे. श्रावक. २ जिन शासनने बहु अजवाळी, द्वेष क्लेश इत्यादिक टाळी; चित्तवृत्तिने आत्मस्वरुपे ठारजे रे. . श्रावक. ३ सद्गुरुशरण ग्रहीने सारं, त्यज तुं लागे जेह नठारूं; बुद्धिसागर सद्गुरु शिक्षा धारजे रे.
श्रावक. ४
अनुभवदासप्ततिः
छपायाछन्द. परम महोदय श्री परमेश, वन्दु भावे श्री जिनेश; भजन स्मरण कीर्तन तव सेव, शाश्वत अनुभव अमृतमेव, अन्तर तव सरखो मुंज देश, परम महोदय श्री परमेश. ॥१॥ सत्ताथी जोतां नहि भेद, सिद्धसमो वर्ते छे वेद स्वरूप भूली हार्यों रत्न, कर्यो न किंचित् चेतन यत्न; परस्वभावे पा, खेद, सत्ताथी जोतां नहि भेद.
For Private And Personal Use Only
Page #81
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
६८
अन्तर व्हारी शक्ति घणी, जाग जाग चेतन दिनमणि; रत्नत्रयीनो भोक्ता सार, व्हारा गुणनो नावे पार; चिदानन्द सोहे जगधणी, अन्तर व्हारी शक्ति वणी ॥ ३ ॥ शरीर पिण्डे बसियो साच, कर्म ग्रद्याथी भवनां काज; परमां शक्ति व्हारी मळे, तेथी तुं पुद्गलमां भळे, तुजविण पुद्गल जाणुं काच, शरीर पिण्डे वासियो साच ||४|| म्हारी शक्ति अपरंपार, अधुना कर्माच्छादित धार, चेतन ध्याने प्रगटे सर्व, अहंभावनो नासे गर्व; स्याद्वाद सत्ता सुखकार, त्हारी शक्ति अपरंपार. अज्ञाने जडमां सुख दुःख, मानी वेठी मोटी भूख; सुख दुःखना हेतु नहि सत्य, जडमां जाणो भव्य असत्य, रागद्वेष ने भ्रान्ति मुख, अज्ञाने जडमां सुख दुःख. ॥ ६ ॥ मन फेरे सुख दुःखनो फेर, नहि समज्याथी ए अन्धेर, मनधी आतम न्यारो भव्य, आत्मिक धर्मे तुज कर्तव्य; आत्मस्वभाव रमतां ल्हेर, मन फेरे सुख दुःखनो फेर ॥७॥ सुख दुःख बाह्यविषयमां थाय, तबतक मोहतणो महिमाय; सुख दुःख हेतु विषयो कह्या, वीरे ते मनमां सदह्या, पण पुद्गल संगे कहवाय, सुख दुःख बाह्य विषयमां थाय. ॥ ८ ॥ बाह्य विषयमां सुखनी आश, तबतक तुं पुद्गलना दास; बाहिर्मुखनी भ्रान्ति टळे, त्यारे शाश्वत सुखडां मळे, मोहमदिरानी दुर्वास, बाह्यविषयमा सुखनी आश. सुख दुःख बाह्यविषयमां शून्य, एवी घटमां लागे धून, अन्तर्यामी तब परखाय, बाह्यविषयमां समता थाय; चेतन ज्ञाने कांई न न्यून, सुख दुःख बाह्य विषयमां शून्य. १० बहिरा आगळ जें गान, विषधरने अमृतनुं पान,
॥ ९ ॥
For Private And Personal Use Only
॥५॥
Page #82
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अंधा आगळ दर्पण फोक, समजे नहि त्यु मोही लोक; मोहीने प्रगटे नहि ज्ञान, बाहिरा आगळ जेवू गान. ॥ ११ ॥ दृष्टिरागी मोही मूढ, समजे नहि अन्तरतुं गूढ; सद्गुरुवाणी सुणे न कान, तेने प्रगटे नहि निज भान, अशुभ व्यवहारे छे रूढ, दृष्टिरागी मोही मूढ. ॥१२ ॥ जिनवाणीनो मनमां वास, श्रद्धा साची समजे खास; वर्ते निश्चयने व्यवहार, सद्गुरु आणा ग्रहीने सार, उत्तम तेनो छे संन्यास, जिनवाणीनो मनमां वास. ॥ १३ ॥ भिन्न भिन्न जड चेतन ग्रहे, उपादेय चेतन सदहे; भिन्न भिन्न लक्षणथी बोध, गुणनो अन्तर करतो शोध, औदयिकथी न्यारो मन रहे, भिन्न भिन्न जड चेतन ग्रहे.।।१४।। रागद्वेष छे बाहिर योग, ए नहि साचो भव्यो जोग; क्षायिक भावे केवल योग, सत्य योगने जाणो लोक, मुख दुःख बाह्य विषयमां रोग, रागद्वेष छे बाहिर योग.।।१५।। रागद्वेषादिक दुःख मूळ, अज्ञाने वर्ते ए भूल; अनंत भवनां कीधां पाप, चतुर्गति पाम्या संताप, अज्ञाने मोडें ए शूळ, रागद्वेषादिक दुःखमूळ. ॥१६॥ राग दोपने त्यागे त्याग, धरजो चेतन तत्त्वे राग, चेतन वस्तु साची खरी, ते में हृदये भावे धरी; भाखे छे जिनवर वीतराग, राग दोषने त्यागे त्याग. ॥ १७॥ समजो षडद्रव्योनुं ज्ञान, तेथी जाशे ममता मान; अन्तर- अजवाछं ओर, मिथ्यातम व्यापे नहि घोर, आत्मानुभव अमृतपान, समजो पड्द्रव्योनुं ज्ञान. ॥१८॥ चेतन भावे चेतन रहे, शुद्ध चेतना चेतन लहे; अन्तर दृष्टि स्थिरोपयोग, आतम भोगवतो सुख भोग;
For Private And Personal Use Only
Page #83
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
समभावे दुःखडा सहु सहे, चेतन भावे चेतन रहे. ॥ १९ ॥ जाति भाति तुं नहि वेद, दीन कल्पी क्युं करतो खेदः बाहिरभावे तुं नहि चेत, शाने फोगट थाय फजेत, धरजे अन्तरमा निर्वेद, जाति भात तुं नहि वेद. ॥ २० ॥ यश अपयशथी चेतन भिन्न, तेमां थावे छे क्युं लीन, * सारो खोटो दुनिया गाय, तेथी हारूं कांइ न जाय; धन सत्ताथी फोगट दीन, यश अपयशथी चेतन भिन्न. ॥२१॥ मन वैरीने मन छे मित्र, मननी बाजी छे विचित्र, मन पारो सद्ध्याने मरे, परम ब्रह्म त्यारे तुं खरे; मन जीत्याथी सत्य पवित्र, मन वैरी ने मन छे मित्र. ॥२२|| मन जीत्याथी झघडो जाय, चरण करणनो ए महिमाय, हळवे हळवे मन जीताय, सर्वोत्तम उद्यम उपाय; वीर जिनेश्वर वाणी गाय, मन जीत्याथी झघडो जाय ॥२३॥ बाह्यसंयमथी मन जीताय, जिनवरनी एवी आज्ञाय, अनेकान्त मारग सुखकार, भेद भाव त्यां नहीं लगार; अन्तरसंयम पण प्रगटाय, बाह्यसंयमथी मन जीतायें ॥२४॥ अन्तर संयम दोषो हरे, भवसागरने प्राणी तरे, अन्तर संयममा उपयोग, योगी साधे तेथी योग; भाव लक्ष्मीने सहेजे बरे, अन्तर संयम दोपो हरे. ॥२५॥ बाह्यांतर संयमथी मुक्ति, अनेकान्तनी एवी युक्ति; कर्माष्टकनो होये नाश, मुक्तिपुरीमां सहेजे वास; अन्तरगुण भोगोनी भुक्ति, बाह्यान्तरसंयमथी मुक्ति. ॥२६॥ बाहिहेतु बाहियोग, अन्तर हेतु छे उपयोग; बहिर संयम साध्योपाय, उपादान अन्तर परखाय, चिदानन्दनो वर्ते भोग, बाहिहेतु वाहियोग. ॥ २७॥
For Private And Personal Use Only
Page #84
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
७१
चेतनना उपयोगे धर्म, बाहिर भावे बांधे कर्मः बाहिर्हेतु संयम वेश, व्यवहारे छे मुनिनो वेष, बाहिर संयमथी छे शर्म, चेतनना उपयोगे धर्म. चेतनव्यक्ति मांटे सहु, जाणंताने शुं बहु कहु, शुद्ध भावमां चेतन वसे, तेथी कमीकरणो खसे; शुद्ध विचारे संयम ग्रहु, चेतन व्यक्ति माटे सहु. साची चेतननी छे भक्ति, भक्तिथी प्रगटे छे शक्तिः साचो साहिब सेवो भाइ, चेतन भावे सत्य सगाई, प्रकटे परमातमनी व्यक्ति, साची चेतननी छे भक्ति || ३० || भक्ति महिमा अपरंपार, चेतन भक्ति सहुमां सार; भक्तिथी थाशो भगवान, भक्ति सर्व गुणोनी खाण,
॥ २९ ॥
तार तार आतमने तार, भक्ति महिमा अपरंपार ।। ३१ ।। भक्तिमा मळशे जो जीव, भक्तिथी थाशे ते शीव; चेतन भक्तियां जो प्रेम, हरतां फरतां वर्ते क्षेम; आत्मानुभव लहे सदीव, भक्तिमां भळशे जो जीव. ॥ ३२ ॥ पर आलम्बन जिनवर देव, साची केवल ज्ञानी सेव, जिन पूजनथी पूजक थाय, जिन ध्याने तेवो थइ जाय; मिथ्या मतनी त्यागो देव, पर आलम्बन जिनवर देव. ||३३|| बाहिर विषये हर्ष न शोक, फोगट माने मोही लोक, समभावे कर सहु काम, लेवं श्री जिनवरनुं नामः समजे वीरला सज्जन लोक, बाहिर्विषये हर्ष न शोक. ॥ ३४ ॥ पुष्टालम्बन गुरुने भजी, गुणगण माला अन्तर सजी, ध्यावो साचो आतमराम, अनेक नामो पण नहि नाम; पुदल ममता ज्ञाने त्यजी, पुष्टालम्बन गुरुने भजी ॥ ३५ ॥ आत्मप्रभु भजवामां भाव, भवजलधियां साचं नाव,
For Private And Personal Use Only
॥ २८ ॥
Page #85
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आत्मस्वभावे रमवू साच, ते विण बाकी समजो काच; वासोश्वासे बनो बनाव, आत्मप्रभु भजवामां भाव. ।। ३६ ॥ प्रभु भजन सापेक्षा घणी, व्यवहारे श्री वीरे भणी, सापेक्षे साचं छे सहु, श्रुत ज्ञाने मनमा सहहुं; सत्य सेव्य चेतन दिनमणि, प्रभु भजने सापेक्षा घणी. ॥३७॥ जिनवरनी वाणी गंभीर, समजे हरिभद्रादिक वीर, यशोविजयजी वाचकराय, श्रुत वाणी समज्या सुखदाय; आनन्द घनजी समजे धीर, जिनवरनी वाणी गंभीर. ॥३८॥ निश्चयने शोभे व्यवहार, जिनवरनी वाणी जयकार; सद्गुरु गमथी जो समजाय, तो दो भेदे समकित थाय, केवलज्ञानिवाणी सार, निश्चयने शोभे व्यवहार. ॥३९ ।। धरो ध्यान सूत्रानुसार, सफल थशे मानव अवतार; अशुद्ध पर्यायोनो नाश, आत्मिक पर्याये सुखवास, शुद्ध स्वभाव मुक्ति धार, धरो ध्यान सूत्रानुसार. ॥४०॥ यथा यथा ध्याने लयलीन, तथा तथा चेतनता पीन; ज्ञान ध्यान शक्ति अनुसार, चेतनने समजो सुखकार, चेतन जैन अने छे जिन, यथा यथा ध्याने लयलीन. ॥४१।। अचिन्त्य चेतननुं छे रूप, चेतन सेवक चेतन भूप, चेतन ध्याता चेतन ध्येय, चेतन ज्ञानी चेतन ज्ञेय. चेतन बोले चेतन चूप, अचिन्त्य चेतनतुं छे रूप ॥ ४२ ॥ कर्ता हर्ता चेतन खरे, चतुर्गति चेतन अवतरे, पञ्चम गति चेतन सञ्चरे, परमातमपद चेतन घरे. कर्म करे कर्माष्टक हरे, कर्ता हर्ता चेतन खरे. ॥४३ ।। सापेक्षाए सहु समजाय, त्यारे चेतन ज्ञानी थाय, निरपेक्षाए मिथ्या झेर, अन्तरमा वर्ते अन्धेर, समकित अन्तरमा प्रगटाय, सापेक्षाए सहु समजाय. ॥ ४४ ।।
For Private And Personal Use Only
Page #86
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
७३
उपाधिने अळगी करी, समता स्थिरता दीलमां घरी, सत्ता ध्यावो चेतनतणी, प्रगटे व्यक्ति चेतनमणि; मान मान शिक्षा छे खरी, उपाधिने अळगी करी. ॥ ४५ ॥ सेवो सुखकर चेतनराम, तेथी सरशे सघळां काम, राम राम चेतन छे साच, ते विण जाणो सघळं काच, ठरशो तेथी निर्भय ठाम, सेवो सुखकर चेतनराम ।। ४६ ।। तुज सेवनथी सेव्यं सर्व, तुज सेवनथी नासे गर्व, तुजमां सर्व समायुं अहो, चेतनभावे चेतन रहो: तुज रमणता रुडं पर्व, तुज सेवनथी सेव्यं सर्व. ॥ ४७ ॥ तुज दर्शनथी भ्रान्ति जाय, तुज दर्शनथी शान्ति थाय, तव दर्शनथी सत्यानन्द, तव दर्शनथी विघटे फन्द चेतन दर्शन सन्तो गाय, तव दर्शनथी भ्रान्ति जाय. ।। ४८ ।। तव दर्शनथी शाश्वत सुख, तव दर्शनथी जावे दुःख, तत्र दर्शनथी जग जयकार, तब दर्शनथी स्थिरता सार; तव दर्शनी भागे भूख, तत्र दर्शनथी शाश्वत सुख ।। ४९ ॥ सत्य सत्य दर्शन व सार, तव दर्शनथी नासे मार, तव दर्शनने योगी चहे, तव दर्शनने वीरला लहे; तव दर्शननो सहुने प्यार, सत्य सत्य दर्शन तव सार ॥५०॥ श्वासोश्वासे चेतन ध्यान, हरतां फरतां चेतन भान, रटना हृदये लागे खरी, जन्म मरण तत्र नावे फरी; अन्तर अनुभव भासे ज्ञान, श्वासोश्वासे चेतन ध्यान ॥५१॥ प्रवृत्तिमां पडे न चेन, आतम अनुभव प्रगटे घेन, द्वेष क्लेश इर्ष्यादिक टळे, चेतनता चेतनमां भळे; दीवस सरखी भासे रेन, प्रवृत्तिमां पडे न चेन. 11 92 11 अनुभवी चेतनमा रमे, चेतन स्मरण मनन मन गमे,
For Private And Personal Use Only
Page #87
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
७४
रत्नत्रयीमां रमतो राम, साधे क्षायिकभावे धाम; परस्वभावे ते नहि भमे, अनुभवी चेतनमां रमे. ॥५३ ॥ विकथामांहि पडे न व्हाल, मोहभावनी नासे चाल, अनुभव अमृत होवे पान, शोभे अन्तरमा मुलतान; नासे दुःखदायक महाकाल, विकथामांहि पडे न व्हाल. ॥२४॥ झळहळती जागे घट ज्योत, होवे अन्तरमांहि उद्योत, परस्वभावे रमवू झेर, आत्मस्वभावे अमृतल्हेर, क्यां दिनमणिने क्या खद्योत, झळहळती जागे घट ज्योत. ५५ झरमर झरमर वरसे धार, उपशम भावादिक सुखसार, भवदावानल होवे शान्त, नासे मिथ्यात्वादिक भ्रान्त; धन्य धन्य होवे अवतार, झरमर झरमर वरसे धार. ।। ५६ ।। भाव वीर्यथी होवे वीर, भाव धैर्यथी होवे धीर, प्रगटे आतम अनुभव नाद, चेतन करतो अमृत स्वाद; उतरे भवसागरनी तीर, भाव वीर्यथी होवे वीरः ॥५७॥ रम आतम भावे भव्य, तत्त्व थकी ए छे कर्तव्य, अनन्त शक्तिनुं तुं धाम, असंख्य प्रदेशी चेतनराम; परस्वभावो परिहर्तव्य, रमवू आतमभावे भव्य. ॥ ५८॥ आत्मस्वभावे रमवू श्रेष्ठ, परस्वभावे रम वेठ, आत्मस्वभावे रमतां इश, भाखे छे जिनवर जगदीश; केम चाहे छे पुद्गल ऐंठ, आत्मस्वभावे रमवू श्रेष्ठ. ॥ ५९ ॥ चेतन ज्ञाने प्रगटे धर्म, चेतन ध्याने नासे कर्म, चेतन इश्वर ध्याने थाय, अनन्त भवनां आस्रव जाय, घटमां शाश्वत प्रगटे शर्म, चेतन ध्याने प्रगटे धर्म. ॥६ ॥ चेतनहुँ चिन्तन सुखकार, चेतन नामे जयजयकार, चेतन सेवो सुख भरपूर, वाजे जेथी मङ्गल तूर; मङ्गलमाला भावे धार, चेतनहुँ चिन्तन सुखकार. ॥ ६१॥
For Private And Personal Use Only
Page #88
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मङ्गलमा मङ्गल छे एह, रत्नत्रयीनुं चेतन गेह, चेतन पूजे ने पूजाय, अद्भूत आतमनो महिमाय; शोधो चेतन वसियो देह, मङ्गलमा मङ्गल छे एह. ॥३२॥ चेतन जाण्याविण सहु धूळ, अमूर्त चेतनतुं नहि मूळ, अनाधनन्ति स्थिति धेरे, चेतन भवसागरने तरे; चतुर चेतन सत्य अमूल्य, चेतन जाण्याविण सहु धूळ. ॥६३।। सहज स्वरूपी चेतनराम, क्षायिकभावे ठरतो ठाम; पुरुषोत्तम जे पुरुष पुराण, षद्रव्योनो सम्यग् जाण, असंख्यप्रदेशी रुटुं गाम, सहज स्वरूपी चेतन राम. ।।६४।। हेय ज्ञेय छे सहु बाह्यार्थ, सुखकर अन्तर गुणनो सार्थ; चेतन सेवाथी सुख मळे, मोहमायादिक दोषो टळे; चेतन आदरवो परमार्थ, हेय ज्ञेय छे सहु बाह्यार्थ. ॥६५ ।। जाग जार्ग अब चेतन जाग, कर तुं शाश्वत सुखनो राग; धार धार चेतन अब टेक, कर तुं शाश्वत ज्ञान विवेक, सदुपयोगे धर वैराग्य, जाग जाग अब चेतन जाग. ॥ ६६ ॥ आतम धर्मे निशदिन राच, चेतनना धर्मोने याच; सदुपयोगे निर्मलहंस, चेतन धर्मो सत्य प्रशस्य, अनुभव योगे हर्षे माच, आतम धर्मे निशदिन राच. ॥ ६७ ॥ अष्ट सिद्धि रूद्धि भण्डार, याचक चेतन छे दातार; परमातम पोते तुं खास, धर तुं निज शक्ति विश्वास, पामे भवजलधिनो पार, अष्ट सिद्धिरूद्धि भण्डार. ॥६८॥ वळजे चेतन शिवपुर वाट, चरण करण- रचजे हाट; अन्तर गुणना घडजे घाट, धोजे कर्म मेलनो काट, बेसीश नहि कुमतिनी खाट, वळजे चेतन शिवपुर वाट.॥६९॥ चाल चाल चेतन शिव पन्थ, वांची सूत्रो ने सद्ग्रन्थ
For Private And Personal Use Only
Page #89
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विषय विकारो सर्वे टळे, तात्त्विकमुख चेतननु मळे, मुमतिपति आतम छे कंथ,चाल चाल चेतन शिवपन्थ. ॥७॥ अनित्यपर्यायार्थिक सार, द्रव्यार्थिकथी नित्याधार; शुभाशुभ पुद्गलथी भिन्न, वर्ते दीन सत्ताथी जिन, मळियु टाणुं हवे न हार, अनित्य पर्यायार्थिक सार. ॥ ७१ ।। पुनः पुनः मनमन्दिर ध्याउ, आतमध्याने शिवपुर पाउ; ध्याने सिद्धया सघळा जीव, पाम्या सिद्ध सनातन शिव, हरतां फरतां तवगुण गाउ,पुनः पुनः मनमन्दिर ध्याउ.॥७२।। हुं तुंनो सहु नासे भेद, परस्वभावि नासे खेद; शाश्वत सिद्धि ध्याने धरे, जय जय मङ्गलमाला वरे, कर्माष्टकनो होवे छेद, हुं तुंनो सहु नासे भेद. ॥७३ ॥ द्वासप्तति एम प्रेमे गाइ, साबरमतीना कांठे आइः प्रेमाभाइ हेमाभाइ वास, बेश बंगलो शोभे खास, दिन एक ध्याने चेतन ध्याइ, द्वासप्तति एम प्रेम गाइ. ॥७४|| चित्तनी स्थिरता मुखने हेत, अनुभव बहोतेरी संकेत; संवत ओगणिस चोसठ साल, कार्तिक वदी सातम सुविशाल; देह बंगलो चेतन चेत, चितनी स्थिरता सुखनो हेत. ।। ७५ ॥ चेतन, साचुं छे ज्ञान, मान मान शिक्षा दील मान; अनुभव मङ्गलवाजे तूर, शाश्वत लक्ष्मी पामे शूर, बुद्धिसागर सिद्धि स्थान, चेतननुं साचं छे ज्ञान. ॥ ७ ॥
ब्रह्मचर्यमहिमा.
मनहरछन्द. शीयलथी सुख थाय शीयलथी दुःख जाय, शीयलथी देह दृढ, सुमन मुहाय छे;
For Private And Personal Use Only
Page #90
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
وف
मन्त्रतन्त्र फले सहु, शीयलना तेजथकी. शीयलथी मान सहु, दुनीआमां थाय छे, शीयलने धारवाथी, स्मरदोष मारवाथी; भवजलनिधि क्षेम, सहज तराय छे. देवन्द गुणगाय, शरीर निरोगी थाय; ब्रह्मत धारवाथी, सुयश पमाय छे. विन्द नाश थाय भूत प्रेत वश थाय; शीयल सुगुण गृह, मङ्गलनुं द्वार छे, जेवं बोले ते थाय, सहु दोष दूर जाय. शीयल धारकजन धन्य अवतार छे; शीयल सुगन्धि वेश, शियलथी शुभ वेष, शियलने सागरनी उपमा प्रमाण छे.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ १ ॥
नरनारी धरो सहु शियल सन्नाह अंग; धीनि शीयल सत्य जीवननो प्राण छे. ॥ २ ॥
For Private And Personal Use Only
दया महिमा.
मनहरछन्द.
दया दुःख हरनारी, दया मुख करनारी, दया गुणगृह बेश, दयाथकी धर्म छेः दयाविना तप यम ध्यान सहु फोक अहो, दयाकी देवगति सिद्धिसौधशर्म छे; दयाविना त कोइ सफल न थाय भव्य, दया कल्पवृक्ष अने शेष व्रत वाड छे. दया कामकुंभ अने दया स्पर्शमणि सत्यः दयांविना मुक्ति म्हेल बंध तो कमाड छे. ॥ १ ॥
Page #91
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सहु तीर्थ शिरदार दया तीर्थ दिल धार; दयांविना डहापणना दरियामां धूळ छे, सुरगति मनुगति दया कल्पवृक्ष पुष्प. शिवफल पामवामां दया सानुकूळ छे; दयामय दील थाय भवभय रोग जाय, दयाधर्म पाळवाथी शिव मुख हस्त छे. शाता अने शिव सुख दयानो प्रभाव जाण; धीनिधि मुनिनुं मन दयामांहि मस्त छे. ॥२॥
अलखदेशगान. अलख हमारा देश खरा हे, अलख हमारा नामा है; सिद्धस्थान हे सत्य हमारा, आश्रय आतमरामा हे. अलख. १ अलख फकीरी अलख वेषमां, सदाचित्त मस्ताना है; अलख धूनथी हम रंगाया, ज्ञाने हम गुल्ताना हे. अलख. २ अलख दशामां दर्द गया सहु, आना नहि अब जाना है; नामरूपसे न्यारा हम है, सत्य अलख फरमाना हे. अलख. नरनारीके नहीं नपुंसक, चिदानन्द सुख प्यारा है; रत्नत्रयीमां हम हे राता, पुद्गल हमसे न्यारा हे. अलख. ४ ज्ञान ज्ञेय ने ज्ञाता हम हे, चेतनता सुखकारी हे; बुद्धिसागरःसोऽहंसोऽहं, ध्याने स्थिरता धारी है.. अलख. ५
मायाथी दूर रहेवानो उपदेश.
रांग थाळ. .. मायामां शीदने मुंझेरे, जीवलडा जो तुं; मोहे सत्य न बुजेरे, जीवलडा जो तुं, जूठी माया जगनी, आवे न साथे भाइ;
For Private And Personal Use Only
Page #92
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शीदने रह्यो मुंझाइरे.
जीवलडा. ॥१॥ मन माने मकलायो, पण स्पर्शमाण नहि पायो लाख चोराशी जायोरे. जीवलडा. ॥२॥ मनमा लाग्युं प्यारं, तेवू तें दील धार्य; पण जीवन जावे हार्युरे. जीवलडा. ॥ ३ ॥ प्रभुभजनने भूल्यो, मायाना दरिये डुल्यो; फुलणजी फोगट फुल्योरे. जीवलडा. ॥ ४ ॥ धारीने जोजे धीरा, अन्तरना म्हारा वीरा; बुद्धिसागर शरारे.
जीवलडा. ॥५॥ चेतनने उपदेश.
राग थाळः चेतनजी चेतो प्यारा रे, जंगमना जोगी, अलखरूप आधारा रे, जंगमना जोगी; अवधूत स्वरुपे रमवू, दुनीआमां ज्यां त्यां भमकुं, आडं अवलु खम, रे.
जंगम.१ औदयिक भावो वारी, अन्तरमा सुरता धारी; करवी शिव तैयारी रे.
जंगम. २ ज्ञानिनी संगे रहे, समभावे सर्वे सहे; कोइने काय न कहेवू रे.
जंगम. ३ चेतननी बलिहारी, तेनी छे साची यारी; बुद्धिसागर धारी रे.
जंगम. ४
जीवने जागवानो उपदेशः
थाळ राग. जीवलडा जोने जागी रे, वेळा बहु वीती,
For Private And Personal Use Only
Page #93
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
८०
तव पूठे तृष्णा लागी रे, वेळा बहु वीती; करवानुं काम कीजे, नरभवनो लाहो लीजे, पळ पळ आयु छीजे रे.
फुल्यो शुं ठाठ ठाली, जाशे तुं हाथ खाली; चेतन रूद्धि नहि भाळी रे.
जोयुं सर्वे जाशे, पाछळथी पस्ताशे;
लक्ष्मी बीजा खाशे रे. बुद्धिसागर चेतो, काळ झपाटा देतो; मारग जल्दी वहेतो रे.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private And Personal Use Only
वेळा. १
वेळा. २
वेळा. ३
वेळा. ४
पामर जीवनी स्थिति.
सिद्ध जगत शिर शोभता. ए राग. पामर प्राणी न पारखे, रूडो आतमराम; पाप कर्म नित्य आचरे, खर्चे धर्मे न दाम. माया ममतामां माचियो, वनितापर बहु व्हाल; पुत्रादिकनी छे काळजी, चेतन धर्मे न ख्याल. देव गुरु नहीं पारख्या, जिननो पाम्यो न धर्मः राग द्वेषमां माचीने, बांध्यां बहुलां रे कर्म. नहि वैराग्यनी वासना, विषयेच्छामां छे चित्त; सत् संगत रूडी नहि करे, थाय ते शाने पवित्र पामर. ४ चोथा चण्डाल उपमा, निन्दाकारक जाण; साधु निन्दाथी पामतो, नरकगति दुःखखाण. वेश्या व्यसननी संगतें, पाप कर्या केड़ लाख; चेती लेने रे प्राणिया, थाशे देहनी राख. झटपट चेती ले मानवी, वळजे शिवपुर वाट; बुद्धिसागर बोधथी, मांडो धर्मनुं हाट.
पामर. १
पामर. २
पामर. ३
पामर. ५
पामर.
६
पामर. ७
Page #94
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भजन करले भजन करले.-ए. राग. चेती ले झट चेती ले जीव, धार जिनवर धर्म रे; मायामां मस्तान थातां, लहे न शाश्वत शर्म रे. चेती. ॥ १ ॥ अस्तिनास्ति धर्म चेतन, भेदाभेद विचार रे; अनेकान्त छे आत्मनुरूप, समजी आतम तार रे. चेती. ।। २ ।। शुद्धरूपी साहिबो छे, अनन्तगुण आधार रे; शुद्ध ध्याने ध्याववाथी, आवे भवनो पार रे. चेती. ॥ ३ ॥ आनन्दालय आतमा तुं, जाग झटपट जाग रे; बुद्धिसागर आत्मध्याने, धरजे दीलमां राग रे. चेती. ॥ ४ ॥
भजन करले भजन करले-ए रागः जाग जीवडा जाग जीवडा, जाणी लेजे धर्म रे; भ्रान्तिथी जंझाळ राची, शीदने बांधे कर्म रे. जाग. ॥ १ ॥ भाइ भगिनी पुत्र दारा, जूठो सहु परिवार रे; जुठां सगपण दुनिआनां, साच चेतन धाररे, जाग. ।। २ ।। स्वारथिया संसारमांहि, मोहे बनीने अन्व रे; कर्म बांधे अभिनवां तुं, पररमणता बन्ध रे. जाग. ॥३॥ अनन्तशक्ति साहिबा तुं, चेत चेतनराम रे; शुद्धभावे सुख अनंतुं, भोगवे गुण धाम रे. जाग. ॥ ४ ॥ ज्ञान दर्शन चरण भोक्ता, चेतन शुद्ध स्वरूप रे; बुद्धिसागर आत्मध्याने, विघटे भवभय धूपरे. जाग. ॥ ५ ॥
प्रभुरटन उपदेश.
भजन करले भजन करले : ए राग. रदन कर मन रटन कर मन, रटन कर अरिहन्तरे;
For Private And Personal Use Only
Page #95
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૦૨
प्रभु रटनथी पाप नासे, होक्त कर्मनो अन्तरे. रटन. ॥ १ ॥ मायानी जंझाळमांहि, होय न सुख लगाररे;
राग दोषे जीवन जातां, आवे न भवनो पाररे. रटन. || २ || धन सत्ताना तोरमांहि, फुल्यो दिनने रातरे; आयु अवधि पुरी यातां, दुर्गति भटकावरे. चक्रवर्ति वासुदेवो नृपति महा झुंझाररे; मरी गया ते मानवीओ, जोतां केइ जनाररे. रटन. ॥ ४ ॥ जोतां जोतां चालवं जीव, मूकी तन धन सर्वरे; मायामां मस्तान थइ अरे, करे शुं फोगट गर्वरे. टन. ||५|| उपाधि संसारनी अहो, दावानल सम देखरे;
चित्त चंचलता करे घणी, प्रकट प्राणी पेखरे. रटन ॥ ६ ॥ प्रभुभजनमा चित्त राखी, दूर करो जंझाळरे: श्वासोश्वासे प्रभुभजनथी, होवे मंगलमालरे. रटन. ॥ ७ ॥ आतम सो परमातमा छे, साचो साहिब देवरे;
ज्ञान दर्शन चरण स्वामी, साची मुखकर सेवरे, रटन. ॥ ८ ॥ आत्मध्याने लीन धरने, तत्वामृत रस चाखरे;
बुद्धिसागर ज्ञान योगे, चेतन रीत ने राखरे. रटन. ॥ ९ ॥
For Private And Personal Use Only
रटन. ॥ ३ ॥
सत्य विद्यामहिमा.
भजन करले भजन करले - ए सग.
साच विद्या साच विद्या, चेतननी सुखकाररे;
आत्मविद्या दुःख हरती, ब्रह्म सुख करनाररे. साच. ॥ १ ॥ वाद्यविद्याभ्यासथी भाइ, चित्त होय न शान्तरे:
जगतनी जंझाळमांहि, मनई होवे भ्रान्तरे. आदेय वस्तु ज्ञानं ग्रहीने त्वरित आतंम ताररे; शुद्ध संवर प्राप्त करतां, आवे भवनो पाररे.
"
साच. ।। २ ।।
साच. ॥ ३ ॥
Page #96
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
द्रव्यने वली भाव भेदे, आश्रवनो परिहाररे; एक चेतन शुद्धरूपे, चेतना सुखकाररे. साच. ॥ ४ ॥ लक्ष्य लक्षण आतमानु, धरजे प्रेमे ध्यानरे; द्रव्य गुण पर्याय जाणी, शुद्ध पामो स्थानरे. साच. ॥ ५॥ शुद्ध चेतन ध्यावतां भाइ, सत्य सुख निर्धारहे; बुद्धिसागर ज्ञान योगे, सफल मनु अवताररे. साच. ॥६॥
सत्य जागृति प्रेरणा. - भजन करले भजन करले-एराग. जागरे जीव जागरे जीव, आयुष्य चाल्युं जायरे; अज्ञभावे उघवाथी, चेतन धन लुटायरे. जागरे. ॥१॥ अनन्त लक्ष्मी आत्मनी छे, घर तेनो उपयोगरे; बाह्य लक्ष्मी दुःखदायी, विषयो विषना रोगरे. जागरे.॥२॥ अनन्त गुणर्नु धाम आतम, तुं नहि बाह्य पदार्थ रे; अरूपी शाश्वत शुद्ध रूपी, चेतन तुं परमार्थ रे. जागरे. ॥३।। पञ्चधा जे ज्ञान भाख्यु, ते पण तुजमां समायरे; बुद्धिसागर आत्मध्याने, जोतां सर्व जणाय रे. जागरे ॥४॥
दिव्यशिक्षा.
भजन करले भजन करले-एराग. समज दीलमां समज दीलमां, धर्म कर्म एक साचर; आत्महीरो मूकीने भाइ, ग्रहो न पुद्गल काचरे. समज. ॥१॥ सत्य धन निज आत्मनुं छे, अवर म झंखो आलरे; चेतन विण सहु मोहबाजी, जुठी आल पंपालरे. समज. ॥२॥ देह काचा कुंभ ज़ेवी, यौवन पीपळ पानरे;
अथिर आयु जाणीने जीव, लावजे दील भानरे. समज. ॥३॥ रहारुं हारी पास जाणी, माया ममता वाररे;
For Private And Personal Use Only
Page #97
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
२४
फरी फरीने नहि मळे जीव, मानवनो अवताररे. समज || ४ || धर्म करतां धाड आवे, तोपण धर्म न छोडर:
बुद्धिसागर धर्म मित्र सम, कोई न जगमां जोडरे. समज. ५
स्वार्थमहिमा.
मजन करले भजन करले - एराग.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ठां सगपण दुनियामां, स्वारथना सह दासरे;
अबिर आ संसारमांहि, करवो शं विश्वासरे. ठां ॥। १ ।। माया ममता मोहना बहु, वायु सघळे वायरे;
दुःखी थाता प्राणियो अरे, भवमांहि भटकायरे. जूठां ॥२॥ जाणता पण भूलिया वळी, देखता पण अन्धरे; सप्त के वली अष्ट कर्मनो, समये बांधे बन्धरे. जूठां ॥ ३ ॥ व्हालां वैरी वैरी व्हालां, मित्र दुश्मन थायरे; सहोदर पण शत्रु थावे, मोहतणो महिमायरे. जूठां ॥ ४ ॥ क्रोधता पे पीडिया जीव, पामे बहु सन्तापरे;
हिंसा चोरी जूठथी वळी, बांधे बहुलां पापरे. जूठां ॥५॥ श्वासोश्वासे दुःख वादळ, वर्षे दुःखना मेघरे; स्वममां पण दुःखवादळ, वरसतुं बहु वेगरे. जुठां ॥ ६ ॥ शेठ शाणा रङ्ग राजा, महाजनने गुलतानरे;
दुःख दावानल लहे सहु, लहे न अमृत पानरे. जूठां ॥७॥ हाजीहा सह स्वार्थनी छे, स्वार्थ मारामाररे:
स्वास्थमा सपडायला जीव, पामे नहि भवपाररे. जठां ॥८॥ मायाना बांधेल प्राणी, भूली भमे संसाररे; बुद्धिसागर चलत पन्थे, गुरु तणो आधाररे. जूठां ॥ ९ ॥
For Private And Personal Use Only
Page #98
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
en
वीती वेळा पाळी नहि आवे.
भजन करले भजन करले- -ए राग.
वीती वेळा आवशे नहि, जीवलडा झट चेतरे,
जंघे उवण आलसु शुं, काळ झपाटो देतरे. वीती ॥ १ ॥ रात्री जावे दीवस जावे, व्यतीत वर्षो थायरे:
जाणे मोटो थाय न्हानो, चित्तथी नहि चेतायरे. वीती. ||२|| जेवां गगने वादळां छे, तेवां तन धन रूपरे;
जाण चित्तमां जागतां जीव, होत न भवभय धूपरे. वीती ॥ ३ ॥ बाप चाले मात चाले, वृद्ध युवा ने बाळ रे;
जन्म्या तेने मरण माथे, कबु न मूके काळरे. वीती ॥ ४ ॥ काल कर आज कीजे, कीजे न धर्मे वार रे;
प्रभु भजील्यो भावथी भाइ, होवे सफल अवताररे. वीती. ५ खूंची खटपटमा अरे ते, कीधो न धर्म लगारंर:
हजी समय छे धर्म माटे, चेतन मनमां धाररे. वीती ॥ ६ ॥ समज चेतन सानमां अब, जीवन धर्मे गाळरे;
बुद्धिसागर धर्मथी जग, होवे मंगल मालरे. बीती ॥ ७ ॥ शब्दसृष्टि विद्वत्ता.
भजन करल भजन करले - ए राग.
शब्द सृष्टि बहु बनी जग, भाषानो नहीं पाररे;
चेतन हीरो चूकीने भाइ, आयु न एळे हाररे. शब्द ।। १ ।। बाह्य विद्या वासनाथी, होवत तत्वे भूलरे; मायानी जंझाळथी सहु, होवत अन्ते धूळरे. शब्द. ।। २ ।। चतुर तन चेतीले चित्त, अनेकान्त मत धाररे; उपादेयज आतमा एक, जाणीने नहीं हाररे. शब्द . ।। ३ ।। शुद्ध चेतन रूप हारु, अंसरूपप्रदेशी भूपर भूली वाल्हम भान व्हारु, शुं पडे भक्कूपरे.
For Private And Personal Use Only
शब्द. ॥। ४ ॥
Page #99
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जगतनी जंझाळनो जीव, कदी न आवे पाररे; ज्ञानरूप एक आतमा छे, त्वरित तेने ताररे. शब्द. ॥५॥ भणतरमांहि भूल थावे, भूले आतम भानरे; उपाधिने दूर त्यागी, जीवलडा कर ज्ञानरे. शब्द. ॥ ६॥ बाहिर अध्यासो त्यजीने, चेतनमां चित्त वाळरे; स्थिरोपयोगे आत्मध्याने, होवे मंगल मालरे. शब्द. ॥७॥ ज्ञेय ने वळी ज्ञानरूपे, चेतनसुख भरपूररे बुद्धिसागर आतमध्याने, वाजे मङ्गल तूररे. शब्द. ।। ८ ॥
चेत चेतन. भजन करले भजन करले ए राग. चेत चेतन चेत चेतन, आयु चाल्युं जायरे; भूलीने भगवान् माणी, मोहे शुं मकलायरे. चेत. ॥ १ ।। लक्ष्मी सत्ता कुळ मदी, फुले फोगट भव्यरे; स्वम सरखा भाव जगना, जाणो परिहर्तव्यरे. चेत. ॥ २ ॥ वासोश्वासे जाय आयु, हजी जरा तो चेतरे; ज्ञानदर्शन रूद्धि हारी, धारिले शिव हेतरे. चेत. ॥ ३ ॥ जाति के नहि ज्ञाति त्हारी, देही पण नहि देहरे; अनन्तशक्ति साहिबा तुं, अनन्त गुणगण गेहरे. चेत. ॥४॥ नर नारी के नहि नपुंसक, शरीरव्यापी तत्त्वरे; अप्तख्यप्रदेशी आतमा तुं, अरूपि शाश्वत सत्वरे. चेत. ॥५॥ सत्य तु छे सत्य तुं छे, आनन्दनो आधाररे; अड स्वभावे नहि कदा तुं, जागी आतम ताररे. चेतः ॥ ६॥ शुरो थइने मुक्तिवाटे, चेतन चटपट बालरे; बुद्धिसागर चलत पन्थे, तजजे मायाझाळरे. चेत. ॥ ७ ॥
For Private And Personal Use Only
Page #100
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
62
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
समयनो उपयोग.
भजन करले भजन करले - ए राग.
समय पामी समय पामी, चेतन चित्तमां जागरे;
3
शुद्धभावे रुद्धि त्हारी कर तुं तेनो रागरे समय. ॥ १ ॥ बाह्यवृत्ति त्यागीने झट, चंचल योग निवाररे;
असंख्य देशी तीर्थ व्हा, करजे शिघ्रोद्धाररे. समय. ॥ २ ॥ नित्यानित्य स्वभावथी तूं, अनेकान्त मत रूपरे;
1
निश्चयश्रीतुं शुद्ध चेतन शाश्वत ज्ञान स्वरूपरे. समय. ॥३॥ ध्यान ध्याता ध्येय रूपे, चेतन सुखकर एकरे;
हेयोपादेय ज्ञेय ज्ञाने, करजे सत्य विवेकरे. समयः ॥ ४ ॥ बाहिर अन्तर परमरूपे, आतम तं निर्धाररे;
बुद्धिसागर आत्मध्याने, होवे भवनो पाररे. समय. ॥ १ ॥
बाह्यममतानो त्याग.
भजन करले भजन करले - ए राग.
चेत झटपट चेत झटपट, जीवलडा झट चेतरे;
भान भुले शुं अरे जीव, काल झपाटां देतरे. चेत. ॥ १ ॥ जेनी हाके धरणी धजे, तेवा चाल्या जायरे;
अमर नहि कोइ दुनियामां, मोहे शुं मकलायरे. चेत. ॥ २ ॥ पुण्य योगे पामियों तें मानवभव सुखकाररे;
हंस्तु चढियो हीरो आतम, हारिश नहि निर्धाररे. चेत ॥ ३ ॥ चूकिश नहिरे चतुर चेतन, अन्तर करजे शोधरे; बुद्धिसागर आत्मध्याने प्रगटे अनुभव वोधरे. चेत. ॥ ४ ॥
For Private And Personal Use Only
Page #101
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
सत्यधर्मः
भजन करले भजन करले - ए राग.
साच जगमांसाच जगमां, धर्म जिनवर साचरे:
उपशमादि धर्महेतु, ते विण आश्रव काचरे. साच. ॥ १ ॥ धर्म सत्यज आत्मनो छे, चिदानन्द भरपूररे; ज्ञानदर्शन चरणयोगे, साधे शिवपद शूररे. साच. ॥ २ ॥ चेतन जडनी भिन्नताथी, प्रगटे सम्यग ज्ञानरे; साध्यतत्त्वे रमणताथी, आवे निजपद भानरे साच. ॥ ३ ॥ वीर्यस्फुरणा फोरवीने, साधे शिवपद योगरे;
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
निज रमणता योगथी त्यां, भोगवे सुख भोगरे. साच. || ४ || साध्यानी सापेक्षताए, अनेकान्त नयवादरे;
जाणी आतम अनुभवीने चाख शिवसुखस्वादरे. साच. ५ अनुभवीए अनुभव्युं ए, चेतनपद सुखकाररे; बुद्धिसागर आत्मध्याने, होवे जयजयकाररे. साच. ॥ ६ ॥
गुरुभक्तस्थितिः
भजन करले भजन करले - ए राग०
सद्गुरुना चरणसेवक, तत्ववेत्ता थाय रे
आत्ममुखनीवानगीथी, अन्तरमां हरखायरे. सद्गुरु ॥ १ ॥ शाताशाता वेदनीथी, शाश्वत सुख ले भिन्नरे;
स्थिरोपयोग भक्त भावे, अनुभवे सुखलीनरे. सदगुरु ॥२॥ ज्ञानगङ्गा स्नान करीने, दूरकर भवतापरे;
असंख्य प्रदेश तीर्थ पोते, पूजक पण छे आपरे. सद्गुरु ॥३॥ स्वामी सेवक सेव्य चेतन, शुद्धरूपाधाररे;
बुद्धिसागर आतमा एक, सारमां जग साररे. सद्गुरुः ||४||
For Private And Personal Use Only
Page #102
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
८९
वीरस्तवन.
मान मायाना करनारारे-ए राग.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रभु वीर जिनेश्वर प्यारारे,
मुज प्राणतणाछो आधारा;
निर्धारा;
सिद्ध सनातन निर्मलज्योति, शाश्वत सुख क्षायिकभावे गुणवर्या सहु, जिनवर जगजयकारारे. मभु. ॥१॥
सुखकर दुःखहर चरम जिनेश्वर, वसियाछो दिलमांहि म्हारा; बुद्धिसागर विभु वीरना नामथी, होवे सफल अवतारारे.
For Private And Personal Use Only
प्रभु. ॥२॥
अथ श्री सिद्धाचल दुहा
रत्नत्रयी धारक प्रभु, ऋषभदेव अरिहंत; नमित सुरासुर इंदचंद, भव भंजन भगवंत. जयजय आदि जिणंद श्री, केवल कमलानाथ; सिद्धाचल गिरिमंडणो, सेवक करो सनाथ. पूर्व नवाणु वार ज्यां, आव्या ऋषभ जिणंद; ते सिद्धाचल बंदीए, कापे भवभयफेद. प्रायः ए गिरि शाश्वतो, महिमा अपरंपार; सम्यग् दृष्टि जीवने, निमित्त कारण धार. चार हत्यारा पातकी, ते पण ए गीरि जाय; भावे जिनवर भेटतां, मुक्तिवधुमुख पाय. भाव दुभेदथी, सेवो तिरथ एहः उपादान निमित्त योग, समर्याथी शिवगेह ॥६॥ कर्मरोग टाळवा, उत्तम छे आधार;
१२.
॥ १ ॥
॥ २ ॥
|| 3 ||
|| 8 ||
॥ ५ ॥
Page #103
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्री सिद्धाचल समरीए, श्वासमहिं सोवार. ॥७॥ अजरामर पद पामवा, लही मनुष्य अवतार; श्री सिद्धाचल समरीए, श्वासमांहि सोवार. !! ८ ॥ एसम तीरथ को नहि, भवजल तारणहार; श्री सिद्धाचल समरीए, श्वासमांहि सोवार. ॥९॥ दर्शन स्पर्शन योगथी, निर्मल पद निरधार; श्री सिद्धाचल समरीए श्वासमांहि सोवार. ॥१०॥ प्रेमभक्ति बहु मानथी, हठ कदाग्रह त्याग; श्री सिद्धाचल समरीए जो होवे महाभाग्य. ॥ ११ ॥ तीर्थनायक ए गिरी, अवर न जगमां कोय; सेवे शाश्वत संपदा, अजरामर पद होय. ॥१२॥ भवजंतुने तारवा, यानपात्र सम जाण; ते शत्रुञ्जय दिए, पामी जिनवर आण. ॥१३॥ अकलंक शक्ति अनेक ए, विश्वानंद कथाय; श्री शत्रुञ्जय प्रणमीए, भवभय पातिक जाय. ॥ १४ ॥ मेरु महीधर नामथी, समरो चित्त मदाय; परमातमपद पामवा, उत्तम एह उपाय. ॥१५॥ पुंडरीकने गणधर जीहां, पाम्या शाश्वत सिद्ध श्री पुंडरगिरि प्रणमीए, प्रगटे आतम रिद्ध. ॥१६ ।। वीतराग पद पामवा, करीए भावे सेव; परित मंडण नामथी, टळे अनादि कुटेव. ॥ १७ ।। राग द्वेष तो दूर टळे, करतां गिरि गुण गान; कर्म छंडण जगजयो, ध्यातां शाश्वत स्थान. ॥१८॥ सुरकंत गिरिध्यानथी, सकळ फळे मन आश; श्री शत्रुजय वंदीए, प्रगटे धर्मप्रकाश. ॥१९॥
For Private And Personal Use Only
Page #104
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ २५ ॥
इंद्र चंद्र गुण गावता, ए गिरितणा विशाल; आनंदकंद मुनामथी, स्मरीए समय त्रिकाल. ॥२०॥ पशुपंखी पण भावथी, पाम्या शुभगति ठाम; ते सिद्धाचल वंदीर, जेनुं निर्मल नाम. ॥२१॥ प्रगटे शुद्ध स्वभावता, भविजनने तत्काल; ते सिद्धाचळ वंदीए, पूर्णानंद दयाल. ॥२२॥ सुरतरु मुरमणि कामगौ, तेथी अधिक प्रभाव; ते सिद्धाचळ वंदीए, भवजलमां जेम नाव. ॥२३॥ योगिश्वर दर्शन करी, हुवा समाधि लीन; ते सिद्धाचळ वंदीए, मन सुखमां गमगीन. ॥२४॥ दर्शन स्पर्शन योगथी, लब्धी घणी प्रगटाय; ते सिद्धाचल वंदीए, पुरव पुण्यपसाय. शत्रुञ्जयी नदी न्हाईने, निर्मल कीजे गात्र; श्री तीर्थेश्वर पूजीए, कर्म न रहे तल मात्र. ॥२६॥ वैरी व्याधि विरोध सहु, दर्शनथी उपशान्त; श्री तिर्थेश्वर पूजीए, होवे भवभय अंत. ॥२७॥ सिद्धशिला ज्यां शोभती, मुनिवर अनशन क्षेत्र; ते तीर्थेश्वर बंदीए, लहीए निर्मल नेत्र. ॥२८॥ संयम धारी साधुधी, ए तीरथ स्पर्शाया ते तिर्थेश्वर वंदीए, निर्मल मनहुँ थाय. ॥२९ ।। कुमति कौशिक जे जना, आवे नहीं जस पास; भविजन देखी तेहने, पामे मन उल्लास. ॥३० ।। भगिनी भोक्ता नृपति, चंद्रशेखर राजान; ते तीर्थेश्वर सेवतो, पाम्यो अविचल ठाण. ॥३१॥ उत्तम जन ज्यां संचरे, नामे जे वीतराग;
For Private And Personal Use Only
Page #105
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ते तीर्थेश्वर वंदीए, आवे नहि ज्यां काग. ॥ ३२ ।। धर्मकंद ए नामथी, जगमांहि विख्यात; ते तीर्थेश्वर बंदीए, रूडा जस अवदात. ॥ ३३ ॥ अनंत गिरिगुण गावतां, गुणगण घट प्रगटाय; तेह यशोधर बंदीए, रूडो अवसर पाय. ॥३४॥ मुक्तिराज शाश्वत गिरि, वर्ते काल अनादि; विनय विवेके वंदतां, टळशे सर्व उपाधि. ॥ ३५ ॥ विजयभद्र नामे भलो, सार्थक नाम सुहायः । ते सिद्धाचल बंदीए, महिमा नित्य मुहाय. ॥३६ ॥ गातां मुभद्र गिरीशने, गिरीश पद घट आय; तेह सिद्धाचल वंदीए, मनुष्यजन्म भावि पाय. ॥ ३७ ॥ मलरहित जस ध्यानथी, प्राणी पोते थाय; अमल गिरिगुण गावतां, उपादान पद पाय. ॥३८॥ जयंत गिरि जयने करे, सेवंतां निशदीन; भविजन मन मुखकर सदा, आत्मस्वभावे पीन. ॥३९॥ कंचन गिरिने निहाळीए, लही गुरुगमथी ज्ञान; वंदो सेवो भावथी, आवे निजपद भान. ॥ ४० ॥ भावे भक्ति भरे करी, चित्त एक स्थिर ठामः । सिद्ध क्षेत्र संभाळीने, भावे करुं प्रगाम. ॥४१॥ आतम परमातम लही, कर्मनाशने काज; महागिरिने बंदीए, भवांभोधिमां झाझ. ॥ ४२ ॥ अमरकंदने ओळखे, आतम अमर लहाय; भावे भवियण भेटीए, जन्म जन्म दुःख जाय. ॥ ४३ ॥ धेर झेर विकथा त्यजी, शमभावे भवि जेह; श्री सिद्धाचल वंदशे, ते थाशे शिवगेह.. ॥ ४४ ॥
For Private And Personal Use Only
Page #106
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
त्यजी प्रभुता वाह्यनी, आदश्विर जिनआण; धारी गिरि र वंदीए, वंदन होय प्रमाण. ॥ ४५ ॥ माया तृष्णा परिहरी, शरण ग्रही जिन आण; श्री सिद्धाचल वंदीए, प्राप्ति पद निर्वाण. ॥४६ ।। तन मन धन ममता त्यजी, भज समता घटमांय; भोव गिरिने बंदतां, लहीए नहि दुःख क्यांय. ॥ ४७ ॥ पुण्यराशि शुभ भावथी, मणि कंचन गिरिराय; शुद्ध भावथी सेवीए, अनेकांत मत पाय. ॥ ४८ ।। तारक वारक चउगति, अचल महोदय नाम: ते सिद्धाचल वंदीए, ठरीए निजपद ठाम. ॥ ४९ ॥ जग जयवंतु तीर्थ ए, सहु तीर्थ शिरदार; भव्यो भाळे भावी, पामे भवजल पार. ॥१०॥ शांत स्वभावे निर्मला, मुनिवर ए गिरि पाय%; अलख अमरपद पामीया, शुद्ध परिणति ध्याय. ॥५१॥ प्रदेश शत्रु जयतणा, नयनानंद करत; विश्वपूज्य गिरि वंदीए, लहीए भवजल अंत. ॥५२॥ राम भरत ज्यां आविया, महिमा सुणी अपार; गिरिसेवन गिरूआ थइ, लया सद्गति निरधार. ५३ पांडव प्रमुखा ए गिरि, आव्या मन उल्लास; भावे गिरिवर सेवतां, मुक्तिपुरीमां वास. ॥५४॥ सर्वज्ञ पद साधीयुं, संब प्रद्युम्नकुमार; ते सिद्धाचल वंदीए, नाशे कर्मविकार. ॥५५॥ संप्रति काळे आवीया, विशे जिनराय; तेवीश विषय शमाववा, भजीए गिरिवर राय. ।। ५६ ॥ जिनाज्ञा जिनतत्त्वनी, करणी कहे निष्काम;
For Private And Personal Use Only
Page #107
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
९४
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
11:40 11
।। ६१ ।।
भव्य एवा सेवीने, पामे अविचल धाम. दढ शक्ति एह नामथी, भजता भवियण कोय; तेह सिद्धाचल बंदीए, समकित निर्मल होय. ॥ ५८ ॥ अचल ज्योतिना नामथी, शेवो शुद्ध सदाय, तेह सिद्धाचल बंदीए, भवभय भ्रांति जाय. सार्थक सहजानंद ए, नामे गिरिवर होय; सेवो ध्यावो भविजना, भवपातिकतति खोय ॥ ६० ॥ काल अनादि भटकियो, तोय न आव्यो अंतः शत्रुंजय रुषभ प्रभु, तार तार भगवंत. एकेंद्रिय बेरेंद्रिमां दर्शन कबहु न थायः तेरेंद्र चौरेंद्रियां, नजरे नहीं जणाय. प्रबल पुण्योदय थकी, लही मानव भवसार; श्री आदीश्वर भेटीया, तार तार मुज तीरे ॥ ६३ ॥ शिवशंकर गिरि देखीने, पामो मन आनंदः शुद्ध स्वरूपानंदता, जस ध्याने उल्लसंत. जग तारे एह हेतुथी, जगतारण कहेवाय; ते सिद्धाचल बंदीए, निर्मल आत्म सुहाय गुणानंत प्रगटे मुदा, जस ध्याने निजमांय; गुणकंद गिरिवर तणी, सेवा शितल छांय. आर्त ध्याननी नष्टता, गिरिवर ध्याने थाय; रौद्रध्यानी पण सिद्धता, शत्रुंजय महिमाय ॥ ६७ ॥ पुंडरीक गणधरमुखा, आव्या विमल गिरिंद; ते विमलाचल बंदीए, प्रणमतसज्जनवृन्द. सेवे शिव सुख संपदा, व्यावे ध्येय पमाय; नमुं नमुं हुं तीर्थने, मुक्तानंद कथाय.
।। ६६ ।।
॥ ६८ ॥
For Private And Personal Use Only
॥ ५९ ॥
॥ ६२ ॥
॥ ६४ ॥
॥ ६५ ॥
॥ ६९ ॥
Page #108
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
निरुपाधिपद एहथी, पाभे कहे जिणंद; मतिमंत महिमा स्तवे, शुं जाणे मतिमंद. ॥ ७ ॥ अनेकार्थ पदार्थ तो, सात नये ग्रहवायः व्यवहारे निमित्तता, निश्चयथी निजमांय. ॥७१ ॥ परस्पर सापेक्षथी, वर्ते नयो सदाय; नयोथकी शब्दार्थने, कहेता श्री जिनराय. ॥ ७२ ॥ अनेकांत श्रद्धा ग्रही, विमलेश्वर गिरिराय; वंदो भावे भविजना, कर्म मर्म दूर जाय. ॥७३॥ निश्चल आत्मस्वरूपनी, सिद्धि जेथी थाय; ते सिद्धाचल वंदीए, संवर गुण प्रगटाय. ॥७४ ॥ द्रव्य भावथी वंदतां, आत्म समाधि पाय; द्रव्यभाव समज्या विना, गिरिगुण नहि गवाय.॥ ७५ ॥ गिरिवर प्रति पगलं भरे, ज्ञानपणे जे कोइ; निर्मल आत्म करे तदा, पापपंक सब धोइ. ॥७६ ।। बाद्यांतरथी शुद्ध थइ, राखे स्थिरोपयोग; गिरि चढतां समता वरे, पामे निजगुण भोग. ॥ ७७ ।। आलोयण ले पापर्नु, सुणी गुरुमुख उपदेशः । सिद्धाचल गिरि सेवीने, पामे अविवल देश. ॥७८ ॥
आलोचे नहि पापने, मूके न माया शाळ; सिद्धाचल तस शुं करे, जो परपरिणति चाल. ॥ ७९ ॥ कर्या कर्म आलोचना, श्रद्धाथी करनार; पामे ते परमार्थने, जिन आज्ञा शिर धार. ॥८०॥ क्रोध न करीए कोइ शुं, धरी मनमां विश्वास; श्री सिद्धाचल वंए, त्यागी पुद्गल आश. ॥८१ ।। विषयोन्मादि चित्तने, वश करवाने हेत;
For Private And Personal Use Only
Page #109
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तप जप यम पूजा कही, मुक्ति वधू संकेत. ॥ ८२ ।। यात्रा नवाणुं जे करे, समजी तत्त्वस्वरूप; आश्रव मार्गोच्छेदतां, लहे न भवभय धूप. ॥ ८३ ॥ विधिपूर्वक पूजन करे, नासे कर्म कलंक; सहेजानंदे विचरतां, को राजा कोण रंक. ॥८४ ॥ अजरामर पद झट लहे, करता निर्मळ सेवः क्षायिक भावे चेतना, चिदानंद गुणमेव. ॥ ८५ ॥ आज सफल दिन माहरो, सफल मनुष्य अवतार; श्री सिद्धाचल देखतां, आनंद हर्ष अपार. ॥८६ ॥ अमृत फळने आपवा, कल्पवृक्ष सम एह; वंदो पूजो भविजना, थाव निर्मल देह. ॥८७ ॥ कामधेनु सम ए गिरि, वंछित फल दातार; वंदो पूजो भविजना, अक्षय पद करनार. ॥८८ ॥ कामकुंभ सम एह गिरि, पंचम गतिने देत; वंदो पूजो भविजना, श्री शत्रुजय क्षेत्र. ॥८९ ॥ फरी फरीने नहीं मळे, मानव भवनो देह; वंदो पूजो भविजना, सिद्धाचल गिरि एह. ॥९० ॥ मनुष्य जन्म पामी भवि, भेटे नहि गिरि एह; मार्नु मात उदर विषे, रहीयो प्राणी तेह. ॥९१ ॥ शशी सूर्यवत् एह गिरि, करतुं भावोद्योत; वंदो पूजो भविजना, प्रगटे निर्मल ज्योत. ॥१२॥ गुरुता मेरु तणी परे, तेनी ज..मां थाय; जे सिद्धाचल वंदता, निर्मल श्रद्धा थाय. ॥९३ ॥ ए सम जग कोनो नहि. जोतां महा उपकार; ते सिद्धाचल वंदीए होवे जय जयकार. ॥९४ ॥
For Private And Personal Use Only
Page #110
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मोहमायागिरि भेदवा, पविसम तस अवदात; ते सिद्धाचल वंदीए, करीए निर्मल यात्र. वर्णन वाणीथी कर्यु, कदीय न पूरु थाय; ते सिद्धाचल बंदीए, महिमानंत कथाय. ॥ ९६॥ अधुना पंचमकाळमां, वर्ते तस महिमाय; ते सिद्धाचल वंदीए, भव भव भावट जाय. ॥ ९७ ।। भावे यात्रा जे करे, पामे मुक्ति तेह; ते सिद्धाचल बंदीए, कर्म रहे नहि रेह. ॥९८ ।। भवजलधितट पामवा, उत्तम एहज झाझ; ते सिद्धाचल वंदीए, सिद्धे सघळां काज. ॥९९ ॥ विमलेश्वर सेवन थकी, उपने सिद्धि उदार; । ते सिद्धाचल वंदीए, पंचमगति सुखकार. || १०० ।। श्री चिद्धाचल स्पर्शना, करीने चरम जिनेश; योजनगामिनी वाणीथी, दीधो छे उपदेश. || १०१ ।। कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा, दिन करशे जे यात्र; अल्पकाळमां ते भवि, थाशे सद्गतिपात्र. ॥ १०२ ॥ तीर्थेश्वर दर्शन थकी, निर्मल दृष्टि होय; । ते सिद्धाचल वंदीए, अवर नहीं जग कोय. ।। १०३ ।। अंतर शुद्धि बाह्यथी, निमित्त कारण भाळ; अंतर तत्त्व विवर्णना, करशे समजु ख्याल. ॥ १०४ ॥ द्रव्य दुभेदे भावथी, सम्यग ग्रही अवबोध; ते सिद्धाचल वंदीए, करी चंचलता रोध. ॥ १०५ ।। मतिमंदनी वर्णना, तेतो बाळक चाल; बुद्धिसागर वंदतां, पामे मंगल माल. ॥ १०६ ।। संवत ओगणीश उपरे, बासठनी शुभ शाल;
For Private And Personal Use Only
Page #111
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा, स्तवना पूर्ण रसाळ. ॥ १०७ ॥ फरी चोमासु शांतिथी, विनापुरमा खास; सिहाचल गिरि वंदना, करतां तत्त्व प्रकाश. ॥ १०८ ।।
आत्मस्तुति. अंतर्दृष्टि साध्यता, साधक शुद्ध कथाय; अंत मुखोपयोगता, साधन सत्य सघाय. ॥ १ ॥ उपशम भावे साधना, क्षयोपशमवा जोयः क्षायिक भावे साधना, सत्य चरण अवलोय. ।।२।। गुणस्थानक आरोहवा, समजो सत्य उपाय; अंतर्दृत्ति आत्ममां, सत्य चरण मुखदाय. ॥३॥ क्षयोपशम ज्ञाने सदा, ध्यावो अंतर्देव; सेवा अंतर्देवनी, आपे शिवमुखमेवः मन चंचलता वारीने, ध्यावो अंतर्धर्मः शुद्ध स्वरूपाकारमां, रहेतां नासे कर्म. अंतर्मुख वृत्ति कही, ध्यावो चिन्मय राय; अडग स्थिरोपयोगथी, आनंदाब्धि मुहाय. |॥ ६ ॥ सत्य शांतता त्यां जगे, अचल स्वभावी जेह; शिवमुग्वानुभव लहे, वर्ते जोपण देह. ॥७॥ नैगमनय दृष्टि करी, शुद्ध कर एवंभूत; एवंभूत दृष्टि करी, विशुद्ध नैगम युक्त. ॥८॥ संवहनय दृष्टि करी, समभिष्टता शुद्ध; समभिरूढ दृष्टि करी, शुद्ध रूजुनय बुद्ध. ॥ ९ ॥ रूजुमूत्र दृष्टि करी, शब्दनये आरोह; शब्दनये आरोहीने, आश्रवनो कर रोह. ॥ १० ॥
For Private And Personal Use Only
Page #112
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शब्दनये दृष्टि करी, विशुद्ध कर व्यवहार; व्यवहारे शुद्धि करी, समरुढता धार. ॥११॥ समाभिरुढ प्राप्ति करी, एवंभूतता पाय: शद्ध पर्याये आत्मनी, सिद्ध बुद्धता थाय. ।। १२ ।। अशुद्ध पयाय करी, आत्माऽशुद्ध, कहायः रागी द्वेपी आतमा, काल अनादि न्याय. ॥ १३ ॥ वर्ते युं भवचक्रमां, भूली निजपद भान; सद्गुरु संगे सहजमां, प्रगटयुं शुध्धु ज्ञान. ॥ १४ ॥ भेद ज्ञाननी दृष्टिथी, कीधो निजपर भेद; निजपयाय विशुद्धिमां, कदा न वर्ते खेद. ॥ १५ ॥ निजपद अभय विलोकतां, नाठो भय तो दूर;
आत्मिक अनुभव जागतां, वर्ते आनंदपूर. ॥ १६॥ क्षायिक नवलब्धि जगे, करतां निजपद ध्यान; कयु अनंता ज्ञानीए, पाम्या निर्मल स्थान. || १७| सार्थकता छ ज्ञाननी, ध्यान सदा मुखकार; सत्य सत्य जिनवाणीनु, सार सारमा सार. ॥१८॥ आत्मिक ज्ञान विना कदी, ध्यान कहो क्युं थाय; ध्यान विना मुक्ति नही, कथन करे जिनराय.॥१९॥ जाण्यो आतम एक तो, जाण्या भाव अनेक सदग्रंथे भाख्यं इस्युं, धरजो आतम टेक. ॥२०॥ भूले सहु संसार तो, खुले अंतर्धर्म; उत्कट ध्यानदशा थकी, होव शाश्वत शर्मः ॥ २१ ॥ सोऽहं सोऽहं समरतां, सोऽहंमय हो जाय; परम महोदय पद ग्रही, परम ब्रह्मता पाय. ॥२२ ।। निजोपयोगे धर्म छे, सत्य कथे सौ ग्रंथ; कष्ट क्रिया करतां कदी, लहो न मुक्तिपंथ. ॥२३॥
For Private And Personal Use Only
Page #113
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१००
वर्ते निजपद शून्यता, चाले छे व्यवहारः
॥ २६ ॥
कोटि प्रयत्ने पामरो, पामे नहि भवपार. धाम धूममां धर्मने, माने मृढ सदीव; धर्म मर्म समज्या विना, क्लेश लहे छे जीव ॥ २५ ॥ मुंड मुंडावे शुं थयुं, थयुं न मनडुं मुंड; मलीन मन वर्ते तदा, जाणो जेवं भूंड. केश लोचथी शुं धयुं, कर्यो न अंतर्लोच; बाह्य शौचथी शुं थयुं, ग्रह्यो न अंतशौच ॥ २७ ॥ वस्त्र त्यागथी शुं थयुं, नन फरे छे ढोर अंतर्मूर्च्छा त्यागतो, त्याग औरको ओर. ॥ २८ ॥ प्रतिदेहमां देव छे, तिरोभावथी जाण;
11 28 11
आविर्भाव जगावना, कर तुं तेनुं ध्यान. अनुभव पच्चिशी रची, इंद्रोडा दिन एक; विचरी विविध भावथी, समजी सत्य विवेक. ||३०|| संवत ओगणीश वासठे, कृष्णपक्ष वैशाखः
For Private And Personal Use Only
॥ २९ ॥
सातम दीन शुभ भावधी करतां गुणगण राश. ॥ ३१ ॥ पार्श्वनाथ संखेश्वरा, करजो शासन सहायः बुद्धिसागर प्रेमी, ज्ञाने आतम गाय.
॥ ३२ ॥
कलिकालमहिमा अने कृत्योपदेश.
रुचिराचं.
आजकालनी केळवणीमां, कुश्रद्धानी भेळवणी, परदेशी लोकोना चाळा, नास्तिक बुद्धि मेळवणी; धर्म वरंधर धर्म गुरुना, वचनोनी ज्यां फेरवणी, स्वच्छंद मतथी छोकरवादी, उद्धत्ताई फेळवणी.
॥१॥
Page #114
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
કર
मनमां आवे ते माने, उत्शृंखलता दील वणी; पापपुंजमां खुंच्या पामर, सद्गुरु शिर्षे को न धणी, मनमां म्हाले मूरख प्राणी, उद्भट वेषे वणी उणी; समजण देतां नाक चढावे, छंछेडयां जिम होय फणी. ॥ २ ॥ गाडी वाडीमां मस्ताना, पाप कर्ममां चित्त धरे; हरतां फरतां बोले जूटुं, पैसा माठे धर्म करे, पापकर्म व्यापारो बधिया, पाखंडी पूजाय अरे; नवीन मत जुनाने निन्दे, भवभययी विरला तो डरे ॥३॥ कलिकालमां कौतुक कोटि, जोतां जोतां नजर पडे;
थोडा पापी पुष्कळ, वात वातमां बहु लडे, राजन साजन महाजन मोटा, वाळे गोटा व्यवहारे; वादीकै बहु के छे, अन्यजनोने किम तारे. पाखंडी जागे छे पुष्कळ, समजावीने जुठ अरे; साधुजननी निन्दा करता, भवभ्रमणामां बहु फेरे, सद्गुरु साधु आण न माने, पाखंडीना दास बने; पाखंडीनी पूजा देखी, दूर करे साचा हकने. ॥ ५ ॥ असल रीतम कोइक रहेवे, भोळा तो भरमाय खरे; नित्यनेपनो त्याग करीने, डां कामो केइ करे, स्वारथना प्रयों के कपटी, नीचा कृत्ये पेट भरे: पापी धंधा गया पापे, धर्मवृत्तिने अल्प वरे. श्रद्धा भक्ति दिन दिन घटती, भावी टाळयुं नहि टळे, मिथ्या मत वादे घेर्या जन, दुर्गतिमां जइ भळे न्यायी धर्मी नृपति वीरला, स्वारथमां तो घणा शळे, नामो मोटां दर्शन खोटां, जन एवा तो बहू मळे. आजकालनी केळवणीमां, धार्मिक श्रद्धा भेळवणी,
॥ ६ ॥
For Private And Personal Use Only
॥ ४ ॥
|| 6 ||
Page #115
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नव तत्वादिक श्रद्धा ज्ञाने, कुश्रद्धानी फेरवणी; सद्गुरु संगत करतां सहेजे, समकित श्रद्धा होय घणी, ते माटे श्रद्धालु लोको, आदरजो गुरु स्पर्शमणि. ॥८॥ असद्गुरुनी संगत थातां, सुश्रद्धाथी नहीं फरो, सर्वोत्तम सद्गुरु छे नौका, पामी पाणी सहेज तरो; जल्दी खटपट लटपट त्यागी, चेतन हीरो हाथ धरो, ज्ञान क्रिया बेथी छे मुक्ति, जिन वाक्यामृत पान करो.॥९॥ कलिकालमां भक्ति मोटी, देव गुरुनी साचवजो, षड् द्रव्योनुं ज्ञान करीने, मुक्तिपुरी सन्मुख थनो; कलिकालनां कौतुक देखी, धर्म क्रियाने नहीं त्यजो, जगमा सर्वोत्तम जिन दर्शन, अन्तरंग बाहिरंग भजो. ॥१०|| परोपकारे मनटुं धर, जूठ वेण नहि उच्चरवां, धर्म करतां धाड पडे तो, पाछां पगलां नहि भरवां; धनवंता पापि जन देखी, पाप कर्म नहि आचर, पापे जय धर्मे क्षय रभसा, वेण कदा नहि उच्चरवं. ॥ ११ ॥ वात वातमा लडी न पडवू, कपट कळाने परिहरवी, धर्मी जनने स्हाय करीने, सद्भक्ति दीलमां वरवी; परनी निन्दा कदी न करवी, वृद्ध वाक्यने अनुसरवं. मोटा जननुं मानन करवू, विना प्रयोजन नहि फरवं. ॥१२॥ शत्रु मित्रमा समान दृष्टि, धर्म कार्यमां यन करो, ज्ञान ध्यानमा दिवस गाळो, मुक्तिपुरीनो मार्ग खरो; आतम ते परमातम साचो, अनन्त शक्ति प्रगट करो, बुद्धिसागर अवसर पामी, सिद्ध सनातन सत्य वरो. ॥१३॥
For Private And Personal Use Only
Page #116
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वचनामृत दुहा. अर्ह अहं समरतां, लहीए भवनो पार; सत्य देव अरिहंत छे, तेनो मुज आधार. ॥ १ ॥ सूनां खातां बेसतां, चालतां अरिहंत; जे भाव प्राणी समरशे, थाशे शर्म अनन्त. ॥ २ ।। अरिहन्त महामन्त्र छे, समजो नर ने नार; मङ्गल मोठं जाणिए, होवे जय जयकार. मनुष्यभव पामी भवी, बे करवानां काम; देवानो टुकडो भलो, जएवं आतमराम. ॥ ४ ॥ बुद्धिसागर ज्ञानथी, बे वातो दिल धार; दया धर्म हृदये धरि, जपवो श्री नवकार. बुद्धिसागर वात दोय, समजी घटमां धारः दया धर्मनी सेवना, करवो पर उपकार. मुसाफर तुहि जगतमां, दान धर्म कर भाइ; आंख मिचाए कल्पना, जूठी बाह्य सगाई. ॥ ७ ॥ आतम ते परमातमा, घट घट रह्यो समाइः बुद्धिसागर प्रेमथी कुंची गुरुए बताइ. करवानुं बहु काम छे, पामी मनु अवतार; मोहे मुंझी शुं मरे, चेती आतम तार. ज्ञान विण जीव अन्ध छे, सान विना ते ढोर; दान विना ते टुंट छे, विण उपकारे घोर. ॥१०॥ देव गुरु नहि सेवीआ, कर्यो नहि उपकारः । जिनवर जाप कर्यो नहि, फोगट तस अवतार. ॥ ११ ॥ भक्त सन्त सन्तापिया, दीधां दीनने दुःख; दान धर्म समज्यो नहि, लजवी जननीकूख. ॥ १२ ॥
For Private And Personal Use Only
Page #117
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१०४
गुरु निन्दा बहु पातकी, गुरु निन्दा बहु पाप; गुरु निन्दक मुख देखतां, अशुभ दिन सन्ताप. ॥ १३ ॥ दया धर्म जगमां वडो, दया धर्म मुखकार; दया नहि त्यां धर्म नहि, समजो नर ने नार. ॥ १४ ॥ बुद्धिसागर ज्ञानथी, तत्त्व हृदयमा धार; आतम सरखा जीव सहु, समजी कोइ न मार. ॥ १५॥ हिंसा जूठ चोरी अने, व्यभिचार महादोष; दया क्षमा उपकार धर, सत्य धर्म सन्तोष. ॥ १६ ॥ जो तुं समजे धर्मने, यथा शक्तिथी आपः बुद्धिसागर प्रेमथी, खरा भक्तनी छाप. ॥१७ ॥ गुरुकृपाथी पामिए, मुखशान्ति आराम; गुरुकृपा विण बापडा, लहे न आतमराम. ॥ १८ ॥ गुरुनी आज्ञा लोपिने, चाले निजमति छन्द: ज्यां त्यां भटकी दुःख ले, जाण्याविण मतिमन्द.।।१९।। बोले ते पाळे नहीं, करे प्रतिज्ञा भङ्गः रौरव दुःखो नरकमां, पामे जीव कुरङ्ग. ॥ २० ॥ चित्त स्थिर जेनुं नहीं, करतो उधां काम; लोक हसे दुःखो लहे, मूर्ख दुःखनुं ठाम. ॥ २१ ॥ मनमां आवे ते करे, पञ्च कहे ते फोक; अवळा प्राणी बापडा, लहे न मुखडां लोक. ॥ २२ ॥ सद्गुरु शिक्षा लोपिने, मूर्ख शिष्य पस्ताय; कोह्या काननी कूतरी, पेठे ठाम न पाय. ॥ २३ ॥ परमप्रभुनी प्राप्तिमां, सद्भक्ति हितकार; ज्ञान ध्यान सद्वर्तना, अनन्त मुख करनार. ॥ २४ ।। जिन वचनामृत पानथी, नासे भव सन्ताप; बुद्धिसागर ज्ञानथी, कर जिनवरनो जाप. ॥ २५ ॥
For Private And Personal Use Only
Page #118
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१०५ जैनबोडींगविवेचन.
मराठी साखी. श्री संखेश्वर पार्थ जिनेश्वर, जग जय मङ्गलकारी, जैन बालक विद्योन्नतिमां, सहाय करो सुखकारी; जैन बोडींगनी उन्नति सहु चाहो, विघ्नन्द दूर जाओ. जैन. १ अन्न वस्त्र ने विद्यादाने, श्रावकनुं शुभ खातुंः विद्यार्थिने स्हाय करीने, वांधो परभवभावें. जैन. ॥ २ ॥ व्यवहारिक धार्मिक केळवणी, दिन प्रतिदिन अपाती बोडींग बाळक केळववामां, चीवट खूब रखाती. जैन. ॥ ३ ॥ निराधारने आश्रय आपे, सगपग श्रावक साचुं; जैन बालकनी भक्ति मोटी, ते विण सर्वे काचुं. जैन. ॥ ४॥ वीर जिनेश्वर पुत्रो सर्वे, सधन निधन निरखो समान धर्मि वन्धु देवी, हेते मनमा हरखो. जैन. ॥ ५ ॥ लक्ष्मीनो ल्हावो लेवाने मलियुं उत्तम टाणुं; नाणुं मळे पण टाणुं मळे नहि, शुभ छे पात्र मनानु. जैन. ॥६॥ जन्मीने जैनोना हितमां, खर्ची न लक्ष्मी सारी; पत्थरथी पण तेह नकामो, जननी भारे मारी. जैन. ।। ७ ।। भेदभाव सहु दूर करीने, पोताना सुत जाणी; साह्य करो साधर्मी बन्धु, उलट मनमा आगी. जैन. ॥ ८॥ श्रावक क्षेत्र सुपात्र सदा छे, साद्य करो नरनारी; बुद्धिसागर बोडौंगस्कुलनी, शुभोन्नति मुखकारी. जैन. ॥ ९ ॥ अलख देशमां हंसने प्रेरणा.
पद. हंसा चलोरे अलख निज देशमांजी, ज्यां छे झळहळ ज्योति अपार; हंसा टेक,
For Private And Personal Use Only
Page #119
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हंसा. ॥१॥
हंसा. ॥ २ ॥
हंसा विनारे वादळ चमके वीजळोजी, नहीं ज्यां अवरतणो आधार. हंसा विनारे आंख जिहां देखजी, नहि जिहां निद्रा आवे लगार; हंसा पाम्या पछी नहीं ज्यां पामजी, एतो निश्चयपद निरधार.. हंसा गगनगढे जइ म्हालबुंजी, दिशा पश्चिम खोली द्वार; इंसा अजपाजापे जिहां पहोंचकुंजी, निराकार ने जे साकार. चरे चारो मोतीडांनो हंसलोजी, देखे तेहीज हंस विचार; हंसा बुद्धिसागर पद ध्यावतांजी, तारो नावे फरी अवतार.
हंसाः ॥३॥
हंसा.॥४॥
इरियावहियाना भेद.
कवित.
पांचसो त्रेसठ जीवतणा भेद, शास्त्र थकी लहीजे, अभिहिया आदि दश पद लइने, दश गुणातो कीजे; तेहने राग अने वळी द्वेष, द्विगुणातो करीए, मन वचन अने कायाए, त्रिगुणा चित्त धरीए. कर करा अनुमोद, भूत भविष्य वर्तमान, अरिहंतआदि छपदगुणतां, पुरा थया शुभखाण;
For Private And Personal Use Only
Page #120
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
૭
शुद्ध भावेकरी शुद्ध लेश्याए, इरिया वहिया लोवे, सागर अमत्ता इव, केवल ज्ञानी होवे.
हुने मारु.
पद राग धोळ.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ १ ॥
हूं ने मारु मानी प्राणी, चार गतिमां भटक्योरे;
अज्ञाने अडाणी ज्यां त्यां, अवळी मतिथी अटक्योरे. ॥ १ ॥ छायामिषे काळ भमे छे, क्षणमां पकडी जाशेरेः
कुंटुम्ब कबीलो साथ न आवे, आव्या तेवं जवाशे रे. ॥ २ ॥ जरुर जंझाळे जकडातां, दुःखना दरिया मोटारे; गुरुगमथी समजीने प्राणी, वाळीश नहि तुं गोटारे. ॥ ३ ॥ जन्म्या तेने जरुर मरखं, फुलीने शं फखं रे;
काळपटमा सहु झपटाशे, काम न करं वरखं रे. ॥ ४ ॥ पाणीना परपोटा जेवी, काया रोगभरेली रे:
मारी माने मूरख जीवडा, विण शी जाशे घहेलीरे. ॥ ५ ॥ जूठी काया जूठी जाया, जूठी जगनी मायारे; पुद्गल बाजी कत्रु न छाजी, मोहे शुं मकलायारे. वीर जिनवर केवलनाणी, साची वाणी जाणीरे; बुद्धिसागर अन्तरमांहि, आणा जिननी आणीरे.
For Private And Personal Use Only
॥ ६ ॥
॥७॥
पतिव्रतास्त्री.
ओघवजी संदेशो कहेजो श्यामने ए राग.
प्रमदा पतिव्रता धर्मो साचवे, पति पहेलां उठे गणती नवकारजो, पंजेळे नहि पतिने समता आदरे, बच्चांने हित शिक्षा देवे प्यारजो;
ममदा || १ ||
Page #121
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१०८ नवरी बेठी निन्दा लवरी नहि करे, कदी न करती प्राणपतिपर
क्रोधजोः छैल छबीली बणी ठणीने नहि फरे, साहेलीने देवे रुडो बोधजो.
प्रमदा. ॥ २ ॥ देशी वस्त्रो देशी वेषे पहेरती, विधवालग्ने कदी न करती व्हालजो मुधाराना वायुथी रहे वेगळी, कदी न देती क्रोध करीने गाळजो
प्रमदा.॥ ३ ॥ दान दया आभूषण कंठे धारती, शरीर लज्जा राखे तेवां वस्त्रजो नीति रीति राखे कुलवट नेकथी, वेण न बोले जेवां तीखां शस्त्रजो
प्रमदा.॥४॥ विचारीने वदती वाणी मीठडी, शीयलना शृंगारे शोभे देहजो देव गुरुनी भक्ति करती प्रेमथी, सहुनी साथे वर्ते निर्मल नेहजो
प्रमदा. ॥ ५ ॥ सद्गुणमालाथी शोभे छे सुन्दरी, धर्माचारो पाळे निशदीन प्रेमजो बुद्धिसागर शोभे सतीयो श्रावीका, जैन धर्मने पाली पामे क्षेमजो
प्रमदा. ॥२॥
सुधारा. ओधवजी सन्देशा कहेशो श्यामन-ए राग. मुधारो जो करवा इच्छो मानवी, सुधारामां समजी देशो चित्तजोः शास्त्राधारे सुधारा तो सत्य छ, आत्मोन्नतिने पामे मानव नित्यजो. सुधारा. ॥ १ ॥ निर्दोषी औषधने खावां टेकथी,
For Private And Personal Use Only
Page #122
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नित्यनियमथी करवां धार्मिक कृत्यजो; ब्रह्मचर्य संरक्षा करवी हेतथी, त्यागी जूटुं वदवी वाणी सत्यजो. सुधारा. ॥ २ । विनये मातपिताने पाये लागवं, विनये गुरुने वन्दन कर प्रेमजो; जैनधर्ममां श्रद्धा धरवी नेमथी, स्वदेशवस्त्रो स्वदेशवेषे क्षेमजो. सुधारा. ॥ ३॥ धर्मभ्रष्ट करनारा हेतु त्यागीए, जिनवाणीनो कदी न करवो लोपजो; मातपिता ने सुगुरु साधु सन्तपर, कदी न करवो प्राण जतां पण कोपजो. सुधारा. ॥४॥ व्यसन अने वेश्यानो संग न कीजीए, धार्मिक तत्त्वो वांचो सुगुरु पासजो; भाषानी केळवणीथी नहि फुलीए, धर्मभ्रष्ट कुधारा तजवा खासजो. सुधारा.॥५॥ कुत्सितधारा जेवा सुधारा घणा, एवा सुधारानो करवो नाशजो; देखादेखी मुधाराना वेगमां, पडता प्राणी कुधाराना पाशजो. सुधारा. ॥६॥ चेतनने सुधार्याथी मुधर्या खरा, करवी धर्मिजनने प्रेमे महायजो; सवर्तनथी सुधरो जागी धर्मने, खर्च नकामां करवां नहि दुःखदाय जो. सुधारा. ॥७॥ नास्तिकता त्यागीने आस्तिकता भजो, कदी न मूको जैनधर्मने धीरजो;
For Private And Personal Use Only
Page #123
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बुद्धिसागर सापेक्षे सहु सुधरे, चेतनज्ञाने व्हालो सजन वीरजो.
मुधारा. ॥८॥
भक्ति .
रुचिराछन्द. श्री संखेश्वर पार्श्वजिनेश्वर, तब महिमा जगमां भारी, विघ्न विदारण मंगल कारण, जय जय जगमा उपकारी; ध्यान करीने प्रेमे हारूं, भक्ति महिमा गान करूं, वीर प्रभुमां गौतम जेवी, भक्तिथी भवपार तरूं. ॥१॥ ज्यां नहि भक्ति त्यां शुं श्रद्धा, भाक्तथी छे भाव खरो, भक्ति विण मोळी छे सेवा, प्रेमे भक्ति चित्त धरो; भक्ति विण साधन शुं साधे, भक्तिथी क्षणमा सुधरो, भक्तिथी निर्मल छे मनटुं, भक्ति सहित भवपार तरो ॥ २ ॥ सुरस विना तो लाहुं शानो, मीठा वीण भोजन शान; श्रद्धा विण धर्मज होय शानो, राग विना फोगट गाणुं, ज्ञान विना गुरु होयज शानो; मान विना जेवू खाणुं, भक्ति विण जीवन छे तवं, समजो नहि सन्तो छान. ॥३॥ भक्ति विण निर्मलता शानी, भक्ति विण धट अन्धारु, भक्ति विण चेतन नहि तरशे, भक्तिथी जीवन सारूं; सुदेव गुरुनी भक्ति करवी, भक्ति जीवन बहु प्यारं, भक्ति शक्ति देवी साची, भावे भक्ति दील धारूं. ॥४॥ भक्तिथी भणतर छे साचं, भक्ति विण भणतर काचं, भक्ति विण लूखी आचरणा, भक्तिना रसमां राचु; वीर प्रभुनी भक्ति साची, भक्तिथी पापो सहु गळे,
For Private And Personal Use Only
Page #124
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१११
भक्ति देवी महिमा भारे, वांछित सर्वे सहेज मळे. ॥ ५ ॥ आवश्यकमां भक्तिमहिमा, जिनवाणी विस्तरथी कहे, वीरजिनेश्वर पूजामांहि, भक्ति भळतां शर्म लहे; भक्ति करतां भावज प्रगटे, भावे भव्यो कर्म दंह, भक्ति छे शूरानी सज्जन, भक्तिने विरला को चहे. ॥ ६ ॥ द्रव्य भाव दो भेदे भक्ति, भक्ति विरला भव्य करे, भक्ति शक्ति निर्मल चेतन, शाश्वत सिद्धि शर्म वरे; भक्तिथी जिनशासन देवो, सहाय करे शाश्वतपन्धे, जिनवरभक्ति देवो करता, भाख्युं छे उत्तम ग्रन्थे. चिदानन्दनी लहेरो प्रगटे, भक्ति करतां भव्य खरे, बुद्धिसागर भक्तियोगे, भवपाथोधि भव्य तरे;
॥ ७ ॥
ओगणिश चोसठनी साले, पोष शुक्ल वारस सारी, जयजय मङ्गलकारक भक्ति, भक्ति व्हारी बलिहारी ॥ ८ ॥
गुरुपद स्तुति.
ओधवजी संदेशो कहेजो श्यामने - ए. राग. सद्गुरु मुनिवर परम कृपाळु वंदीए, परोपकारी परम पूज्य गुणवंत जो; भावदयाना सागर ज्ञानी सेवतां, आवे दुःखदाय बहु भवनो अंतजो. पंच महाव्रत धारक वारक मोहने, भवजलधिथी तारक नायक नाथजो; सदुपदेशे शिष्यवर्ग झट तारता, शिवनगरीना प्रापक सारा साथजो.
For Private And Personal Use Only
सद्गुरु ॥ १ ॥
सद्गुरु. ॥ २ ॥
Page #125
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
११२
|
४
॥
जड चेतन, सूक्ष्म स्वरुप बतावीने, उपादेय आतमने भाख्यो सत्यजो; नय निक्षेपा नवतत्त्वादिक जाणता, प्राणांते पण वदे न सूत्र असत्यजो. व्यवहार अने निश्चयथी चरण सुसाधना, दुःखकर कंचन कान्तानो परिहारजो, रत्नत्रयी साधनथी साधे प्रेमथी; सद्गुरु आणा पाळे जग जयकारजो. गृहावासने त्यागी संयम पाळता, मळतां एवा सद्गुरुनो संयोगजो; राग द्वेष मिथ्यादिक दोषो सहु टळे, शिष्यो पामे शाश्वत रूद्धि भोगजो. सद्गुरु.॥ ५ ॥ अहो अहो सद्गुरुजी शरण शरण मने, त्हारा गुणगण गातां नासे दोपजो; अन्तर रुद्धि पामे प्राणी धर्मी, सद्गुरुचरणे रहेतां गुणगण पोषजो. सद्गुरु. ॥६॥ भावधर्मना दाता त्राता तात छो, तुन सेवाथी निर्मल आतम थाय जो; तव आणाथी रत्नत्रयीनी साधना. तव आणाथी जन्म मरण दुर जाय नो. सद्गुरु. ॥ ७ ॥ जैन धर्मोद्वारक परम पवित्र छो, दीनदयाळु तव सेवा सुखकारजो; बुद्धिसागर समय सुधारस पानथी, शिष्यो पामे भवजलधिनो पारजो. सद्गुरु. ।। ८॥
For Private And Personal Use Only
Page #126
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
११३
आत्मोन्नतिना उपायो.
पद.
ओधवजी सन्देशो कहेजो श्यामने-एराग. आत्मोन्नतिना हेतु सज्जन सांभळो; विसंवाद नहि जेमां किञ्चित् मात्रजो, सद्गुरु उपदेशे मन वाळो व्हालथी; सज्जन संगति करी बनो सुपात्रजो. आत्मोन्नति. ? नाना मोटा जीव वृन्दने पाळ्जो; दया धर्मथी करशो आत्म कृतार्थजो, सत्य शील सन्तोष क्षमादिक धर्मथी; साधो भव्यो परमगति परमार्थजो. आत्मोन्नति. २ चाडी चुगली चोरी झटपट वारीए; निन्दा कदी न करवी प्राणी भव्यजो, दोषीना पण दोषो टाळो प्रेमथी; समता भावे कर सहु कर्तव्यजो. आत्मोन्नति. ३ राखो सहुनी साथे मैत्री भावना; कदी न भूडं चिन्तो परतुं लेशजो, धर्मि देखी हरखो मनमां हेतथी; कदी न करवो वात वात कलेशजो. आत्मोन्नति. ४ नीति रीति राखो सज्जन नेमथी; वदो विचारी वाणी सुन्दर सत्यजो, धर्म अर्थने काम अने परमार्थमां; कदी न वदवी वाणी लेश असत्यजो. आत्मोन्नति. ५ परधनने पत्थरसम चित्ते धार पर ललनाने मातसमाना लेखजो,
For Private And Personal Use Only
Page #127
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
११४ सुख दुःख पोताना सम अन्यने जाणीने; सर्व जीवोने पोताना सम देखजो. आत्मोन्नति. ६ सत्योद्धारक धर्मोद्धारक कार्यमां; । उद्यम करवो मनमां धरीने व्हालजो, चेतनशक्ति जाणी चेतन सेववो; सत्य जूठनो करशो मनमा ख्यालजो. आत्मोन्नति. ७ प्राणांते पण परनी निन्दा त्यागवी; धर्मिजनने करवी प्रेमे स्हायजो, क्रोध मान माया ने लोभ नीवारता; बुद्धिसागर वर्तनथी सुख थायजो. आत्मोन्नति. ८
नीतिपद. ओधवजी सन्देशो कहेशो श्यामने-ए राग. हळीमळीने चालो सहुनी साथमां, व्हालां साथे कदी न करवू वेरजो; मातपितानी शिक्षा हृदये धारवी, जीवोनी साथे कर नहि झेरजो. हळीमळीने. ॥ १ ॥ संकट पडतां हिंमत हृदये धारवी, कदी न करवो दुर्जन साथे प्यारजो; देश वेषथी विरुद्धवर्तन त्याग, वात चित्तमां कदी न करवो खारजो. हळी. ।। २ ॥ साधुजननी सेवा साची साचवो, सत्ता धनथी करो नहीं अहंकारजो; परोपकारे प्रीति निशदिन राखवी, दया धर्मने सेवो शिव सुखकारजो. हळी. ॥ ३ ।।
For Private And Personal Use Only
Page #128
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
११५
सहुनुं सारु चिंतववाथी श्रेय छे, सत् संगत करवानी राखो टेवजो;
तत्वादिक जाणी आतम तारखो, देवगुरुनी करवी साची सेवजो. गप्पां मारी जीवन व्यर्थ न गाळं, कदी न करवो कारण पामी क्रोधजो; ज्यां त्यां गुण देखीने गुणने आदरो, देवो सर्व जीवोने उत्तम बोधजो. क्रोध कपट निन्दादिक दोषो टाळवा, हरतां फरतां आतममां उपयोगजो; बुद्धिसागर सद्वर्तन सेव्या थकी, प्रगटे अन्तर शाश्वत लक्ष्मी भोगजो.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private And Personal Use Only
हळी. ॥ ४ ॥
हळी. ।। ५ ।।
हळी. ॥ ६ ॥
कर्तव्यबोध.
पद.
ओवजी सन्देशो कहेशो श्यामने - पराग. विनयमन्त्री वैरी वशमां थाय छे; विवेक दृष्ट्या सत्यासत्य जणायजो, विद्याधन मोटामां मोडं जाणं;
विचारीने कार्य करो सुखदायजो. विनय ॥ १ ॥ विषसरखा विषयाने जाणी त्यागवा;
विषधर सरखी वेश्या महा दुःखदायजो,
arrat विश्वास न करवो व्हालथी; व्यसनो सर्वे त्यजवां मन हित लायजो. विनय ||२|| ठेलानी सोबत करवी नहि कदी;
Page #129
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
११६
वाणी वदवी साची सुन्दर भव्यजो,
विरुद्ध वर्तन तजवं सत्य विचारीने: वर्तन साधुं मनुष्य जन्म कर्तव्यजो. विनय ॥ ३ ॥
वात विचारी व्हाली व्हाला वेगथी; विजय वाघने वगडावो वड वीरजो,
वैरागी थइ वळजो शिवपुर वाटमां; वसवं शिवपुर बुद्धिसागर धीरजो. विनय ॥ ४ ॥
ॐॐ नमः
सर्वनुं भलं इच्छं.
ओधवजी सन्देशो कहेशो श्यामने
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-ए राग.
सहुनुं सारुं इच्छो सज्जन मानवी, परना उपकारे उत्तम अवतारजो; परनुं सदुपदेशे सारूं कीजीए, सहुने शांति सदा मळो निर्धारजो. सहुने सुखनी आशा दीलमां छे घणी, सुख अर्पणथी सुखने पामो भव्यजो; दुःख देवानी बुद्धि कदीय न धारीए, रागादिक दोषो छे परिहर्तव्यजो. भलुं करे छे उत्तमजन सहु जीवनुं, तीर्थंकर उपदेशे थइ कृतकृत्यजो; त्रियोगे दुःखववा नहि परजीवने, साचं वदवं जाणी तत्वो सत्यजो. पापीनी पण खोटी बुद्धि टाळवी, हिंसकपर पण करुणा करवी नेमजो;
For Private And Personal Use Only
सहु. ।। १ ।।
सहु. ॥ २ ॥
सहु. ॥ ३ ॥
Page #130
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
૭
सुतनी विष्ठा धोवे माता प्रेमथी, बुद्धि एव वर्तेतो सुख क्षेमजो. शत्रुपर पण शत्रु बुद्धि टाळवी, शाश्वत शान्ति पामो जीवनां वृन्दजो; अनुभवो आतम सम सर्वे आतमा, टळो विकारी मायाना महाफन्दजो. मूंडानुं पण भुंडं कदी न इच्छवं, रिपर पण कदी न करं वेरजो; समभावे वर्तीने आ संसारमां सर्व जीवो पर करेल टाळो झेरजो. वादविवाद टाळी व्हाला बन्धुओ, करशो जन्मी आतमनुं कल्याणजो बुद्धिसागर वर्तो शान्ति सर्वने, एवी बुद्धि आपे शिवनुं स्थानजो.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private And Personal Use Only
सहु. ॥ ४ ॥
सहु. ।। ५ ।।
सहु. ॥ ६ ॥
सहु. ॥ ७ ॥
दुर्जनलक्षण.
मनहरछन्द.
गुणनो न राग होय अवगुण देखनार; पयमांहि पुरा काढे दुर्जन गणाय छे, सन्तने कुटिल कहे कुटिलने सन्त कहे; मूकी सत्यपन्थ अने पन्थे ते जाय छे. सज्जन मनुष्य दोष देखवामां शूर होय; पारकानुं हुं देखी मनई दुःखाय छे, चांदा जेम काक देखे पारकाना दोष तेम; देखवानी बुद्धि जेनी अवळी सदाय छे.
॥ १ ॥
Page #131
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
११८
आळने चढाववामां दोष न जराय गणे; चाडी अने चुगलीमां निशदिन प्यार छे, निन्दाथी मालन मन मायानुं तो गृह होय कृतघ्न विश्वासघात कृत्यमां तैयार छे. विनयथी वैर हाय विवकथी झेर होय; इर्ष्या जूठ लोभ अने कपट भण्डार छे, विचार उच्चार अने आचारमा वक्र होय; धीनिधि कहे छे एवा दुर्जन अपार छे.
॥२॥
सजनलक्षण.
मनहरछन्द. सद्गुण देखनार विवेकथी पेखनार; गुणिजन देखी जेनुं चित्त हरखाय छे, विचार उच्चार अने आचारमा सत्य होय; पारकानुं बुरु देखी मनहुँ दुःखाय छे. पर उपकारमांहि राग होय निशदिन देवगुरु सेवनमा चित्त हि सदाय छे, दोषदृष्टि नाह लेश मनमां जरा न कलेश; सज्जन सुगुण नर जग वखणाय छे. ॥१॥ सारु सहु जीवनुं सदा जे इच्छे चित्तमांहि; प्राणांतेऽपि निन्दा करे नहि महा भाग्य छ, दयाळु दातार शीलवंत सत्य कथनार; हेय ज्ञेय उपादेय जाणवामां राग छे. अदेखाइ आळ चाडी चुगलीथी दूर होय; अहो अपकारिपर जेनो उपकार छ,
For Private And Personal Use Only
Page #132
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चन्दन अने जल जेवा गुण होय सज्जनमां; धीनिधि सज्जन जग धन्य अवतार छे.
॥२॥
विद्यार्थि लक्षण.
मनहरछन्द. विनय विवेक होय सरल स्वभाव होय; भणवानी चीवटमां मनहुँ सदाय छे,, आलसने खाळवामां दोष वृन्द टाळवामां; नीति रीतभात मनमांहि नित्य च्हाय छे. प्रभातना प्रहरमां उठीने अभ्यास करे; स्थिर एक चित्तथकी भणे सहु पाठने, ब्रह्मचर्य धारी वारी विषयनी पाप वात; तजे सहु मोजशोख मारवाना ठाठने. ॥१॥ शिक्षकनी हिताशख हृदयमा धारे सहु; बकध्यान पेठे चित्त विद्यामां सदाय छे, विचारीने बोले बोल करे साच जुठ तोल; देशी वेष औषधथी जीवन गळाय छे. मातपिता नमन करे छे दिन प्रतिदिन बीडी आदि व्यसननो जेने नित्य त्याग छ, मृत्युनो न भयगणे पाठ प्रेमथकी भणे; धीनिधि मुशिष्य जगमांहि महा भाग्य छे. ॥२॥
शिष्यलक्षण.
मनहरछंद. विनय सदाय धरे गुरु वैयावृत्य करे, गुरुने वन्दन करे बहुमान प्रेमथी;
For Private And Personal Use Only
Page #133
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
गुरु उठे उभो थाय गुरु बेठा बाद बेसे, गुरुर्नु श्रद्धान धरे दीलमांहि नेमथी. सामु कदी बोले नहि गुरुना विनयवंत, गुरुगुण गाइ मनमांहि हरखाय छे महा उपकारी गुरु सदाय शरण सत्य, गुरु गम ज्ञान लही शिष्य सुख पाय छे. गुरु वचनानुसार प्रवृत्ति करे छे नित्य, गुरुनां दर्शन करे त्यारे हरखाय छे; गुरु उपदेश लही चेतनने तारवाज, संयम सुसाधवाने चित्त बहु च्हाय छे. गुरुना सेवन थकी विनेय मुशिष्य होय, गुरु आणा पालवाथी सुगति पमाय छे; तन मन धन थकी गुरु बहुमान करे, धीनिधि मुशिष्य शिव पुरमांहि जाय छे.
संयत सद्गुरु लक्षण.
मनहरछंद. पञ्चव्रत धारनार द्वेष राग वारनार, मुविहित परम्पर संयम स्वीकार छ; पश्चाचार पाळनार दोष वृन्द टाळनार, जिनवाणी उपदेशे दोष हरनार छे.
चेतननुं ज्ञान करे चेतननुं ध्यान धरे, चिदानन्द चेतनमा स्थिरता मुहाय छे आचार विचार अने उच्चारमा उत्तमज, मुनिवर सद्गुरु सन्त तो गणाय छे.
For Private And Personal Use Only
Page #134
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१२१
जंगम तीरथ कामधेनु कामकुंभ सम; गुरुविण ज्ञान नहि समये कथाय छे, व्यवहार संयमथकी उपाधि अळग जायः व्यवहार संयमथकी निश्चय पमाय छे. व्यवहार संयमधारि सद्गुरु सेववाथी; भवजलनिधि दुःखदायि हि तराय छे, चिदानन्द गुणधाम रमता चेतनराम; धीनिधि शरण गुरु भवमा सदाय छे.
॥२॥
ॐ नमः सुख, स्थान.
मनहर छंद. महा दुखदायि भव दावानल झालमांहि, पडया दुःख पाम्या अने पाछा केइ पामशे; क्रोध मान माया लोभमांहि नथी सुख लेश, अन्तरमा सुख आश थकी सुख झामशे. अथिर अचळ बाह्य विषयमा सुख नहि, नित्य सुख अन्तरमा अनुभवी जाणशे; द्रव्य गुण पर्याय स्वरूप समजी जीव, अनन्त अखण्ड चिरन चित्त आणशे. देखी देखी जुओ त्यारे देखवानुं बाह्य नहि, जाणी जाणी जाणो भाइ जाणवू अनन्त छ आदेय आदेय एक चेतन आदेय छ, शोधीने शोधीने जुओ चेतन हि सन्त छे.
॥१॥
For Private And Personal Use Only
Page #135
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૨૨૨
जिनवरनिगदितसमय समय सत्य, समकित मुधारसपान मुखकार छ अमूल्य समय मुख समाधिमां गाळ जीव, धीनिधि विचार सार धन्य अवतार छे.
॥२॥
ॐ नमः
मनहरछंद. मति श्रुत ज्ञान दोय परोक्ष प्रमाण छेज, मति ज्ञान व्यवहारमा प्रत्यक्ष गणाय छे; श्रुत ज्ञान सुखकारी दुःखहारी दयावन्त, उपकारी पञ्च ज्ञानमांहि श्रुत थाय छे. साकार छे श्रुतज्ञान परोक्ष प्रमाणाहि, साकार ने निराकार मतितो कहाय छे; साकारोपयोगे ध्यान प्रगटे केवल ज्ञान, विशेषोपयोगरूप साकार भणाय छे. देशथी प्रत्यक्ष अवधिने मनः पर्यवज, उपयोग भेद दोय अवधि मुहाय छे; साकारोपयोग मनःपर्यव प्रकट छ, रूपिना विषयमांहि ज्ञान वे ग्रहाय छे. प्रत्यक्ष रुपिनुं ज्ञान अनुमान थकी अन्य, अवधि असंख्य भेद सूत्रमा जणाय छे; लोकालोकभासक प्रत्यक्ष एक केवल छे, धीनिधि उपयोगथी पञ्चम पमाय छे.
॥१॥
॥२॥
For Private And Personal Use Only
Page #136
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१२३
॥१॥
॥ २॥
॥४॥
परमपावचन.
दुहा. सत्य सदा जिनधर्म छे, सत्य सदा जिन देव सत्य सदा मुनिवर गुरु, करवी प्रेमे सेव. तीर्थकर सर्वज्ञ छ, सत्य कहे छे तत्त्व, श्रद्धा साची राखवी, ज्ञान लही महासत्त्व. अनुमान आगमथकी, जिनवर वाणी सत्य; वीतराग सर्वज्ञ छे, वदे न वाक्य असत्य. जिनवाणीने जाणतां, समकित निर्मल होय; सर्वांशे परिपूर्ण छे, जिनवाणी अवलोय. जिनवाणीने जाणवा, गुरुगम लेजो भव्य; सार सार आदेय छ, तत्त्वथकी कर्तव्य. जैनधर्म जगमां वडो, आत्मोन्नति करनार; दसण नाण चरितथी, भवि शिवपद वरनार. पुद्गल बाह्यपदार्थथी, चेतन भिन्न सदाय; निश्चयथी मन जाणतां, भवभयभ्रान्ति जाय. असंख्यप्रदेशी आतमा, वर्ते देह प्रमाण; प्रतिशरीरे भिन्नभिन्न, अनन्त आतम जाण. अप्पा परमप्पा कह्यो, सत्ताथी आ जीव; क्षायिक भावे व्यक्तितः, होवे जीवनो शीव. सात नयोथी जाणीने, अन्तर चेतन देव; बुद्धिसागर ध्यानथी, साची करवी सेव.
॥७॥
॥८॥
॥१०॥
ॐ नमः मुनि गुरु स्तुतिः ओधवजी संदेशो कहेजो, श्यामन-ए राग. पिस्तालीश आगम पंचांगी देखतां, पञ्चमहाव्रतधारि मुनि गुरु होय जो;
For Private And Personal Use Only
Page #137
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१२४ व्यवहारे मुनिवेष ग्रह्याथी सद्गुरू, पश्चाचारे मुनिवर साचा जोय जो. पिस्तालीश. ॥ १ ॥ दशवकालिक आवश्यकमां भाखियु, आचारांगे मुनि कह्या गुरुरायजो; सूत्र कृतांगे ठाणांगे वळी देखजो, पञ्चमहाव्रतधारक मुनि सुखदायजो. पिस्ता. ॥ २॥ समवायांगे भगवतीसूत्रे भाखियुं, मुनिगुरुथी शासन चाले वेश जो; पञ्चम आरक पर्यंत वीरना शासने, संघ चतुर्विध वर्ते न धरो क्लेशजो. पिस्ता. ॥३॥ ज्ञाताधर्म कथांगे साधुनी कथा, वांची मनमां भवभय राखो भव्यजो; उपासकमां श्रावक रीति सांभळो, सद्गुरु मुनिवर मानो ए कर्तव्यजो. उत्तराध्ययने साधु श्रावक आन्तरु, व्यवहारे भाख्युं छे कहुं ते सत्यजो; सर्षवने सुरगिरि सम अन्तर जाणीने, प्राणान्ते पण वदो न वेण असत्यजो. पिस्ता. ॥५॥ पन्नवणा नंदीमां मुनिवर मोटका, निशीथ महानिशीथे मुनि गुरुरायजो; बृहत्कल्प व्यवहारे मुनि गुरु मानीए, उपदेशमालामां मुनि गुरु गुणदायनो. पिस्ता. ॥ ६॥ धर्मदासगणि वचन विचारी वीए, उपदेशमाला ग्रन्थे मुनि गुरु जोयजो; गच्छ कह्यो त्यां साचो सुविहित साधुनो,
पिस्ता . ॥
४
॥
For Private And Personal Use Only
Page #138
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१२५
दीक्षा धारी मुनिवर गुरुजी होय जो. पिस्ता. ॥ ७ ॥ तत्त्वारथ श्वेताम्बर सम्मत सूत्र छ, दिगम्बर सम्मत ते सूत्र पवित्र जो; दीक्षाधारी मुनि गुरु त्यां भाखिया, जो जो तीर्थकर चोवीस चरित्र जो. पिस्ता. ॥ ८ ॥ त्रिज्ञानी तीर्थकर दीक्षा ले खरा, व्यवहारे मुनि गुरु मही जयकारजो; व्यवहारे वाविण तीर्थोच्छेद छे, धन्य धन्य मुनिवर गुरुनो अवतार जो. पिस्ता. ॥९॥ योगशास्त्रमा हेमचन्द्रजी भाखता, पञ्च महाव्रतपालक मुनि गुरु साचजो; हरिभद्रादिक मुनि गुरुने भाखता, मुनि गुरु विण बाकी जाणो काच जो. पिस्ता. ॥ १० ॥ भद्र बाहु नियुक्तिमां मुनिवर गुरु, आनन्दघननां वचन विचारो भव्य जो; नमिनाथना स्तवने पंचांगी खरी, मुनि गुरु मान्या साचं कर्तव्यजो. पिस्ता. ॥ ११ ॥ व्यवहार अने निश्चययी साधन साध्यता, श्रावक साधु इत्यादिक व्यवहार जो; नीतिनी आचरणा पण व्यवहारमा सर्वोत्तम साधन साचुं व्यवहारजो. पिस्ता. ॥ १२ ॥ जिन प्रतिमा वन्दन पण व्यवहार छे, वस्तु त्याग पण व्यवहारे निर्धारजो; भगवतीमाहि मुनिवर गुरु छे पञ्चधा, धन्य धन्य मुनिवर गुरुनो अवतारजो. पिस्ता ।। १३ ।।
For Private And Personal Use Only
Page #139
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१२६
देवचन्द्रजी आगमसारे भाखता, सद्गुरु मुनिवर भाख्या छे मुखकारजो; धर्मधुरंधर यशोविजयजी वाचके, भाख्यु दीक्षाधारी गुरु मुनि सारजो. पिस्ता. ॥ १४ ॥ दीक्षाव्रत धार्या विण चारित्री नहीं, व्यवहारे संयमविण नहि निग्रन्थजो; संघ चतुर्विध स्वामी सुरिवरने कह्या, सूत्रोनी श्रद्धाथी शिवपुर पन्थजो. पिस्ता. ॥ १५ ॥ सम्मतितर्के भाख्यु मुनिवर सद्गुरु, गन्धहस्तिमहाभाष्ये भाख्युं तेम जो; उच्चरवां व्रत मुनिनी पासे भाखियुं, मुनिगुरुनी पासे समकित नेमजो. पिस्ता. ॥ १६ ॥ मुनिगुरु विण श्रावक होवे नहि कदी, कल्पसूत्रमा मुनिगुरू आचार जो; श्रमणीना आचारो पण शुभ दाखिया, सद्गुरु मुनिने मानी धरी व्यवहार जो. पिस्ता. ॥ १७ ॥ द्रव्य क्षेत्रने काल भावथी सद्गुरु, मुनिवर वर्ते जंगमतीर्थ सदाय जो; सद्गुरु मुनिने मानी भव्यो चेतजो, परमपूज्य मुनिवरगुरुजी वखणाय जो. पिस्ता. ॥ १८ ॥ सहस्रअवधानी मुनिसुन्दर भाखता, उपदेशरत्नाकरमां मुनिगुरु साच जो; अभयदेव सूरिवरजी वृत्तिमां कहे, मुनि गुरु उपदेशक साची वाच जो. पिस्ताः ॥ १९ ॥ चारित्रापेक्षाए मुनिवर सद्गुरु,
For Private And Personal Use Only
Page #140
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१२७
पिस्ता. ॥ २० ॥
पिस्ता. ॥ २१ ॥
पिस्ता. ।। २२ ।।
समकितदाता मुनिगुरु जयकार जो; संघ चतुर्विधमांहि मुनिवर सद्गुरु, वन्दे पजे धन्य सफल अवतार जो संथारापोरिसीमां पण मुनिगुरु, समकितदायक धर्माचारज तेहजो; धर्माचारज श्राद्ध कह्या ते जाणीने, मुनि गुरुने आदरजो गुण गेहजो. चउसरणपयन्नामां मुनिवर गुरु, वीसस्थानकमां मुनि गुरु सुखकारजो; स्थाप्या गणधर मुनि वेषे एकादश, समवसरणामां वीर प्रभुए सारजो. धर्मसंग्रह ने धर्मरत्नमां धारजो, उत्तमभाख्या सद्गुरु मुनि आचारजो; संघाचारे भाख्या साधु सदगुरु, मुनि गुरुवर संघपट्टकमां निर्धारजो. उमास्वाति प्रशमरतिमां भाखता, दीक्षा धारक मुनि सद्गुरुजी सारजो; दिगम्बरो पण मुनि गुरुने मानता, मुनि सद्गुरुने मान्याथी भव पारजो. युग प्रधानो मुनिना वेषे सहु कह्या, वेष व्रत, पालन सहेजे थायजो; बुद्धिसागर सद्गुरु मुनिने सेवतां, प्रेमे प्राणी परम महोदय पाय नो.
पिस्ता. ॥ २३ ॥
पिस्ता. ॥ २४॥
पिस्ता. ॥ २५ ॥
-
For Private And Personal Use Only
Page #141
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१२८
मंघ. ॥१॥
संघ. ॥२॥
ॐ नमः सद्गुरवे.
गुरुप्रभाव. संघ चतुर्विध मोटा मुनिवर वंदीए, मुनिवर वंदे कर्म मर्मनो नाश जो; पुण्योदयथी मुनिवर दर्शन पामीए, मुनिवरनी श्रद्धाथी शिवपुर वासजो. श्री नवकारे पंचम परमेष्ठेि कह्या, यथाशक्तिथी साधे संयम योगजो; कनक कान्ता त्याग कर्याथी त्याग छे, आतमध्याने साधे शिवपुर भोगनो. कुमतिथी मुनिवरनी निन्दा केइ करे, केइक करता मुनिवरनुं अपमान जे; अज्ञो तेवा कर्म ग्रहे छे चीकणां, मुनिनिन्दाथी भूले आतमभान जो. केइक कहेता मुनिवर अधुना को नहीं, कहेवू एवं निजमति कल्पनमात्रजो; आत्मार्थी वर्ते छे मुनिवर मही घणा, मुनिवर वन्दन करतां निर्मल गात्र जो. द्रव्यादिकथी साधे संयम साधना, शासन नायक धर्म प्ररुपक धीरजो; सदुपदेशे भव्यजनोने बोधता, वैरागी त्यागी मुनिवर गंभीर जो. मुनिवरना दर्शनथी निर्मल नेत्र छे, मुनिवरदाने पवित्र होवे हाथजो;
संघ. ॥३॥
संघ. ॥ ४ ॥
संघ. ।। ५॥
For Private And Personal Use Only
Page #142
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
१२९
मुनिवरना उपदेशे वीर विश्वास छे, महीतलमांहि मुनिवर सत्य सनाथजो
पंच विषना उदये पंचम काळमां, असंयतिनी पूजानुं आश्चर्य जो; दीक्षा वण संयतनी पेठे पूजना, लघुता पामे संयत सद्गुरुवयेजो. केक श्रद्धा मुनिपरथी उठाडीने, मनमां आवे ते माने लोकजो; पश्चिमनी केळवणी कुतर्क भर्या, नास्तिकथने माने सघळु फोकजो.
मुनिवरनी श्रद्धाथी सत्यज संपजे, मुनिवरनी भक्तिथी शाश्वत शर्मजो, मुनिवरनी संगतथी नास्तिकता टले. मुनिना वैयावृत्ये नासे कर्मजो.
मुनि करे ते तने श्रावक शुं करे, मुनिवर जंगम तीरथ गंग समानजो; मुनिनी सेवा शिवना मेवा जाणीए, मुनि गुरुथी पामो शाश्वत स्थानजो. मुनिनिन्दा करवामां मोडं पाप छे, करो नहि मुनिनिन्दा नरने नारजो; दोषदृष्टि दोषज ज्यां त्यां भासशे, गुणदृष्टिथी गुण भासे निर्धारजो. दोषे भरीओ जाणो आ संसार छे, सर्व गुणी तो अरिहन्त छे देवजो;
9.9
For Private And Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
संघ. ॥ ६ ॥
संघ. ॥ ७ ॥
संघ. ॥ ८ ॥
संघ ॥ ९ ॥
संघ. ।। १० ।।
संघ. ।। ११ ।।
Page #143
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
१३०
कर्म संगधी जगमां को निर्दोष छे, सत्य विचारी करशो मुनिवर सेवजो. सन्त मुनिवर जगमां तरवा तीर्थ छे, सन्त मुनिवर सेव्याथी सुख थायजो; मुनिवर भक्ति साची शक्ति अर्पती, मुनिवरना बहुमाने धर्म सहायजो. सर्व गुणां श्रावकथी अधिका मुनि; अधिक गुणिनुं करं जग बहु मानजो; मुनिवर देखी वन्दन करतां भावथी, सद्गुरु मुनिवर शासनना सुलतानजो. पापोदयथी मुनि अरुचि संपजे, पुण्योदयथी मुनिपर होवे प्रेमजो, तरतमयोगे मुनिवर साधो साधना, सद्गुरुमुनिनी श्रद्धाथी गुणक्षेमजो. मुनि विना तो श्रावक होवे नहि कदी, मुनि विना व्यवहार समकित भ्रंशजो ः प्रत्यक्ष मुनि वण समकिती नहि श्रावको, व्यवहारोत्थापनथी शासनध्वंसजो. मुनिनी पासे व्रत उच्चरवां भाखियां, मुनिनी पासे करं प्रत्याख्यानजो; सूत्रोमां भाख्यं छे सत्य विचारीने; मुनि गुरुनुं कर बहु सन्मानजो. कोइ कहे छे आज कालना साधुओ, पाळे नहि साधुना पंचाचारजो; जुठा सर्वे बोले ते अज्ञानथी,
For Private And Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
संघ. ॥ १२ ॥
संघ. ॥ १३ ॥
संघ. ।। १४ ।।
संघ. ।। १५ ।।
संघ. ।। १६ ।।
संघ. ॥ १७ ॥
Page #144
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अज्ञानिनो भूडो छे अवतारजो. __ संघ. ॥ १८ ॥ आज काल पण मुनिवर बहु विद्वान् छे, यथाशक्तिथी पाळे पंचाचारजो; जिनवाणीनो राग घणो छे दीलमां, संयमना साधनमा साचो प्यारजो. संघ || १९ ॥ मुनि विना नहि श्रावक देखो सूत्रमां, पुष्टालंबन सद्गुरु मुनि निर्धारजो; गुरु विना नहि ज्ञान कदापि पामीए, मुनि गुरुनो साचो जग आधारजो. संघ. ॥ २० ॥ जगमां मोटो मुनिवरनो उपकार छे, मुनिदर्शनथी कर्म कलंक कटायजो; प्रत्यक्ष उपकारी मुनिवरने वंदीए, जन्म जरानां दुःखडां दूरे जायजो. संघ. ॥ २१ ॥ दुनियामां उपकारो सर्वे बहु कह्या, सहुथी मोटो सदुपदेश उपकारजो; सदुपदेशे सत्यासत्य जणावता, धन्य धन्य मुनिवरनो जग अवतारजो. संघ. ॥ २२ ॥ साधु वेषे एक समयमा सिद्धता, अष्टोतर शत मुनिवर गुणना पात्रजो; पन्नवणा ने भगवतीमांहि भाखियुं, करवी साची मुखकर संयम यात्रजो. संघ. ॥ २३ ॥ ज्ञानी ध्यानी आत्मार्थी मुनिवर्ग छे, मात पिता बंधुथी अधिका लेखजो; दर्शन दुर्लभ मुनिवरनां कलिकाळमां, जैन धर्मना नायक मुनिवर देखजो. संघ. || २४ ॥
For Private And Personal Use Only
Page #145
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
संघ. ॥ २५ ॥
संघ. ॥ २६ ॥
२३२ सर्व कालमा मुनिवर धर्म धुरंधरा, जैन धर्म पण मुनि गुरुना हाथजो; सूरिवाचक रत्नादिक संयत श्रेष्ट छ, वन्दु मुनिवर त्रण भुवनना नाथजो. मुनिना उदये जैनधर्मनी उन्नति; श्रावकथी मोटा छे मुनि कृपाळजो, जीवदया प्रतिपालक मुनिवर वंद्य छ; जेणे त्यागी दुःखदायि झंझाळजो. मुनिपर आळ चढावे ते महा पातकी; मुनिनिन्दाकर्ता चोथो चंडालजो, श्रावक सेवक स्वामी साधु जाणीए; सदुपदेशे छोडो बाळक चालजो. धर्मोद्धारक धर्मगुरुने वन्दताः मान टळे ने लघुता गुण प्रगटायजो, विधिपूर्वक मुनिवरने वन्दो भावथी; जन्म जरा आधि व्याधि दूर जायजो. वैरागी त्यागी सौभागी सद्गुणी; मुनिवर दीठे होवे मंगल मालजो, मुनिदर्शनथी धर्मलाभ झट संपजे; भव्य जीवने मुनिवर दीठे व्हालजो. धन्य देश कूळ गाम मुनि अवतार छे; धन्य धन्य ज्यां मुनिवर करे विहारजो, बुद्धिसागर सद्गुरु मुनिवर वन्दता; उतरे प्राणी भवसागरनी पारजो.
संघ. ॥ २७ ॥
संघ. ॥२८॥
संघ. ॥ २९ ॥
संघ. ॥ ३० ॥
For Private And Personal Use Only
Page #146
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥१॥
वचनामृत.
भुजंगीछन्द. सदा संपथी चालवं शीख धारी, तजोने कटंगी कुटेवो नठारीः वदोने विचारी सदा बोल साचा, सदा शोभती सत्यथी भव्य वाचा. लडो ना कदा कोइनी साथ क्रोधे, सदा विश्व शोभो रुडा दील बोधे दया दील लावी जनोने सुधारो, भली हितशिक्षा थकी लोक तारो. सदा पारकी नारने मात देखो, सदा पारका वित्तने धूळ लेखो तजो दुर्मति दुःख देनार भारी, सजो सन्मति शर्म देनार सारी. दया दान कृत्यो मुदा दील धारो, तजी दोषदृष्टि लहो धर्म सारोः भला भावथी सेविये सत्यदेवा, प्रभु भक्ति छे सत्य आनंदमेवा. विचारी करो कृत्य जे होय सारां, विचारी तजो कृत्य जे छे नठारां; विचारी सुधारी धरो धर्मधारा; सदा धर्मधी सर्व सारा थनारा. स्वमि जनोने सदा स्हाय आपो, अदेखाइथी कीजिए ना बळापी;
॥ ४ ॥
For Private And Personal Use Only
Page #147
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सदा मानिए बाळनी हित वाणी, भलानुं भलं कीजिए सत्य जाणी. कदी ना वदो पारका दोष प्राणी, कदी ना वदो मर्मनी वात छानी; पिता मातने पाय लागो सवारे, विनेयो मुदा हितशिक्षा विचारे. सदा आत्मनी उन्नति दील धारो; थता रागने द्वेषने दूर वारो कहे धीनिधि धर्म छे दील प्यारो, खरा धर्मथी आवशे दुःख आरो.
॥७॥
॥ ८ ॥
।। १ ।।
वचनामत.
भुजंगी छन्दः अहो भव्य लोको कहुं शीख सारी, बहु मानथी धारजो दील प्यारी; भजो सन्तने पापना वृन्द टाळे, भजो ब्रह्मने ध्यानथी सर्व काळे. तजो ज्ञानी जूठना जे विचारो, सजो ज्ञानथी शुद्ध आचार सारो; सदा वीरना वाक्यमां चित्त धारो, मुदा दीलमां तत्त्व सारां उतारो. लघुता भजीने तजो मान खोटो, मृदुता सजीने भजो धर्म मोटो; असत्संगनी टेव त्यागो नठारी, भजो सन्तने दुर्मतिने निवारी.
॥२॥
For Private And Personal Use Only
Page #148
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥४॥
तजो ना कदी धर्मने टेक राखी, ग्रहोने व्रतो सद्गुरु सत्य सारखी भली राखिये मित्रता सर्व साथे, मुनिने सदा दीजिए दान हाथ. दया धर्मने सेविये रहेम राखी, प्रभुए मुखेथी दया सत्य भाखी; दयाथी महा पापना वृन्द नासे, दयाथी खरी शांतता दील भासे. दयाथी अहो देवता स्हाय आपे, दयाथी सदा दीलमां मुख व्यापे दयाथी सदा देवता हस्त जोडे, दया देवता मानिनां मान मोडे. वदो सत्यवाणी सदा हित आणी, प्रभु सत्यवाणी महीमां प्रमाणी; सदा सत्यथी पामिये सत्य शान्ति, सदा सत्य थी टाळिये दुःख भ्रान्ति. सदा सत्यमां राच टेक धारी, सदा सत्यमां वर्तवं मोह वारी; भजो सत्यने दुःखने शोक वारे, भजो सत्यने जीवने शिघ्र तारे. प्रभु भक्तिमां प्रेमथी नित्य राचो, प्रभु भक्तिमां प्रेमथी भव्य माचो गुरु भक्तिमा शक्ति सर्व समानी, गुरु भक्तिथी रुद्धि सर्वे पमाती. गुरु भक्तिमां प्रेम छे भव्य भारी,
॥ ७॥
॥८॥
॥९॥
For Private And Personal Use Only
Page #149
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
१३६
गुरु भक्तिथी देव नासे नठारी;
कहे धीनिधि सद्गुरु सुखकारी, करो सेवना प्रेमथी भव्य सारी.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private And Personal Use Only
॥ १० ॥
बालकोने हित शिक्षा.
॥ वचनामृत ॥
भुजंगी छन्द.
पिता मातने बाळको पाय लागो, प्रभाते प्रतिदीन व्हेलाज जागो; भगोने गणो तत्व विद्या वधारो, कुठेवो पडे तेहने दूर वारो ॥१॥ अदेखाइथी क्लेश कूडो निवारो, रडेने रुवे पुत्र तेतो नठारोः कढ़ी गाळ बोलो नहीं रे नठारी, सदा वाक्यने बोलीए सुखकारी. २ की नासा तो क्रोध वारी, पिता मात शिक्षा थकी सुख भारी; सदा सत्य वाणी वदो धर्म धारी, बहु थाय छे चोरीथी तो वारी. ३ महा पाप चोरी करे तेह पावे, लहे बन्ध मृत्यु निगोदे सिधावे; करे चोरीनं काम तो नठारो, उरे ना कदा एक ठामे विचारो ४ दिले जाणजो चोरीनुं पाप मोडं, करे चोरी तेनुं थशे भाइ खोडं; भणो भावी शिक्षको पास विद्या, तजो ज्ञानथी जेह लागे अविद्या. ५ सदा साधु वंदी प्रेम लावी, गुरु सत्य देशे सुविद्यानी चावी; गुरुना का कार्य ने भव्य कीजे, भलामां सदा अन्यना चित्त दीजे. ६ गुरु ज्ञानथी मोह माया टळे छे, गुरु ज्ञानथी मुक्ति सहेजे मळे छे; गुरु ज्ञानथी गर्व नावेज पासे, गुरु ज्ञानथी सत्य ज्यां त्यां प्रकाशे. ७ सदा उन्नति धर्मथी तो थनारी, सदा धर्मथी दोष श्रेणी जनारी; दया धर्ममां बाळको चित्त राखो, दया धर्मधी मुक्तिनां सुख नाखो.८
Page #150
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१३७
सहु माथमां प्रेमी नित्य रहे, भलं वेण वाचा थकी भव्य कहे; करो कार्य सारां नठारां तजीने, लहो सत्य शान्ति प्रभुने भजीने.९ धरी धैर्यने कीजीए धर्मसेवा, धरी भक्तिने पूजीए इष्टदेवा; कहे धीनिधि सन्नीति धर्भ सारो, भला बालको वात ए तो विचारो. १०
-
-
॥ १ ॥
सुधारा.
भुजंगी छन्द. अहो भव्य लोको विचारो मुधारा, तजो दुःखदायी नठारा कुधाराः विदेशी दवाथी थयो भ्रष्टवेडो, मुता सर्पने जाणिने जेम छेडयो. विदेशी दवाथी भएं ना थनारूं, अवद्यौषधे धर्म सर्वे जनालं; तजोने विदेशी तणा कूट चाळा, विदेशी बन्याथी कदी ना रुपाळा. धरो वस्त्र देशी स्वदेशीय वेषे, स्वदेशी बन्याथी रहे वित्त देशे; बणी ने ठणी फोक फूलो न लोको, विना धर्मथी वागशे दुःखधोको. करीने कुतर्को अरे जन्म हारो, धरो धर्म वीरे कॅयो सत्य सारो; कुसंगी कुढंगी तणां वेण काचां, जिनेन्द्रे कह्यां तत्त्व छे भव्य साचां. विदेशी जनोनी तजो टापटीपो,
॥ २ ॥
॥४॥
For Private And Personal Use Only
Page #151
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१३८
॥७॥
रुपाने तजींने ग्रहे कोण छीपो; स्वमिजनोने वडी स्हाय आपो, कुसंपो तणां मूळने शिघ्र कापो. लडो ना कदी साधुनी साथ द्वेषे, वहो ना कदा आयु ने वर क्लेशे; सुधारा मिषे ना करोरे कुधारा, तजे धर्मने वेष ते ना सुधारा. महा वीरनां वाक्य सूत्रानुसारे, दीले सहहे आतमा तेज तारे; कलिकालना दोषथी धर्मभ्रष्टो, लहे दुर्गतिमां बहु दुःख कष्टो. कुविधा हवाथी सुविद्या टळे छे, सुविद्या थकी मोह माया गळे छे; सुश्रद्धाथकी कर्मनो अन्त आवे, सुश्रद्धाथकी वीरनां वाक्य भावे. कदी ना करो धर्ममां व्हेम खोटो, जिनेन्द्रे कयो धर्म छे सत्य मोटो; खरी टेकथी धर्मने दील धारो, अदेखाइ निन्दा अने झेर वारो. भणो भावथी धर्मग्रन्थो विचारी, गुरुज्ञानथी सन्मति तो थनारी, कहे धीनिधि सत्य ए छे सुधारा, विवेके विचारो भो धारनारा.
॥८॥
॥१०॥
For Private And Personal Use Only
Page #152
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१३९
ॐ नमः
राग मराठी साखी. श्री संखेश्वर पार्वजिनेश्वर, जिनशासन जयकारी, धरणेन्द्र पद्मावती देवी, स्हाय करो निर्धारी; जिनभक्तिमां प्रेम करो नरनारी, भक्ति दुःख हरनारी. जिन. १ भक्तिथी जिनपद्वी मळे छे, भक्ति मुख करनारी; प्रभुभक्ति सहु कर्म हरे छे, कुमति कलंक निवारी. जिन. २ अष्टापदपर रावण आव्यो, भक्ति करी बहु भारी; नाटकथी तीर्थंकर पदने, पाम्यो जग उपकारी. जिन. ३ भगवतीसूत्रे जिनवरभक्ति, भाखी छे गुणकारी; प्रेमावेशे भक्ति करे तस, जाउं हुं बलिहारी. जिन. ४ भक्ति करतां केवल प्रगटे, भक्ति सद्गुण क्यारी; भक्तिरसमां सुख अनंतुं, भक्ति शिवपुरबारी. जिन. ५. दोष निवारी सद्गुण धारी, माया फंद विसारी; जिनवर भक्तिमां जीव भळतां, शिवपुरनी तैयारी. जिन. ६ पञ्चमकाळे भक्ति मोटी, भक्ति मनमां प्यारी; बुद्धिसागर भक्ति सारी, आनंद मंगलकारी. जिन. ७
ॐ नमः आत्मज्ञान.
मनहरछन्द. चेतनना ज्ञानविना चेतनना ध्यान विना, चेतनना भानविना चतुर चुकाय छे चेतनना ज्ञानथकी निजनो प्रकाश थाय.
For Private And Personal Use Only
Page #153
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१४० चेतनना ज्ञानथकी संयम सुहाय छे, चेतनना ज्ञानथकी माया मोह दूर जाय; चेतनना ज्ञानथकी आनन्द लहाय छे. चेतनना ज्ञानथकी टळे मान मळे सान; चेतनना ज्ञानविना भवमां भमाय छे. चेतनना ज्ञानथकी संयम सफल थाय; चेतनना ज्ञानथकी प्रतीति पमाय छे, चेतनना ज्ञानथकी आनन्द अपार होय. चेतनना ज्ञानथकी भ्रमणा भूलाय छे, चेतनना ज्ञानथकी उपाधि अलग जाय; चेतनना ज्ञानथकी जिन तो जणाय छे. चेतनना ज्ञानथकी तप जप सफलता; धीनिधि चेतनज्ञान उत्तम गणाय छे.
श्री पार्श्वनाथस्तवन.
सवैया एकतीसा. पार्श्व जिनेश्वर मंगलकारी, वन्दन होजो वारंवार; तब सेवन पूजा भक्तिथी, पामे प्राणी भवनो पार. अलख निरंजन निर्भयदेशी, मंगलमालाना करनार; जिनपडिमा जिन सरखी भाखी, भक्तिथी आवे भवपार. ॥१॥ भगवती रायपसेणी सूत्रे, जिनपडिमा वन्दनना पाठ; जिनपडिमा पूजाथी संवर, समजी ठाली मूको ठाठ. समवसरणमां जिनवर जेवी, जिनपडिमा वर्ते जयकार; वन्दन पूजन भक्ति करतां पाणी पामे भवनो पार. ॥२॥ धनने माटे कागळ नोटो, काढे छे जेवी सरकार;
For Private And Personal Use Only
Page #154
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नोटोमां रुपैया साचा, जोशो आ जगनो व्यवहार. जिनपडिमा पण तेवी रीते, जिन सरखी भावी मुखकार; वन्दन पूजन भक्ति करतां, पाणी पामे भवनो पार. ॥३॥ समवसरणमां जिनवर बन्दे, फळ पामे जे पाणी सार; तेवू फळ पडिमा वन्दनथी, समजो मनमां नर ने नार. कलिकालमां जिन पडिमानो, साचो मोटो छे आधार; वन्दन पूजन भक्ति करतां, प्राणी पामे भवनो पार. ॥४॥ सर्पबुद्धिथी दोरी हणतां, पंचेन्द्रिय हत्यानुं पाप; मन परिणामे फल ए जाणो, एवी जिन वचनोनी छाप. द्रौपतीए जिनपडिमा पूजी, धन्य धन्य श्रावक अवतार; वन्दन पूजन भक्ति करतां, प्राणी पामे भवनो पार. ॥५॥ सूत्रोना अक्षर छे जेवा, तेवी मूर्ति छे निर्धार; अक्षर पडिमा वे छे सरखां, स्थापन निक्षेपो जयकार. अरिहन्तना नामे मुक्ति, स्थापनथी पण तेवी धार; वन्दन पूजन भक्ति करतां, प्राणी पाम भवनो पार. ॥६॥ आगमने युक्तिथी साचो, जिनपडिमा वन्दन आचार; शाश्वत जिनपडिमाना पाठो, सूत्रोमां वर्ते हितकार. जिनपडिमानुं स्थापन करवू, उत्सव तेनो छे गुणकार; वन्दन पूजन भक्ति करता, प्राणी पामे भवनों पार. ॥७॥ जिनपडिमाथी जिननी यादी, जिननी यादी गुणर्नु मूळ; जिननी सेवा मीठा मेवा, भक्तिथी भागे छे भूल. बुद्धिसागर सापेक्षाथी समजी निश्चय ने व्यवहार; वन्दन पूजन भक्ति करतां, प्राणी पामे भवनो पार. ॥८॥
For Private And Personal Use Only
Page #155
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१४२ श्री पार्श्वनाथस्तुतिः
रुचिरा छंदः पार्थ जिनेश्वर वामानंदन, शरण सॅत्यै हारं मन करूं, प्राणपति तुं भवभय भंजन, अवलंबन हारुं छे खीं; तव नामे भय सघळां नासे, मंगलमाला थाय खरी, रुद्धि सिदि घटमां प्रगटे, वंदु प्रेमे भाव धरी. ॥१॥ जग उपकारी शिवसुखकारी, वंदे पूजे धन्यघडी, दुःखना वारक तारक साचा, वंदन आव्यो एक हडी; अज अविनाशी शिवपुरवासी, शर्म विलासी देव खरा, यति तति पति, पूजन साचं, ध्याने नासे जन्म जरा. ॥२॥ स्हाय करो सेवकने व्हाला, तुज सेवाथी बाल तरे, हृदयकमळमां समरू स्वामी, बाळक ताहरो कर गरे; दयानिधि हे दया करीने, तारो सेवक टळवळतो, राग दोष दावानळ जोरे, चतुर्गतिमा हुं बळतो. ॥३॥ शरणागतवत्सल तुं साचो, तव भक्तिमां भाव भळे, तव भक्तिथी शक्ति प्रगटे, रागादि दोषो सहु टळे; बाळ बाळ हुँ तारो व्हाला, मीठी सेवा दील खरे, अनुभवरसमा रंगाईने, सेवक सिद्धि सत्यवरे. ॥४॥ सिद्ध सनातन सत्य सुखंकर, पाये लागुं लळीलळी, तव दर्शनथी समकित श्रद्धा, सुखनी आशा सर्व फळी; तव गुण ध्यातां मुखडां प्रगटे, कुमति काळां कर्म टळे, बुद्धिसागर सेवन पूजन, करतां मुक्ति स्हेज मळे. ॥५॥
For Private And Personal Use Only
Page #156
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥१॥
॥२॥
१४३ श्री वीरप्रभुम्तुतिः
भुजंगी छंद. नमो वीर विश्वेश देवाधिदेवा; सदा ताहरी शीखमां शर्म मेवा, प्रभु पादपद्मे रहुं गरूपे; प्रभु रूपने हुं चहुं छं उमंगे. प्रभु तुहि साचो मुदा पाय लागुं, मुदा ताहरा ध्यानमां नित्य जागुं, हॅण्या रागने द्वेष ज्ञानेज भारी, अहो शक्ति भारी स्वभावेज त्हारी. जगज्जंतुने तारिया देशनाथी, गॅण्यो भेदना तें प्रभुरे कशाथी, अहो ताहरा ज्ञानमा सर्व भासे, अहो ताहरा ध्यानमां चित्त वासे. दिले वीरनी भक्ति लागीज साची, रहुं वीरनी भक्तिमां नित्य राची, प्रभु भक्तिथी शक्ति सर्वे पमाती, प्रभु भक्तिथी द्वेषनी जाय काती. प्रभु भक्तिथी दुःखना वृन्द जावे, प्रभु भक्तिथी सत्य आनंद थावे, प्रभु ज्ञानथी भक्तिमां भाव सारो, प्रभु ज्ञान भक्तिथकी दुःख आरो. जिने भाखियुं तत्त्व चैतन्य सारु, सदा शुद्ध चैतन्य छे तेज मारु, चिदानन्दरूपे प्रभु तुं सुहायो,
॥४॥
For Private And Personal Use Only
Page #157
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
लही ताहरो बोध आनंद पायो. पिता मात ने भ्रात ने इष्ट देवा, करु ताहरी प्रेमथी नित्य सेवा, कहे धीनिधि ध्येय ध्याने मुहायो, प्रभु वीरथी वीर्य सनभाव पायो.
॥ ७ ॥
श्री सद्गुरुस्तुतिः
भुजंगी छंद. (गुरुने देखी वंदन करतां आ प्रमाणे स्तुति करवी.)
अहो सद्गुरु दुःखथी तें उगार्यो, भवांभोधिथी सद्गुरु तेज तार्यो. नमुं हुं नमुं हुं नमुं हस्त जोडी, लघुता सजी माननी टेव मोडी. ॥१॥ भवांभोधिथी सत्य छो तारनारा, महा दानना सत्य छो आपनारा; कृपानाथ कोटी गमे कष्ट वारी, लीधो नाथ ते दुःखथी तो उगारी. ॥२॥ सदा एक आधार छे तुहि मारे, कृपानाथ तुं शिष्यनुं भव्य धारे; अहो सद्गुरु देव तुं उपकारी, नमुं नाथ देशो मुदा शीख सारी.
श्री सद्गुरुकृपामहिमा.
भुजंगी छन्दः मुणो शिष्य सारा कहुं प्रेम लावी, धरो भव्य शिक्षा सुख वृन्द चावी;
For Private And Personal Use Only
Page #158
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ १ ॥
॥ २ ॥
गुरुज्ञानने दीलमांही उतारो, गुरु ज्ञानथी आवशे दुःखआरो. गुरुभक्तिमां प्रेमथी चित्त जोडो, विवेके बहु दुर्गुणोने उखेडो; गुरुदर्शने दुःख सर्वे टळे छे. गुरुवंदने भाग्य वेळा वळे छे. गुरुनी दयाथी टळे कष्ट कोडी, रहे अष्टसिद्धि सदा हस्त जोडी गुरुनी कृपाथी मही मान पामे, गुरुनी कृपाथी ठरे एक ठामे. विनेया विचारी ग्रहो सत्य साचं, ग्रहो ना कदा दुःखदायीज काचुं; भलामां सदा राखशो रहेम दृष्टि, सदा जागशे रहेमथी आत्मसृष्टि. प्रमादे न पापो करो भव्य प्यारा, प्रमादे न सारा कदी तो थनारा; गुरुपाद सेव्या थकी ज्ञान था, गुरुज्ञानथी राग ने द्वेष जाशे. कुतर्को तजीने गुरुने भजीने, लहो सिद्धनां शर्म शान्ता सजीने; गुरुवाक्यमां शिष्यने शर्म साचं, गुरुनी कृपाचीण छे सर्व काचं. सजी सद्गुणोने रहो नित्य राची, कही शीख ते मानजो दील साची अहो धीनिधि सद्गुरु तारनारा, विचारी विनेयो ग्रहो दील प्यारा.
॥ ७॥
For Private And Personal Use Only
Page #159
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ २ ॥
देवसेवा.
भुजंगी छन्दः बाने चित्तहुं निर्मठे धर्मवाळु, टळे मोह वासीत जे चित्त काळु; ग्रहेथी मळे दीलमां शर्म मेवो, अहो देव एवो सदा भव्य सेवो. सदा राग ने द्वेष विहीन देवा, करो सिद्ध सर्वज्ञनी सत्य सेवा; भजे जेहने सर्व नासे कुटेवो, अहो देव एवो सदा भव्य सेवो. सदा ज्ञानथी सत्यनो जेह वादी. कॅह्यां तत्त्व साचां सदा जे अनादि अहो वीर सर्वज्ञ छे देव तेवो, अहो देव एवो सदा भव्य सेवो. नहीं शस्त्र हस्ते नहीं संग रामा, कहे धीनिधि वीत छे लोभ कामा; अहो जेहमां केवलज्ञान दीवो, अहो देव एवो सदा भव्य सेवो.
आत्माने उपदेश.
भुजंगी छंद. अरे आतमा चित्तमां जो विचारी, धरी जन्मने दुर्मति शुं वधारी, प्रभुए कह्यो धर्म चित्ते न धार्यो, प्रमादी अरे काळ तें फोक हार्यो.
॥३॥
॥४॥
For Private And Personal Use Only
Page #160
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
१४७
अहंभावां मस्त ज्यां त्यां फरे छे, कूडां कर्मने केम जाणी करे छे, अरे मोहना तोरमां केम माच्यो, रुपाळा रमारंगमां शीद राज्यो. अरे ठाने माठमां सर्व खोयुं, विचारी कदी रुप तारु न जोयुं, खरे मोहनी धूळी मुख धोएं, अरे जीव तें पाणीने शुं वलोयं. कदी सन्तने दान दीधुं न हाथे, धरी ना कदी सद्गुरुआण माथे, कर्यो धर्म ते आवशे एक साथे, जिनेन्द्रे का ज्ञानथी वीरनाथे. ॲण्यो ना गॅण्यो धर्मनां तव सारां ॲण्यो ने गॅण्यो तत्व जे छे नठारां, जिनेन्द्रे कहे अरे तें विसाय, फसी मोहमा आउने फोक हार्ड
हवे चेती ले आतमा धर्म जाणी, गुरु बोधथी जाणी ले जिनवाणी, कहे धीनीधि धर्मी शर्म खाणी, तृषावंतने इष्ट छे जेम पाणी.
हित वचनामृतम् .
भुजंगी छन्द. महीमां सदा अंध छे मूढ प्राणी, महीमां सदा पूज्य छे सत्यवाणी;
For Private And Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
112 11
॥३॥
118 11
115 11
॥ ६ ॥
Page #161
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१४८ महीमां सदा धैर्य धारीज मोटो, विचार्या विना मानवी थाय छोटो. ॥ १ ॥ कुडा वाक्यमां क्लेश छे दुःखदायी, भला कार्यमा शान्ति छे शर्मदायी अरे हास्यथी दुःख मोडं थनारु, महीमां सदा इष्ट छे वाक्य सारु. बुरी कामनाथी कयुं विष मोडे, असदवाक्यथी कोण छे जाण खोडं; सदा मूर्खनी संगतें दुःखगोटा, दयाना विना आवशे जीव तोटा. गुरुवाक्यना लोपथी दुःख भारी, नथी सन्मतिना विना सत्य यारी; अरे क्रोधथी अग्नि छे कोण मूंडी, बुरी कोण तृष्णाथकी अन्य ठूडी. ॥ ४ ॥ नथी शर्म संतोष जे विचारो, विवेके ग्रहो देहथी ब्रह्म न्यारो; सहु तीर्थ- तीर्थ छे आतमा रे, विवेकी मुदा आतमानेज तारे. ॥ ५ ॥ कळामां कळा धर्मनी एक साची, कळामां कळा कर्मनी सर्व काची; कथामां कथा धर्मनी दुःख टाळे, जुठी मोहनी टेवने जेह टाळे. ॥ ६ ॥ सहु वित्तथी ज्ञानवें वित्त साधु, कुडां वेंण बोले बुरु तास डाचं करे साधना धर्मनी तेह साधु,
For Private And Personal Use Only
Page #162
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१४९
अहो ढोंगी लोके जगत् फोली खाधुं. ॥ ७ ॥ खरुं ज्ञान ने भक्ति ते विश्व डाह्यो; धेर्यो धर्म ते विश्वमांहि कमायो, खरो भक्त के शूर दाता गवायो; खरो शिष्य ते ज्ञानिनो भेद पायो. खरी सद्गुरु सेवना दुर्लभा छे, सहु ज्योतमां श्रेष्ठ ज्ञानप्रभा छे सदा उच्च ने पूज्य छे विश्वज्ञानी, सदा नीच छे विश्वमां दुष्ट मनिा. सहु मानवी वश्य छे नम्रताथी; सदा सुख छे विश्वमां शांतताथी. कहे धीनिधि ज्ञानथी मुक्ति पामे; जीवो तो ठरे ज्ञानथी एक ठामे. ॥ १० ॥
मूर्ख संगति दुःखरूप छे.
भुजंगी छन्दः कदी ना करो संगति मूर्ख बूरी, अहो संगति मूर्खनी दुःख छूरी; सदा मूर्खनी संगमां दुःख छाया, अहो मूर्खनी संगमां कोण डाह्या. वने वास सारो कॅह्यो सत्य ग्रन्थे, लही शीख सारी चलो शुद्ध पन्थे; खरी वातमां मूर्खतो दाट वाळे, लडे वातमां लातथी मूर्ख गाळे. महा मूर्खनी वातमां सार काचो,
॥२॥
For Private And Personal Use Only
Page #163
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१५०
॥४॥
नथी मूर्खनी संगमां लाभ साचा पडे संकटे मूर्खनी संगवालो, सदा मूर्खनी संगने दूर टालो. यथा सर्पनो संग छे दुःखदायी, तथा मूर्खना संगमां दुःख भाइ; अहो मूर्खनुं मुख छे भाइ काळु, भलं जाणवू मूर्खना मुख ताळु. रहे मूर्खना संगमां दुःख कोटी, करो ना कदी संगति मूर्ख खोटी; अहो मूर्ख लोको भमाव्या भमे छे, महाधूर्तने मूर्ख लोको नमे छे. भलानुं बुरु स्हेजमां ते करे छे, जरा वारमां तो लडी ते मरे छे; कदी वित्त कोडी मळे बुद्धि थोडी, महा मूर्खनी कोण छ विश्व जोडी. अहो मूर्खनुं व्हाल ते काळ जेवू, हॅण्यो वानरे रायने जाण एवं; थनारु भो ना कदी मूर्ख संगे, सुरंगी कुरंगीपणे छे कुरंगे. सदा दुःखना पोटला मूर्ख साथे, लहे दुःख अग्नि ग्रहे नीज हाथे; मळे मान जो मूर्खना संग लीधे, मळे विरा जो मूर्खनो संग कीधे. तथापि न रीझो महा मूर्ख संगे, बळे दीलने दुःख थाशेज अंगे;
॥ ७ ॥
॥८॥
For Private And Personal Use Only
Page #164
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१५१
कहे धीनिधि मूर्खनी संग वारो, यदि शत्रु छे विज्ञ जाणोज सारो.
॥९
॥
धर्म फल महिमा.
भुजंगी छंद. रुडा धर्मथी सर्व शांति थनारी, मडा धर्थथी सर्व भ्रान्ति जनारी; रुडा धर्मथी कर्मनो अंत आवे, रुडा धर्मथी स्वर्ग सिद्धि मुहावे. रुडा धर्मथी विश्वमा उच्च थावे, मडा धर्मथी पापनो लेश नावे; रुडा धर्मथी लोकमां मान मोडं, रुडा धर्मथी थाय ना कांइ खोटुं. रुडा धर्मथी दुर्गति दूःख नासे, रुडा धर्मथी ज्ञान साचुं प्रकाशे; रुडा धर्मथी रागने द्वेष दूरे, रुडा धर्मथी सन्मति दील स्फुरे. रुडा धर्मथी संकटो दूर जावे, रुडा धर्मथी देवता स्तोत्र गावे, रुडा धर्मथी शत्रुओ मित्र होवे, रुडा धर्मथी स्वर्गनां शर्म जोवे. रुडा धर्मथी होय ज्यां त्या रुपार्छ, कडाधर्मथी दुःख तो जाय काळ
॥२॥
॥३॥
॥४॥
For Private And Personal Use Only
Page #165
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
१५२
रुडो धर्म तो कर्मनो क्लेश टाळे,
रुडो धर्म तो दुर्मति शिघ्र टाळे रुडा धर्मधी होय सर्वत्र सिद्धि, रुडा धर्मधी होय छे सर्व सिद्धि, कहे धन धर्म छे विश्व सारो, सदा भव्य लोको दॉले धर्म धारो.
प्रभु स्तुति.
भुजंगी छंद.
अरे देवना देव आनंद दाता, प्रभु तुं वडो मातने त्रात भ्राता; सदा हस्त जोडी प्रभु हं नम हूं, प्रभु पादपद्मे सदा हुं रमुं छं. धरी ध्याने दोषना वृन्द टाळ्या, घरी ध्यानने कर्मना वर्ग खाळ्याधरी ध्यानने केवल ज्ञान लीधुं, घरी ध्यानने ब्रह्मनुं दान दी. धरी ध्यानने सिद्ध सौधे सुहाया, घरी ध्यानने मुक्तिनां शर्म पाया; चिदानन्दरुपे प्रभु तं सुहायो, महा योगितुं चित्तमां नित्य आयो. अरुपी असंख्य प्रदेशी प्रमाता, प्रभु तुं सदा तत्त्वनुं दानदाता; तव ध्यानथी ध्येयरूपे प्रभासे,
For Private And Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ ५ ॥
॥ ६ ॥
॥ १ ॥
॥ २ ॥
॥ ३ ॥
Page #166
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१५३
चिदानंदनी ल्हरियो चित्त वासे. खरा इश देवेश दातार सेवा, अमारे सदा मोक्षना एज मेवा; प्रभुध्यानथी प्रेमनो भेद पायो, प्रभुप्रेमथी सत्य आनंद आयो. सदा सेवना देव त्हारी भली छे, प्रभुप्रेममां चित्तवृत्ति हळी छे; प्रभुप्रेममां धीनिधि विर{ हूं, सदा हस्त जोडी प्रभु हुं नम ई.
अन्तरप्रदेशध्वनिगान.
गझल. जगत्ने आंखथी देखें, जगत्ने ज्ञानथी लेखें, जगत्ने देखतां शान्ति, जगत्ने देखतां भ्रान्ति. ॥१॥ जगत्ने देखतां जोगी, जगत्ने देखतां भोगी, जगत् तो देखतां साचुं, जगत्तो देखतां काचुं. जगत्ना भाव छे खोटा, जगत्ना भाव छे मोटा. जगत्मा प्रेमनी वीणा, जगत्ना भाव छे झीणा. जगत् छे दुःखनी छाया, जगत्मां कर्मथी काया, जगत्ना खेल खेलाडं, जगत्मां तत्वना लाडु. जगत्मां मोहनी बाजी; जगत्मां मूढ छे राजी, जगत्ना जोषमा दोषो, जगत्मां कोणन रोशो. ॥५॥ जगत्मां राग ने द्वेषो, जगत्मां प्रेम ने क्लेशो, जगत्मां कोण छे मोटा, जगत्मा कोण छे छोटा. ॥६॥
For Private And Personal Use Only
Page #167
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१,४ जगत्ने जाणता योगी, जगत्मां मृढ छे भोगी, जगत्मां मोहथी मारु, जगतमां मोहथी तारु. ॥७॥ जगतमां धर्म छे साचा, जगतमा मोह छे काचो, जगत्मां मोहथी फेरा, जगतमां मोह अन्धेरा. ॥८॥ जगत्मां मूर्ख छे मेला, जगत्मां मृढ छे घेला, जगत्मां ज्ञान ने गांडा, जगतमा धर्मि ने बांडा. ॥ ९ ॥ जगतना प्रेममां फांसी, जगन्ना प्रेममा हामी, अगत्ना क्लेशथी काळु, जगतने ज्ञानधी माळ. ॥१० ।। जगत्मा झरना प्याला, जगतमां उघना बाला. जगत्मां जागता सुखी, जगतमा उंचता दुःखी, ॥ ११ ॥ जगत्मा प्रेमना मळा, जगत्मां पुण्यनी वेळा, जगत्मां सत्यना नोटा, जगतमा मोहना गोटा. ॥१२॥ जगत्मां धर्मना ग्रंथो, जगतमां मोक्षना पंथो, जगतमां बंध ने मुक्ति, जगन्मां ज्ञानथी युक्ति. ॥१३॥ जगतमां भूख हे भुंडी, जगतमां आश छे लूंडी, जगन्ना भर्म ,डा छे, जगतना भर्म कृडा छे. ॥५४॥ जगतमा सन्तनी सेवा, जगतमां सत्य छे देवा, जगतमां भर्म छे छानो, जगत्मां भर्म छे मानो. ॥ १५ ॥ जगतमां पुण्य ने पापो, जगत्मां धर्मनी छापो, जगत्ने जाणवु न्यारू, जगतने जाणवू घारू. ॥ १६ ॥ जगत्मा साच हे सारू, जगत्मां भर्म अंधार, जगतमां आत्म छे दीवो, जगतमा ज्ञानथी जीवो. ॥ १७ ॥ जगत्मां रंक ने राजा, जगतमां पीर ने ग्वाजा, जगन्ने जाणतां प्यास, जगतने जाणतां ग्वारु. ॥१८ ।। जगतमां ज्ञानथो रहे, जगतमां दुःख सह स्हेवू,
For Private And Personal Use Only
Page #168
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जगनत्मां हूं जगतमां नहीं, अपेक्षा ज्ञानमा ए रही. ॥१९॥ जगतमां जीवयुं ज्ञान, जगत्मां जागवू भाने, बुद्धयब्धि ज्ञानथी बोले, नहि को ज्ञाननी तोले. ॥ २० ॥
प्रभुप्रमखुमारीना उद्गार.
गजल.
समजजो प्रमी भक्ति, समजजो प्रेमी शक्ति समजजो प्रेमथी सेवा, समजजो प्रेमथी मेवा. ॥१॥ प्रभुना प्रेमथी शान्ति, प्रभुना प्रेमथी कान्ति: प्रभुमा प्रेम तो करशु, प्रभुना प्रेमथी तरशु. ॥ २ ॥ प्रभुने प्रेमथी मळवू, प्रभुमा प्रेमथी हळकुं; प्रभुना प्रेमथी जोगी, प्रभुमा प्रेमथी भोगी. प्रभुमा प्रेमथी राचु, प्रभुमा प्रेमथी साचु; प्रभुमा प्रेम जो जागे, तदातो दोप सहु भाग. ॥ ४ ॥ प्रभुमां प्रेमथी मुखो, प्रभुमां प्रेम वण दुःखो; प्रभुने जाणतां प्रेमी, प्रभुने जाणतां क्षेमी. प्रभुमा प्रेमी रमवं, प्रभुमा मथी भमg; प्रभुने पूजीए प्रेम, प्रभुने पूजीए नमे. पभुमां प्रेमी सिद्धि, प्रभुमा प्रेमी कद्धि; प्रभु छ सर्व तीर्थेशो, पूजनथी जाय छे क्लेशो. ॥ ७ ॥ प्रभु आ आतमा साचो, सदा त्यां मथी राचो; प्रभुनी सत्य छे यारी, समज तुं दीलमां धारी. ॥८॥ प्रभु सम सर्वने भालु, तदा छे दील अजवाळु; प्रभु सम सर्वने जाणुं, दिले जब संग्रहनय आणुं. ॥ ९ ॥
For Private And Personal Use Only
Page #169
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१५६ जगतमां प्रेम छे खोटो, प्रभुमां प्रेम छे मोटो; बुद्धयन्धि प्रेम परखी ले, हृदयमां भव्य हरखी ले. ॥१०॥
सामान्य हितबोध.
गजल. विचारी वातने वोलो, विवेके सत्यने तोलो; लघुता दिलमां धारो, अहंता दीलथी वारा. गुरुगम ज्ञानने लीजे, भलामां दील दीजे; गुरुमां प्रेमथी भक्ति, गुरुनी भक्तिथी शक्ति. ॥२॥ गुरुना वाक्यने पाळो, थता दोषो सहु टाळो; कपटना फन्दने त्यागो, सदानिज आत्ममां जागो. ॥ ३ ॥ गणो सरखा सहु जीवो, करोने ज्ञान घट दीवो; दया दाने बनो सारा, प्रभु प्रेमे बनो प्यारा. ॥४॥ बुरामा चित्त ना देवं, सदा सुख शान्तिमा रहे; उपाधियी रही न्यारा, भजोने ब्रह्मने प्यारा. ॥५॥ सदानंद जीवन गाळो, चेतनना श्यानमां म्हालो; प्रभुनी भक्तिमां रीझो, कटु वेणे नहीं खीजो. करो संगत शूरानी, तजो संगत अधुरानी; अहो ज्ञानी सदा शुरो, अहो पापी सदा बूरो. ॥ ७ ॥ सदा तत्त्वे रहो राची, गणी माया महा काची; करुणा जीवपर करवी, समाधि शान्तता वरवी. ॥८॥ कदापि क्लेश ना करचो, कदापि क्रोध ना धरवो; बुद्धयन्धि तत्त्वमां मेवा, अमारे ज्ञाननी सेवा. ॥९॥
For Private And Personal Use Only
Page #170
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
देहस्थआत्मानी परमात्मावस्थानुं भान.
गजल. अहो आ देहमां देखो, चेतनजी ज्ञान धन पेखो; अरुपी तत्व छे पोते, अरे तुं वाद्य क्यां गोते. ॥१॥ अनंति शक्तिनो स्वामी, निःसंगी शुद्ध निष्कामी; सहु देखे सहु जाणे, अनंतां सुख दील माणे. ॥२॥ परमब्रह्म स्वयं शुद्ध, परमयोगी परम बुद्ध परमध्याता परमध्येय, परम ज्ञाता परम ज्ञेय. परमयोगी परमभोगी, विगतशोकी विगतरोगी; अखंडानंद अविनाशी, परम पद शुद्ध विश्वासी. ॥४॥ परमभ्राता परम त्राता, परम नेता परम दाता; परानो पार जे पावे, योगीश्वर चित्तमां ध्यावे. ॥५॥ प्रकाशे सर्वने तेजे, रमे जे ब्रह्ममां स्हेजे; अनित्य नित्य छे हीरो, रमे छे ध्यानमां धीरो. ॥६॥ प्रकाशे पिंडमां पोते, अनंती ज्ञाननी ज्योते; बुद्धयब्धि ध्यान पोतार्नु, करीने देखीए भानु. ॥७॥
समय शिक्षाना उद्गार.
गझल. जगत्ने रहेमथी देखो, जगत्ने प्रेमथी पेखी; जगत्मां देखवा ग्रन्थो, जगत्मां धर्मना पन्थो. ॥१॥ जगत्मां जाणवू सारु, जगत्मा त्यागवु खारु; जगत्मां सत्य शोधी ले, जगत्मां सत्य बोधी ले. ॥२॥ जगत्मां दान देवानु, जगत्मां ज्ञान लेवानें; जगत्मां सत्यनु बारु, जगत्मां मोह अंधारु. ॥३॥
For Private And Personal Use Only
Page #171
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जगत्मां जागवू जोग, जगत्मां भूलवू भोगे; जगत्मां मोहनी झाडी, जगत्मां धर्मनी वाडी. ॥४॥ जगत्मां सत्य परग्वातुं, जगतथी दील हरखातुं; जगत् जंजालथी दृरे, बुद्धचब्धि देव मुख पूर. ॥५॥ .
वखतना विचित्र रंग.
गझल. कोइ दिन ताठ ने तडको, कोइ दीन भुखनो भडको; कोइ दिन लक्ष्मीनी ल्हेरो, काइ दिन रंकनो चहरो. ॥१॥ अमीरी कोइ दिन आवे, फकीरी कोइ दिन थावे; कोई दिन हस्त जन जोडे, कोइ दिन मान जन मोडे. ।।२।। कोइ दिन गाममा फेरा, कोइ दिन जंगले डेरा; कोइ दिन पुण्यनी यारी, कोइ दिन दुःखनी क्यारी. ॥३॥ अवस्था सर्व नहि सरखी, हरख जो धर्मने परखी; बुद्धब्धि धर्मनी सेवा, हमारे शुद्ध ए मेवा.
केशविटंबना.
गझट. सदा छ दुःख कंकास, रहे नहि प्रेम ता पास; सदा छे क्लेशमां कालु, वसे छे दील अंधारु. ॥१॥ नहि को क्लेशथी मुखी, सहु छे क्लेशथी दुःखी; वसे छे लेशमा कुमति, खसे छे क्लेशथी मुमतिः ॥२॥ भले अग्नि धरो हाथे, भले सो धरो माथे; परंतु क्लेश ना करवो, सदातो संप अनुसरवो. ॥३ ।।
For Private And Personal Use Only
Page #172
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जगतमां केशथी वैरी, जगत्मां क्लेश छे झेरी; जगत्मां क्लेश करनारो, सदा ते दुःख धरनारो. ॥ ४ ॥ जगत्मां क्लेश के पापी, जगत्मां क्लेश छे व्यापिः जगतमां कशी भृटुं, कदा नहि क्लशथी रुटुं. ॥५॥ जगतमा युद्ध छे क्लेशे, जगत्मां क्लेश छे द्वेपे महा छे क्लेश खारीलो, थतो तो क्लश वारी ल्यो. ॥६॥ बने छे क्लेशथी खोटो, बने छे क्लशथी गोटोः । दीले नो क्लश छे दारू, कदी नहि क्लेशथी सारू. ॥७॥ मळे नहि क्लेशथी पाणी, करे छे क्लेश धूळ धाणी; कुटुंबो केशथी भागे, नगारां दुःखनां वागे. ॥८॥ करेलां पुण्य तो नासे, हृदयमां क्लेशना वासे; । करो नहि केशी यारी, समज आ दीलमां धारी. ॥९॥ बुरामां लेश छे बूरो, बूरामा क्लेश छे शूरो; बुद्धयब्धि क्लेशने वारी, सदा सुसंप दील धारो. ॥१०॥
मल्लिजिन स्तुति.
गझल. मल्लिजिन देवना देवा, भली छे सत्य तुज सेवाः तमारा रूपमां राचुं, सदा छे रूप तुज साचं. ॥ ? ।। अहो इश देवतुं प्यारो, जगत्मां सत्य तुं सारो; तमारी भक्तिमां भळशु, तमारी भक्तिमां हळशु. ॥ २ ॥ तमारी तेज मारी छे, हृदयमां वात धारी छ । तमारी भक्ति छ प्यारी, अखंडानंद गुण क्यारी. ॥ ३ ।। प्रभु तव बाळ छे छोटो, करोने रहेमथी मोटो; कपटना फंदने कापो, मदा सुख सिद्धनां आपो. ॥ ४ ॥
For Private And Personal Use Only
Page #173
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१६०
प्रभुनी भक्तिथी शक्ति, प्रगटती आत्मनी व्यक्ति;
प्रभुने वदतां शान्ति, प्रभुने वदतां कांति. प्रभुजी रहेमना दरिया, प्रभुजी ज्ञानथी भरिया: सेवकनां कष्ट कापोने, सेवकने सुख आपोने. प्रभुना ध्यानथी तरशु, अनंतां सिद्ध सुख वरशं; बुद्धयन्धि बाळने तारो, हृदयनी अर्ज अवधारो.
For Private And Personal Use Only
॥ ५ ॥
॥ ६ ॥
119 11
सम्प महिमा.
गझल.
॥ १ ॥
अगत्मा संपमां सुखो टलेले संपथी दुःखो, जगत्मां संपथी सारु, मळे छे संपथी प्यारु. जगतमां संपथी शान्ति टळे छे संपथी भ्रान्ति, जगत्मा संपथी सुमति, टले छे संपथी कुमति. ॥ २ ॥ जगत्मां संप छे मोटो, टले छे क्लेशनो गोटो,
॥ ४ ॥
जगत्मां संप गुणकारी, जगत्मां संप मुखकारी ॥३॥ धर्याथी संप सुख धाशे, धर्याथी संप दुःख जाशे, भला संपे रहो जंपे, नहि को क्लेशी कंपे. उदयनुं चिन्ह छे साधुं सदा सुसंपमां राचु, शुभोदय सर्व ले एमां, रहो राची सदा तेमां ॥ ५ ॥ सदानुं शर्म थानारु, सदानुं दु:ख जानारु, मळे छे संपथी साचं, टले छे संपथी काचं. ॥ ६॥ जगतमां संप छे भारी, करो सहु संपनी यारी, टळे छे संपथी क्लेशो, सुखी छे संपथी देशो• ॥ ७ ॥ सहुथी संप छे मीठो, नहि को तेह सम दीठो, सुजन सह संपथी राजे, उदयनी टोकमां गाजे. ॥ ८ ॥
Page #174
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१६१
सुसंपे वित्ततो आवे, सुसंपे दीनता जावे, सुसंपे धर्मने थापे, सुसंपे क्लेशने कापे. ॥९॥ सदा सुसंपमा रहे, कोइने दुःख नहि देवू. बुद्धयब्धि संप वलिहारी, अमारे संपथी यारी. ॥१०॥
चिदानंदोद्गार.
गझल.
हमारे एक छे देवा, हमारे प्रेमथी सेवा; हमारे प्रेमथी मळवू, हमारे प्रेमथी हळवू. ॥१॥ जगत्मा प्रेमथी रहे जगतमा प्रेमथी कहेवू जगत्मा प्रेम मोटो छे, जगत्नो प्रेम खोटो छे. ॥२॥ खरेखर प्रेमथी योगी, अखंडानंदना भोगी; प्रभुने प्रेमथी गावा, प्रभुना प्रेमथी चावा. ॥ ३ ॥ हमोए सत्यने शोध्युं, हमोए सत्यने बोध्; जीवोपर रहेमनी दृष्टि, खरेखर धर्मनी दृष्टि. ॥४॥ जगत्मां कर्मथी जीवो, करे छे दुःखथी रीवो; करुणा तेहपर करशें, खरेखर रहेमथी तरशं. ॥५॥ करीशं सर्वनुं सारु, धर्यावण रहेम अंधारूं; करुणा धर्म धन हेली, हमारे दील वरसेली. ॥६॥ हमारे आत्मवत् सर्वे, सरीखा जीव शुं गर्वेः लघुने मोटका प्यारा, जीवो छे ज्ञानघन सारा. ॥ ७ ॥ कदी नहि वेर को साथे, बरु नहि शस्त्र मुज हाथे; मळो सहु जीवने सुखो, टळो सहु जीवनां दुःखो. ॥८॥ हमारे आत्मनी प्रीति, धरी में आत्मनी नीति; जगतमा जागता तरवू, जगत्मां ब्रह्मपद वर. ॥ ९ ॥
For Private And Personal Use Only
Page #175
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
१६२
धरु नहि आत्मवण प्रीति, धरी में आत्मनी रीति; बुद्धयन्धि आत्मनी कहेणी, खरेवर आत्मनी रहेणी ॥१०॥
स्वार्थ महिमा.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
गझल.
॥ १ ॥
जगतमां स्वार्थना दरिया, सहुजन स्वार्थथी भरिया, जगत्मां स्वार्थना प्रेमी, जगतमां स्वार्थना नेमो. जगत् सहु स्वार्थमां गाजे, रहे नहि स्वार्थथी लाजे, जगत्मा स्वार्थनी यारी, जगत् छे स्वार्थनी क्यारी ॥ २ ॥ जगत्छे स्वार्थनुं प्रेर्यु, जगत् छे स्वार्थं घे, जगतमां स्वार्थथी पापो: जगतमां स्वार्थनी छापो ॥ ३ ॥ जगतमां स्वार्थनी होळी, मनोहर स्वार्थनी बोली, ' जगत् सहु स्वार्थथी अंधु, जगत् सह स्वार्थथी बन्धु ॥ ४ ॥ जगत्मां स्वार्थना शिष्यों, जगतमां स्वार्थथी रीसो, जगतमां स्वार्थथी माया, जगत्मां स्वार्थना जाया. ॥ ५ ॥ जगतमां स्वार्थथी मोटा, जगतमां स्वार्थना गोटा, जगत् सहु स्वार्थथी घेल, जगत सह स्वार्थथी मेलु. ॥ ६ ॥ जगत् सह स्वार्थ पूजारी, जओने तत्वधी धारी. जगतमां स्वार्थ छे मीठो, जगतमां स्वार्थ ले घीठो ॥ ७ ॥ जगत्मां स्वार्थ छे भारी, गया सह स्वार्थथी हारी, जगत्मां स्वार्थनां व्हालां, जगतमां स्वार्थथी कालां ॥ ८ ॥ जगतमां स्वार्थ छ कालो जगत्मां स्वार्थ कंटाळो, जगत्मा स्वार्थ छे खाडो, सदा छे मुक्तिथी आडो. ॥ ९ ॥ जगतमां स्वार्थथी सेवा, जगत्मां स्वार्थना मेवा, जगत्मां स्वार्थ छे बुरो, जगत्मां स्वार्थ छे शूरो. ॥ १० ॥
For Private And Personal Use Only
Page #176
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जगत सहु स्वार्थ- रागी, अहो कोइ स्वाथनुं त्यागी, बुद्धयब्धि स्वार्थनें त्यागो, हृदयमां ज्ञानथी जागो. ॥११॥
असार दुनिया सजाय.
( श्रीरे सिद्धाचल भेटवा ए राग. ) जगमां कोई न कोइy, जूठ सगपण बाजी, माझ मारु त्यां मानीने, केम रहे राची. जगमां ॥ १ ॥ म्वारथिया संसारमा, जवि नाचे छे कमें, साथ न कांइ आवतुं, वाळ दीलडं धर्मे. जगमां. ।। २ ।। अज्ञाने जीव आंधळो, शुद्ध धर्म न देखे, विषय वासना नाचमां, पुण्य पाप न लेखे. जगमां ।। ३ ॥ गद्धावेतरु बहु करे, मोहमाया भरेलो, पापनी पोठी बांधीने, जाय नरके एकीलो; जगमां. ॥ ४ ॥ आज काल करतां थकां, वीती आयुष्य जावे, धर्म कर्म बे साथमां, अंते परभव आवे. जगमां. ॥ ५ ॥ चेत चेत अरे जीवडा, त्याग दुनिया बाजी, बुद्धिसागर धर्मथी, रहेजे निशदिन राजी. जगमां. ॥६।
घडीमां नव नवा रंग.
गझल. घडीमां सुख आवे छे, घडीमां दुःख थावे छे, घडीमां चित्त चकडोळे, घडीमां तत्त्वने खोळे. घडीमां ज्ञाननी वातो, घडीमा शोक नहि मातो, घडीमां प्रेमना प्याला, घडीमा शोकनी ज्वाला. ॥२॥
For Private And Personal Use Only
Page #177
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१६३
घडीमा लागतुं मी, घडीमां थाय नहि दी, घडीमा चित्त आनंदे, घडीमां चित्तहुं फंदे. घडीमां क्रोधने माया, घडीमां ध्याननी छाया, घडीमां चित्त दिलगीरी, घडीमां वात अणधीरी. घडीमा ध्याननी वेळा, घडीमां मित्रना मेळा, घडीमां थाय धूळ धाणी, घडीमां थाय गुण खाणी. ॥ ५ ॥ घडीमां थाय छे सारु, घडीमां थाय अंधारु. astri अन्नने पाणी, घडीनी बात नहि जाणी. घडीमां वित्तने वाडी, घडीमां बेसवा गाडी, घडीमां रंकनी वेळा, गडीमां होय बगडेला. घडीमां चित्त हडकायुं, घडीमां चित्त छे डाहां, घडीमा तत्त्वनी वातो, घडीमां युद्धनी लातो. घडीमां थाय अणधार्यु, जीवन तो जाय छे हार्य, घडीमां वात छे खोटी, घडीमां वात छे मोटी. घडीना रंग छे न्यारा, समज ले दीलमां प्यारा, घडीना रंगमां गोटा, घडीना रंगमां छोटा. घडीमां ज्ञाननी बाजी, घडमां रंक ने काजी; बुद्धचब्धि ध्यानमां धीरा, विवेके जाणजो वीरा ॥ ११ ॥
For Private And Personal Use Only
॥ ३ ॥
118 11
॥ ६ ॥
॥ ७ ॥
॥ ८ ॥
॥ ९ ॥
11 30 11
मायापाशनी सजाय
श्रीरे सिद्धाचल भेटवा - एराग
माया. || १ ||
माया पाशमां जे पडया, दुःखिया जन ते तो; माया छे विषवेलडी, चित्त चेतन चेतो. मृगतृष्णावत् मोहथी, कदी थाय न शांति, संसारमा सुख नहि कदी, मिथ्या एह भ्रांति माया ॥२॥
Page #178
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चेत चेत अरे जीवडा, सत्य धर्मनुं टाणुं; बुद्धिसागर धर्मनुं, एक शरणुं मजानु
माया. ॥ ३ ॥
अन्तर्वृत्ति स्वाध्याय.
श्रीर सिद्धाचल भेटवा-पराग. शुद्ध रमणता आदरो, थाओ निजगुण भोगी; बाह्यदशा चित्त वारीने, थाओ सहजोपयोगी. शुद्ध. ॥१॥ परमानंद स्वभाव छे, शुद्ध चेतन द्रव्य; सोहं सोहं ध्यानथी, सेवना कर भव्य. शुद्ध. ॥ २॥ नवधा भक्ति जे आत्मनी, करशे ते तरशे; रत्नत्रयीनी लक्ष्मीने, वेगे ते हि वरशे. शुद्ध. ॥३॥ निश्चय भावदशा भजी, चेतन थाय मुखी; अनुभवामृत पीवतां, कदी थाय न दुःखी. शुद्ध. ॥ ४ ॥ बाह्यदशा व्यवहारथी, भटके जीव भारी; अप्रमत्त दशा विना, जाय उम्मर हारी. शुद्ध. ॥ ५ ॥ शाब्दिक तार्किक पंडितो, बाह्यझघडे राता; चउद पूर्वी प्रमादथी, भवोभव भटकाता. शुद्ध. ॥ ६ ॥ शुद्ध रमणता प्रीतडी, निश्चय सत्य मानी; बुद्धिसागर बोधथी, वात कोइ न छानी. शुद्ध. ॥७॥
~~~- - ~कपटमाहमा.
गजल. कपटना फंद छ काळा, कपटना चित्र छे चाला; कपटथी कर्म छ कुडं, कपटथी थाय नहि रुटुं. ॥१॥ कपटमा कर्मना दरिया, कपटथी कोइ नहि ठरिया;
For Private And Personal Use Only
Page #179
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कपटमां पापनी पोठो, कपटमा स्वार्थनी गाठो. ॥२।। कपटना कोल छे न्यारा, कपटमा स्वार्थना धारा; कपटथी काळ आवे छे, कपटथी दुःख थावे छे. ॥३॥ कपटमा स्वार्थनी फांसी. कपटनी चित्र छे हांसी; कपटथी धर्म छे दृरे, कपटथी दुर्मति स्फुरे.. कपटमां चित्त छे काळु, कपट छे मोह कुंडाळु; कपटना फंद छे बूरा, कपटना फंद छे पूरा. कपटमां मिष्ट छ वाणी, कपटथी थाय धूळधाणी; कपटने पंडितो परखे, कपटमां पापियो हरखे. कपटमां जीव सहु झुल्या, कपटमां जीव सहु डुल्या; कपटमां आतमा वांको, कपटमां केशनो फांको. ॥७॥ कपटमां पापना गोटा, कपटथीं सर्व छ खोटाः कपटमां नीचता भाळु, कपटमां द्वेषनुं झाळू. ॥८॥ कपटमां कर्मनी कोडी, कपटनी कोइ नहि जोडी; कपट त्यां धर्म नहि रुडो, कपटने जाणवो भंडो. ॥९॥ कपट छे विषना प्याला, कपट छे अनिनी ज्वाला; कपटमां काळ छ काळो, कपटने ज्ञानथी टाळो. ॥१०॥ कपटने त्यागतां सृद्धि, कपटने त्यागतां रुद्धिः बुद्धयब्धि धर्मने धारो, कपटने दूरथी वागे. ॥ १॥
दुःखकर संसारस्वरूप सजाय.
श्रीरे सिद्धाचल भेटवा एगग. दुःखदारया संसारमा, कदी नहि सुखाशा; विषयवासना पासना, ज्यां त्यां जबरा तमामा. दुःख. ॥१॥ मोहे मुंझी जीवडो, ज्यां त्यां भटके मनथी;
For Private And Personal Use Only
Page #180
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१६७
सुख नहि ललना पुत्री, सुख नहि तन धनश्री. दुःख ||२|| चेतनमा सुख नित्य छे, ज्ञान ध्यानथी वरः बुद्धिसागर धर्मश्री छेडे छूटे फरं.
दुःख. ॥३॥
जगत् जीवोना विचारनी विचित्रता.
गझल.
॥ १ ॥
चढे छे कोइ वरघोडे, चहे छे कोइ वरजोडे, पंडे छे कोई पाताले, चढे छे कोइ शिव म्हाले. जगतमा कोइ जन जोगी, जगतमां कोइ जन भोगी, जगतने कोइ जन जुवे, जगत्ने कोइ जन रुवे. जगत्मा कोइ जन रागी, जगत्मा कोइ वैरागी, जगत्ना मोहमा फसीया, जगत्ना मोहमां रसीया, ॥ ३ ॥ जगतथी कोइ कंटाळे, जगत्ने कोड पंपाळे.
|| 2. 11
जगतनी आशथी दासा, जगत्ना जूट विश्वासा. जगतमां मोहथी घेला, जगतमां मोहधी मेला, जगतमा कोइ जन झूल्या, जगत्मां कोइ जन भूल्या. ।। ५ ।। जगत् छे दुःखनी क्यारी, जगत्नी बात छे न्यारी, जगतमा कोइ पडाया, तरे छे कोइ जन डाह्या. अरे कोइ मोहथी वांका, अरे कोई मोहथी फांका, बुद्धयन्धि संतनी सेवा, अमारे शुद्ध ए मेवा.
॥ ६ ॥
जगतनी अस्थिरता.
गजल.
जुने आंख उघाडी, भलां नहि लाडी ने गाडी, जीवलडा सत्य जाणी ले, हृदयमां वात आणी लें.
For Private And Personal Use Only
118 11
|| 9 11
॥ १ ॥
Page #181
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१६८
मरेछे रंक ने राणा, मरेछे मूर्व ने शाणा, अमर नहि कोइ शं फूले, अरे शं मोहमां डूले. ॥२॥ झपाटा कालना वागे, जगत्मां योगियो जागे, जगतमा जूठ छे माया, जगत्मां जूठ छे काया. सदातो काळ शीर जागे, फुले शुं मानवी रागे, करे शुं पापने पापी, प्रभुनी आण उत्थापी. ॥४॥ अरे शु जन्मने हारे, अरे तुं जीव शीद मारे, विचारी जीवडा जोने, कर्यां सहु कर्मने धोजे. ॥ ५ ॥ दयाने दिलमां धरजे, विचारी धर्मने करजे, समयने साधी ले शाणा, नहि को रंक ने राणा. ॥६॥ प्रभुनो धर्म करनारा, भवाब्धिशिघ्र तरनारा, जगत्मां धर्म छे सारो, अरे नहि धर्मने हारो. कर्यु ते पुण्य छे साथे, कर्यु जे पाप ते माथे. नहि को कर्मथी छूटे, विना भोगे नहीं ग्वटे. ॥८॥ विचारी वात ले वीग. धरे जे धर्म ने धीरा, फजेती फूलतां था, लहीने दुःख पस्ताशे. ॥१॥ शिखामण वात छे छेली, ग्रहीने शिख आ वहेली, बुद्धयब्धि चाल शिवपंथे, धरी ले प्रेम सदग्रन्थे.
जरातो विचार.
गजल. समजले चित्तमां हरखी, खरेखर धर्मने परखी, मळ्युं आ धर्मर्नु टाणुं, मळमु आ धर्मनुं नाj. भणीने जीव शुं भूले, भणीने जीव शुं झूले, विचारी वात ले वीरा, धरीले धर्मने धीरा.
॥२॥
For Private And Personal Use Only
Page #182
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥३॥
जगत्मां मोहनी बाजी, रह्यो शुं तेहमां राजी, कायररे मन केम कंपे, कायरनां वेण शुं जंपे. जगत्मां चेतजे व्हेलो, समय तो जाय छे छेल्लो, धरीने जन्म शुं धार्यु, धरीने जन्म शुं वायु. विवेके वात परखाशे, तदातो सन्य सुख थाशे, मुद्धचन्धि धर्मनी वाटे, चलोने भव्य शीर साटे.
॥४॥
॥५॥
मन्त.
गजल. हमारे सन्तनी सेवा, हमारे सन्त छे देवा, हमारे सन्तने मळवू, हमारे सन्तथी हळवं. हमारे सन्तधी शांति, टळे छे सन्तथी भ्रांति, मुणीशु सन्तनी वाणी, सुधा सम दीलमां जाणी. ॥२॥ करीशुं सन्तनी भक्ति, लहीशुं आत्मनी शक्ति, हमारे संत सौभागी, जगतमां सन्त वैरागी. जगत्मां सन्त छे प्यारा, जगत्थी सन्त छे न्यारा, हमारे सन्तनी यारी, ठरीशं, दोपने ठारी. हमारे संतथी वातो, भली छे सन्तनी जातो. बुद्धचन्धि सन्तनी सेवा, मुनीश्वर सन्त छे मेवा. ॥५॥
वचननी टेक पाळ्या विषे.
गजल. वदेला वेंणने पाळे, खरे ते धन्य कलि काळे, बदेला वाक्यमा शूरा, खरेखर सन्त छे पूरा.
॥१॥
For Private And Personal Use Only
Page #183
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१७० कहेलु फोक जो थावे, तदातो दुःख बहु थावे, धरीने टेक जे पाळे, जगतमां सुखमां म्हाले. ॥२॥ धरीने टेक जे छोडे, शिलाथी शिर ते फोडे, तजीने टेक जे हसतो, कुतरनी जेम ते भसतो. ॥३॥ वचननी टेक जे छंडे, पडे ते कष्टना फंदे, वचननी टेकमा शान्ति, वचननी टेकमां कान्ति. ॥४॥ वचननी टेकमां मोटा, त्यजे जे टेक ते छोटा, वचननी टेकमां राजे, जगत्मां कीर्ति हि गाजे. वचननी टेक जे धारे, धरीने धर्म नहीं हारे, बचननी टेकमां देवा, वचननी टेकमां सेवा. ॥६॥ वचननी टेक जे भूले, नपुंसक दुःखमां झूले, वचननी टेक नहि खोटी, वचननी टेक नहि छोटी. ॥ ७ ॥ विचारी वाक्य नहि बोले, खरेखर मूर्ख तृण तोले, वचननी टेक जो पापे, तदातो टेक दुःख आपे. ॥८॥ वचननी टेक सारामां, करो ना टेक नठारामां, वचननी टेक शिव पन्थे, कही छे वात सद्ग्रन्थे. ॥९॥ सुजन छे टेकना रागी, अहो ते धन्य सौभागी, बुद्धयब्धि टेकमां धीरा, सदा छे योगि जन वीरा. ॥१०॥
शरीरमां आत्मा देवसमान छे.
गजल. खरेखर पिंडमां देवा, खरेखर आत्मनी सेवा; खरेखर आत्म अज्ञाने, पडे छे जीव तोफाने. ॥ १ ॥ खरेखर आत्ममा शान्ति, खररेवर जाय छे भ्रान्ति; खरेखर आत्ममां रहे, खरेखर दुःख सहु सहे. ॥२॥
For Private And Personal Use Only
Page #184
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
??
खरखर आत्मनो ज्ञानी, खरेखर आत्मनी वाणी;
खरेखर आत्मनी ज्योति, ग्रहीलो पिंडमां मोति. ॥३॥ खरेखर आत्ममां रमवुं, खरेखर बाह्य नहि भमनुं;
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
खरेखर आत्ममां प्रीति, खरेखर आत्मवण भीति. ॥ ४ ॥ खरेखर आत्मना रागी, खरेखर ज्ञानथी त्यागी; बुद्धयन्धि आत्मना ज्ञाने, पडे नहि जीव अज्ञाने. ॥ ५ ॥
पुण्यने पापनो फेर.
गझल.
जगत्मा पुण्यथी चढती, जगतमां पापथी पडती;
जगत्मा पुण्यथी लीला, जगत्मां पापथी खीला. ॥ १ ॥ चहे ते पुण्यथी मळतं, चहे ते पापथी टळतं; बुद्धयब्धि सत्यमां रहे, हमारे सत्यने कहवं.
धर्म अने पापनो फेर
For Private And Personal Use Only
॥२॥
गझल.
जगत्मां धर्मथी सुखी, जगत्मां पापथी दुःखी;
जगतमां धर्मी शान्ति, जगत्मां पापथी भान्ति ॥ १ ॥ जगत्मां धर्मथी उंचा, जगतमां पापथी नीचा; जगत्मां धर्मथी साचो, जगतमां पापथी काचो. जगत्मां धर्मथी भोगी, जगतमां पापथी रोगी; जगत्मां धर्मथी ज्ञानी, जगत्मां पापथी मानीजगत्मां धर्मधी तरतो, जगत्मां पापथी फरतो; जगत्मां धर्मथी रुडा, जगत्मां पापथी मूंडा.
11 3 11
॥ ३ ॥
118 11
Page #185
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१७२
जगत्मां कीर्ति छे धर्मे, पडे छे दुःख तो करें; जगत्मां धर्म दुःख टाळे, जगत्मां पाप दुःख आले. ॥५॥ जगत्मां धर्मना डंका, जगत्मां पापथी रंका; जगत्म धर्म बलिहारी, जगत्मां पाप भयकारी. ॥६॥ जगत्मां धर्म जयकारी, समजजो भव्य नरनारी; बुद्धयब्धि धर्मने धारो, विचारी पापने वारो. ॥७॥
जीवोपदेश.
गझल. जीवलडा चीत्त जागीले, हृदयथी सत्य मागीले; जीवलडा सत्यमा रमजे, कदी नहि बाह्यमां रमजे. ॥१॥ जीवलडा सत्य छे त्हारु, विचारी ले हृदय प्यारु; जीवलडा सत्यमां सुखो, जीवलडा बाह्यमां दुःखो. ॥२॥ जीवलडा ध्यान कर रहारू, सदा जे शर्म करनारु; जीवलडा ध्यानमा रुडे, जीवलडा बाह्यमां कुटुं. ॥३॥ जीवलडा देहमा पोते, अवरमां शीदने गोते; जीवलडा ज्ञानथी शान्ति, जीवलडा बाह्यथी भ्रान्ति. ॥४॥ जीवलडा शीख मानीले, ह्रदयमां वात आणीले; जीवलडा चेतजे चित्त, धरीश नहि मोहने नित्य. ॥५॥ जीवलडा जागजे घटमां, धरीश ना चित्त घटपटमां; जीवलडा सत्य तु योगी, जीवलडा सत्य तु भोगी. ॥ ६ ॥ जीवलडा सत्यमां देवा, जीवलडा सत्यमां मेवा; जीवलडा सत्य तुं साचो, कदी नहि बाह्यमां राचो. ।।७।। जीवलडा सत्यनी कहेणी, जीवलडा सत्यनी रहेणी; बुद्धयब्धि ध्यानमा रहेजो, अखंडानंद झट लेजो. ॥८॥
For Private And Personal Use Only
Page #186
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१७३ समय हितोपदेश.
गझल. गरज छे सर्वथी वहली, फरज छे सर्वथी पहेली सुधारो सर्वथी सारो, कुधारो सर्वथी खारो. ॥१॥ भलामां सत्यना पन्थो, भलामां सत्य छे ग्रन्थो; बुरामां दुजेनो दोडे, प्रभुमां भक्त मन जोडे. ॥२॥ गुरुनी भक्तिमां शक्ति, अखंडानंदनी व्यक्ति । समयना जाण छे मोटा, समयना अज्ञ छे छोटा. ॥३॥ दयानी सत्य छे करणी, दया छे मोक्ष निःसरणी; समनशो ज्ञानथी मुक्ति, समजशो ज्ञानथी युक्ति. ॥४॥ दया छे ज्ञानीनी हाथे, क्रिया छ ज्ञानिनी साथे; दयामां चित्त रंगाशे, तदातो मुक्ति झट थाशे. ॥५॥ दया छे निर्मली गंगा, दयाथी दील छे चंगा; दयाथी देवता पासे, दयाथी संकटो नासे. ॥१॥ परखजो धर्मनुं नाणुं, परखजो धर्मनु टाणुं; विचार्या बीन ना बोलो, समय वण तत्त्व ना खोलो. ॥७॥ प्रभुने ज्ञानथी परखो, हृदयमां हेतथी हरखो; बुद्धद्यब्धि सन्तनी सेवा, अमारे शुद्ध ए मेवा.
चित्तमां चेत.
गझल. जीवलडा चित्तमा चेतो, झपाटो काल तो देतो; अरे नु जागने घटमां, पडे शुं भव्य खटपटमां. ॥१॥ जुए शुं मानवी भोला, फरे छे मृत्युना डोळा;
For Private And Personal Use Only
Page #187
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१७४
विचारो वात आ वहेली, वखत तो आवशे छेल्ली. ॥२॥ जीवलडा चित्तमां जागो, कपटना फन्दने त्यागो; भणीने भूल जो थाशे, तदा तो खूब पस्ताशे. ॥३॥ जगत्मां दुःख छे भारी, जगत् छे दुःखनी क्यारी; विचारी धर्मने धारो, फोगट नहि जन्मने हारो. ॥ ४ ॥ करे शुं कल्पना कोटी, विषयनी वात छे छोटी; जगत्मां संपथी चालो, जगत्मां संपथी म्हालो. ॥५॥ खरे जीव जाय छे आयु, खबर नहि वाय शो वायु; विचारी चेती ले व्हाला, करे शुं आल पंपाला. ॥६॥ चलक तुं चेतन ज्ञानी, निरंजन नित्य सुख खाणी; बुद्धयब्धि धारजे सोऽहं, हृदयमां भावजे कोऽहं. ॥७॥
कामविषयस्वरूप.
गजल.
विषयनी वात मूंडी छे, विषयनी वात कुडी छे, विषयनो वेग छे तेजी, विषयथी लाज नहीं छेजी. ॥१॥ विषयमां चित्त९ दोडे, चढेलो स्वार ज्युं घोडे, विषयथी चित्त भटके छे, विपयथी चित्त सटके छे. ॥२॥ विषयथी जूठनी वाणी, विषयथी दोपनी खाणी, विषयथी पाप आवे छे, विषयथी धर्म जावे छे. ॥३॥ विषय छे दुःखकर हस्ति, करे छे खूब ते मस्ति, विषय छे विषना प्याला, विषयथी सर्व छे वाला. ॥ ४ ॥ विषयमां दुःखनी श्रेणि, विषयमां दुःखनी रहेणी, विषयथी थाय धूळ धाणी, मळे नहि अन्नने पाणी. ॥५॥
For Private And Personal Use Only
Page #188
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१७५
विषयथी लाजने मूके, विषयथी कीनने चूके, विषय छे मोहनी वाडी, विषय छे क्लेशनी खाडी. ॥६॥ विषयनो कृप छ उंडो, विपयनो धूप छे भुंडो, विषयनी घेन छे गांडी, विषयनी बुद्धि छे आडी. ॥७॥ विषयमा व्हाल छे खोटुं, विपयथी कोइ नहि मोटुं, विषय- वृक्ष कांटाळु, विषयमां दुःखने भालु. ॥८॥ विषयनो संग छे पापी, विषयथी मुख शिर व्यापी, विषयथी दुःखना दरिया, विपयथी कोइ ना तरिया.॥९॥ विषयनी वात छे घहेली, विपयथी दुःश्वनी हेली, विषयना संगने त्यागो, बुद्धयब्धि दीलमां जागो. ॥ १० ॥
विवेक.
गझल. विवेके सत्य परखातुं, विवेके दुःख सहु जातुं विवेके सद्य छे मुक्ति, विवेके सब छे युक्ति. विवेके जाणीए टाणु, विवेके जाणीए नाणुं; विवेके ब्रह्म रस चाखे, विवेके सत्यने राखे. ॥२॥ विवेके थाय छे शान्ति, विवेके जाय छे भ्रान्ति; विवेके सत्यने परखो, नही को तेहना सरखो. ॥ ३ ॥ विवेके सत्य छे मीटुं, विवेके तत्त्वने दीटुं विवेके धर्मने पाळे, विवेके पापने खाळे. ॥४॥ विवेके मूढता नासे, विवेके ब्रह्म तो भासे; विवेके जात छे उंची, विवेके ज्ञाननी कुंची. विवेके मानवी सारो, विवेके मानवी प्यारो विवेके दुःखडा जावे, विवेके शर्मने पावे,
For Private And Personal Use Only
Page #189
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
१७६
विवेके मानवी ज्ञानी, विवेके मानवी भानी: विवेके भूल ना थावे, विवेके सद्गुणो आवे. विवेके जाय छे हांसी, विवेके जाय छे फांसी; विवेके मानने छंडे, विवेके मोहने खंडे. विवेक उच्चत्ता आवे, विवेके नीचता जावे: विवेके सन्मति धारे, विवेके दुर्मति वारे. विवेके धन्य छे वाणी, विवेके धन्य छे माणी; विवेके कर्मने टाळे, विवेके कूळ अजवाले. विवेके सत्य नहि छानुं, विवेके शर्म लेवानुं; विवेके सन्तनी यारी, बुद्धयब्धि शीख छे सारी. ॥ ११ ॥
लघुता गुण महिमा.
गजल.
८८
लघुता सर्वथी मोटी, प्रभुता जाणजो खोटी; लघुतामां प्रभुता छे, प्रभुतामां लघुता छे. लघुता सुख देनारी, लघुता सर्व गुण क्यारी; लघुता सर्वथी मीठी, लघुता सन्तमां दीठी. लघुता मानने खंडे, लघुता दुःखने दंडे. लघुता उच्चता आपे, लघुता दुर्मति कापे. लघुता ज्ञानने आपे, लघुता ध्यानमां व्यापे . लघुता सर्वमां पहेली, बुद्धयन्धि धारजे बहेली.
"
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
लघुता विषे.
छप्पय छंदनी चाल. लघुतामां प्रभुताय बसे छे ज्ञानी गावे, लघुता गुणनुं पात्र लघुताथी गुण आवे;
For Private And Personal Use Only
॥७॥
|| 2 ||
॥ ९ ॥
॥ १७ ॥
॥ १ ॥
॥ २ ॥
11 3 11
॥। ४ ॥
Page #190
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१७७ लघुता गुणर्नु मूळ लघुता विण धूळधाणी, धनसत्नाथी फोक पॅले छे मिथ्या मानी; अन्तर सद्गुण धारवा लघुता प्रभुताद्वार छे. बुद्धिसागर समजशो अरे लघृता जग जयकार छे. ॥१॥ लघुता विद्यामूळ लघुता सज्जन पासे, नासे मिथ्या मान लघुता हृदये वासे; करे किंकरखें काम सुजन लघुताना धारी, लघुतानी अहो वात जगतमां देखो भारी; लघुता लावी शेवीयेहि सन्त सुदेवा प्रेमशी, बुद्धिसागर ज्ञानथी कहे भव्यने शुभ नेमथी. ॥२॥
विनयमहत्ता.
प्पा छन्द. विनय करो नर नार, विनयी विद्या आवे, विनये मान हणाय, विनयथी कष्टो जावे; विनये निर्मळ दील, विनयथी उच्च कहावे, विनये वैर विनाश, विनयथी लघुता आवे; विनये संपत् सहु मळे, जग विनये दोषो सहु टळे; बुद्धिसागर विनयथी जन धर्मपन्थे झट वळे. वैरी सौ वश थाय, विनयथी समजी लेजो, यथायोग्य बहुमान विनयथी माटुं कहेजो; विनये दृष्टि पमाय, विनयथी सह गुण आवे, विनय धर्मनुं मूळ, विनय वण मूढ कहावे; सोनुं अने विनयनी सुपरीक्षा छे तापथी, रहे छे विनये आपथी पण नहीं रहे मा बापथी.
॥१॥
॥२॥
२३
For Private And Personal Use Only
Page #191
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१७८ गुणियल विनये होय, विनयथी पुत्रो सारा; विनये शिष्यो बेश, विनय वण होय नठारा; विनये स्थिरता वास, विनयथी होवे मोटा, विनय ज्ञान- मूळ, विनय वण होवे गोटा. विनये भक्ति थाय छे, बहु विनये मान मळे बहु विनये माणस शोभतो अहो विनय वर्णन शुं कहुं ? ॥ ३ ॥ विनय विना शी जात भातने जीवन जगमां; जगमां ते धन्य धन्य विनय पेठो रग रगमां; विनये मुक्ति होय विनयथी युक्ति सूजे, विनये सज्जनसंग विनयथी क्षणमां बुझे, वशीकरण महा मंत्र छेहि विनय जगमां जाणजो, समजीने अहो भव्य लोको विनय मनमां आणजो. ॥ ४ ॥ विनये गुरुनी आण, विनयथी गुरुनी सेवा; विनये जिनवर थाय विनय छे मीठा मेवा; विनये तत्त्वप्रकाश विनयथी मद्धि पावे, विनयमंत्रनी सेव थकी सहु पासे आवे; विनय विना जन ढोर छ, विनयमां बहु जोर छ, भव्य लोको जाणजो अहो विनयमहिमा ओर छे. ॥५॥ विनये निर्मळ वाक् विनय वण वाणी गंदी; विनय विना जन मूर्ख विनय वण छे स्वच्छंदी; विनये पग पग मान विनय वण छे धूळधाणी; विनय विनानुं वदन जाण जेवी घाणी. विनये सहु राजी रहे वहु विनये सारा सहु कहे, बुद्धिसागर विनयिजनने जगत्मां सहुजन चहे. ॥६॥
For Private And Personal Use Only
Page #192
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२७९
क्षमामहत्ता.
छप्पयछदै. क्षमा सकल गुणखाण क्षमाथी क्रोध समातो; क्षमा दयानुं मूळ क्षमाथी सन्त कहातो, क्षमा मुनिमां वेश क्षमाथी जगमां शोभे. क्षमा असि धरी हस्त वैरने क्षणमां थोभे, क्षमा विनानुं मानवी अरे शोभतुं ते नहीं कदी; बुद्धिसागर जल विना जेम शोभती जेवी नदी. ॥१॥ क्षमा विना शो सन्त क्षमावण मोटो शानो, क्षमाविना शी नार क्षमागुण सत्य मजानो; क्षमाविना शो शिप्य रीसथी जे दिल भरियो. भवसागरने क्षमाविना नहि को जन तरियो, क्षमा हृदयमा जेहने छे तेज मोटो जाणीए; बुद्धिसागर सन्तपुरुषो क्षमा हृदयमा आणीए. ॥२॥ तप जप करणी फोक क्षमावण ग्रन्थे दाखी, क्रोध कर्याथी संयम गुणनी लघुता भाखी; धर्म क्षमा छे सत्य राचशो तेमां भव्यो. दीलमां क्षमा उतारी करशो सहु कर्त्तव्यो; धनसत्ताना तोरथी अहो क्षमा हृदयथी जाय छे सत्समागम ज्ञानथी अहो क्षमा हृदय प्रगटाय छे. ॥३॥ दयातणो ज्यां वास क्षमा त्यां स्हेजे आवे, दया दिल नहि लेश क्षमा ते क्यांथी पावे; नहि ज्यां चेतन ज्ञान क्षमा त्यां क्याथी रहेवे. ज्ञानी गुणभंडार क्षमानां वचनो कहेवे,
For Private And Personal Use Only
Page #193
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१८०
दया क्षमा के साथ छे ते समजशो दील मानवी; चंद्र त्यां उद्योत वळी परकाश त्यां होवे रवि. ॥४॥ तजी क्षमाने मुनिवर क्रोधे नीचा पडिया, क्षमा धरीने नीचजना पण स्वर्गे चडिया; क्षमा विना शुं तेज क्षमावण छे अंधार. क्षण क्षण मांहि क्रोध करे त्यां कदी न सारु, पगथीयुं छे मोक्षनुं शुभ क्षमा सदा सुखकार छे; बुद्धिसागर क्षमा धर्याथी धन्य धन्य अवतार छे. ॥५॥
लोभस्वरूप
छप्पयछंद. लोभतणो नहि थोभ लोभथी कुमति जागे, लोभे लक्षण जाय लोभथी लज्जा त्यागे; लोभे हिंसक थाय, लोभथी जुटुं बोले. लोभे चोरी थाय, लोभथी कूड़े तोल, लोभे पापो सहु करेछे, लोभे जन ज्यां त्यां फरे; बुद्धिसागर लोभथी जीव रंकने पण करगरे. ॥१॥ लोभे छे अन्याय, लोभथी समता नासे, लोभे शान्ति दूर, लोभथी दया न पास; लोभे नहि परमार्थ, लोभथी सत्य न धारे. लोभे प्राणी तात भ्रातने सहेजे मारे; लोभ अहो आ जग विष सहु, महा पाप शिरदार छ, बुद्धिसागर लोभ नहि जस धन्य तस अवतार छे. ।।२।। लोभे मीटुं वेण, लोभथी भुंडी बुद्धि, लोभे कंजुस होय लोभथी कदी न शुद्धि;
For Private And Personal Use Only
Page #194
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
लोभे तृष्णा वैर झेरने मनमां काती. लोभे जन धूताय, लोभथी भली न जाती, लोभे लालच सोगणी छे, लोभे तो सन्मति हणी; लोभे इश्वर वेगळो छे, मुआ पछी को नहि धणी. ।।३।। लाभे व्यसनी होय, लोभी पापी पूरो, लोभे छे चंडाळ, लोभथी पापे शूरो; लोभे मनटुं क्रूर, लोभथी चित्त न चंगा, लोभ त्यजाथी अंतर प्रगटे समता गंगा; लोभे दुर्मति उपजे महा, लोभे नरके जाय छे, बुद्धिसागर लोभथी जीव चतुर्गति भटकाय छे. ॥ ४ ॥ लोभे मूढ मनुष्य, लोभथी कदी न शान्ति, लोभे कदी न उच्च, लोभथी प्रगटे भ्रान्ति; लोभे सन्निपात, लोभथी चित्त न ठरतुं, लोभे नहि आनन्द, चित्तहुं ज्यां त्यां फरतुं; कोभ अहो महा भूत छे जग, वळग्युं तेहने दुःख छ; बुद्धिसागर लोभ छंडे, चित्तमा बहु सुख छ. ॥५॥ उंच नीचने पाय पडे छे, लोभे जाणो; लोभ मदीरा घेन चढ्याथी होय न शाणो. लोभे काळो केर, लोभथी होवे फांसी; लोभे छे अंधेर, लोभथी थाती हांसी. लोभना बहु भेद छे ने, लोभ ज्यां त्यां खेद छे; बुद्धिसागर आत्मज्ञाने, लोभनो विच्छेद छे. ॥६॥ लोभ त्यज्याथी धीर वीरने सन्त कहावे; लोभ त्यज्याथी शास्वत सुखडां सहेजे पावे. लोभ तजीने भव्यजनो आतमने तारो,
For Private And Personal Use Only
Page #195
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
१८५
संतोषे सहु सुख, लोभना त्यागे धारीलोभ त्यज्याथी मानवी, मंगळमाळा पाय छे, बुद्धिसागर ज्ञानयोगे, समतानंद सुहाय छे.
66
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
23
गुरुभक्तिमहिमा
छप्पय छंद चाल.
गुरुभक्ति वण जीव तत्त्वने क्यांथी पामे, गुरुभक्ति वण जीव ठरे नहि निश्चळ ठामे; गुरुभक्ति वण तत्त्वज्ञाननी बात न जाणे, गुरुभक्ति वण प्रेमभावने क्यांथी आणे. गुरुविना नहि धर्म छे ने गुरु विना नहि शर्म छे; गुरु विना नहि ज्ञान मुक्ति गुरु विना तो भर्म छे. ॥ १ ॥ गुरुगम विण नहि ज्ञान सान तो क्यांथी आवे, गुरु विना नहि शास्वत सुखड पाणी पावे; गुरु विना नहि तप जप संजम किरिया साची, भव्यो गुरुनुं शरण करीने रहेजो राची; गुरुनी भक्ति साचवीने तप जप संयम सहु करो, गुरुभक्ति की भव्य जीवो भवसागरने झट तरो. ॥२॥ गुरु विना तो भवसागरमा भटके प्राणी, समजे नहि ते पामरप्राणी जिनवर वाणी; आपमतिथी अवळा चाले नगुरा प्राणी, नगुरा जीवो की न होवे सम्यग् नाणी; गुरु विना नहि सन्मति अहो मगटे छे उलटी मति; मायामां मस्तान थइ अरे पामे शुं ते सद्गति ? ।। ३ ।।
For Private And Personal Use Only
॥ ७ ॥
Page #196
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
गुरुशरणथी लघुता दिलमां प्रगटे सारी, गुरुशरणथी निर्भय थावे नरने नारी; गुरुशरणथी मानादिक सहु दूरे नासे, गुरुशरणथी श्रद्धा साची हृदये भासे; गुरुशरणथी मानवी तो तत्व साचं पामशे, गुरुशरणथी जगत्मां अहो कीर्ति सघळे जामशे. ॥४॥ गुरुशरणथी संयम शक्ति प्रगटे भारी, गुरुशरणथी प्रगटे छे समता सुखकारी; गुरुशरणथी उद्धनाइ पहेली नासे, गुरुशरणथी कदाग्रहादि दूरे जाशे गुरुशरणथी संपजे छे, पंचम गति पलवारमां, सत्य शरणुं सद्गुरुनुं समजशो संसारमां. गुरुनी निंदा करी बदनथी केइक पडीया, गुरुगुण गाइ शिवपुर महेले केइक चडीया; गुरुनी आणा लोपी पामर केइक भूल्या, मायादरिये गुरु विना तो केइक झूल्या, आत्मज्ञान ज्ञाता गुरुतुं शरण सदा सुखकार छ गुरुविनये जे नित्य राता सफल तस अवतार छे. ॥६॥ गुरु ज्ञानथी देव इष्ट तो शिष्यो जाणे, सद्गुरुगमथी भव्य राचशो आतम ज्ञाने; सदगुरुगमथी सह समजाशे धरजो चित्ते. गुरुविनयथी खुश रहे छे पण नहि वित्ते, सद्गुरुना जे सेवको ते भवसागर स्हेजे तरे बुद्धिसागर गुरुशरणथी सत् संपत् शिष्यो वरे. ॥७॥
For Private And Personal Use Only
Page #197
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१८४ क्रोध स्वरूप.
छप्पय. क्रोधे बोध निरोध, क्रोधथी होवे काढू; क्रोधे तनुमां ताप, क्रोधे छे द्रुम कंटाळ क्रोधे भूले भान, क्रोधथी ज्ञान न मूजे, क्रोधे काळो नाग, क्रोधथी लेश न बूझे. क्रोध कर्याथी मानवी नो भूत सरवो भासतो; क्रोध महा चंडाल जेवो धर्म दूरे नामतो. क्रोधे पडे न चेन, आंखमा लाली आवे; बोले कडवां वेण जगतमां दृष्ट कहावे; क्रोधे थावे घात क्रोधथी निन्दा थावे; क्रोधे मूके आल गाळ तो वचने आवे; क्रोध कळंकी कारमो छे, क्रोध ज्यां त्यां वेर छे क्रोध थकी तो कष्ट कोटी क्रोधे जगमां झेर छे. ॥२॥ नीच थको पण नीच क्रोध छे सहुथी बूरो, क्रोध महा विकराळ क्रोधथी पापी पूरो; क्रोधे पूर्व करोड वर्पनुं संयम जावे, क्रोधे मित्र न होय जगतमां ज्ञानी गावे; क्रोधाग्नि आळा थकी तो स्वपर आतमा सहु बळे; तप जप किरिया करो भव्य पण क्रोध सहित तो ना फळे.३ क्रोध नरकनुं द्वार क्रोध छे बळती सगडी; क्रोधे द्वीपायन तणी नो बाजी वगडी; क्रोधे वित्त विनाश क्रोधी होय न सारूं, महा पापनी तोप क्रोध छे तेमां दारु; केश अग्निथी तोप धड़के जननी हाणी,
For Private And Personal Use Only
Page #198
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
क्रोधे दुर्गति होय दीलमां एवं जाणी; क्रोध करे ने करावतो ते नरकगति मेमान छे; मानव पण नहि मानवी ते जाणजो हेवान छे. ॥४॥ क्रोधे नरके पडीया केइक पडशे प्राणी, क्रोधे राज्यविनाश क्रोधथी छे धूळ धाणी; क्रोधे सन्त न होय क्रोधथी होवे कूडो, क्रोधे कारज नाश क्रोधथी भाख्यो भूडो; सर्प यकी पण क्रोधथी, अहो मानव तो नीचो खरो, क्रोधाग्नि ज्यां सळगतो त्यां क्याथी समताजलझरो. ॥५॥ क्रोधे केइक चतुर्गतिमाही आयडीया; क्रोधे केइक लक्षणवंता पण लडथडीया; महा भैरव छे क्रोध तेहथी दुःखना दरीया, क्रोध तज्यो ते सन्त धन्य जग ते अवतरीया; क्रोध भयंकर प्लेगने अहो टाळीये समताजळे बुद्धिसागर सहनशीलता राखवाथी सहु मळे. ॥६॥
“सन्तसमागममहिमा"
छप्पय छंद. प्रगटे जो महा भाग्य सन्तनी सेवा लहीये, प्रगटे जो महा भाग्य सन्तनी पासे रहीये; प्रगटे जो महा भाग्य सन्तनी सुणीये वाणी, प्रगटे जो महा भाग्य मळे तो सन्त सुनाणी. इन्द्र चन्द्र नागेन्द्रनी अहो पदवी मळवी स्हेल छे, पण सन्त साचा प्राप्त करवा जगत्मां मुश्कल छे. ॥१॥
For Private And Personal Use Only
Page #199
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૨૮૬
सन्तमळ्याथी मळीयुं समजो उत्तम नाणुं, सन्तमळयाथी मळीयुं समजो उत्तम टाणुं; सन्तसमागम दुर्लभ पण सुलभ छे ज्ञाने, सन्तसमागम थकी चतुर तो तत्त्व पिछाने; लोभी पामर प्राणीयो अहो सन्तसमागम नहि करे; सन्तसमागम कर्या विना जीव भवसागरने शुं तरे ? ॥२॥ कोइ कहे छे अमृत तो पाताळे रहेवे, ज्ञानी जन तो सन्त समागम अमृत कहेवे; कोइ तो पत्थरने चिन्तामणिज बोले, चिन्तामणि ते सन्त जनो छे पडदो खोले; सन्तसमागम कीजीये अरे अमृतप्याला पीजीये, चकोरने जेम चंद्र तेमज सन्त देखी रीझीये. सन्तसमागम अन्तर गुणने स्हेजे आपे, मायादुःख वल्लिने क्षणमां ते तो कापे; सन्त जनोनुं मान कर्याथी लघुता आवे, क्रोध मान इर्ष्यादिक दोषो क्षणमां जावे. सन्त जनोने देखीने जीव मान तेनुं बहु करो; बुद्धिसागर सन्त सेवे मुक्तिने क्षणमां वरो. ॥४॥ सन्तसमागम सफल सदा छे शास्त्रो गावे, कोइक विरला समजुना मनमां ते आवे; सन्त समागम शिवपुरनो साचो संदेशो, मानो तेने सत्य धरो नहि मन अंदेशो; संतो जंगम तीर्थ छे, अहो सन्तो जग सुखकार छ बुद्धिसागर सन्तसेवा जगत्मां जयकार छे.
amanenews
For Private And Personal Use Only
Page #200
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
“ शोक विषे."
छप्पयछद. शोके अकल जाय शोकथी चिन्ता प्रगटे; शोके तनुने ताप शोकथी शान्ति विघटे, शोके भूले भान कशुं नहि हाथे आवे; शोक कर्याथी आर्त ध्यान तो स्हेजे थावे. शोके सूझे नहि कशं ने शोके मन दुःखाय छे; जगत्माही शोकयोगे हर्ष दूर जाय छे. ॥१॥ शोके नासे प्रेम शोकथी प्रगटे भ्रान्ति शोके तनुमा रोग वगडती तनुनी कान्ति; शोके स्थिरता नाश शोकथी जीवन बगडे; बंध पडे छे कर्म शोकथी वर्ते झघडे. शोकसागर जे पडया ते चतुगतिमां रडवड्या; अशुभध्याने पुष्ट थइने केइक लाखो लडथडथा. ॥२॥ शोके अश्रुधार शोकथी हिम्मत नासे, शोके शत्रु आप शोकथी ध्यानज नासे; शोके दीनता दीन शोकथी क्यांय न सारूं, शोके सन्मति नाश शोकथी होय नठारु; शोके धीरज जाय छे अहो शोके मूढ कहाय छे; बुद्धिसागर समजशो अरे शोकथी दुःख थाय छे. ॥३॥
आळदोष.
छप्पयछंद. परने देवे आळ बाळ तेनुं मुख भूईं;
For Private And Personal Use Only
Page #201
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
૮૯
पापीनो शिरदार तेहनुं थाय न कहूं, परने देतां आळ घात बेनी तो कींधी;
परने देतां आळ नरकनी वाटज लीधी. कुडां आळ चढावतो जीव जगतमां चंडाळ छे: काळनो अरे काळ कपटी जाणजो महाकाळ छे. ॥ १ ॥ कलंकी छे कर्म धर्म तो दूरे नासे; देतां कूडां आळ हृदयथी धर्म प्रणाशे, परभवमांहि दुःख आळशी आळज आवे; तप जप किरिया फोक आळथी नरक सिधावे, परने आळ चढाववाथी रौरव दुःखो भोगवे; जाणजो जीभ सर्पिणी अरे परापवादो जे लवे. ॥ २ ॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सीता सती परभवमांहि आळ चढायुं;
थी सीता भवमां आळज खोडं आव्युं, समजो सज्जन कदी न सारु थाशे आळे: आळ दानथी नीच जगत्मां जीवन गाळे, आळने देनारनुं अहो कदी न सारु थाय छे; मनुष्य पण ते दैत्य छे जगजीवन पापे जाय छे. ॥ ३ ॥ आळ दोष देनार जगत्मां ज्यां त्यां भटके, कदी न पामे सुख दुःखथी भवमां अटके; मूंगो डंटो परभवमां प्राणी ते थावे. महा दुःख अवतार प्राणिया पापे पावे, आळ दोष देनारनुं तो जीवन फोगट जाय छे; बुद्धिसागर समजशो जीव धर्मथी सुख थाय छे. ||४||
+ COUN
For Private And Personal Use Only
Page #202
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
निन्दा.
छप्पयछंद. निन्दानो करनार जगत्मां पापी पूरो, निन्दानो करनार जगतमां दोपे शूरो; निन्दानो करनार जगत्मां मोटो पापी, निन्दानो करनार जगत्मा जूठ विलापी; नाम देइ निन्दा करे ते जगत्मां चंडाळ छे, निन्दानो करनार खरेखर जगत्मां विकराळ छे. ॥१॥ परनी लवरी जे जन करतो ते नहि रुडो, परलवरीमां रक्त जगत्मां सहुथी मूंडो; इर्ष्याने अभिमान थकी जे निन्दा करतो, क्रोधथकी निन्दक नर कदीय न ठामे ठरतो; निन्दा लवरी जे करे जन वदन तेहनुं बाळg, दोषदृष्टि कागडा जन वदन नहि तस भाळवं. ॥२॥ पर अपवादे भव्य जाणजो मुखड़े दोषी, कहेतो परना दोष बने छ निज निदोषी; चोथो छे चंडाळ जगत्मां निंदक नागो, निंदक सहुथी नीच संगथी दूरे भागो; जबतक दृष्टि दोषनी छे बहु तबतकतो अंधेर छे, जगत् जीवो जाणजो अरे निंदा मोडं झेर छे. ॥३॥ निन्दाथी छे वैर झेरने हिंसा मोटी, निंदा दुःखनी खाण जगत्मां निन्दा खोटी; निन्दाना करनार जनोना नहि छे तोटा, गप्पां मारी जूठ वचनथी वाळे गोटा; निन्दक नरके जइ पडे अहो दुःख रौरवथी रडे,
For Private And Personal Use Only
Page #203
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
निन्दकनी छे दृष्टि अवळी सत्य तेने शुं जडे. निन्दानां बहु पाप सूत्रमा जोजो भाख्यां, नाम देइने निन्दक लोके दुःखो चाख्यां; यात सतीनी जे जन खाते निन्दा करता, कर्म ग्रहीने चतुर्गतिमां पामर फरता; तप जप संयम साधनारूप धर्मकरणी सहेल छ, दोष निन्दा त्यागवी अरे सर्वने मुश्केल छे. निन्दाथी नर नार जगत्मां सुख ना पामे, निन्दाथी नर नार जगत्मां ठरे न ठामे; निन्दा दोषे जगत्जीव तो सर्वे भूल्या, डहापणना पण दरिया निन्दक केइक ल्या; निन्दा तजतां सहु तज्यु अहो सज्जन मनमा धारजो, बुद्धिसागर दृष्टि गुणनी धारी आतम तारजो. ॥६॥
ज्ञानमहिमा.
छप्पयछंद. करो ज्ञानिनुं मान ज्ञानिनी पासे किरिया, ज्ञानविना नहि भान ज्ञानवण कोय न तरिया; ज्ञानविना तो दुःख ज्ञानवण अंधाधुंधी, ज्ञाने कर्मविनाश ज्ञानथी प्रगटे शुद्धि ज्ञानी जगचिंतामणि अहो ज्ञानी जगमां दिनमणि, ज्ञानिनुं बहु मान करतां मुक्ति छ सोहामणी. ज्ञानविना शो धर्म ज्ञानवण भूल न भागे, ज्ञानविना शुं तत्त्व ज्ञानथी चेतन जागे; शाने शाश्वत शर्म ज्ञानथी प्रगटे युक्ति,
॥१॥
For Private And Personal Use Only
Page #204
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१९१ ज्ञाने नासे मान ज्ञानथी प्रगटे उक्ति; सत्यासत्य जणाय छे ने ज्ञाने तत्त्व पमाय छे, बुद्धिसागर ज्ञानथी तो परमानंद मुहाय छे. ॥२॥ ज्ञाने होवे सुख ज्ञानथी साचुं परखे, ज्ञाने आतमदेव ज्ञानथी हृदये हरखे; ज्ञाने कर्म विनाश ज्ञानथी स्वरूपभोगी, ज्ञाने तप जप ध्यान ज्ञानथी अंतर्योगी; ज्ञाने शक्ति आत्मनी सहु प्रगटती क्षणवारमां, ज्ञानवण नहीं मुक्ति भव्यो समजशो संसारमां. सम्यग आतमज्ञान विना कबु होय न शांति, आतमज्ञान विना छे जगमां ज्यां त्यां भ्रांति; ज्ञानविना नहि ग्रन्थ ग्रन्थ वण तत्त्व न पावे, ज्ञाने उच्च कहाय ज्ञानवण नीच कहावे; प्रगटे ज्ञानप्रकाश तो घट सर्व शक्ति संपजे, आत्मज्ञानी विश्व मोटो सत्य इश्वरने यजे. ॥४॥ आतमज्ञाने राग टळे छे द्वेषज नासे, आतमज्ञाने नवतत्त्वादिक सम्यग् भासे; आत्मज्ञान त्यां ध्यान खरु छे ज्ञानी गावे, पण कोइ विरला आत्मज्ञानने दील पचावे; अनंत शक्ति आत्मनी तो आत्मज्ञाने जागती. अशुद्ध परिणति आत्मनी तो आत्मज्ञाने भागती. ॥५॥ आत्मज्ञानथी भाव चरणमां लय तो लागे, रंगातो रागे नहीं आतमज्ञानी जागे; आत्मानुभवरंगे सुखडा सर्व विकाशे.
For Private And Personal Use Only
Page #205
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
१९२
आत्मज्ञाननो योग भोग तो साचो भासे,
आतमज्ञाने रीजीए जन मन बीजे नहि दीजिए;
ज्ञान ध्याने जिवन गाळी शाश्वत शिवपुर लीजीए ॥ ६ ॥ चिदानंद भरपूर भरेला आतमज्ञानी, अंतरमां उपयोग ज्ञान छे गुणनी खाणीः आत्मिक शुद्ध स्वभाव ज्ञानथी सहेजे जागे. आतमज्ञाने सत्य लहाने जूठन त्यागे, चिदानन्द चेतनमयी घट आत्म व्यक्ति ध्याइएः बुद्धिसागर ज्ञानयोगे सर्व मंगल पाइए.
66
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
"
कर्मस्वरूप
छप्पय छंद चाल.
कर्म करे ते होय कर्मने शर्म न कोनी, कर्मे नृपति होय मळे नहि कर्म दोणीः कर्मे मागे भीख, कर्मथी नोक्त वागे, कर्मे धक्का खाय, कर्मथी पाये लागे.
॥ १ ॥
पुण्य पाप वे कर्म छे, जग पुण्य थकी शाता मळे: प्रगटे पापोदय तदा तो दुःखनी वल्ली फळे. चतुर्गतिमा फेर कर्मी सघळे भटके, कर्मगति विकराळ, कर्मथी प्राणी अटके: उच्च नीच अवतार कर्मथी जगमां देखो, पिता तणा बे पुत्र कर्मथी भिन्नज पेखो: शरीर कारण कर्म छे जग, कारण वण नहि काज छे; रागादिकथी कर्मबंधन, कर्मने शी लाज छे ? रागादिकनो कर्ता तेहज शरीर कर्त्ता,
।। २ ।
For Private And Personal Use Only
|| 19 ||
Page #206
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
१९३
रागादिकनो हर्ता तेहज शरीर हर्ता;
कर्ता हर्ता एकज पण परिणाम विशेषे, निद्रामां जे होय सुणो जाग्रतमां ते छे; सुखे सूतो हुं कहीने जाग्रतमां जे जागतो; कर्ता हर्ता कर्मनो ते आतम एकज छाजतो. कर्ता भोक्ता कर्म तो आतम अज्ञाने, देह सृष्टिकर्ता हर्ता सूत्र वखाणे; शरीर व्यापक आतम इश्वर कर्म करे छे, शरीर व्यापक आम इश्वर कर्म हरे छे; आतम इश्वर कर्मनो तो बंधकर्ता जाणीये, शुद्धोपयोगे आत्म इश्वर कर्महर्ता मानीये. कर्माष्टको नाश कर्याथी सिद्ध स्वरूपी, सिद्ध सनातन निर्भय देशी रुपारुपी; कर्माच्छादन दूर गयाथी अनंत शक्ति, कर्माच्छादन दूर गयाथी निर्मल व्यक्ति; कर्म सहित संसार छे ने कर्मरहित भव पार छे; कर्म टाळे आत्म ध्याने सफल तस अवतार छे. ॥ ५ ॥
रागादिकथी कर्म कर्मी प्रगटे काया, पुद्गल रुपे अष्ट कर्म छे नहि पडछाया; कर्म योगथी रुपी आतम कर्म ग्रहे छे, स्थिति अनादि काल कर्मने एम लहे छे; पण विभाविक कर्म छे ते आतमध्याने झट बुद्धिसागर ध्यानयोगे चिदानंद मेळो मळे.
२५
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private And Personal Use Only
टळे,
॥ ३ ॥
|| 8 ||
॥ ६॥
Page #207
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
“
१९४
शिष्यस्वरूप.
छप्पय छंद.
गुरु भक्तिमां रक्त विनयथी शोभे काया, धन्य धन्य ते शिष्य जगत्मां जननी जाया, गुरु गुणनुं बहु गान करे ने अंतर प्रीति, गुरु आणामां प्रेम बहु दिल नहि छे भीति; गुरु आधीन वर्ते सदाने गुरु वैयावृत्ये रहे, बुद्धिसागर भक्त प्रेमी शिष्य शास्वत सुख रहे. ॥ १ ॥ गुरुवचनमां श्रद्धा साची गुणने धारे, गुरुविनयमां व्हाल खरेखर वृत्ति ठारे; गुरु कहे ते सत्य हृदयमां नक्की आणे, गुरुवचन परमार्थ विवेके मनमां जाणे;
""
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
गुरु वन्दन त्रिकाळ करे ने गुरु सेवामां व्हाल छे, सद्गुरु विश्वास खरेखर चरणसेवन ख्याल छे. ॥ २ ॥ गुरु कहे ते करतो कारज हाम धरीने, मन वाणी कायाथी भक्ति धर्म धरीने गुरुनिन्दक नहि होय कदापि प्राण पडे पण,
सहनशीलता बेश हृदयमां शोभे गुणगण;
पर उपकारी सद्गुरुनी श्रद्धामां राची रहे; चित्त चंचलता हरी खरे योग्य शिष्यो सुख लहे. ॥३॥ माथा साठे मालज जेवी गुरुनी भक्ति, करीने शिष्यो प्रगटावे गुणगणनी व्यक्ति; गुरुनी भक्ति दुःख दावानळ शान्त करे छे, गुरुनी भक्ति दिलना दोषो सर्व हरे छे; " द्रोण " गुरुनी भक्तिथी अहो भील्ल विद्या झट वर्यो;
For Private And Personal Use Only
Page #208
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
66
१९५
सद्गुरुना सेवकोए सत्य मारग अनुसयों. विनयवंत ने धीर वीर भक्तिमां शूरा, गुरुमांसाचो प्रेम सदा छे धर्मे पूरा; गुरुवचने नहि शंक विवेके साधुं परखे, गुरु आवे के ऊभा थइने मनमा हरखे; हस्त जोडी प्रेमथी अहो वन्दन करता ते मुदा; बुद्धिसागर गुरुविनयथी शिष्य ले सुख संपदा.
'दारु विषे "
छप्पय छंद.
दारु छे दुःखकार दारूप दाटज वाळ्यो, दारु दीनतामूळ दारुथी देशज हार्यो : दारु दुर्मति मूळ दारुथी जीवनी हानी,
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private And Personal Use Only
11 8 11
दारु छे महा झेर दारुथी बने तोफानी; तन धन लक्ष्मी नाशनुं अरे कारण दारु जाणजो;
भूतनो पण भूत दारुज समजु जन पीछानजो ॥ १ ॥
दारुपानी पाप करे छे जगमां भारे, दारुपानी वेश्या संगे जीवन हारे; दारुपाने सघळा दोषो स्टेजे आवे, प्रगटयो पण जे लेश गुण ते क्षणमां जावे; दारुमां कंकास छे अहो दुर्मति झट उकले, दारुथी तो देखी लेशो भाग्य वेळा नहि वळे. ॥ २ ॥ दारुनो पीनार कदी नहि ठामे ठरशे, भुली आतमभान पापनां कामो करशे; वहुने मात कहे छे जननीने वहु कहेवे,
Page #209
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नासे छे गुण मान दारुथी सन्त न सेवे; पायमाली आ देशनी तो दारु पीतां थइ घणी; दारु छे विकराळ भैरव संगत तो बीहामणी. ॥३॥ बहु नृपतिए दारू पानथी राज्यो हार्या, दारु घेने क्रूर मनुष्ये मानव मार्यां; दारु दुःख दावानल संगे थाय नठारं, विष थकी पण भुंडो दारु थाय न सारूं; दारुना परमाणुओथी मलीन काया थाय छ, दारुडीयानी संतातमा असर तेनो जाय छे. ॥४॥ दारुनो पीनार तेहथी धर्म ज छेटे, दारुनो पीनार जगत्मां दुःखडां वेठे; सर्व दोषy कारण दारु जे जन त्यागे, ते जन होय पवित्र धर्म तो घटमां जागे; दारुपान निवारिने जन धर्म साचवजो मुदा, बुद्धिसागर ज्ञान पामी लीजीये सुख संपदा. ॥५॥
चोरी.
छप्पयछंद. चोरीनो करनार जगत्मां चोर कहावे, महा घोर छे कर्म जगत्मां समजो भावे; चोरीनो करनार कदी नहि ठामे ठरशे, चोरीनो करनार कदी ते दुःखे मरशे; आ भव परभव दुःखडां तो चोरी करतां पामीए, करे नहि जे स्तेय कर्मो मस्तक तेने नामीए. ॥१॥ चोरी करतां पेट भराशे नहि को काळे
For Private And Personal Use Only
Page #210
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चोरी दुःखनी खाण भाग्यने उधुं वाळे, चोरी करतां घातक जूठा बोलो थावे, चोरीनो करनार पलकमां शीश कटावे; धणी नही को चोरनो ने चोरीथी मन धूजतुं, दुर्मतिथी धर्मकरणी सत्य तत्त्व न सूजतुं. ॥ २ ॥ चोरीनो करनार नरकमां व्हेलो जावे, चोरीनो करनार कदी नहि निर्भय थावे; चोरी करतां कूळ कलंकी कीर्ति नाशे, मळे न साची टेक सुजन नहि बेसे पासे; अढार वांकां ऊंटनां छे चोरनां तो लाख छे; लाख, पण वित्त अन्ते चोरीथी तो राख छे. ॥३॥ जेवू सरिता पूर चोरनी लक्ष्मी तेवी, जेवो जल बुबुद् गगनमा विद्युत् जेवी; परनी लक्ष्मी लेतां परना प्राण हणे छे, परनी लक्ष्मी लोभे दुःखनी खाण खणे छे. परलक्ष्मी पथ्थर समी गणी चोरी व्यसन निवारीए, समजीने अहो भव्य लोको चेतनने झट तारीए. ॥ ४॥ कृडे तोले असत्य मापे चोर कहावे, चोरीनो करनार दया शुं ? दिलमां लावे; चोरीनो करनार जगतमां समजो नागो, चोरीनो करनार तेहथी धर्म ज आघो. दिवस चोरो छे घणाने रात्री चोरो घोर छे, चौरवृत्ति चतुर लोको चोरना पण चोर छे. ॥५॥ मन वच काया थकी चोरीनो त्याग करे जे, भव पाथोधि दुःखदायिने स्हेज तरे जे;
For Private And Personal Use Only
Page #211
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चोरीमां नहि सुख जाणजो सजन लोको, जगमा मोटुं पाप जाणजो यमनो धोको. चोरी त्यागे जे जनो ते मंगल माला पामता, बुद्धिसागर जगतमा जश कीर्तिथी खूब जामता. ॥६॥
" उद्यममहिमा."
__ छप्पयछंद. उद्यमथी सहु थाय जगतमां जाणी लेजो, उद्यम धरीने अंग अनुद्यमने शिख देजो; उद्यम सुखनुं मूळ खरेखर शक्ति मोटी, उद्यम इश्वरतुल्य वात नहिं किंचित् खोटी; उद्यम इच्छित आपतो अहो उद्यम अंगे आणीए; बुद्धिसागर मुक्तिनां मुख उद्यमे झट माणीए. ॥१॥ पुण्य पाप बे कर्म अहो उद्यमथी लागे, पुण्य पाप बे कर्म अहो उद्यमथी भागे; पुण्यकर्मनो उद्यम करतां पुण्य ज आवे, पापकर्मनो उद्यम करतां पाप ज थावे शुभाशुभ परिणामथी तो पुण्य पाप बंधाय छे, आत्मज्ञाने आत्मध्याने विविध कर्म कपाय छे. ॥२॥ अशुभ विचारे पाप ज प्रगटे दिलमां धारो, शुभ परिणामे पुण्य बंध छे इष्ट विचारो; शुद्ध विचारोद्यमथी जीवो अनन्त तरीया, अशुभ विचारोद्यमी तो भवमांही फरीया; धर्मध्यानोद्यमथकी अहो पुण्य पाप दे तो खरे, बुद्धिसागर ध्यान उद्यम पामीने प्राणी तरे. ॥३॥
For Private And Personal Use Only
Page #212
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पापथकी पुण्य ज छे सारं शुभ व्यवहारे, पुण्यथकी संवर छे सारो आतम तारे; प्रसन्नचंद्र राजर्षि पेठे मनथी पापो, अशुभ विचारो प्रगट थाय ते क्षणमां कापो; मनसंयमथी कर्मनी तो वर्गणा नहि आवती, ध्यान किरिया अशुभ कर्मों शुभपणे बदलावती ॥४॥ शुद्ध विचारो शुद्ध ध्यान छे उद्यम मोटो, शुद्ध विचारो करतां आवे कदी न तोटो; दीलथी शुद्ध विचारो एहिज साची किरिया, शुद्ध विचारो क्रिया करिने अनंत तरीया; मन वाणी काया थकी अहो शुभोद्यम सुखकार छे, धर्म यत्ने कर्म नासे जगतमां जयकार छे. ॥५॥ आत्मस्वरुपनी किरिया उद्यम साचो जाणो, रमणता किरिया उद्यम पर्याय पिछाणो; पिंडस्थादिकध्याने उद्यम प्रेमे करीए, कर्मदलिकनो नाश करीने शिवपुर वरीए; अंतरना उपयोगमां झट रमणता उद्यम खरो, परम महोदय मार्ग जाणी भव्य जीवो अनुसरो. ॥ ६ ॥ जेने जेवो उद्यम फळ तो तेवू मळशे, समजीने सुपात्र जीवशिव पन्थे वळशे; मनुष्यक्षेत्रमा शिव वस्तु मानव व्यापारी, उद्यम करवो सत्य भव्य आलसने वारी; आत्मव्यक्ति प्राप्त करवा, उद्यम अनुपम एक छे, बुद्धिसागर हृदय दिनमणि ज्ञानकारण छेक छे. ॥७॥
For Private And Personal Use Only
Page #213
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२००
ध्यान.
छप्पयछंद. चिदानंद भरपूर ध्यानथी चेतन भासे,
आर्त द्वितीय रौद्र ध्यान तो क्षणमां नासे; क्रिया स्वरुपी ध्यान हृदयमा ज्ञाने जागे. मोहादिक सहु दोष हृदयथी क्षणमा भागे, ध्याने अनुभव ज्ञान छे ने ध्याने केवलज्ञान छ ध्यान विना नहि मुक्ति भव्यो समजशो सुखखाण छे. १ ध्याने नासे मान ध्यानथी प्रगटे मुक्ति, दर्शन ज्ञान चरण सद्गुणनी ध्याने युक्ति; ध्याने विषय विनाश ध्यानथी स्थिरता आवे. अनुभवतुं जे सुख व्यानी चेतन पावे, पिंडस्थादिक ध्यानथी तो अजरामरपद पास छे; आत्मध्याने सर्वसिद्धि देवता पण दास छे. ध्यानक्रिया करनार जगत्मां जय करनारो, भवसागरने सहजवारमा ते तरनारो; ध्याने लब्धि सर्व ध्यानथी थाय न दुःखी, अन्तरमा उपयोग ध्यानथी शाश्वत सुखी; ध्याने ज्ञान प्रमाण छे ने ध्याने स्थिरता सार छे, ध्यानिनुं बहु मान करतां जगत्मां जयकार छे. ॥३॥ संवरमा छे सार ध्यान जगमां जयकारी, धन्य धन्य अवतार ध्यानिनो शिवसुखकारी; ध्याने शुद्ध चरित्र ध्यानथी सर्वे लेखे, धन्य धन्य अवतार ध्यानिनो आतम देखे, जेवू चेतन ज्ञान छे दील तेQ ध्यान कराय छे, स्याद्वादज्ञाने ध्यानथी तो जन्मनां दुःख जाय छे. ॥४॥
For Private And Personal Use Only
Page #214
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मन चंचळता सर्व टळे छे ध्यान कर्याथी, आतमज्ञाने सहज समाधि ध्यान वर्याथी; आतम ते परमातम ध्याने निश्चय समनो, भेदभाव सहु दूर करे छे तेमां रमजो धर्म ध्यानने शुक्लथी तो स्वर्गने शिव थाय छे, ध्याननी विशुद्धता लही चिदानंद परखाय छे. चेतन शुद्धि ध्यान करे छे दोष हरीने, चिदानंदथी मोज करे ले ध्यान वरीने; मुक्तिनां सुख जीवंतां पण ते दर्शावे, अंतरमा उद्योत ध्यानथी क्षणमां थावे; ध्यान सकल गुणस्थान छे ने ध्यान अमृतपान छे, बुद्धिसागर सकलगुणमां ध्यान एक परधान छे.
॥५॥
गंभीरगुण.
छप्पयछंद. धन्य धन्य गंभीर जगत्मां गुण छे सारो, मुन्दर लागे सर्व जनोने गुण ए प्यारो गंभीरगुण धरनार जगतमां जय वर्तावे, शुद्रादिक सहु दोष पलकमां दूर हठाव समुद्रनी छे उपमा अहो गंभीर गुणने जाणजो, सत्य समजी भव्य लोको हृदयमांहि आणजो. ॥१॥ गंभीरगुण धरनार जगतमा सहुथी मोटो, गंभीरता वण वात करंतां वळशे गोटो; गंभीरगुणथी नात जातमां संप रहे छे, गंभीरगुणथी ज्ञान वधे हे सन्त कहे छे
२६
For Private And Personal Use Only
Page #215
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૨૦૨ गंभीरगुण मगटे तदा तो योग्यता प्रगटे खरी, गंभीरगुणथी सन्तलोके मुक्तिने सहेजे वरी. ॥२ ।। तप जप संयम गंभीरगुणथी लेखे आवे, गंभीरगुणथी मान पान ने प्राणी पावे; गंभीरगुणथी वेर झेर ने द्वेषज टळशे, गंभीरगुणथी सन्तजनोमां पाणी भळशे; गंभीरता प्रगटे नहीं ता माणस पण ते ढोर छे, गंभीरगुण प्रगटे खरो तो सर्व वाते जोर छे. ॥३॥ गंभीरताने हृदय धरे ते जन छे मोटा, क्षुद्रउदर माणसना जगमां नहि छे तोटा; धर्मकर्ममां गंभीरगुण जाणो सहु पहेलो, गंभीरगुण आव्या वण जनतो जाणो घहेलो; गंभारगुणधारक जनो अहो जगत्मा छे जयकरा, रुद्धि सिद्धि पामता जन जाणजो ते सुखकरा. ॥ ४ ॥ गंभीरगुणथी सज्जनताने पामे प्राणी, गंभीरगुणथी प्रगटे विद्या गुणनी खाणी; सर्वगुणोनी आगळ गंभीर गुणतो गाजे, गंभीरता वण बहु गुणवंतो तोपण लाजे गंभीरगुणने धारीने शिव मंगलमाला पामिए, बुद्धिसागर धन्य ते मही प्रेमे मस्तक नामिए. ॥५॥
योगस्वरूपः
मराठी साखी राह. अलख निरंजन मिद्ध सनातन, जिनवर जय महादेवा, क्षायिक चेतन वीर स्वयंभु, नमन करु सुख लेवा;
For Private And Personal Use Only
Page #216
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आजे आनंद रे तत्वस्वरुप लहीशु, तत्त्वनी बात कहीशुं. आजे. ? यम नियम आसन जयकारी, प्राणायाम अभ्यासी, प्रत्याहार धारणा धारी, ध्यान समाधि समासी. आजे. ॥ २ ॥ आनंदघननी वाणी जाणी, योग लहो गुणखाणी, ब्रह्मरंध्रमां अनहदनादे, सुरता तत्र समाणी. आजे ॥ ३ ॥ यौगिक विद्या ब्रह्म समाधि, ज्ञानीजन एम बोले, हेमचंद्र महाज्ञानी वोले, योगना नहि कोइ तोले. आज ॥ ४ ॥ भक्तिनो महिमा जे भारी, ते पण योग समातो, यौगिकविद्या ब्रह्मसमाधि, जाणे ते मुख पातो. आजे ॥५॥ इश्वरसम आतमनी शक्ति, यौगिकविद्याभ्यासे, सम्यगयोगर्नु ज्ञान लह्याथी, मायाभ्रांति नासे. आजे ॥६॥ परमब्रह्म स्वरुपर्नु कारण, योगाष्टक अवधारी, अनेकान्त स्वरुप समाधि, पामो नर ने नारी. आजे ॥ ७ ॥ तत्त्वोद्धार करोने प्रेमे, आत्मस्वरुप जगावी, बुद्धिसागर मंगल वरशी, जगमां यश वर्तावी. आजे ॥ ८ ॥
आत्मजागृति.
दुहा.
चिदानन्द निर्भय सदा, निश्चल एक स्वरुप,
में आतम सेवतां, विघंटे भवभयधूप. रत्नत्रयितुं धाम छे, अकलकला गुणखाण, अविनाशीना ध्यानथी, होवे अमृतपान. अनुभव अमृतस्वादथी, निश्चय रूप जणाय, ज्ञाता श्याता आतमा, ज्ञाने मन परखाय. नित्यानित्य विचारिये, भेदाभेद सहाव,
For Private And Personal Use Only
Page #217
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
२७४
सापेक्षा आत्ममां, समज्याथी सुख दाव. अखण्ड निर्मल सत्य तुं, परम महोदय गेह, अन्तर्दृष्टि देखजे, वसियों आ देह. ज्योतिः झळहळती सदा, चेतननी सुखकार, शक्ति अनंति सिद्धसम, ध्यातां भवनो पार. परपुद्गलथी भिन्न तुं, घर त्हारो विश्वास, त्रिभुवनपतितुं देहमां, समजे तो मुखवास. ज्ञाता ज्ञेय अनन्तनो, जाग जाग मन चेत. जाग्रत था नुं आतमा, काळ झपाटा देत. सहु मंगलनुं स्थान तुं, सिद्ध बुद्ध परमेश, बुद्धिसागर ध्यानथी, पामो निर्भयदेश.
ध्यानोद्वार.
भुजंगी छन्द. करहुं कहा प्रेम तो कोण साथै, रु हुं कहो भारने कोण माथे; नथी कोइ मारु हवे केम हारु, हवे चेतने ब्रह्मने ना विसारु. खरामा खरा तवने आज जाएयुं, खरामा खरा सुखने आज माण्यं; चिदानन्दनं ध्यानथी आज ध्यायो, खरा सुखने मी आज पायो. टळी बाहामां सुखनी आज आशा, महा मोहना बाह्यना ए तमासा; अहो आज हंतो बन्यो भोगी,
For Private And Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ ४ ॥
॥ ५॥
॥ ६॥
119 11
11 2 11
|| 2. 11
112 11
॥ २ ॥
Page #218
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
२०५
अहो आज हंतो बन्यो ब्रह्म योगी. अहो आज हुंतो दयागंग न्हायो, अहो आज हुंतो खरुं तव पायो; खरा शुद्धरूपे अहो हुं सुहायो, परावेगथी आपने आप गायो. विकारो तमाम टया एकताने, बुरी आश छटी खरा ब्रह्मभाने; खरा शुद्ध चैतन्यमां दृष्टि लागी, प्रभुप्रेमी आत्मनी ज्योत जागी. प्रभुप्रेमथी ध्याननो भेद पावे, धरी ध्यान ने सिद्धरूपे सुहावे; कहे धनिधि ध्यानां काळ गाळी, खराब्रह्ममां मानवी नित्य म्हालो.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सत्संग.
गझल.
करोने संग संतोनी, करांने संग भक्तोनी; करोने संग ज्ञानिनी, करोने संग ध्यानिनी. करोने संग साचानी, तजोने संग काचानी: करोने संग मोटानी, तजोने संग खोटानी. करोने संग योगिनी, तजोने संग शोकिनी; करोने संग पुरानी, तजोने संग अधुरानी. करोने संग समजुनी, तजोने संग खूनींनी; करोने संग सारानी, तजोने संग नटारानी. करोने संग चेतननो, तजोने संग अचेतननो;
For Private And Personal Use Only
॥ ३ ॥
118 11
॥ ५॥
॥ ६॥
॥ १ ॥
॥ २ ॥
॥ ३ ॥
|| 8 ||
Page #219
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२०६
करोने संग शूरानी, तजोने संग बुरानी.
करोने संग सुमतिनो, तज ेने संग कुमतिनो; बुद्धियब्धि संग छे जेवी, प्रगटती बुद्धितो तेवी. ।। ६ ।।
धिक्कारखा योग्य.
छप्पय छंद.
धिक् तेनो अवतार जगतमां धर्म न धाय; धिक तेनो अवतार जन्मने फोगट हार्योः धिक् तेनो अवतार गुरुनुं शरण न कीधुं, धिक् तेनो अवतार साधुने दान न दीव; पर उपकार करे नहीं ने धर्मिजनपर खार छे,
For Private And Personal Use Only
॥ ५ ॥
॥ २ ॥
नीचमां ते नीच कुमति धिक धिक् अवतार छे. ॥ १ ॥ धिक् तेनो अवतार वदी नहि मीठी वाणी, धिक् तेनो अवतार परस्त्री प्रेमे दीठी; धिक तेनो अवतार गुरुनी निंदा करतो. धिक् तेनो अवतार नकामो ज्यां त्यां फरतो; धिक् तेनो अवतार छे जग कर्या गुणने ओळवे, वित्त माटे जूठ बोली असत्य वचनो जे लवे. धिक् तेनो अवतार वदीने जे नहि पाळे, धिक तेनो अवतार धर्मथी जे कंटाळे धिक तेनो अवतार शोकमां निशदिन झूले, धिक् तेनो अवतार वित्तना तोरे फूले; विश्वासघातक जे बने नर धिक् तेनो अवतार छ, शूरदानी भक्त वण जन जगत् मांहि भार छे. धिक् तेनो अवतार अन्यने आळ चढावे,
॥ ३ ॥
Page #220
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२०७
धिक् तेनो अवतार प्रभुने दील न ध्यावे; धिक् तेनो अवतार दयानी वात न जाणी, धिक तेनो अवतार पापनी बोले वाणी; पशु पंखीने मारीने बहु पापी उदर जे भरे, धिकार तेवा दैत्यजनने नरकमांहि अवतरे. वित्त छतां पण दान न दी, ते जन खोटा, धिक् तेने शतवार पापथी वाळे गोटा; धिक् तेने शतवार अन्यनुं हित न कीg, धिक तेने शतवार दारुन पान ज कीg; धन्य धन्य जगमां नरा ते परउपकारे रक्त छे, बुद्धिसागर धन्य ते नर सन्त मजन भक्त छे. ॥५॥
-
-
॥ धन्यवाद आपवा योग्य ॥
छप्पय छंद. धन्य धन्य अवतार जगत्मा जे उपकारी, धन्य धन्य ते भव्य करे जे सज्जनयारी; दया दानमां रक्त वदे छे वचन विचार्यु, चोरी चुगली त्याग तजे छे सज्जन वायु. धन्य धन्य जगमां अहो ते आप तरे ने तारता, पापकारक मूर्ख जनने सदुपदेशे वारता. धर्मिजनो पर प्यार चिनमां धर्मज प्यारो, निन्दा लवरी त्याग कदी नहि होय नठारो; वित्त छतां नहि मान लघुता अन्तर धारे, देइ जनोने दान खरेखर दुःख निवारे. जुवानीना जोरमां जे विषयविकारो टाळतो,
॥१॥
For Private And Personal Use Only
Page #221
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥२॥
२०८ धन्य धन्य जगमा अहो ते चित्तधर्मे वाळतो. धन्य धन्य जगमा सुजन जे मोह निवारे, सद्गुरुगमथी ज्ञान लहीने सत्य विचारे; अंतरमा उपयोग भोगने रोगज लेखे, परधन पत्थर परललनाने जननी लेखे धन्य धन्य जगमां अहो ते बोले तेवू पाळता, आत्मध्याने लीन थइने दृष्टि अंतर वाळता. भोग समयमा योग विचारो दिलमा आवे, दारुनो परिहार मांसने कदी न खावे, कपट कळानो त्याग राग सज्जननी संगे; कुव्यसनोनो त्याग धरे छे गुणने अंगे, धन्य धन्य जगमा खरेग्वर भक्तने दातार छे; बुद्धिसागर धन्य योगी सफळ तस अवतार छे.
॥४॥
मोहस्वरूप.
छप्पयछंद. महा मोह बळवान मोहमा सर्वे फसिया, मोह मदिरा घेन करी जीवो जग वसीया; भवनुं कारण मोह मोहथी सहु जन दुःखी, मोहाधीन जे भव्य कदी ते थाय न मुखी; मोहे जन मुंझाय छे जग मोहे भ्रांति मन पडे, अज्ञभाव मोह प्रगटे भवाटवीमां रडवडे. मोह भूपना रूप जगत्मां विचित्र भासे; मोहे हिंसा थाय मोहथी दया विनाशे, मोहे बोले जूठ मोहथी व्यसनी थावे
For Private And Personal Use Only
Page #222
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२०९ चोरी जारी चुगली दोषो मोह करावे, मोहे जगमां दास छे सहु मोह महा जगपाश छे; मोहपुत्री दुःखदायी जगत्मांहि आश छे. ॥२॥ जगजन मनमां मोह विराजे गडगडगाजे, मोहे जगजन चाले बोले स्वारथ काजे; मोहे दृरे धर्म मोहथी दुनिया चाले, पशु पक्षियो प्रेमधरी बचाने पाळे; माह शत्रु वळवान छे जग मोहे नाटकतान छे, मोहनृपति गज्य भारे जगतनो मुलतान छे. ॥ ३ ॥ मोहे मूके लाज मोहथी अकल बूरी, माहे लूटे चोर मोहथी मारे री; मोहे भासे जूट मोहथी ठरी न बेस, मोहे वधतो लोभ मोहथी जीवन क्लेशे; चोल मजीठना रंग सम, मन मोहे निशदिन व्यापियुं, मोहन तो जोर भारे मलीन मनटुं पामीयु. ॥४॥ मोह महा छे काळ जाळमां सहु जकडाया, अंतर बाहिर दुःख मोहथी कोइ न डाद्या; कोलेराने प्लेग थकी पण मोहन खोटो, मोहे वाळ्यो दाट मोहथी ज्यां त्यां गोटो; मोहभूतना दास जे जन चतुर्गतिमा अडवडे, मोहनी जंझाळमांहि कुदीने प्राणी पडे. ॥५॥ मोहे ज्ञान न थाय मोहथी सान न शांति, मोटो छे चंडाळ मोहथी कबु न शान्ति; मोहे वाधे दुःख मोहथी विष न मोटं; मोहे मोटां पाप मोहथी मनई ग्वोद,
For Private And Personal Use Only
Page #223
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२१० मोह मृकी जागीए घट सन्तसेवा कीजीए; बुद्धिसागर तत्त्व समनी आत्मभावे रीझीए.
॥६॥
समाधिस्वरूप.
मान मायाना करनारा रे-ए राग. करो सत्य स्वरुप समाधि रे, तेथी टळशे उपाधिने व्याधि; योग अष्टांगने शुद्ध साधि रे, करो दूरे सकल दुःख आधि. चित्त चंचलता दूर ज जावे, अनहद आनंद थावे; सर्व संकल्पनी सिद्धि खरेखर, रुद्धि सिद्धि सह पावे रे. करो. १ आतमना ज्ञानथी दुःख टळे छे, सिद्ध स्वरूप मळे छे; ब्रह्मा ने विष्णु, शंकर ने शक्ति, आतममां सर्व भळे छे रे. क०२ यौगिक विद्याभ्यास कर्याथी, विषयविकारो टळे छ; ज्ञानीना योग्य छे यौगिक विद्या, समज शिष्योने फळे छे रे. क. ३ क्रियमाण वळी संचित कर्मों, आत्मसमाधि हरे छे; अनंत शक्तिओ प्रगटे छे घटमां, परम स्वरूप वरेछे रे. क. ४ अन्तरनी शक्तियो भव्य जगावों, लेजो मानवभव ल्हावो; बुद्धिसागर घट सत्य समाधि, मुमुच जन झट पावो रे. क० ५
" साधु "
छप्पय छंद. सेवो साधु सत्य खरा जे आतम ज्ञानी, चलवे नहि पाखंड हृदयमां निराभिमानी; वदे सदा परमार्थ स्वार्थनी दिल नहि फांसी, विषयविषना त्याग मदा जे धर्मविलासी;
For Private And Personal Use Only
Page #224
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२९९
परम स्वरुप राचता ने चित्र दोपा परिहरे, कपटी जे दूर रहे सत्य शांति तं वरं वैरागी गंभीर वढे जे निर्मळ वाणी, अंतरम उपयोग अहो जे सह गुणखाणी; आतमज्ञान विना नहि जगमां साचा साधु, कपटीओए जगवंदने फोली खार्थः मन वशमा राखे सदा ने कनक कान्ता परिहरे, बाह्य किरिया राचता नहि साधु तेवा सुख वरे ॥ २ ॥ देश धरीने क्लेश न करता समता दरीया, ज्ञान ध्यानमां निवळ चेतन चित्सुख वरिया; वेष अने आचार ज्ञानथी साधु परखो, करो ज्ञानिनुं मान सदा मनमांहि हरखो; साधु सद्गुरू चरणकमळे, दास जनतो भृंग छे; धन्य धन्य ते मुनिवरा जग, ध्यानमां जस रंग छे. ॥३ ॥ समजे नहि निज तत्त्व साधु शुं आतम साधे, समजे नहि निज तत्व अहो ते धर्म विराधेः ज्ञान विना किरिया पाखंडे जे जन वळग्या, तवा साधु मुक्ति थी वहु छे अलगा; सदुपदेशे सत्यने जे समजावे मेमे करी, बुद्धिसागर सत्य साबु मानवा उलट धरी.
शुद्धस्वरूपप्रेममां सर्वनी ऐक्यता -
शुं भक्तिनां भाइ नाणां, ए राग. मधी लागे जगत सह प्यारी,
मुज आतम सम जीव धारु रे; प्रेमथी.
For Private And Personal Use Only
॥ १ ॥
॥ ४ ॥
Page #225
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
२१२
निश्चय नयथी निर्मळ जीव सहु, नथी जोवोथी तो छेडं; शुद्ध स्वरुप मधूननी खुमारी,
प्रगट्याथी जीव सह भई रे.
दुःख नहि तल भार हुं कोइने, प्रेमथी लोको निहाळुं
प्रेमना रसमां लदवद थइने, पुत्रनी पेठें पंपा रे. प्रेम त्यां शोक नहि, शोक त्यां प्रेम नहि,
प्रेमे जगत सहु सारुरु प्रीतिनी भक्तिमां भल नहि पडशे, प्रेम विना सहु खारे.
आतमना प्रेमी आत्म समान सह लुखु लागे छे प्रेम पाखे; आतमना ज्ञानमां भर्म न भूल छे, शुद्ध आनंद रस चाखेरे. ज्ञानीनो प्रेमरस करे जीवोने वश, ज्ञानीनो प्रेम शुद्ध सारो; वृत्ति उरे छे ठाम आवीने भममां, ब्रह्म स्वरूप प्रेम धारोरे.
निन्दादि दोष शुद्ध प्रेमथीज नाशता, अन्तरनी दृष्टि उघाडे;
गुरुनुं शरण प्रेम पाखे न सांपडे, शुद्ध स्वरुपने पमाडेरे. आतमना प्रेममां लाज न लेश छे,
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रेमधी० ॥ १ ॥
For Private And Personal Use Only
प्रेमी० ॥ २ ॥
प्रेम० ॥ ३ ॥
प्रेम०
१० ॥ ४ ॥
म. ॥ ५ ॥
प्रेम ० ॥ ६ ॥
Page #226
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
૨૨
मगटे हृदय शुद्ध देवाः बुद्धिसागर पीछे प्रेमना प्याला, मीठा अमृतरस मेवा रे.
८"
""
गुरुस्तुति.
शुं भक्तिनां भाइ नाणां, -ए राग,
ज्ञानना दाता गुरुजी उपकारी, नमुं भावे सदाय सुखकारी रे; ज्ञानना ० दया करीने झट तत्व बतावी, दीलमांची तम सहु टाळयुं; ब्रह्मस्वरूपनो भेद बतावी, ममतानुं मूळ खूब वायुं रे. ज्ञा० १ आत्मस्वरूपनुं ध्यान करावी, शाश्वत सुख चखाडयुं; समतासरोवरे आतमहंसनुं, चित्तहुं वेग थकी वायुं रे. उपकार आफ्नो कदी न विसरूं, समकित दायक स्वामी; प्रत्युपकार कदी आपनो न थावे, नमन करूं शिर नामी रे. ज्ञा० ३ शरण शरण गुरु व्हारुं सदाय मुज, प्रभु प्राण थकी प्यारा; दया करीने गुरु आशिष देशो, दीलमां वस्याछो गुरु म्हारा रे. ज्ञा० ४ विषयवासना दूर निवारी, आपी अंतर ज्ञानकुंची;
जीवनो शीव गुरु आपे बनाव्यो, करीने जात मुज उंची रे. ज्ञा० ५
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शुद्ध स्वरूपविचार.
शुं भक्तिनां भाइ नाणां-पराग.
आत्मन शुद्ध स्वरुप जो विचारी, जाय मानव भव केम हारी रे,
प्रेम. ॥ ७ ॥
जय जय जय गुरु देव कृपाळु, धन्य मनुष्य अवतारी; बुद्धिसागर गुरु स्मरण करूंछु, वन्दन वार हजारी रे. ज्ञानना० ६
For Private And Personal Use Only
ज्ञा० २
आत्मन्०
Page #227
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
२९७
लोक अलॉकने ज्ञाने नकाशे, शक्ति अनंतनोतुं स्वामी; थइने पामर केम पडी रह्यो तुं, अंतरमां जाग मुखकामीरे.
अन्तरना ज्ञानथी अन्तरना ध्यानथी, आवशे दुःखनोज आरो; त्रण भुवननो स्वामी छे दहमां, परखल्यो माण थकी प्यारो रे.
गंजीना ढेरसां अग्निनो कणियों, वाळे वधीने एकवारे; चेतनज्ञानथी कर्मनी वर्गणा,
नासे सकल दुःख वारे रे.
जेम जेम शुद्धस्वरूपे मकाशे, तेम तेम कर्म विनाशे; ध्यानचरणथी कर्म खरे छे, अनंत गुणो विकाशे रे.
भक्ति भलीज भाव आतम देवनी, आनंदघन तुं ज पोते; बुद्धिसागर हीरो हाथ चढ्यो छ, बीजे तुं शीदने गोते रे.
आत्मन्. ॥ १ ।।
आतम तमे शक्ति अनंत थकी खीलो, समता सरोवर झीलो;
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आत्मन्. ।। २ ।।
आत्मन्. ॥ ३ ॥
For Private And Personal Use Only
वशु भाइ भक्तिनां नाणां - एराग.
आत्मन्. ॥ ४ ॥
आत्मनः ॥ ५ ॥
आतम०
Page #228
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૨૨૫
आतम. ॥१॥
आतम. ।। २ ॥
असंख्य प्रदेश मय शास्वत मुखमय, आलसथी थाय केम ढीलो अंतर उद्यम थकी शुद्ध स्वरूपमय, कर्मपातक सहु पीलोरे. तारा प्रकाशता चंद्र प्रकाशतो. सूर्य प्रकाश करे भारी; अनंत ज्ञान थकी सहुने प्रकाशे, तेजनो तेज तुं विचारी रे. बाह्यमां सुख नहीं अंतरमा सुख छे, चेतन थाय शुं हठीलो; ब्रह्मा शंकर हरि आतमराम तुं, सत्ताए सरस छबीलो. निज पर दोपना भानने विसारी, अंतरमा थाजे एकीलो बुद्धिसागर गुरुवाणी विचारी, था तुं ग्वंतीलो टेकीलो रे.
आतम. ॥ ३ ॥
आतम. ॥ ४ ॥
आनंदघन. वहेंचशुं सक्तिनां भाइ नाणां -ए राग. आनंदघन आतमना गुण गाशो, तमे शाश्वत सुखडां पाशो. आनंद. आतमना प्रेमथी आतमना नेमथो, सद्धि अनंति कमाशो; अन्तर प्रदेशमां क्लेश न लेश छे, जागीने झटपट जाशो. आनंद. १ आतमना देशमां शाश्वत मुख छ, विवेकवंतनोज वासो; नित्य अनित्य शुद्ध बुद्ध अविनाशी वैग्वरीथी केम कलाशो. आनंद.२
For Private And Personal Use Only
Page #229
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सत्य स्वरूप ज्यां ताप न लेश त्यां, केवल ज्योतथी प्रकाशो; बुद्धिसागर गुरु ज्ञाननी घेनमां, निर्भय योगी जणाशो. आनंद. ३
भावना समान संस्कारफल.
व्हेंचशु भक्तिनां भाइ नाणां- गग. भावना जेवी तेवून फल पावो; जेवं ध्येय नेवा थइ जावो रे. भावना. रंकनी भावना रंकनां दुःख दे, मुखिनी भावनाथी सुखो ध्येयस्वरुप दिल थातां शुभाशुभ, आतममां सुख दुःखो रे. भावना. ॥ १ ।। शुभाशुभ संस्कार पडे छे दील, पुण्य पाप भावनाथी संस्कारथी मति तेवीज प्रगटे, लागे ग्वरुज समज्याथी रे. भावना. ।। २ ।। दोषो विचारतां दोषोना बीजने, वावे हृदयमांहि प्राणी; गुणो विचारतां गुण संस्कारने, प्रगटावे दीलमां ज्ञानी रे. भावना. ॥ ३ ॥ इयळ भ्रमरी भावना जोरथी, भुंगी स्वरुप झट पावे सिद्ध स्वरुपने ध्याने विचारतां, सिद्ध बुद्ध पद पावे रे. भावना. ॥४॥ उच्चने नीच भाइ भावना जोरथी, थाशो हृदय ल्यो विचारी
For Private And Personal Use Only
Page #230
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२१७ बुद्धिसागर सिद्ध ध्येयना ध्यानथी, सिद्ध स्वरूप जयकारी रे.. भावना. ॥ ८ ॥
ध्यानजीवन. व्हेंचरों भक्तिनां भाइ नाणां प राग. ध्यानमां नक्की जीवन जीव गाळो, दोषो सकळ झट टाळोरे. ध्यानमां० संकल्प श्रेणि निवारीने क्षणमां, वृत्ति चेतनमांहि वालो असंख्यप्रदेशमा चित्त रयावा, कदी न लेश कंटाळोरे. ध्यानमां. ॥ १ ॥ दोषोने खाळवा ने रोगोने टालवा, छंडोने क्रोष महा काळो; सदगुण दृष्टि धारी हृदयमां. त्यागो निंदानो तो टाळोरे. ध्यानमां ॥२॥ सामर्थ्य योगथी ध्यान लगावतां, रुद्धि अनंत दिल भाळो, बुद्धिसागर प्रभु ध्यान प्रतापथी, मुक्ति पुरीमांज म्हालोरे, थ्यानमां ॥३॥
भक्तिमेवा. व्हेंचशु भक्तिनां भाइ नाणां- राग. भाळजो भक्तिनो योग खूब भारी, भक्तिथी भूल ना थनारीरे भक्तिः भाळजो. भक्तिना भावमां आनंद उपजे. .
For Private And Personal Use Only
Page #231
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२१८
भक्तिनी ओर छे खुमारी. भक्तिना योगमां एक स्वरुपता, भक्तिथी सिद्धि थनारीरे. भाळजो. ॥ १॥ भक्तिमां भान एक सत्य स्वरुपर्नु, भक्ति छे योग एक मोटो झान विना अरे भक्तिना नामथी, वाळयो प्रपंचीए गोटोरे. भाळजो. ॥ २॥ देवगुरुनी भाइ भक्ति कर्याथी, सहज स्वरुप निज पावे; निष्काम भक्तिथी शक्ति जगे छे, जीवनो शिव झट थावरे. भाळजो. ॥ ३ ॥ कारुण्यभावनाथी जीवोनी भक्ति, भाव दयाथी तेम धारो उपकार बुद्धिथी भक्ति गुरुनी, तरतमयोगे विचारोरे. भाळजो. ॥४॥ आतमनुं ध्यान ते भक्ति छेवटनी, भक्ति ते ध्यान कहावे; बुद्धिसागर गुरु ध्यान सेवाथी, केवळ ज्ञान झट थावरे. भाळजो. ॥५॥
विषयत्याग. व्हेंचशुं भकिनां भाइ नाणां-ए राग. आतमा फुली करे शु फजेती, जागी ले चित्त मांहि चेतीरे आतमा; जन्म जरा वळी मृत्युनी नदियो,
For Private And Personal Use Only
Page #232
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२१९
चार गतिमांहि वहती. चेतो चतुर जीव जलीज चेतो, पाणीना पूरथी कतीरे. आतमा. ॥१॥ बाह्य विषय विष जेवा गणीने, करशो अंतर गुण खेती; सुमतिना संगे रंगे तो रीजीए, शाश्वत मुख जे देतीरे. आतमा.॥२॥ आतमनी धारणा आतमना ध्यानमां, सुरता सहज भाव रहेती; बुद्धिसागर गुरु तत्त्वस्वरुपमा, रहेजो वाणीज एम कहेतीरे. आतमाः ॥ ३ ॥
दुनियादारी. व्हेंचरों भक्तिनां भाइ नाणां-एराग. दुनियादारी जरुर दुःखकारी, चेतो भविक नरनारी रे.
दुनिया स्वम समान मोह मायानी बाजी, कोइनी कदी न थनारी; मायामां मुंझी फुली फरे शें, जाय उमर अरे हारी रे.
दुनिया. ॥१॥ अंतरना शोधथी अंतरना बोषधी, शाश्वत सुखनी खुमारी; अन्तर प्रदेशमा ध्यान प्रवेशतां; सिद्धि समाधि थनारी रे. दुनिया. ॥ २ ॥ बाह्य प्रदेशमा मोह मलीनता,
For Private And Personal Use Only
Page #233
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२२०
दुनिया. ॥३॥
कर्म कलंक बहुभारी शुद्धोपयोगी कर्म खरे छे समजो स्वरुप सुखकारीरे. स्थिरता चेतनमां थावे जो ध्यानथी, कर्मकलंक दूर जावे;
बुद्धिसागर गुरुज्ञान प्रताप, ... परम स्वरुप झट पावरे.
दुनिया. ॥ ४ ॥
ब्रह्म.
ब्रह्मरस. हेचशु भक्तिनां भाइ नाणां-एराग. ब्रह्मरस भोगी जगत्मांहि योगी, ब्रह्म भोगे नथी कोइ रोगीरे. ब्रह्मना गानमां ब्रह्मना तानमां, ब्रह्मना ध्यानमा खुमारी; ब्रह्मनी ल्हेरमां वैर विरोध जाय, ब्रह्मानुभव सुखकारी रे.
ब्रह्म.॥१॥ ब्रह्मना भानमां आनंद सत्य छ, ब्रह्म स्वरुप शुद्ध सामु ब्रह्म विना भाइ जडमां न सुख लेश, ब्रह्म स्वरुपमांहि राचुं रे.
ब्रह्म. ॥२॥ ब्रह्म स्वरुप छ आतमराम देह, शोधोने ध्यानथी तपासी; अनंत आतमा ब्रह्मस्वरुपमय, केवलज्ञानथी प्रकाशीर.
ब्रह्म. ॥३॥ संग्रहनयश्री सत्ताए एकरुप,
For Private And Personal Use Only
Page #234
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ब्रह्मः ॥ ४ ॥
व्यक्तिथी भिन्न विचारो; सापेक्षताथी ब्रह्मस्वरुपने, जाणीए सत्य आधारो रे. गन्नत्रायनी रुद्धि विचारी, ध्यावो परमब्रह्म पोते; बुद्धिसागर प्रभु ब्रह्मस्वरुपमय, बीजे तुं शीदने गोतेरे.
ब्रह्म. ॥ ५॥
सद्गुणदृष्टिभावना. उहचशुं भक्तिनां भाइ नाणां-ए राग. सदगुणदृष्टि धरीने मुख लीजे, गुणिर्नु मान बहु कीजे रे. सद्गुण. सद्गुणिजननुं गान कर्याथी, प्रगटे छे गुण तेज दीले जेवा विचार दिल संस्कार तेवा, संस्कार फळ मन खीले रे. सदगुण. ॥१॥ कृष्णनी दृष्टि छे कूतराना दंतमां, उज्वलरुपने वखाणे; सद्गुणदृष्टिथी संस्कार गुणना, युक्तिथी योग्य जीव जाणे रे. सद्गुण. ॥२॥ दीवसमा स्त्रीना विचारथीज प्रगटे, स्वमामां स्त्रीज निरखेली जेवा विचार संस्कारतोज तेवा, तत्त्वनी वात आ ठरेली रे. सद्गुण. ॥ ३ ॥ विकथा विवादमा दोष विचारथी,
For Private And Personal Use Only
Page #235
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२२२
संस्कार दोषी पडे छ आकृतिवत् प्रतिबिंब दर्पणमां, शोध्याथी सत्य जडे छे रे. सद्गुण. ॥ ४ ॥ गुणनी छे आदिने दोषो अनादि, जेवो विचार दील तेवं; सद्गुणदृष्टिथी गुणो खीले छ, सत्य विचाराने लेवू रे. सद्गुण. ॥५॥ जेवं मनन तेवी धारणा थाय छे, स्मृति छे धारणाथी तेवी; विषयवासना स्मृतिनुं कारण, प्रथमज धारणा लेवी रे. सद्गुण. ॥ ६ ॥ दृष्टि समानज विचारो तो थाय छे, सद्गुणदृष्टि भली छे सद्गुणदृष्टिथी गुणोनी भावना, दृष्टि सज्जनने मळी छ रे. सद्गुण. ॥ ७॥ जेवो अभ्यास तेवी दृष्टि खीले छे, जोशो हृदयमां विचारी; गुणोनी भावना भाव वधार, अभ्यास भावना सारी रे. सद्गुण. ॥ ८ ॥ खोळामां ललना ने पुत्री के बेसे, दृष्टिथी भावनाज न्यारी दृष्टिनी भावना पार्टी पडे छे, समजो हृदय नरनारी रे. सदगुण. ॥ ९ ॥ सदगुण भावना दृष्टि खीलावो, उच्च जीवन अधिकारी
For Private And Personal Use Only
Page #236
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૨૨૩
बुद्धिसागर गुरुभावना ब्रह्मनी, परमस्वरुप जयकारी रे.
सद्गुण.॥१०॥
॥विचारीने सर्व करवं. ॥ व्हेंचशुं भक्तिनां भाइ नाणां-ए राग. बोधयी बोलो विचारी सुधारी, लखो लेखोने पहेलां विचारीरे. बोधथी; नात जात वाटमां विचारी बोलीए, विचारे वात थाय सारी. विचारी बोलतां शोक न संपजे, थाशे न मोटी खुवारीरे. बोधथी. ॥१॥ विचारी चालीए विचारी म्हालीए, विचारी बेसीएज ठामे; विचारी खोलीए वातो हृदयनी; कीर्ति जगत्मांहि जामेरे. बोधथी. ॥२॥ विचारी उठवू विचारी उघg, शिक्षा विचारीने दीजे द्रव्य ने काल भाव क्षेत्र विचारी, कृत्यथी झट मुख लीजेरे. बोधथी. ॥३॥ विचारी पूजीए विचारी झुझीए, विचारी पादनेज मूको पस्तावू पाछळथी पडशे न भाइओ, चतुर चित्तमा न चूकोरे. बोधथी. ॥ ४ ॥ विचारी शोधीए विचारी बोधीए, विचारे भूल ना थनारी;
For Private And Personal Use Only
Page #237
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૨૪ धर्मविचारमा सुख सदाय छे, पापे तो दुःख थाय भारीरे. बोधथी. ॥ ५॥ विचारी खाइए विचारी गाइए, विचारी ध्याइएज देवा. विचारी जोइए विचारी रोइए, विचारी कीजीएज सेवारे. बोधथी. ॥६॥ विचारी वाळवू विचारी खाळवू, विचारी टाळबु नठारूं; विचारी पाळवं विचारी हालवं, विचारी कीजीएज सारुरे. बोधथी. ॥७॥ विचारी दोडीए विचारी छोडीए, विचारी त्यागीएज खोडं विचारी दीजीए विचारी लीजीए विचारे काम थाय मोठं रे. बोधथी. ॥ ८ ॥ विचारी टेक नेक कीजे वदीजे, विचारे काम थाय रुडुं विना विचारथी नफामां खोट छे; विना विचारथीज भंडं रे. बोध. ॥९॥ विचारी वातने जावं सभामां, समजो सजन नरनारी; बुद्धिसागर गुरु तत्त्वविवेके; शाश्वत सिद्धि थनारी रे. बोध. ॥ १०॥
For Private And Personal Use Only
Page #238
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
રરર
धर्मनी सजाय.
श्रीरे सिद्धाचल भेटवा-एराग. रे जीव धर्मने धारीए, वारीने मोहमाया; हुँ ने माम फोक छे, पाणीना पडछाया. रे जीव. ॥ १ ॥ पृथ्वी थइ नहि कोइनी, गाडी वाडीने लाडी; भ्रान्तिमां भटके अरे, पडियो मोह खाडी; रेजीव. ॥ २ ॥ जेवी संध्या वादळी, जलमध्य पतासा; कायानी माया तेहवी, दर्पणगत छाया. रेजीव. ॥३॥ पूर नदी- जेह, जेवी स्वमानी सृष्टि, झांझवाना जल जेहवी, जूठ मोहनी दृष्टि. रेजीव. ॥ ४॥ पुद्गल वाजांथी भिन्न तुं, शुद्ध चेतनराया, बुद्धिसागर जागता नर, रत्न कमाया. रेजीव. ॥५॥
॥ परम प्रभु गान.॥
नाथ केसे गजको बध छोडायो-ए राग. परम प्रभु अन्तर आतम परखो, ध्याने जोइ जोइ हरखो परम. दर्शन ज्ञान चरण गुण धारी, शुद्ध बुद्ध अविकारी, शक्ति अनंति स्थिरता योगे, प्रगटे छे जयकारी. परम. ।। १ ॥ आपो आप विचारे प्रगटे, व्यक्ति स्वरूप विलासी, शोधो बोधो आतम देवा, त्यां छे गंगा काशी. परम. ॥ २ ॥ आतम अनुभव निश्चय स्थिरता, प्रगटावो सुखकारी, हरिहर ब्रह्मा इश्वर पोते, तरतम योग विलासी. परमः ।। ३ ।। षट् दर्शननो झघडो भागे, भेद ज्ञान झट जागे, शुद्ध स्वरुपे रहेतो रागे, पर परिणतिने त्यागे. परम. ॥ ४ ॥
For Private And Personal Use Only
Page #239
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२२६ ध्यावो गावो आतम देवा, सुख कर करशो सेवा, बुद्धिसागर अनुभव मेवा, ध्याने झटपट लेवा. परम.
॥५॥
चिद्घनगान.
व्हाला वीरजीनेश्वर-ए राग. प्यारा चिद्घन चेतन शुद्ध स्वरुप तव धारजोरे, पामी हीरो हाथे अलबेला नहि हारजोरे; निराकार निःसंगी ज्ञानी, अनंत दानादिकनो दानी, दिल आदर्श चिदानंद अवधारजोरे. प्यारा. ॥१॥ उपशम क्षयोपशमनी शक्ति, क्षायिक भावे प्रगटे व्यक्ति, निश्चल ध्याने पोताने झट तारजोरे. प्यारा. ॥ २॥ अलख खलकमां साचो समजो, सुरताथी स्हेजे त्यां रमजो, विषय विकारो वेगे दीलथी वारजोरे. प्यारा.॥३॥ कर पोतानी प्रेमे भक्ति, खीलवजे तुं निजगुण शक्ति, चेतन चेती झटपट कर्म कलंक विदारजोरे, प्यारा- ॥ ४ ॥ अलबेलो साहिब तुं प्यारो, पोताने पोते ध्यानारो, बुद्धिसागर परम प्रभु संभारजोरे. प्यारा. ॥ ५ ॥
श्रीयशोविजयजीस्तुति.
व्हाला वीर जीनेश्वर-ए. राग. व्हाला यशोविजयजी व्हेला दीलमां आवजोरे, जाणी बाळक त्हारो करुणा दीलमा लावजारे, अपूर्व ज्ञानी धर्मधुरंधर, वाणी सारी छे शिव सुखकर, तुज वाणीनो शुद्धाशय बतलावजारे. व्हाला. ॥ १ ॥
For Private And Personal Use Only
Page #240
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૨૨૭
तव पुस्तक साचां में परख्यां, रोम रोम प्रेमे सहु हरख्यां, त्हारा हृदय समुद्रे प्रवेश मुज करावजोरे. व्हाला. ॥ २ ॥ सात नयोना ज्ञाता पूरा, नहि को वाते प्रभो अधुरा, तु ग्रन्थोनो बोध हृदयमां ठावजारे. व्हाला. ॥ ३ ॥ तुज भक्तिथा सत्य निहाळु, विषय विकारो वेगे टाळु, वाचक दीनबंध तुं सेवक स्हाये धावजोरे. व्हाला. ॥ ४ ॥ अनेकान्त मतना प्रभु ज्ञाता, अनेकान्त आतमना ध्याता, बुद्धिसागर करुणा दिल प्रगटावजोरे.
व्हाला. ॥ ५ ॥
अन्तरमां सुख.
व्हाला वीरजीनेश्वर-- एराग.
खरेखर सत्य सुख छे अंतरमां अवधारजेरे, साचं समजी व्हाला विषय विकारो वारजेरे; माटीनी मानी जे रुद्धि थाशे नहि तेथी कंइ सिद्धि; व्हाला समजी वेगे अंतर्धनने धारजेरे. खरेखर. ।। १ ।। बाह्य विषयमां सुखनी आशा, मोह बुद्धिना जाण तमासा; व्हालम समजी साचं जीवन व्यर्थ न हारजेरे. खरेखर. २ जे जे अंशे स्थिरता धारे, ते ते अंशे धर्म वधारे;
तारक भवजलाधथी पोताने झट तारजेरे. खरखर ॥ ३ ॥ सामग्री पामीने चेतो, चेते ते शिव सुखने लेतो;
वाल्हम शुद्ध स्वरुप तारु ते दील विचारजेरे. खरेखर ||४॥ मग छे उद्यमी शक्ति, क्षायिक भावे मगटे व्यक्ति;. बाल्हम बुद्धिसागर पोताने संभारजेरे. खरेखर.
॥ ५॥
For Private And Personal Use Only
Page #241
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૨૨૮
आत्मोपयोग.
व्हाला वीर जीनेश्वर-एराग. व्हाला हरतां फरतां ब्रह्म स्वरुपने थ्यावजेरे; निश्चय अंतर्धनमां श्रद्धा साची लावजेरे; विषय विचारो दूर हठावी, मनमा अन्तर्यामी भावी, चेतन अनंत लक्ष्मी क्षायिक भावे ठावजेरे. व्हाला. ॥१॥ चित्तवृत्ति अंतरमा स्थापी, थाजे निश्चय निजगुण व्यापी, असंख्य प्रदेशी घरमां व्हेलो आवजेरे. व्हाला. ॥ २ ॥ भनवी भावे निजगुण भक्ति, खीलववी चिद्घननी शक्ति; प्रेमी उद्यमी तुं ब्रह्म स्वरुपने पावजेरे. व्हाला. ॥ ३ ॥ ब्रह्मज्ञानथी भागे झघडो, दूर रहेशे मायानो वगडो; वाल्हम मोहादिक शत्रुने दूर हठावजेरे. व्हाला. ॥ ४॥ अन्तर्यामी चिद्घन परखी, पामी हीरो लेजे हरखी; बुद्धिसागर सोऽहं गायन गावजेरे. व्हाला. ॥ ५ ॥
चेतवणी.
व्हाला वीर जीनेश्वर-एराग. चेतन चतुर थइने मोहे रॉ मुंझाय छे रेः खरेखर धन दाराथी कदी न शांति थाय छे रे, माया ममताथी शुं फूले, बाह्य दृष्टिथी भवमां झूले; समजु धोळे दहाडे शुं चउटे लुटायछेरे. चेतन. ॥ १ ॥ अवसर मळीयो शीदने चूके, गद्धानी पेठे शुं मूंके; अरे जीव मळीयुं टाणुं शीदने हारी जाय छे रे. चेतन. ॥२।। अर्क तणां आकुलां जेवां, तन धन योवन मन छे तेवां: हीरो हाथे चढीयो चूकी क्यां भटकायछेरे. चेतन. ॥३॥
For Private And Personal Use Only
Page #242
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२२९
चेतचेत आतम तुं चटपट, दूर करी दुनियानी खटपट; प्रेमे बुद्धिसागर सद्गुरु संगत स्हायछेरे; पामी अंतर्धनने आतम तो हरखायछेरे. चेतन. ।। ४ ।।
“ अमूल्य शिक्षा"
व्हाला वीर जीनेश्वर--एराग. सुखकर अमूल्य शिक्षा मानवी होय तो मानवीरे, फीकरनी फाकी करीने फकीर होय तो फाकवीरे; मौन विना मुनिवर ते शानो ? दान कर्या वण शानो दानो? छबीलो होय तो दिलमां सत्य वातने छापवीरे. मुख० ॥ १ ॥ न्याय विना राजा नहि दीपे, तृषा छोपे नहि समुद्र टीपे; धर्म विना नहि सुखनी वात पिछानवीरे. मुख० ॥२॥ नाक विना शोभे नहि काया, शोभे शुं ? तरुवर विण छाया; धर्म विना तेवी जींदगानी जाणवीरे. सुख० ॥ ३ ॥ अक्कल वण जेवी छे शकल, मेघविना शोभे नहि मरुथळ; धर्म विना तेम भुडी वेळा भाळवीरे. मुख० ॥ ४ ॥ हळी मळी आनंदे चालो, बोल्युं तेवु निश्चय पाळो; रसने निंदाथी राखो रसनाने जाळवीरे. मुख० ॥ ५ ॥ देश वेषं ने कदीन त्यागो, अन्तरना उपयोगे जागो बूरी परनी वातो दूर थकी ते बाळवीरे. मुख० ॥ ६॥ जननी जुओ न बाजु काळी, अवगुण दृष्टि टेवो टाळी; जीवन वेळा सर्वे सजन साथे गाळवीरे. मुख० ॥ ७ ॥ नीतिनी रीतिमां प्रीती, धर्म करतां कदी न भीति; वेगे वेळा सारी ब्रह्मज्ञानथी वाळवी रे. मुखकर० ॥ ८ ॥ सर्व कार्यमां राखो समता, उत्तम सज्जन सहेजे नमता;
For Private And Personal Use Only
Page #243
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बोली वाणी भव्यो माण पडे पण पाळवी रे. मुख० ॥ ९ ॥ साचं ते जाणो मन मारु, जूठाने करशो झट न्यारं; बुद्धिसागर हित शिक्षा, दिल लाववी रे. सुख० ॥१०॥
ध्यान प्रेरणा.
__ माढ राग. ध्याने सुख भरपूर रे, जीव ध्याने मुख भरपूर, वाजे मंगळ तूर रे, जीव ध्याने सुख भरपूर; परा पश्यति मध्यमारे, वैखरीथी भिन्न; हृदय कमळमां ध्यानथी रे, होवे छे त्यां लीन रे. जीव० ॥१॥ मर्मस्थानमा जाणीए रे, असंख्य प्रदेशो भव्य; मन संयम ते स्थानमा रे, जाणो शुभ कर्तव्य रे. जीव०॥२॥ घट चक्रोना स्थानमां रे, असंख्य प्रदेशो होय; । ध्यान करो त्यां तेहy रे, शक्ति प्रकाशती जोय रे. जीव० ॥३॥ पट चक्रोना स्थानमा रे, कमळ वर्णनो रे न्यास; तेमां मनटुं स्थाप, रे, सालंबन ते खासरे. जीव० ॥ ४ ॥ प्रणवादिक सालंबने रे, लब्धि प्रगटती देख; केवळ आतम ध्यानी रे, चिद्घन निर्मळ लेख रे. जीव० ॥५॥ पगथी मस्तक व्यापीने रे, आतमनो छे वास; क्षयोपशमनी भिन्नता रे, ध्याने प्रगटे खासरे. जीव० ॥ ६ ॥ पर कर्ता हर्ता कह्यो रे, परना ध्याने जीव; निज कर्ता निज ध्यानथी रे, होवे जीवनो शीव रे. जीव० ॥७॥ पुद्गळमां व्यापो प्रभु रे, असंख्य प्रदेशी देव; शक्ति अनंति साहिबो रे, करे पोतानी ते सेव रे. जीव० ॥ ८॥ अनंत देहोने रचीने, छोडयां छे दील जाण;
For Private And Personal Use Only
Page #244
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
२३१
देह सृष्टि वर्तमाननी रे, कर्ता तेनो पिछान रे. जीव० ॥ ९ ॥
देह सृष्टि रचना करे रे, राग द्वेषना योग;
राग द्वेषना नाशथी रे, सृष्टि देह वियोग रे. जीव० ॥ १० ॥ सृष्टिकर्ता नहि हुवे रे, निर्मळ इश्वर देव; राग द्वेषाभावी रे, बने न एवी देवरे. राग द्वेष सदभावधी रे, इश्वर नहि कहेवायः
जीव० ।। ११ ।।
शुद्ध इश्वर निर्मला रे, सृष्टिना कर्ता न थाय रे. जीव० ।। १२ ।। सहु जीवो परमातमा रे, सत्ताथी कहेवायः
ध्याने कर्म विनाशथी रे, सिद्ध सदा परखाय रे. जीव० ||१३|| fisस्थादिक ध्यानथी रे, ध्यावो आतम राय;
बुद्धिसागर गुरु लही रे, केवल कमला पाय रे. जीव० ॥ १४ ॥
"
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आत्माध्येय.
माढ राग.
प्रगटे आतम भान रे, दील प्रगटे छे भगवान, होवे जब एक तान रे, दील प्रगटे छे भगवान्. आत्म प्रदेशो ध्यावतां रे, शक्ति प्रगटे सर्व; ध्यान क्रिया अभ्यासथी रे, नासे मिथ्या गर्व रे. दि० ॥ १ ॥
"
अगम अगोचर वस्तुनो रे, वीरला पामे पन्थ;
दि० ||३||
गुरुगम वण के प्राणिया रे, थाक्या भणीने ग्रन्थ रे. दि० ॥२॥ ज्ञानविना श्रद्धा नहीं रे, श्रद्धा वण शी सेव; अनेकान्त नय योगथी रे, सेवो आतम देवरे. उपयोगे आतम भजो रे, असंख्य प्रदेशी रायः सहज समाधि संपजे रे, अंतर सुख परखाय रे. दिल. ॥४॥ शक्ति अनंति शाश्वती रे, प्रगटे नासे रोग;
For Private And Personal Use Only
Page #245
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ર૩ર आपो आप विचारतां रे, पामे सुखनो भोग रे. दिल.॥५॥ ज्ञेय ज्ञान दो भाव छ रे, सामान्य अने विशेष; शुद्ध ज्ञानी जाणतां रे, लहीये निर्मळ देश रे. दिल. ॥६॥ सेवो ध्यावो आतमा रे, प्रगटे छे सुख पान; बुद्धिसागर ज्ञानथी रे, सोऽहं गावो गान रे. दिल. ॥७॥
परास्थिति प्रेरणा. मुण आतमा परापश्यंति, मध्यमाथी निजने वाल्हम जाणजे; मध्यमा विचार बलथी, शुद्ध श्रद्धा आणजे सुण. ।। शुद्ध सत्ता परम इश्वर, देव तुं छे देहजी. भावनाथी व्यक्ति रुपे, थावे गुण गण गेहरे. सुण. ॥१॥ दीनतादि भाव त्यागी, भावो शुद्ध स्वभावजी; सत्य भावे सत्य प्रगटे, विणसतो परभावरे. सुण. ॥ २ ॥ शुद्ध रटना नेपथी तुं, दर्शन आपे देवजी; पोताने तुं ध्यावतो ने, पोते तुं छे देवरे. सुण. ॥ ३ ॥ परम आत्म स्वरुपमां तो, आनंद अपरंपारजी; ओळखतां निजरुपने झट, नासे मिथ्याचाररे सुण. ॥ ४ ॥ खेल खेले नव नवातुं, ज्ञान ज्ञेय स्वरुपमां; अलख इश्वर नित्य तुं छे, शुद्ध भक्ति रुपमा. मुण. ॥५॥ रुपारुपी तुं प्रभु छे; सत्य तारुं व्हालजी; प्रेमीनो पण प्रेमी साचो, सत्य धन संभाळरे मुण. ।। ६ ॥ जाग चेतन जाग चेतन, केम करतो वारजी; तुज विना नहि चेन दिलमां, सारमां तुं साररे. मुण.||७|| पंच परमेष्ठि प्रभु पण, आतमथी पूजायरे; बुद्धिसागर ज्ञान वातो, समजुने समजायजी. मुण. ॥ ८ ॥
For Private And Personal Use Only
Page #246
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चेतनदर्शन. जीव जोइले निज रुपने झट शुद्ध परखी तत्त्वनिश्चय धारजे; संसार छ पण नास्तिभावे आतममां अवधारजे. जीव० भान भूली मनमां फूली, झुल्यो सहु संसारजी; भूतकालिक विषय भूली, मोह निंदा वाररे. जीव. ॥१॥ आतमहीरो हाथ आव्यो, देखीने तुं देखजी; मोहवाजी त्यां शुं राजी, प्रेमथी झट पेखरे. जीव. ॥२॥ खुदा विष्णु राम तुं छे, अर्थभेदें भेदजी; शब्दभेदे अर्थ एके, अनेकान्तनय वेद रे. जीव. ॥३॥ स्याद्वादभावे सन्य जाणी, सेवीए आतमरामजी; ब्रह्म गुण आधार आतम, ब्रह्मनुं ते धामरे. जीव. ॥४॥ एकनयथी दृष्टिभेदे, भेद प्रगटे जाणजी; स्याद्वाद समज्या विन जगमां, धर्म ताणताणरे. जीव.।।५।। चित्तवृत्ति स्थिरताथी, आतमभक्ति थायजी; आतम ते परमातमा छे, ध्यानथी परखाय रे. जीव.॥६॥ आनंदल्हेरो ऊछळेजी, ध्यानसागरमोहिनी; ज्ञान दर्शन चरण स्थिरता, एकचित्त प्रवाहरे. जीव.||७॥ ध्यान सरवर हंस खेले, आनंद अपरंपारजी; बुद्धिसागर भक्तिभावे, थयो सफल अवताररे. जीव.॥८
-~->> ------
“ गुरुशरण " गुरुशरणथी जीव जागजे झट मोह माया क्लेश निंदा वारजे गुरुचरणनी सेवनाथी आतमने अरे तारजे. गुरु० गुरुकृपा वण जीवडा अहो, ठरे न एके ठामजी;
30
For Private And Personal Use Only
Page #247
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२३४ गुरुकृपाथी ज्ञान ठरतुं, होवे गुणगण धाम रे. गुरु.॥१॥ गुरुकृपाथी चित्त निर्मळ, पेखे शास्वत पन्थनी; गुरुकृपा विण तत्व नहि छे, वांचे लाखो ग्रन्थ रे. गुरु.॥२॥ गुरुकृपाथी दुःख नासे, आनंद अपरंपारजी; गुरुकृपाथी आत्मदर्शन, अनेकान्त मत प्यार रे. गुरु.॥३॥ गुरुकृपाथी देवदर्शन, भामे आतम ज्योतजी; गुरुकृपाथी श्रुतवाणी, समजतां उद्योतरे. गुरु.॥४|| गुरुमहिमा मेरु सम छे, कहेतां नावे पारजी; बुद्धिसागर गुरुकृपाथी, सफल छे अवतार रे. गुरु.।।५।।
अनंतज्ञानभंडार आत्मा.
झुलणा. रुद्धि सिद्धि धणी चेत चेतनमणि, ज्ञानने ज्ञेयरुपे सुहायो ज्ञेयथी भिन्न तुं ज्ञानथी भिन्न नहि, आतमा ज्ञेयरुपे कहायो. रुद्धि० ।।१।। ज्ञेयथी भिन्न नहि ज्ञानपर्यायथी, ज्ञानथी सर्व सापेक्षयोगे; ज्ञान ते धर्म छे मुख्य लक्षणपणे, ज्ञान वण आतमा दुःख भोगे. रुदि. ॥२॥ केवलज्ञानथी सिद्धिना शर्ममां, आतमा झीलतो तत्त्वयोगी; ज्ञान वण आंधळो जीव सपजे नहि, आत्म रुद्धि थकी छे वियोगी. रुद्धिः ॥३॥ नित्य अभ्यासथी ज्ञानशक्ति वधे,
For Private And Personal Use Only
Page #248
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२३५ केवल ज्ञान अंते प्रकाशेः धर्मउत्साहथी वीर्य शक्ति जगे, वीर्य शक्ति अनंति प्रभासे. रुद्धि. ॥४॥ योग उद्योगथी मुक्ति सोपानमां, आतमा धैर्यथी पाद भूके; प्रेमथी भावना भावतां आतमा, कदी नही धैर्यथी भव्य चूके. द्धि. ॥५॥ शक्तिना योगथी व्यक्ति शुद्धि जगे, सत्य आनंदनी घेन आवे भक्ति विश्वासथी आतमा उच्च छ, शुद्ध अभ्यासथी दुःख जावे. रुद्धि. ॥६॥ जागीये क्षण क्षणे लागीए ध्यानमां, बाह्य संसर्ग सर्वे निवारी शुद्ध चैतन्यना रुपमा राच, आतमा जाणजी शक्तिक्यारी. रुद्धिः ॥७॥ उच्चमा उच्च तुं रायनो राय तुं, जागजे दीनता भाव टाळी; आत्मना प्रेममा परम इश्वर प्रभु, जागजे चित्तने ध्यान वाळी. रुद्धि. ॥८॥ जागजे आतमा जागजे आतमा, शुद्ध उपयोगथी ध्यान धारी; बुद्धिसागर सदा जागजे ध्यानथी, भक्तिउत्साहथी मुक्ति सारी. रुद्धि.॥९॥
For Private And Personal Use Only
Page #249
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अन्तरसुख.
माढराग. अंतरमा साचं मुखरे, अहो वाह्यविषयमां दुःख; मुत होवे न वंध्याकूखरे, कदी भागे न स्वप्ने भूख, अनंतसुख गुण आतमा रे, चिघन चेतनराय; अंतरना उपयोगी रे, सत्यानंद कहाय रे. अंतरमां. ॥१॥ बकवादी केइ बहु वके रे, गप्पां मारे लाख; गाडी वाडी लाडीमा रे, अंत राखनी राख रे. अंतरमां. ॥२॥ मारु तारु मानीने रे, भटके परदेश; विषयवासनाजोरथी रे, क्षणक्षण अगटे क्लेश रे. अंतग्मां. ॥३॥ साचुं सुख न संपजे रे, विपय प्रतीते दील; समजी साधु साहिबार, समतागंगमां झील .अंतरमा ॥४॥ निर्मलज्योति झगमग रे, करतां आतमध्यान; अनुभवामृत चाखीए र, वर्ते साचं भान रे. अंतग्मां. ॥५॥ गगनगढे जइ म्हालg रे, पामी निर्भय देश; क्षायिकभावे देशमां रे, लेश न वर्त केश रे. अंतरमा ।।६।। चेतन ध्याने रीजीए २, कीज दिल विश्वास; तैलनी धारा जेहवी रे,ध्याननी संततिवास रे.अंतरमां.॥७॥ अनेकान्तनय ओळखी २, संवो ध्यावी देव; बुद्धिसागर मेमथी रे, कीज आमतसव रे. अंतरमां. ॥८॥
राजयोग.
माढ राग. मनआनंद सन्य मुहायरे बहु, आनंद सत्य सुहाय;
For Private And Personal Use Only
Page #250
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बखरीथी केम कहायरे.
मन. यम नियम आसन करी रे, प्राणायाम अभ्यास; प्रत्याहार धरी धारणा रे, ध्याने थयो विश्वासरे. मन.॥३॥ अध्यातमज्ञाने करी रे, शुद्ध चरणमां स्थिर; सत्यसमाधि ते वरी रे, थयो छे चेतन धोर रे. मन.||२|| क्षयोपशमज्ञाने करी रे, चेतन ध्यान करायः । स्थिरतायोगे संपजे रे, आत्मसमाधि को पाय रे. मन.॥३॥ अनेकान्तनयवादी रे, नामे भ्रान्ति दूर; आपोआप विचारतां रे, वागे मंगल तूर रे. मन.॥४॥ आतमअनुभव ज्ञानथी रे, नासे मिथ्या क्लेश; चेतन शुद्धोपयोगथी रे, होवे जीव परमेशरे. मन ॥५॥ सहजयोग सहुथी खरो रे, उपदेशे छे जिना देश सर्व विरति थकी रे, आतम होवे पीन रे. मन.॥६॥ उपशम क्षयोपशम ने क्षायिक, भाव साचो धर्म साधन साध्यस्वरुप छे रे, टाळे सघळां कर्म रे. मन.॥७॥ नवतत्त्वादिक ज्ञानथी रे, प्रगटे छे उपयोग सहज रमणता योगथी रे, प्रगटे क्षायिकभोग रं. मन.॥८॥ ज्ञानोद्यमी साधना रे, करवी धरी उमंगः । शाश्वतसिद्धिसुखनो रे, अनुभव आवे अंगर. मन.।।९।। अंतरमा निश्चय धरी रे, चाले जे व्यवहार; चढने भाचे संपजे रे, शाश्वतसिद्धि उदार रे. मन.।।१०।। आत्मिकशुद्ध स्वभावनो रे, प्रगट धर्म अनंतः । शांति आतममां खरी रे, भाख वीर भदंतर. मन.।।११।। संबो ध्यावा आतमा रे, आतम सिद्धस्वरुपः . . आतमध्य ने आतमा रे, टाले भवभय धूप रे. मन.॥१२॥
For Private And Personal Use Only
Page #251
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
રરેટ जाणो देखो आतमा रे, लोकालोकनो भाण; बुद्धिसागर योगथी रे, कोटि होय कल्याण रे. मन.॥१३॥
योगरहस्य.
माढ राग. भरपूर आनंद आजरे, घट भरपूर आनंद आज, राखी गुरुए लाजरे.
घट. सकल तीर्थस्वामी लह्योरे, गइ उपाधि दूर, समतासरोवर झीलतोरे, हंसलो आनंदपूररे. घट. ॥ १ ॥ गंगा यमुना सरस्वतिरे, पामी तेनो भेद, पिंडमां परगट पेखतारे, जात भात नहि वंदरे. घट.॥ २॥ अंतर ज्योति झगमगीरे, नाठी मिथ्या रेन, अजपानापे जगतारे, प्रगटी साची घेनरे. घट. ।। ३ ।। जे जेनुं ते भोगवेरे वस्तुस्वरुपे एम, चिदानंद परमातमारे, जय जय मंगळ क्षेपर. घट. ॥ ४ ॥ केवलज्ञानी आतमारे, अजरामर मुखकार, अनंतज्ञाने मुक्तिमारे, वर्ते छे निर्धाररे. घट. ॥ ५ ॥ रेचक पूरक भावथीर, कुंभक टाळे कर्म, अन्तर्यामी ओळखेरे, नासे मिथ्या भमरे. घट. ॥ ६ ॥ तीर्थकरनी वाणीथीरे, परमरुप परखाय, वस्तुस्वरूप नहि अन्यथारे, लडालडी केम थायर. बद. ७ सागरमां सघळी नदीरे, मळती खरखर आय, जिनदर्शनमां जाणजोरे, दर्शन सर्व समायरे. घट. ॥ ८॥ जैन अने जिन आतमा रे, षड्दर्शनमा सर्व सघळी दुनिया जैन छे रे, जाणे नासे गर्व रे. घट. ॥ ९ ॥
For Private And Personal Use Only
Page #252
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२३९
राग द्वेष जीत्या थकी रे, होवे सघळा जिन; जिनउपासक जैन छ रे, जाणी नथावो दीन रे. घट. ॥१०॥ हर रेचक कुंभक हरि रे, ब्रह्मा पूरकरुप; द्रव्यभाव वे भेदथी रे, प्राणायामस्वरुप रे. घट. ॥११॥ म्याद्वाद समज्या विना रे, दुनिया सहु कूटाय; आतमज्ञान विना कदी रे, भेदभाव नहि जायरे. घट. ॥१२॥ वैखरी वाणी शुं कहे रे, चिन्मय चेतन खास; परा पश्यंति पामीने रे, प्रगटे साचो भास रे. घट. ॥ १३ ॥ साकर सरिता जळ मळीने, तन्मयताने पाय; बुद्धिसागर धर्मथी रे, आपोआप समाय रे. घट ॥ १४ ॥
जाहेरचेतवणी. __मुखडा क्या देखे दर्पणमें-ए राग.. जीवडा चेती ले तुं मनमां, भटके शुं भववनमा. जीवडा. अमृतने त्यागी चेतन तुं, नाहक मूरख बन मां; विषयपिपासा, विषमम तेने, अमृत मूरख गण मां. जीवडा ? पुद्गलनी इच्छाने छंडो, मुंझे शुं परधनमां, बुद्धिसागर अन्तर शोधो, व्याप्यो चेतन तनमां. जीवडा. २
प्रभातभावना.
प्रभाती राग. करणा करजे सर्व जीवोपर, भाव दया चित्त धारी रे; सत्ताए छे सिद्ध समा जीव, अंतरमा अवधारी रे.
करुणा० ॥१॥ सर्व जीवोनुं सारु इच्छो, तेथी उच्च थवाशे रे;
For Private And Personal Use Only
Page #253
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२४० वीर प्रभुए फणीधर बोध्यो, कर्मकलंक कटाशे रे. करुणा. २ अशुभ विचारो सर्व निवारी, निज पर उन्नति की रे; उच्चजीवन वधशे निशदिन जग, शाश्वतमुख घट लीजे रे.
करुणा. ||३|| मन वाणी कायाथी करीए, परनुं सारु जगमां रे; सन्तजनोने भाव दयामय, धर्म वस्यो रगरगमां रे. करुणा. ४ उत्तम जीवन आज दीवसथी, जिनवर हेते थाशो रे; बुद्धिसागर चिन्मय चेतन, मंगल कमला पाशो रे. करुणा. ५.
गुरुस्तवनम् . प्रणमुं सद्गुरुना पदपंकज, जेणे जणाव्यो धर्मरे, षड् द्रव्योर्नु स्वरुप वताच्युं, टाळ्यो मिथ्या भर्मरे, ए उपकार गुरुनो न भूलं, मंभाळू दिन रातरे, समकित दायक महा उपकारी, मात पिता मुज भ्रातरे ए १ नव तत्त्वादिक बोध करीने, सत्य बताव्युं स्वरुपरे, सप्त नयोथी धर्म जणावी, टाळ्यो भवभय धूपरे. ऐ ॥ २ ॥ सप्त भंगथी तत्त्व बतावी, संशय टाळ्या सवरे, आतमना त्रण भेद जणावी, टाळ्यो मिथ्या गबरे, ए ॥ ३ ॥ चार निक्षेपे छे सहु वस्तु, बस्नु छ स्याद्वादरे, सत्य ज्ञानथी सत्य प्ररुपी, टाळ्यो वाद विवादरे ए. ॥ ४ ॥ पट् दर्शनमां सत्य खरेखर, जिनदर्शन जयकार रे जिनदर्शन स्पर्शनना योगे, आनंद अपरंपार रे. ए. ॥८॥ चार प्रमाणे जिनदर्शनने जाण्युं जगमां सत्य रे; शुद्ध स्वभावे निजवर्तननुं जाण्यु सहु कर्तव्य रे. ए. ॥ ६ ॥ संशय सघला दूर करीने, समकित आप्यु रत्न रे;
For Private And Personal Use Only
Page #254
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२४१. परंपरागम पन्य बतावी, ग्रहण कराव्यो यत्न रे. ए. ॥७॥ कुंची वण जेम तालुं न खूले, गुरुगम विण तेम धर्मरे, गुरुगम वण जे पामर प्राणी, पामे नहि शिव शर्मरे ए. ॥ ८॥ षड्दर्शनना भेद बतावी, शुद्ध कह्या परमार्थरे, अन्तर्धनने शुद्ध जणावी, हेय कयो बाह्याथैरे. ए. ॥ ९ ॥ क्षयोपशम, उपशम ने क्षायिक, औदयिकना जे भेदरे, पारिणामिक रुप बतावी, टाळयो मिथ्या खेदरे. ए. ॥१०॥ आपपसाये आत्मस्वरुपे, स्थिरता थावो बेशरे, बुद्धिसागर सद्गुरु गाने, आनंद होय हमेशरे. ए. ११ ॥
सारी शिक्षा.
मुखडा क्या देखे दर्पनमें-प राग. शिक्षा धारी ले मन सारी-खटपट सर्वे वारी. शिक्षा विकथा निन्दामां जीवलडा, उम्पर जावे हारी; लक्ष्मी ललनानी लालचमां, कर्म करे शुं भारी. शिक्षा. ॥१॥ हुने मारूं जडमां मानी, सत्य न वात विचारी, मायानी लटपटमां मूरख, धर्मवात नहि धारी. शिक्षा. ॥२॥ ज्ञानवात तो दील न गमती, प्यारी घेवर घारी, दुनियामां स्वारथनां सगपण,दुनिया दुःखनी कयारी शिक्षा. ३ करजे मुनिवर गुरुनी यारी, श्रद्धा भक्ति वधारी; बुदिसागर गुरुकृपाथी, मंगलनी तैयारी. शिक्षा. १
उपाधि.
गजल. उपाधि दुःखनी क्यारी, उपाधि मूर्खने प्यारी; उपाधि स्वस्थता टाळे, उपाधि धर्मने खाळे.
For Private And Personal Use Only
Page #255
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उपाधि दुःखनी कुंची, विनाशे धर्मनी रुचि भमे छे चित्त चकडोळे, उपाधि पापमां ढोळे. ॥२॥ उपाधि झेरना प्याला, उपाधि अग्निनी ज्वाला; उपाधि राक्षसी मूंडी, उपाधि मोहनी लूंडी. ॥ ३ ॥ उपाधि भान भूलावे, उपाधि रोगने लावे; उपाधि भ्रांत जनमा छे, उपाधि भ्रांत मनमां छे. ॥४॥ उपाधि टाळतां शांति, उपाधि टाळतां कांति; बुद्धयब्धि ध्यानमा रहेवू, अनंतुं सुख दील लेवु. ॥५॥
॥२॥
स्वरूपोद्गगार.
गझल. तजु छं भाव ममताना, सजु छं भाव समताना; खरी नहि बाह्य उपाधी, अहो त्यां मोहथी आधि, परम शक्ति विलासी हुं, परम शांति प्रकाशी हुँ; अखंडानंद भोगी हुँ, अखंडानंद योगी हूं. नही हुं लिंग के जाति, नहि हुं देह के ज्ञाति; रह्यो हुँ ज्ञानमां जागी, थयो हुँ सत्यनो रागी. जगत्ना खेलथी न्यारो, अनंना जीव पर प्यारो; खमा सर्व जीव राशि, थयो ढुं तत्वविश्वासी. परम ध्याई परम भावू, परम चाहु परम गाउ; परम चैतन्यमां प्रीति, परम चैतन्यमां रीति. नथी थातुं नथी जातुं, अपेक्षा वाक्य कहेवातुं; समायो छ स्वभावे हुँ, परमज्ञान प्रभाव हुं. अहो हुँ ज्ञाननो दरियो, अहो हुँ मुखथी भरियो; अहो हुँ शुद्ध वैरागी, बन्यो हुं मोहनो त्यागी.
॥३॥
॥४॥
॥६॥
॥७॥
For Private And Personal Use Only
Page #256
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૨૪૩
रह्यो हुँ शांतरस झीली, रह्यो हुं शांतरस खाली बुद्धयन्धि तत्त्वमा रंगी, थशो सहु जीव सत्संगी. ॥ ८ ॥
आत्माना दयाना उद्गार.
गजल.
दयामय दृष्टिथी देखें, दयामय दृष्टिथी पे दयामय देश छे म्हारो, दयामय देश छे प्यारो. ॥१॥ दयामय मेघ छे वृष्टि, खीले छे धर्मनी सृष्टिः दयामय चित्त गंगा छे, दयामय चित्त चंगा छे. ॥२॥ दयामय तीर्थ चेतन छे, दयामय धन्य ते मन छे; दयामय दील छे देवा, दयामय दीलनी सेवा. ॥३॥ दयाथी सुखने शान्ति, दयाथी जाय छे भ्रांति दया त्यां धर्मनो वासो, दयानो रंग छे खासो. ॥४॥ दयाना संगमां रहे, दयाथी तत्वने कहेवू दयाथी बोलवू सारूं, दयाथी बोलवू प्यारं. दयाथी सर्व धर्मो छे, दयामां धर्म कर्मों छे; दयाने प्रेम लावे छे, दयाथी सुख थावे छे. दयाथी धर्म प्रगटे छे, दयाथी कर्म विघटे छे; बुद्धयब्धि चित्तमां प्यारी, दया माता सदा सारी. ॥७॥
सूती वखते आत्मोद्गार.
धीराना पदनो राग. शरीरनो तुं संगी रे, आतम अवधारजे, शुद्धरुप समजी रे, विषयविष वारजे शरीर० नाना मोटा वृद्ध युवा नर, नारीना पर्याय;
For Private And Personal Use Only
Page #257
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ર૪૪
पुद्गलना व्यवहारे आतम, जगमांहि कहेवाय. जाणीने झट जोइ ने, चित्तमां विचारजे. शरीर० ॥१॥ अनंतशक्ति स्वामी वाल्हम, गुणपर्यायाधार, देह देवळना वासी जोगी, करजे कृत्य विचार; वाजी पामी सारी रे, हवं नहि हारजे. शरीर० ॥२॥ खलाडु थइने शुं खेले ?, बाहिर माया खेल, रेती पीले तेल न निकळे, समजण छे मुश्केल; नाव पामी सारुं रे, पोताने तुं तारजे. शरीर० ॥ ३ ॥ मानव मुसाफर दुनियामां, चेत चेत झट चेत, उंघे उंघण पार न आवे, काल झपाटा देत, अंतरना अलबेला रे, पोताने संभारजे. शरीर० ॥ ४ ॥ सत्यानंद स्वरुपी शाश्वत, धर पोतानी टेक, क्षीर नीरनी पेठे हंसा, धरजे सत्यविवेक; बुद्धिसागर प्रेमे रे, आतमने उद्धारजे. शरीर० ॥५॥
ॐ नमः भेदुए भेद आपो.
धीराना पदनो राग. भेदूए भेद आप्योरे, आतमरुप परखायुं; थातुं नथी जातुं रे, ज्ञानीयोए बहु गायुं. भेदु० यम नियम आसनने साधी, साधी प्राणायाम, प्रत्याहार धारणा धारी, ध्याने बन्यो छे निष्काम; समाधि स्वरुप रे, आतमनुं मुख पायु. भेदु. ॥ १ ॥ बाहिर इच्छा विरमी स्हेजे, उदासीनता पाय; शाताशातावेदनी आवे, हर्ष शोक नहि थाय; उपयोग भासे छे, ठाम मन झट आयु, भेदु.॥२॥
For Private And Personal Use Only
Page #258
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२४५
धन्य गुरु साचा उपकारी, वाळ्यो शिवपुर पन्थ;
गुरुगम वण को सार न पामे, कोटी भणे जो ग्रन्थ, गुरुए मने तार्यो रे, थयुं मारा मन धार्य. नयनी बातो कोइक पातो, सद्गुरु जेने शीर आपमतिए लातो खातों, समज्या वण तो अधीर, अपेक्षाए वाणी रे, जाणी मन हरखायुं. अंतर चक्षु जो उघडे तो, आपोआप प्रकाश; चिदानंद चेतनमय मूर्त्ति, गुण पर्याय विलास, बुद्धिसागर प्रेमेरे, तत्र स्वरुप पाएं.
आत्मदेशोन्नतिना आवेश द्वार.
हरिगीत•
हे पत्र तुं जा प्रेमी जनना हृदयमा पेसजे, बहू लागणीथी ध्यान खेंची स्थानमां स्थिर बेसजे; सह प्रेमिओना प्रेममां वृद्धि करी झट वारमां धर्मोन्नतिथी सकल जन मन पूर्ण कर संसारमा. बहु वह वैरिओना वैर नासो कपट टळशो कारमां, सुसंपथी मंगल लहो सहु मनुष्यना अवतारमां देशोन्नतिमां सर्वजननुं चित्त साचु लागजो, देशोन्नतिमां भव्य लोको धर्मथी झट जागजो. आ देशमां तो क्लेशधी हानि थइ गणजो घणी, मजा थइ छे रांकडी माथे नही शुभ कोइ धणी; परदेशीओना जोरथी व्यापार भाग्यो देशनो, निज देशमां परदेशीओनो पाद भारे क्लेशनो.
For Private And Personal Use Only
भेदु. ॥। ३ ।।
भेदु ॥ ४ ॥
भेदु ॥ ९ ॥
॥ १ ॥
॥२॥
॥ ३ ॥
Page #259
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जन जागजो मन ज्ञानथी झट संपनां कामो करो, परतंत्रताने त्यागीने निज तंत्रता मनमा धरो; परदेशीभोना पासथी मुखवास नाठो आपगो, परदेशीओना रागथी निज देश नह सोहामणो. ॥४॥ निज देशना घातक बन्या परदेशीओना प्रेममां, निज देशना पापी बन्या परदेशी धोनी रहममा परदेशीओ लक्ष्मी हरे छे, दशनी बहु जारथी, परतंत्रतानी बेडीमां फूलो फरी शुं तोरथी. ॥५॥ निज देशने हार्या थकी हायुज सघळं जाणनो, निज देशने जीत्या थकी जीत्युंज सघर्छ आणजो; निज देशनो घातक वने ते मानवी नहि ढोर छे, निज देशनो शत्रु वने जे मानवी नहि चोर छे. ॥६॥ निज देशनी भव्योन्नतिमां भाग लेवो जोरथी, निज देशनी भव्योन्नतिमां भाग लेवो तोरथी: विद्या विनय विवेकथी विचार करवा देशना; झट रागने बहु द्वेष हरवा मूळ कापो के शना. ॥७॥ बहु धैर्यथी निज देशनी ध्याने रहो गुलतानपां; निज देशनी उन्नतिना उपाय सों ज्ञानमां, निज देशना आवेशमां उपाय करशो सोगणा; वेळा गई आवे नहि राखो नहि कांइ मणा. निज देशनो उद्धार करवा धर्म बंधु जागनो; अन्तर प्रदेशी आतमानी उन्नतिमा लागजो, आत्मोन्नतिथी देश सघळो सुधरशे क्षणवारमा
For Private And Personal Use Only
Page #260
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वेळा मळी छे ज्ञानयोगे चढती छे क्षणवारमां. . ॥९॥ खरावरीनो खेल छे आ समजील्यो संसारमां; पामी अरे तुं मनुष्य भा देशोन्नतिने हार मां, देशोन्नतिमा स्हाय करशो सर्व देवो प्रेमथी; देशोन्नति दीक्षा थकी छे व्रत धर्या ते नेमथी. ॥१०॥ निज देशना शुभ ग्रंथ वांची देशनी दाझे चढो निज अतुल बळथी आत्मभागे शत्रुनी साथे वढो, जय नादी देशोन्नतिमां बुद्धिसागर धर्म छे अध्यात्म भावे भव्य शिक्षा समजतां शिव शर्म छ.।। ११ ॥
सहुनुं सारु इच्छो.
धीराना पदनो राग. इच्छो म हुनुं मारु रे, करुणाना करनारा, सारं छे सहुने प्या रे, दया दिल धरनारा. इच्छो० कर्माधीन दोपी छे दुनियां, खेले माया खेल, मोह मदिरा दोपे बुरा, दोष न जुवे समजेल; दोषीना दोष टालो रे, सकल जीव दिल प्यारा. इच्छो० १ कोइ न शत्रु जीवो जाणो, निमित्त कारण होय, दुःख मुख कारण कर्म खरुं छे, ज्ञानथकी अवलोय; दोष दृष्टि टालो रे, सत्यने समजनारा. इच्छो० २ में नौलमां ने पामो, गुग अवगुणनी दृष्टि, दोष दृष्टथी दोपी थासो, गुण दृष्टि गुण सृष्टिः मातानी दृष्टि राखो रे, भंवादाधे तरनारा. इच्छो० ३
For Private And Personal Use Only
Page #261
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
૨૪૮
दोषीना दोषोनी सामुं, कदी न देखो भव्य, परगुण परमाणु पर्वत सम, गणजो ए कर्तव्यः धन्य तेह डाह्या रे, निन्दाना थकी डरनारा. भाव करुणा जलधि आतम, करजो निर्मल दील, परनुं सारुं मनमां प्याऊं, ए उत्तम जन शील; बुद्धिसागर भावे रे, परम सुख वरनारा.
धीराना पदनो राग. केम उँघे छे.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
परपंचात .
श्रीराना पदनो राग.
परनी पंचातेरे, नथी भलुं कोइ काळे, जीवलड | तूं जाणीने, पडिश नहि जंझाळे; अमुक दोषी अमुक डाो, तेनी शी पंचात, पंचाते परनी निन्दाथी, मुरख खाइश लात; पडे तेने वागेरे, परमां शुं मन घाले.
For Private And Personal Use Only
इच्छो० ४
घमांशुं ? जंघे रे, मिथ्या रंण अंधारी, उधम अथडायो रे, शुद्ध बुद्ध सहु हारी; मोहे पर पुद्गलनी संगे, भूल्यो चेतन भान, साचा श्री सद्गुरुनी संगत, पाम्या वण अज्ञान; बाह्यमां भमीने रे, भूल कीधी बहु भारी. जाग जाग चेतन निज दिलमां, पामी सद्गुरु योग, अंतरमां उतर्याथी रहेजे, भोगवशे सुख भोग; बुद्धिसागर जागी रे, लहो शीव वहु प्यारी. उंघ० ॥ २ ॥
उघ० ॥ १ ॥
इच्छो० ५
परनी. ॥ १ ॥
Page #262
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२४९ परनी खटपटनी लटपटमां, भूलीश आतम भान, परपंचाते पडतां गांडो, थाइश जीव नादान; पंचातना बखेडे रे, गमारतो जीवन गाळे. परनी० ॥ २॥ चार गतिमां भटके शाथी, तेनी नहि पंचात. परनी निंदा लवरी करतां, भवमांहि भटकात. समजण साचीरे, समजी सुजन चाले. परनी. ॥ ३ ॥ परमा पेठाथी जीवलडा, पामीश भारे खेद, जोइ जोइने जोइ लेने, समजी साचो भेद; खस बूरी जाणीने, कहो कोण पंपाळे. परनी. ॥ ४॥ परपंचाते तत्त्व न मळशे, जीवन जावे फोक, अंतरमा उतर्या वण भटके, पामर मूरख लोक; चित्तनी चंचळतारे, चिंता क्षण क्षण बाळे. परनी. ॥ ५॥ परनी पंचातो करवाथी, आर्त रौद्र बे ध्यान, दुर्लभ मानव भवने हारे, मिथ्यामति अज्ञान, लांट पडी माखीरे, तेतुं कंइ नहि चाले. परनी. ।। ६॥ माखीनी अवस्था पेठे, पंचाते जंझाल, समजीने शिखामण दीलमां, मनडुं धर्मे वाळ; दुनिया दीवानीरे, परम धन नहि भाले. परनी. ॥ ७॥ शुमाडाना बाचक भरतां, कांइ न आवे हाथ, राग द्वेषे परपंचाते, भूलीश नहि जगनाथ, बुद्धिसागर योगीरे, ध्यानथी आनंद म्हाले. परनी. ॥८॥
हारु कोइ नथी.
धीगना पत्नो राग. नयी कोइ हारुरे, हारू त्हारी पास खरे, मायाथी मानी म्हारुरे, फोगट केम फुली फरे, नथी.
For Private And Personal Use Only
Page #263
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२५०
Tae हरू परमरि जाग्यो, पुद्गलटा कर्म,
पोताने परख्या वण नक्की, कदी न आवे पार, दुनियानी जंझाळे मूरख, होय न सुख लगार; ध्यान विना चेतनरे, कहो केम तुर्त तरे. नथी. ॥ १ ॥ व्हालामां व्हाटु जे मान्युं, कनक कान्ता महेल. जूठी बाजीगर बाजीसम, पुद्गलना सहु खेल, म्हारु हारु परमारे, मानी मूह पाप करे. नथी. ।। २॥ वस्तु स्वभावे धर्म न जाण्यो, पुद्गल मान्यो धर्म, पर स्वभावे निशदिन पामर, बांध उलटां कर्म, धनीने मानी मोटारे, लक्ष्मीने माटे करगरे. नथी. ॥ ३ ॥ चेतनना आनंद विना तो, विषयानंद न त्याग, अनुभव जो आतमनो जागे, तो नासे परराग, सद्गुरु कीधरे, सहेजे सहु काज सरे. नथी. ॥ ४॥ सद्गुरुनी वाणीमां श्रद्धा, राखे प्रगटे धर्म, आतमना उपयोगे मुक्ति, नासे मिथ्या भर्म, बुद्धिसागर ध्यानरे, शिव सुख भव्य वरे. नथी. ॥५॥
इष्टदेवनुंआवाहन.
धीराना पदनो राग. इष्ट देव आवोरे, दया दृष्टि दील धरी, दर्शन देव आपोरे, बाळक कहे करगरी. दुःवनां वादळ दूर करो झट, वाल्हम प्राणाधार, खरी वातना बेली प्यारा, सन्य त्हारो आधार; तुहि हि ध्याचुरे, तन्मय चित्त करो, इष्ट ॥ १ ॥ शांति तुष्टिना करनाराः करजो प्रेमे म्हाय. महामत्र जाप सुख सघळां, रोग शोक दर जाय,
For Private And Personal Use Only
Page #264
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
लान तुज हाथैरे, श्रद्धा धरी दील खरी. इष्ट. ॥२॥ तुज भक्तिथी मंगल माला, धायी थावे काम. रुद्धि सिद्धि विजय पताका, फरको ठामो ठाम; बुद्धिसागर ध्यानरे, वांछीत वस्तु वरी. इष्टः ॥ ३ ॥
पैसा. पैसा पैसा पैसा हारी वात लागे प्यारी रे; रात दिवस पैसाने माटे भटके नरने नारी रे. पैसा. ॥१॥ भणदुं गणवू पैसा माटे, पैसे घेवर घारी रे पैसाथी बालुडां छानां, पैसानी मोटी यारी रे. पैसा.॥२॥ पैसाथी परमेश्वर न्हानो, पैसो देव वेचावे रे; पैसानी पूनारी दुनिया, पैसो नाच नचावे रे.पैसा. ॥३॥ हिंसा चोरी पैसा माटे, पैमाथी सर्वे व्हालुं रे; आजीजी पैताने माटे, वचन बोलवू कालुं रे. पैसा. ।। ४ ॥ पैसा माटे नोकर रहेg, पैसा माटे शेठो रे; पैसा माटे राजा रैयत, पैसा माटे वेठो रे. पैसा. ॥ ५ ॥ पैमा आगळ गुरु नकामा, पैसा माटे दोडे रे पैसा माटे गांडो पैसा, माटे माथु फोडे रे. पैसा. ॥ ६ ॥ पैसाथी व्हाला छे बापा, पैसा माटे छपा रे; पैसाना लोभे छे टंटा, युद्धे कापंकापा रे. पैसा. ।। ७ ।। पैसाथी दूरे जे रहेता, ते जन साचा त्यागी रे; बुद्धिसागर निर्लोभी जन, मुनिवर छे वैरागी रे.पैसा.||८||
गप्पां. गप्पां गप्पां गप्पा मारे, कदी न सारु थाशे रे;
For Private And Personal Use Only
Page #265
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
२५६
गप्पां मारे ज्ञान न मळशे, उमर एले जाशे रे. गप्पां. ॥१॥ गप्पां मारे आळस प्रगटे, थाय न पर उपकारी रे; अंतर्धननो नाशज नक्की, उमर जाशे हारी रे. गप्पां. ॥२॥ नवरो बेठो खोद काढे, समजो नरने नारी रे; अदीजननां लक्षण एवां, मारे पेट कटारी रे. प्रभु भजनमा कायर कंपे, गप्पां मारे हरखे रे; हिताहित शुंकर मारे, मूरख ते नहि परखे रे. गप्पां ॥४॥ परनी पंचातो करवाथी, धर्मे कदी न बुझे रे; बुद्धिसागर समज समजे, सारो रस्ते मुझे रे.
गप्पां ॥२॥
गप्पां ॥५॥
चिदानंद.
परमप्रभु सबजन शब्दे ध्यावे - पराग.
चिदानंद शुद्ध बुद्ध अविकारी,
परममभु जयकारी. क्षायिक नव लब्धिनो भोगी, क्षायिक गुण गण योगी; नित्या नित्या स्वरुप विलासी,
जड पुद्गलथी अयोगी. असंख्य प्रदेशी चिधन व्यक्ति,
शाक्त अनंतनो स्वामी; ज्ञाता ज्ञेय अनंतनो समय,
निर्वेदी निष्कामी. सदसत् एकानेक स्वरुपी,
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शाश्वत सुख विलासी; निश्चय निज गुण ध्यान कर्याथी,
चिदानंद ॥ १ ॥
•
For Private And Personal Use Only
चिदानंद.
चिदानंद || २ ||
Page #266
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चिदानंद. ॥ ३ ॥
नाठी सकळ उदामी. केवल ज्ञानी निजगुण दानी, आपोआप प्रकाशी; पूज्यने पूजक ध्येयने ध्यानी, शुद्ध चरण विश्वासी. सहज स्वरुपी रुपारुपा; जलपंकजवत् न्यारा, बुद्धिसागर रुद्धि सिद्धि, शृद्धानंद अपारा.
चिदानंद. ॥ ४ ॥
चिदानंद. ॥५॥
गजानुं लक्षण.
छप्पयछंद. नृपति त कहवाय न्यायथी रैयत पाळे, नृपति ते कहेवाय प्रजानां संकट टाळे नृपति ते कहेवाय लोभी रहे। दूरे, नृपति ते कहेवाय प्रजानां दुःखो चूरे; पुत्र पेठे पाळतो जे रैयतने निशदिन सदा, प्रजापालक तेज साचो ऋठ वदतो नहि कदा. ॥१॥ पीडे नहि तलभार कोइने कपट करीने, पीडे नहि तलभार लोभी वित्त हरीन; परप्रियाने जननी सम लेखे छ मनमां, अन्याये मुंझे नहि नृपति रैयत धनमां; नगा प्रपंची लांचीआने योग्य शासन आपतो, गरीब जनने स्हाय आपी दुःख सर्वे कापतो. ॥२॥ साधु संगत करे सदा निज कुमति हरवा,
For Private And Personal Use Only
Page #267
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२५४
योग्यजनोनुं मान करे छे सद्गुण धरवा; रैयतनी आंतरडी दुःखवे थाय न सुखी, सन्तजनोनी हाय मळ्याथी नृपति दुःखी; धननो लोभ धरे नहि दिल करो नवा न वधारतो, व्यापार हुन्नर स्हाय आपी रैयतने उद्धारतो. ॥३॥ दगा प्रपंची अन्यायी नृपति छे खोटा, लोभे रैयत पीडे तेना नहि छे तोटा मगरुरीमां म्हाले केइक मदिरा पानी, अक्कलना नादान दीलमां जे अभिमानी; बायला बकवादिया केइ नृपतियो नजरे पडे, प्रजाजनने पीडवाने सहजमां शूरे चडे. रैयतने पीडयाथी निर्वशी केइ मरिया, रैयतने पीडयाथी नृपति ठाम न ठरिया; रैयतने पीडयाथी नर्के राजा जाशे, रैयतने पीडयाथी रौरव दुःखडा पाशे; जूलम करीने चालिया केइ बादशाहने राजवी, राज्य साथे लइ गया नहीं समज सदा नृपति भवी. ॥५॥ भेद भाव पुत्रोमा राखे ते नहि माता, रैयतने चुसे ते नृपति नरके जाता; कलिकालमां पापी नृपति थाशे लाखो, रावण जेवा नृपतिनी पण औ राखो; कर वधारी कारमा बहु रेयतने कनडे सदा, दैत्य जेवा नृपतियोधी शुभ थाशे नहि कदा. ॥६॥ पश्चिमवतनी संगे नृपति कोइक सारा, तज्यां धर्मनां कृत्य कन्या कुसंग नठारा;
For Private And Personal Use Only
Page #268
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नास्तिकना शिरदार देशनुं भव्य न ताके, वेश्या साथे प्यार प्रियाथी प्रेम न राखे; "ओलराइट" करतां आवडयुं के फूले सत्ता तोरमां, अक्कड थइने आथडे छे त्रण दटु जोरमां. ॥७॥ मारे बकरां मोर देशनी दाझ न जाणे, मदिरामा वेभान बनीने उधु ताणे; जूगारी ने नीच जनोनी सोबत राखे, सजननो ते मंग कर्यावण सत्य न चाखे, देशनो जे वेष तेने दूर करता टायला, देशनो उद्धार करवा समजता शुं बायला. ॥८॥ परदेशिनी नकल पण अकलथी आघा, परदेशीना वेच.ता राखे छे डाघा; "गुरजी" पाळी "ल" कही दीवसने गाळे, उकाले शुं देशतणुं कूतर जे पाळे; श्वान चाटे वदन नृपर्नु दीवस एळे गाळता, श्वानसंगी नृपतियो शुं जन्मीने उकाळता. ॥९॥ नहि धर्मिनो संग भलं तेनुं शुं थावे, दया तणो नहि लेश हृदयमा मुख शुं पावे; प्रभु उपर नहि प्रेम क्रोधयी जे धगधगता, कावतरांनी झाळ करी रैयतने ठगता. नृपति एवा जन्मीयाथी देशना बेहाल छे, वीरला कोइ सत्य नृपति व्यापियो कलिकाळ छे ॥१०॥ देशोद्धारक वात करे तेनाथी अळगा, देशतणी नहि दाझ व्यसनमां केइक वळग्या. धर्मनी वातो व्हम करीने जे उडावे,
For Private And Personal Use Only
Page #269
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२५६
एवा नृपति जन्म धरीने सत्य न पावे; गप्पां हां सोगणां ने हिंमत धारे भीमनी, एकला तो रजनीमांहि बहिर जाय न सीमनी ॥ ११ ॥ परदेशीनो वेष धर्यो पण संप न धार्यो, परदेशीनी नकल करतां जन्मज हार्यो : रोफ धरीने पैसानो धूमाडो करता, हाजी हा करता नरनी साथे जे फरता. नृपति एवा जागवाथी भाग्य वेळा शुं वळे, देशनां जो भाग्य होय तो उच्च नृपति नीकळे. ॥ १२ ॥ रैयतने दंडीने तेना पैसे महाले,
विना विचारे खर्च करीने दाटज वाळे विद्याना वैरीने झेरी हुन्नर वाटे, वात कहुंलुं साची नृपति शिक्षा माटे चतुरनृपति चेतीने झट धर्मपथे चालजो, बुद्धिसागर सत्य समजी भाग्यवेळा वाळजो. ॥ १३ ॥
शाश्वत चेतन.
अब में साचो साहिब पायो. ए. राग.
चेतन.
चेतन हि शाश्वत शिव सुख दरियो, तुं तो ज्ञानादिक गुण भरियो. क्षयोपशम उपशम ने क्षायिक, भावे निजगुणभोगी, अंतर अनुभव अमृतस्वादी, योगी पण तं अयोगी चेतन २ केवल कमला रुद्धि प्रकाशी, सिद्ध बुद्ध अविनाशी, जाग जाग हवे तव स्वरुपे, तुजने दउ शावासी. चेतन. २ अजरामर निर्मल सुखकारी, अकळ कळा जयकारी,
For Private And Personal Use Only
Page #270
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२५७
पोताने तारे तुं प्रेमे, सत्ता शुद्ध समारी. चेतन. ॥ ३ !! प्रभु वाणी जयनाद करीने, सत्य स्वरूप बतावे, निर्मल समता सरवर हंसा, झीले शुद्ध कहावे, चेतन. ॥ ४ ॥ अंतर परिणति वण व्यवहारे, शोधे पार न आवे, बाह्य क्रियामां झघडा भारी, तत्त्व न कोइ पावे, चेतन. ॥५॥ अंतर परिणति लक्ष्य विचारी, साधनथी तेह साधे, बुद्धिसागर चढते भावे, ध्यानदशा मुख वाधे. चेतन. ॥६॥
इश्वरस्तुति.
हरिगीत. जय सत्य इश्वर विश्व वत्सल सत्य ज्योतिः सुखकग, शक्ति अनंति व्यक्तिमय तुं पाप टाळे दुःखहरा ज्ञानथी तुं ज्ञेयनो भासक प्रभो छे सर्वदा, नत सुरा सुर वनि पदकज वंदु छ वीरजिन सदा. ॥ १ ॥ जय विश्व पूजित विश्व तारक धर्म धारक देव छे, जय सत्य ज्ञानी परम योगी शुद्ध न्हारी सेव छे, हे देवना पण देव व्हेला दया करी उगारजो, सम्यक्त्व स्थिरता शिघ्र आपी वाळने झट तारजो. ॥२॥ मन रागने द्वेषज सदा संसारनुं तो मूळ छे, जिन तत्वने जाण्या विना तो जाणवू ते धूळ छे सहु दोषनां तो मूळ नासे ज्ञान एवं आपजो, निज बाळने प्रेमे करीने धर्ममां स्थिर थापजो. हे परम करुणावंत व्हाला ध्यान हारु सार छे, परमात्म व्यक्ति परम व्यक्ति भोगी तुं निर्धार छ, निज दीलमां तुं आवतो प्रगटावतो सुख ल्हेरियो,
For Private And Personal Use Only
Page #271
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मध्यमाना गानमां धूजावतो महा वैरियो. || ४ || आधार मारे सत्य तुहिज दोपनी पोठो हरे, महावीर जिनवर चरण सेवक भवाब्धि क्षणमा तरे; त्रिशला तनय सिद्धार्थराजा कूळ दीपक इश छे, बुद्धयाध सेवक तारशो आधार विश्वावीश छे. ॥५॥
कीर्ति. कीर्ति कीर्ति कीर्ति हारु नाम लागे प्यारु रे; कीर्ति माटे वानां गाजां बोले सारु सारु रे. कीर्ति. कीर्ति माटे शीरा पूरी, भोजन सरस जमाडे रे; कीर्ति सहुथी मीठी व्हाली, नाखे भ्रमणा खाडे रे. कीर्ति.१ कीर्तिना माटे केइ दोडे, केइक नाम छपावरे; कीर्ति माटे आगेवानी, कीर्ति धर्म भूलावरे. कीर्ति. २ कीर्ति माटे कष्टो वेठे, केइक नरने नारी रे; सी-आइ-इना पुच्छो माटे, काम करे केइ भारी रे.कीर्ति.३ कीर्ति माटे पैसा खर्च, कीर्ति माटे काया रे; कीर्ति जगमां कामणगारी, डाह्या पण मकलाया रे. कीर्ति.४ कीर्ति माटे दोडंदोडा, कीर्ति माटे भूले रे; कीर्तिनी आशाना वशमां, प्राणी भवमां झूले रे. कीर्ति.५ कीर्ति माटे करोड खर्चे, वेश्या नाच नचावे रे कीर्तिनो धुमाडो भारी, हप आंसुडां लावे रे. कीर्ति.६ कीर्ति माटे खोटुं सारु, कीर्ति प्राण त्यजावे रे कीर्तिनी सूखी छे दुनिया, ज्यां त्यां खाना खावे रे. कीर्ति.७ छापावाळा विन र छे भाट भवैया जोशो रे;
For Private And Personal Use Only
Page #272
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कीर्तिना मोहे जो पडशा, तो अंत बहु रोशी रे. कीति.८ कीर्ति गांडाने पण व्हाली, कीति छे लटकाळी रे कीर्ति कामणगारी जगमां, कीर्ति छे महाकाली रे. कीर्ति.९ कीर्तिनी पूजारी दुनिया, सन्तो समजे साधु रे; नाम कर्मना उदये कीर्ति, तेमां शुं हुं राचुं रे. कीर्ति.१० कीर्तिनी लालचने छंडी, सद्गुण कीर्ति करशो रे; बुद्धिसागर मंगलमाला, धर्मोदयथी वरशो रे. कीर्ति. ११
काया अने चेतन चर्चा.
गग धीराना पदनो. बोले काया शाणीरे, चेतन तमे क्यां वसिया, माझ मारु मानीर, मायावश केम फसिया: चेतन तुं मुसाफर जगमां, बसियो मारे घेर, यूँ नहि मारो हुँ नहि तारो, माने शुं मन हेर. चेत चेतन ज्ञानेरे, अन्तर अनुभव रसिया. बोले. ॥१॥ चेतन हवे बोलेरे, व्हाली काया शुं बोले, प्राण थकी प्यारीरे, नहि कोइ तुज तोले, ग्ववरा, पीवरावू तुजने, नवरावु बहु पेर; हवा दवाथी तुजने पोधू, वसियो त्हारे घेर, वस्त्रोथी शणगारुरे, मारे तुं मुंघा मोले. चेतन. ॥ २ ॥ हरतां फरतां तारी खबरो, लउं छं वारंवार, रंग रसीली अमरकाया, तुं छे प्राणाधार; बोल नहि खाटुं रे, मन मारु बहु डोले. चेतन. ॥३॥ काया पाछी कहेती रे, चेतन हुँतो नहि हारी; नने हुं नथी परणी रे, हजी हुं बाळकुंवारीः
For Private And Personal Use Only
Page #273
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२६९ हुँतो जड ई तुं तो चेतन, जूदी जाण सगाइ, हुँतो रुपी तुहि अरुपी, सगपणनी न भलाइ; तारी न त्रण काळे रे, करु नहीं तुज यारी. चेतन. ॥४॥ मारी मारी मानी चेतन, कर नहि मारी सेव, तारां मारा लक्षण जूदां शी प्रीतिनी देव; समज्यो न साचं रे, उमर ते फोगट हारी. काया. ॥५॥ चेतन हवे बोले रे, कायानां वेण संभारी; काया छे तुं तो न्यारी रे, वात हवे निर्धारी, आजलगी हुँ मारी मानी, करतो तारी सेव, मोह मदिरा घेने घेर्यो, समज्यो न आतम देव; हवे हुँ साचुं समज्यो रे, उपयोग दिल धारी. चनन. ॥६॥ मूंडी तारा माटे में तो, कीधा भारे पाप, भोगववां ते मारे पडशे, एवी प्रभुनी छाप; हवे शुं थाशे मारु रे, वात भृत्यो बहु सारी. चेतनः ॥७॥ काया पाछी बोल रे, चेत तुं चेतन भाव, माराथी तुं तो न्यारो रे, भूलीश नहि परभाव; मारामां हि वास क्यों पण, धर तारो विश्वास, आज थकी मूरख तुं नाहक, बनीश नहि मुजदास; मोहना धींगे रे, कदी नहि सुख थावे. काया. ||८॥ चेतन हवे जाग्यो रे, कायानां वेंण संभारी, ध्यावे रुप साधु रे, अंतरमांहि अवधारी; छंडी कायानी मायाने, ध्यावे आपोआप, निराकार निःसंगी निर्मल, करतो अजपाजाप; अंतर मुख भोगी रे, थयो हवे जयकारी. चेतन. ॥९॥ कायानी मायाथी अळगा, रहेवं धारी ध्यान.
For Private And Personal Use Only
Page #274
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अलख स्वरुपी आतम दवा, शक्तिथी भगवान; बुद्धिसागर ध्याने रे, वात सत्य निर्धारी. चेतन. ॥१०॥
विषय. ओधवजी संदेशो कहेशो श्यामने-ए राग. विषय पिपासा विषथी भुंडी जाणजे, विषयेच्छाथी चित्त चंचळता थायजो विषयेच्छाथी कर्म ग्रहण संसारमां, विषयेच्छाथी दुःख घणां प्रगटायजी. विषय. ॥१॥ विषय वेगमां कुमतिनुं साम्राज्य छे, विषय वेगथी कीर्ति धननो नाश जो, विषय वेगथी रौख दुःखगे संपजे, विषय जोरथी वधती निशदिन आशजी. विषय. ॥ २॥ विषयेच्छाथी अशुभ वधती भावना, विषयच्छाथी प्रगटे खोटां ध्यानमो, विषयेच्छाथी आधि व्याधि संपजे, विषयेच्छा छे महाउपाधि स्थानजो. विषय. ॥ ३ ।। विषयेच्छाथी ठाम ठरे नहीं दीलहूं, विषयेच्छाथी मूरख परआधीन जो; विषयेच्छार्थी नफ्फट नागो जन कहे, विषयेच्छाथी उच्च जनो पण हीन जो. विषयः ॥ ४ ॥ उत्तम जन तो विषय वृक्षथी वेगळा, करता प्रेमे अनुभव आतम ध्यानजो; बुद्धिसागर मंगलमाला पामशो, वैराग्ये वाळो मनहुँ गुण वानजो. विषय. ॥५॥
-
do
For Private And Personal Use Only
Page #275
--------------------------------------------------------------------------
________________
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
आनन्दल्हेर.
धीराना पदनो गग. आनंद ल्हेरो प्रगटी रे, परमरुप परखायें; अंधार दूर नाटुं रे, सहजरुप निर्धायु. आनंद" अजपाजापे रटना लागी, झळकी रुडी ज्योत, झरमर झरमर मेहुला वरसे, थयो महा उद्योत; अंतरमा उलटथी रे, मन मारु हरखायु. आनंद० ॥ १ ॥ अनुभव दर्शन प्रेमे कीधां, भ्रान्ति नाठी दूर, सहज स्वरुपे स्थिरता योगे, सुख प्रगटयुं भरपूरः परखीने हीरो लीधी रे, निर्भयपद आयु. आनंद० ॥२॥ अलखदेशमां प्रेमे खेलूं, निश्चय आतमदेश, असंख्य प्रदेशे क्षायिकभावे, वसतां लेश न क्लेश; ज्ञानियोनी वातो रे, ज्ञानथकी ए गायुं. आनंद० ॥ ३ ॥ अनंतभवनी भागी भ्रमणा, गुरु कृपाए खास, पाव ते छपावे एवो, आव्यो मन विश्वासः अगम ज्ञान मोटु रे, छपे नहि छपाव्यु. आनंद० ॥ ४ ॥ गुरु कृपाथी ध्याने रहीने, रीझवशुं जगनाथ, न बोल्यामां नवगुण समजी, रहीशं अनुभव साथ; बुद्धिसागर प्रेमे रे, अनुभव पद पायु. आनंद० ॥ ५॥
वीर जिन दर्शन स्तवन. प्रभु पडिमा पूजीन पोसह करीए रे-ए राग. जिनवर वीर प्रभुनां दर्शन कीजेरे, त्यागीने दुःखदायी संसारने । बार वर्ष निःसंगे चेतन ध्यायोरे,
For Private And Personal Use Only
Page #276
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ध्यान थकी सफल कर्यो अवतारने. समताए तजीया मोह विकारने, धर्म क्षमा धरीने तजीया खारने, धन्य धन्यरे वीर प्रभु अणगारने. समजीने चेतन शिक्षा धारने. गुण स्थानक सोपाने ध्याने चढीयारे, मुक्तिना महेलेरे प्रभुजी विराजीया; कर्म कटक संहारी जिनपद लीधुरे, लोकांते सिद्ध थइने गाजीया. समता.॥ २॥ शायिक भावे नवरुद्धिना भोगीरे, उपयोगी समये समये सर्वना; रुपारुपी सहज स्वरुपी योगीरे, भावथकी महा वीररे वर्ते गर्वना. समता. ॥ ३ ॥ कृपा करीने ध्याने दीलमां आगेरे, विषयादिक वैरि शिघ्र निवारजो; गांडो पण आ बाळ तमारो जाणीरे, भव सागरनी पारे प्रभुजी उतारजो समता. ॥४॥ बाळ तमारो कहाँने प्रभु बोलावोरे, व्हाला वीर सेवक व्हारे आवजो; जिनवर दर्शन स्पर्शन करवा रसीयोरे, अंतरना स्वामीरे करुणा लावजो. समता. ॥५॥ म्हारो कही बोलावो हस्त ग्रहीनेरे, सेवकने तारेरे शोभा आपनी, बुद्धिसागर वीर जिनेश्वर तारोरे, भक्ति एक साचीरे, वीर मावापनी. समताः ॥ ६ ॥
-08
For Private And Personal Use Only
Page #277
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२६४
॥ अवधूतगान ॥
मारी अन्तर चक्षु प्रकाशी रे, मनडुं थयुं रे उदासी; सूर्यने चंद्र बेड साथ प्रकाशे, मगटी अन्तरमांहि काशी रे. मन० सरस्वतिनदीमां हूं प्रेमथकी न्हायो, हुंतो थयो गंगन गढवासी रे. मनडुं० ॥ १ ॥ मेरुना उपर चढी गयो हुतो वेगे, पोताने हुं दउछु शाबाशी रे. मनई० बुद्धिसागर गुरु ज्ञानीओनी वातो, जेणे जाणी तेणे जाणी छे विलासी रे. मन० ॥ २ ॥
सामायक स्वाध्याय.
प्रभुपडिमा पूजीने पोसह करी रे-ए राग. समताभावे सामायकमा रहीए रे, सामायिक योगे शिवसुख थाय छे; समभावे रहेवाथी अनुभव जागे रे, स्थिरताना योगे तत्त्व जणाय छे. अंतरना उपयोगे धर्म ग्रहाय छे, चंचळता मननी दूरे जाय छे; वैराग्ये भाव भलो परखाय छे, धन्य धन्य रे समता भाव सुहाय छे. गुरुमुखी सामायक उच्चरे श्रावक रे, लाख चोराशी जीव योनिने खमावतोः दश मनना दश वचनना द्वादश काया रे, त्रीश दोषो दाळी आतम भावतो.
For Private And Personal Use Only
अंतर. ।। १ ।।
अंतर. ॥ २ ॥
Page #278
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२७३ अभिमान छाजतो नथी.
छप्पयछंद. छाज्यो नहि अभिमान कोइनो आ दुनियामां; छाज्यो नहि अभिमान कोइनो मोज मझामां, छाज्यो नहि अभिमान कोइनो उमर आखी; छाज्यो नहि अभिमान कोइनो सना राखी, छाज्यो नहि कदी छाजशे नहि अभिमान महा नीच छे; बुद्धिसागर समजशो जन निरभिमाने उच्च छे. ॥१॥ राज्य मळ्याथी छाके जे अभिमाने भारी; रावण जेवा नृपति पण चाल्या सह हारी, देह सुकोमल कदली जेवी झट करमाशे; फूले शुं नृप फोक मळ्युं सहु चाल्युं जाशे, चक्रवर्ति पण चालिया तो तारो शो जग भार छे; बुद्धिसागर समज रे नृप धर्म कर्म एक सार छे. ॥२॥ शेठो थइ जे दान न आपे शाना शेठो; कंजुस थइ पैसाने माटे करता वेठो, गाडी वाडी ललना धनने देखी म्हाले; गरीब जन मागे पण तेने कांइ न आले, धर्म कर्म शुभ सार छे एक समजशो जग शेठिया; धर्म करणी दान विना तो शेठिया पण वेठीया. ॥३॥ सत्ता धारी थइने जे जन गरीब दंडे, अभिमानना तोरे फूली नीति छंडे; गरीब जननुं बुरु ताके ते नहीं सारा, सत्ताधिकारी एवा तो जग जाण नठारा; अभिमान करशे जगतमां तेज दुःखी जाणजो, बुद्धिसागर समजीने शिख सत्य मनमां आणजो. ॥ ४ ॥
For Private And Personal Use Only
Page #279
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૨૭૪
काम अने ब्रह्मचर्यनो संवाद.
काम काम काम कहेतो हुं तो जगमां मोटोरे,
त्रण भुवनमा मोटो सहुथी, मारो छे नहि जोटोरे. काम ||१|| पशु पंखीमां मारो वासो, देव देवीमां वसतोरे,
काम. ॥ ३ ॥
मनुष्यने में लीधा ताबे, वार्यो जरा न खसतोरे. काम. ॥ २ ॥ योगी यति संन्यासी पंडित, ते पण मुजने पूजेरे, मारा वेगे राजा राणा, लइ तरवारो झुझेरे. तप तपिया मुनिवर वैरागी, तेने पण हुं पाहुंरे, रावणने पण में भरमाव्यो, मारुं मोई धाईरे. तपसी लपसी जावे क्षणमां, काम वेगथी मोटारे, नागा बाबा जगमां चावा, ललचाता लंगोटारे. काम. ॥ ५ ॥ मारा पीडया पछडाता जन, मारो खूब झपाटोरे, मारा वशमां आवे तेनो, काढी, नांखु आटोरे, काम. ॥ ६ ॥ कामिजन दाणाने पीसु, विषय घंटीमां नांखी रे; भूक्का काढी नांख्या सहुना, कोइ रह्या नहि बाकीरे. काम. ७ वळवंताने निर्बल करतो, धनीकने भीखारीरे,
For Private And Personal Use Only
काम. ।। ४ ।।
मंत्र सिद्ध पामर करतो, गति हमारी न्यारीरे. काम. ॥ ८ ॥ परगट पूजा छानी पूजा, केइक दीलमां करतारे,
"
मारा बाणे विधाया जन, जोशो जगमां मरतारे. काम. ॥ ९ ॥ जुवान पर सत्ता छे मारी, जननी मुजपर प्रीतिरे; तीर्थकर भोगावली कर्मे राखे एवी रीतिरे. काम. ॥ भोगावली कर्मे करी मारु, लेणं कदी न छोड़रे; भोगालिथी उपरांठानुं, वेगे माथं फोर्डरे. भोगावलीनुं लें आपे, जगमां नरने नारीरे; नंदिषेणजी कर्मे नडिया, कीधी वेश्या यारीरे. काम. ।। १२ ।।
काम. ॥। ११ ॥
० ॥
Page #280
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२७५
रहनेमि मुनिवर वैरागी, तेने पण भरमाव्यारे; पडिया पंडित मुनिवर मोटा, भाषणमां जे डाह्यारे काम. ।।१३।। जुओ कबुतर चकली जोडां, विषय वासना भोगीरे; मारा वेगे अंधा सर्वे, बाला बुट्टा योगीरे. कामः ॥ १४ ॥ नाच नचावू दुनियाने हुँ, विविध करावं चाळारे; इन्द्र चंद्रने नागेन्द्रादिक, भूल्या सहु धारालारे. कामः ॥ १५ ॥ माराथी दुनिया सहु चाले, वीरला केइक छुटयारे, मारी निंदा करता जनने, दाव पेचथी कूटयारे. काम. ॥१६॥ ब्रह्मचारिनुं नाम धरावी, जे जन मनमा फुलेरे; ते पण दीलमां मुजने राखे, चारगतिमां झूलेरे. कामः ॥१७॥ डाह्या डमरा पंडित साधू, तेना दीलमां पेसुरे; भूत तणी पेठे भरमाबु, लाग जोइने बेमुरे. काम. ॥१८॥ लाख चोराशी जीवायोनि, तेमां मारो वासो रे; भला भलाने पीसी ना, मारो ओर तमासोरे. काम. ॥१९॥ कालीने भैरवथी मोटो, सहुने हुं धुणावं रे; काळी भैरवने धुणावू, नाम जगत्मां चावुरे. काम॥२०॥ मुजथी चोखा कोइ न जगमां, काळ अनादि संगीरे; मारा जोरे कोइ न बचिया, मोह पिपासा रंगीरे. काम. ॥२१॥ मारी पूजा करवा माटे, घरमां लावे लाडीरे; गाडी वाडीमां मस्ताना, केइक पीवे ताडीरे. काम.॥२२॥ त्रेवीस विषयो मारा पुत्रो, ते पण मारा जेवा रे; जगमां ज्यां त्यां तेनी पूजा, जगमां जेवा देवारे. काम. ॥२३॥ जटाधारी लिंगनी पूजा, करतां नरने नारीरे; मारा माटे तेनी पूजा, वान भली शणगारीरे. काम. ॥२४॥ ब्रह्मा विष्णुने सपडाव्या, वळी जोशो महादेवारे;
For Private And Personal Use Only
Page #281
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२७८ सूर्य बुधने जोइ लेशो, भरमाव्या छे एवारे. काम. ॥२५॥ व्यास रुषि पण वशमां लीधा, केइक रुपि पंजेळ्यारे; ललनानी लालचमां लोको, लाज तजी थया घहेलारे. काम.२६ केइक स्वीओने पीडयाथी, रात्री नदी तरतीरे; । पंच बाणथी विध्याथी केइ, अग्नि वण वळंतीरे. काम. २७॥ राधावेधी महारथीओए, पृथ्वी वशमां कीधीरे; तेवानी पण धोळे दहाडे, लाज स्हेजमां लीधीरे. काम. ॥२८॥ फुकेथी पर्वत उडाडे, पादे मही ध्रुजावरे; तेवा पण मारा छे चाकर, परवशताने पावरे. काम. ॥२९॥ आषाढाभूति आचार्य, जेनी मोटी सत्तारे; भोगावलिथी वशमां कीघा, खवराव्या में खत्तारे. काम. ॥३०॥ पुनर्लग्नमां मारी सत्ता, मारा माटे परणेरे; मारा सामा उठया तने, कीधा मारा शरणरे. काम. ॥३१॥ बाळलग्ननी होळी मोटी, ते पण में संळगावीरे; नाना बाळकने होमीने, मुज सत्ता वर्तावीरे. काम. ॥३२॥ दांत पडयाने आंखे ओछा, देखे घरडा डाह्यारे; माथे पळीयां आवेलाने, वृद्ध विवाहे छाया रे. काम. ।।३३।। एक छतां पण बीजी परणे, त्रीजी परणे नारीरे; तेमां पण मारी छे सत्ता, जीवो जाता हारीरे. काम. ॥३४॥ ब्रह्मचारी संन्यासी योगी, जेनी कीर्ति मोटीरे; स्वमामां पण धात जवाथी, वगडे छे लंगोटीरे. काम. ॥३५॥ मारा वणतो पुत्रो क्याथी, मारा वण नहि वापार; मारा वण दुनिया नहि चाले, मारा ज्यां त्यां छापारे. काम.३६ गोर करे छे बाळीकाओ, तेपण मारा माटे रे मारा माटे नोकर रहेQ, बेसे रुडा हाटे रे. काम. ॥ ३७॥
For Private And Personal Use Only
Page #282
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तप तपता जन मारा माटे, करवत लेवे काशी रे; हीमाळो गळता जन कोइ, मारा माटे फांसी रे. काम. ।। ३८॥ दोडे छे केइ मारा माटे, केइकने दोडा रे; मारा वशमां लावी जनने, ललना पाय पडावं रे. काम. ॥३९॥ मारा उपर जेवी प्रीति, तेवी क्यांय न दीठी रे; मारी वातो जोशो जगमां, सहुने लागे मीठी रे. काम. ॥ ४०॥ पाटण धणीनुं राज्य पडाव्युं, परनारीना प्रेमे रे; करण राजा घहेलो जगमां, तेपण मारा नेमे रे. काम. ॥४१॥ हिंदु राज्यतणी जे दील्ली, तेपण जुओ पडावी रे; मुसलमानमां फाटफुटा, तेपण में गगडावी रे. कामः ॥ ४२ ॥ क्षत्रियोनुं राज्य पडाव्युं, मुसलमानने मार्या रे; मराठाने नवाब राजा, राजपाट सहु हार्या रे. काम. ॥ ४३ ॥ कोटी धननो नाश करीने, नचावता केइ वेश्या रे; मारा वेगे तपिया केइक, मोकलता संदेशा रे. काम. ॥ ४४ ॥ प्यारी प्यारी हुँ बोलावू, प्राणपति बोलावू रे; मारा महिमानी ख्यातिमां, नाटकने विरचावरे. काम. ॥४५॥ काव्य करीने केइक कवियो, मारां गाणां गावे रे; शृंगार रसमां लदबद थइने, केइक खत्ता खावे रे. काम.॥४६॥ तोपोथी रणशूरो केइक, मारे अग्नि गोळा रे; तेपण मारा वशमां आव्या, देखी ललना डोळा रे. काम. ॥४७|| चार वेदना ज्ञाता पंडित, वाद विवादे फरता रे; तेने पण में वशमां लीधा, ललनाने करगरता रे. काम. ॥४८॥ केइक चलवी डाकडमाळो, गुफामां जइ बेठो रे; तुर्तवारमा लाग ताकीने, तेना दीलमां पेठो रे. कामः ॥ ४९ ॥ क्षय रोगी में केइक कीधा, केइ बनाव्या गांडा रे;
For Private And Personal Use Only
Page #283
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२७८
इक लज्जाविहीन करीया, केइक करीया बांडा रे. काम. ॥५०॥ वानरीयोना टोळामां तो, एकज वानर रहेवे रे;
Art वानर उत्पन्न थातां, जल्दी मारी देवे रे. काम. ॥ ५१ ॥ राधीकाने कृष्ण मनावे, तेमां महिमा मारो रे;
निरागीने राग ज शानो, जगमां हुं धूतारो रे. काम. ॥ ५२ ॥ are देवो अबळा राखे, खास प्रयोजन मारु रे;
काम. ।। ५५ ।।
भाषाना प्रोफेसर मनमां, हुं करतो अंधारु रे. काम. ॥ ५३ ॥ ललनानी साथे जे हांसी, तेमां मारी फांसी रे; हांसीमांथी खांसी लावं, खांसीमांथी ठांसी रे. काम. ॥ ५४ ॥ वाडी लाडी घरने घोडा, मारी सेवा माटे रे; पाताले पेसे छे केइक, केइक चाले वाटे रे. माथे तेल फुलेल लगावे, सुर्वे पुष्प पथारी रे; स्वामां नारीने सेवे, मारी सेवा भारी रे. काम. ।। ५६ ।। are भडवाने भीखारी, करता स्त्रीनी यारी रे; नारी करती नरनी सेवा, कामावस्था धारी रे. काम. ॥ ५७ ॥ मृत्यु स्वर्ग अने पाताळे, मारी सत्ता चाले रे; वनस्पतिमां छानो वसियो, सहु मुजने पंपाळे रे. काम. ॥५८ || नवमा गुणस्थानक सुधी तो, राज्य हमारुं भारे रे; ब्रह्म ध्यानथी भूली योगी, मुजने झट संभारे रे. काम ||२९|| के कायाथी ब्रह्मचारी, वचन थकी ब्रह्मचारी रे; व्यभिचारी ते पूरा मनथी, अकळकळा मुज न्यारी रे. काम. ॥६०॥ मन बगड्याथी पापज मोडं, मनना जे व्यभिचारी रे; काया करतां मनना दोषो, शास्त्रे सुणिया भारी रे. काम. ॥ ६१ ॥ मनना परिणामे हुं पेसी, करतो जन खुवारी रे; मनना व्यभिचारी छे मोटा, काया जाण बीचारी रे. काम. ॥६२॥
For Private And Personal Use Only
Page #284
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२७९
मन परिणामे वाचा काया, उपर सत्ता भारी रे;
स्वमामां धातु जावाथी, काया होय नठारी रे. काम. ।। ६३ ।। माराथी दोषी छे मनमां, जगमां नरने नारीरे;
मनी सृष्टि मनी मुक्ति, मन दोषे संसारीरे काम. ॥६४॥ रुषभादिक चोवीस तीर्थंकर, जीत्या मुजने देवारे;
माटे ते जिन कवाया, पाम्या मुक्ति मेवारे. काम. ||६५ || तेना भक्तो सुरिवर वाचक, साधु मंडळ मोडरे; युक्तिथी ते जीते मुजने, वेंण कहुं नहि खोडंरे. काम. ॥६६ || चौदभुवनमां मारी सत्ता, ज्यां त्यां मारी वातोरे; रावण जेवा महीपतिने, हुं मारु छ लातोरे.
काम. ||६७||
मारा जेवो बळी नहि को, शत्रुने संहारुरे;
काम. ६९
काळ अनादि राज्य अमारूं, नहि कोने गणकारुरे. काम. ९८ सुजने जीत्या कोइ न योद्धा, दुश्मनने झट मारुंरे; प्रचंडयोद्धो हुं दुनियामां, कोइ थकी नही हारुरे. शीयल योद्धो वात सुणीने, करी गर्जना बोलेरे; मारा आगळ काम करे शुं, नहि कोइ मारा तोलेरे. शीयल. ७० तारां मारा लक्षण जुदां, तुं छे दुःखनो दातारे;
तारा वशमां भलुं न कोनुं, प्राणी दुःखड पातारे. शीयल. ७१
भूं करवामां दुर्जनता, तारी नजरे दीठीरे;
दुर्जननी शक्ति छे मूंडी, जेवी फांसी चींटीरे. शीयल. ॥ ७२ ॥ पशु पंखीमां तारो वासो, तेमां शुं छे सारूरे,
तारा संगे खत्ता खावे, मनडुं होय नठारुरे. शीयल ॥ ७३ ॥ मारी संगत सुखकर मोटी, शाश्वत सुखडां आपुंरे, मारा भक्तोने हुं क्षणमां, मुक्तिपुरीमां थापुंरे. शीयल. ॥ ७४ ॥ योगी यति संन्यासी त्यागी, तुज संगतथी दुःखीरे,
For Private And Personal Use Only
Page #285
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मारी संगत करता निशदिन, होवे जगमां सुखीरे. शीयल. ७५ तारी संगतथी सहु अंधा, जगमां नरने नारीरे. तेमां भंडाइ जग तारी, दुःखडांनी देनारीरे. शीयल. ॥ ७६ ।। रावण जेवा पण तुज संगे, नरक गतिमा पडियारे, रौरव दुःखडा भोगवता त्यां, तुज संगे लडथडियारे. शीयल ७७ तपसी पण लपसी जावे त्यां, तारी संगत खोटीरे, तारी संगतथीरे भंडा, मळे न सुखथी रोटीरे. शीयल. ॥ ७८ ॥ मारा संगे तपथी सुखथी, साधे सहेजे मुक्तिरे, मुज संगतथी सारी बुद्धि, प्रगटे सारी युक्तिरे. शीयल ॥ ७९॥ नंदिषेण आषाढाचार्य, तुज संगतथी पडियारे, मारी संगत थातां तेतो, सिद्ध स्थानमा चडियारे. शीयल. ८० स्वमामां लंगोटी बगडे, संन्यासीनी देखोरे, शरीर विकारो आदि कारण, तेमां तुं नहि एकोरे. शीयल. ८१ गुणस्थानक नवमा सुधी तें, तारी शक्ति भावीरे; क्षपक श्रेणिए चढतां मुनिए, शक्ति तोडी नावीरे. शीयल. ८२ जीवोनुं मूंडं करवामां, ते नहि राख्युं बाकीरे; भुंडा पापी समज दीलमां, बोले शुं तुं छाकीरे, शीयल. ८३ भंडानी शी भवाइ करवी, कोइ न तुजने वखाणेरे; अज्ञानीनी आगळ फावे, अज्ञानीने ताणेरे. शीयल. ८४ शीयलना प्रतापे सुखियां, जगमां नरने नारीरेः ब्रह्मचर्यथी शाक्त प्रगटे, ब्रह्मचर्य बलिहारीरे. शीयल. ८५ मारी पूजा मुनिवर करता, तीर्थकर पण भारीरे; मारी पूजा करता मोटा, जगमां जन मुखकारीरे. शीयल. ८६ सतीओए मारी पूजाथी, चमत्कार बतलाव्यारे; सीता अग्निमांहि पडीके, शीतल जलनी छायारे. शीयल. ८७
For Private And Personal Use Only
Page #286
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
८८
૨૮૨ पतिता द्रौपती शाणीनां, संसदमा चीर ताण्यारे, मारा तेजे देवोए तो, पूर्या वस्त्र मजानारे, सुभद्राए ब्रह्मचर्यथी, जाती कीर्ति राखीरे, दमयंतीए पतिव्रताथी, उमर काही आखीरे. शीयल. ८९ शीयलना प्रतापे सतीओ, शाश्वत सुखमां म्हालेरे, मारा संगे वचनसिद्धियो, कर्म दोषने खाळेरे. शीयल. ९० मोटा ज्ञानी साधु त्यागी, शीयल तेजे दीपेरे, तारा तेवीस पुत्रोने तो, क्षणमा ध्याने जी पेरे. शीयल. ९१ कामीने निष्कामी बनावी, शिवपुरमां पहोंचाडुरे, तारु त्यां तो कांइ न चाले, दूर रहे तुज धाडुरे. शीयल. ९२ तुज संगतथी दुःखी जीवो, मारा शरणे आवेरे, द्रव्यभावथी मुज संगतथी, सहेजे शिवपुर जावेरे. शीयल. ९३ त्यागी साधु हृदये पेसी, करतो तुंतो चोरीरे, मारी नजरे पडतां तारी, कांइ न चाले जोरीरे, शीयल. ९४ जटाधारिने लिंगनी पूजा, ने पण मुज वियोगेरे, मारी संगत थातां जीवो, कामवेगने रोकेरे. शीयल. ९५ ब्रह्मा विष्णुने सपडाव्या, मारा संग अभावरे, मारी नजरे पडतां पामर, बळी भस्म झट थावरे. शीयल. ९६ सूर्य चंद्र ने व्यास रुषि पण, तुज संगतथी पडियारे, मारा शरणे आव्या तेतो, तुर्त वारमा चडियारे. शीयल. ९७ मुज संगतविहीन रुषिने, पापी तुं पंजेळेरे, मुजने बोलाव्याथी पामर, पार्छ पगढं मेलेरे. शीयल. ९८ निर्वळ जन पण मुज संगतथी, बळीया जगमां गाजेरे, फुकेथी पर्वत उडाडे, ते पण मारा राजेरे. शीयल. ९९ तारा संगे नबलो थावे, नबलाइ त्यां तारीरे;
For Private And Personal Use Only
Page #287
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૨૮ર
नबळानी संगतथी नबळा, जगमां नरने नारीरे. शीयल. १०० काळ अनादि निर्बळ जीवो, तेने सबळा करवारे; मोटाइ तेमां छे मारी, जीवना संकट हरवारे. शीयल. १०१ भोगावलीथी लेणुं तारु, लेतो त्यां न वडाइरे; तीर्थकरोए बाळ्यो तुजने, जोने तुज नवळाइरे. शीयल. १०२ काळी ने भैरवथी मोटा, एवा तुजने वाढुंरे; स्थूलिभद्रनी आगळ तारूं, वदन थयुं छे काळुरे. शीयल. १०३ स्थूलिभद्रजीए खूब पीटयो, नाठो बूमो पाडीर; जुओ सुदर्शन शेठे कूटयो, विजय शेठ शेठाणीरे. शीयल. १०४ मोहीनी आगळ तुं फावे, मारा आगे नासेरे; अंधारानी पेठे क्षणमां, नासे रवि प्रकाशेरे. शीयल. १०५ पुनर्लग्नने वाळलग्नमां, तारुं जोर जणावेरे; मारो महिमा सांभळवाथी, तारूं जोर न फावरे. शीयल. १०६ तारा दोषो जे जन देखे, तेतो तुजथी भागेरे; मारा शरणे आवे त्यारे, जयडको झट वागेरे. शीयल. १०७ तुज संगतथी मुक्ति न मळती, तुज संगतथी दुःखोरे; तुज संगतथी जन्म जरा छे, तुज संगतथी भूखोरे. शीयल.१०८ काम काम काम तारी, संगतथी दुःख भारीरे; चौदभुवनमा दुःख देनारो, तारी बुरी यारीरे. शीयल. १०९ हीमाळो गळवाने माटे, मनुष्यने ललचावेरे; अनंतगुणनो छे तुं घातक, भवभवमां भटकावेरे. शीयल. ११० पाटण दील्ली राज्य पडाव्यां, चूरी तारी शक्तिरे; मूर्ख मनुष्यो समज्या वण तो, करता तारी भक्तिरे. शीयल.१११ प्यारी प्राणपति बोलावे, ए पण तारी मायारे; । भ्रांतिथी मूल्या जीवोने, फोगट तें ललचाव्यारे. शीयल. ११२
For Private And Personal Use Only
Page #288
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૩
मारामां शक्ति छे मोटी, मारो ओर झपाटोरे:
मारी नजरे पडतां तारो, काढी नांखुं आटोरे. शीयल. ११३ दाव पेचमां आव्याथी तो, क्षणमां पीसी नाखरे;
तुजने जीत्या सिद्ध अनंता, वशमां करीने राखुरे. शीयल. ११४ मारो महिमा जगमां मोटो, मुजधी जगमां शांतिरे:
मुजने सेव्याथी माणसनी, वधती शरीरकांतिरे. शीयल. ११५
मारा संगे कीर्ति कमळा, मारा संगे पुष्टिरे;
मारा संगे सबळा जीवो, अबूट लक्ष्मी तुष्टिरें. शीयल. ११६ मारी संगतथी तो जाणो, रंक जनो पण राजारे;
मारी संगत करवामां तो, प्रेम जनोना झाझारे. शीयल. ११७ अष्टसिद्धि नवनिधि प्रगटे, संकट वेळा टळतीरे;
ब्रह्मचारिना आशीर्वादे, भाग्य वेळा झट वळतीरे. शीयल. ११८ शरीरसंपत्तिमा पहेलो, केळवणीमा पहेलोरे;
नीति केळवणीमा पहेलो, मुक्तिपुरीमां बहेलोरे. शीयल. ११९ मुजसंगतथी नरनारीनी, कीर्ति प्रसरे सारीरे;
शीयल. १२२
सन्तजनोमां मारी पूजा, जोशो दील विचारीरे. शीयल. १२० ब्रह्मचर्यना नाम थकी जग, ज्यां त्यां मुजने गावेरे; चोसठ इन्द्रो मुजने वंदे, ज्ञानीजन मन ध्यावेरे. शीयल. १२१ तुज सेव्याथी कदी न तृप्ति, उलटां दुःखो थावेरे; काटोथी अग्निनी पेठे, शांति कदी न आवेरे. काव्य करीने पामर कवियो, तारां गाणां गावेरे; गंदी कायामां शुं सारु, समजु मनमां आवेरे. चार वेदना ज्ञाता पंडित, पण माया मस्तानीरे; तारा फंदामां सपडाता, पण भूले नहि ज्ञानीरे. शीयल. १२४ केक देवो अबळा राखे, ते पण भूल्या भारीरे;
शीयल. १२३
For Private And Personal Use Only
Page #289
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૨૮૩
मारी संगत थातां नकी, सुधर्या नर ने नारीरे. शीयल. १२५ स्वनामां नारीनी संगत, काळ अनादि टेवेरे; अनुक्रमे अभ्यास करतां, मुज संगत सुख देवेरे. शीयल. १२६ औषधथी ज्वर तो जेम जावे, तेम तुं मुजथी नासेरे; मारा आवे तुं संतातो, नजरे जोतां भासेरे. शायल. १२७ मन वाणी कायाथी जगमां, ब्रह्मचारी छे बळीयारे; तेना सामुं तुं शुं देखे, मोहविकारो टळीयारे. शीयल. १२८ ब्रह्मचारीना तेजथकी तो, भूत प्रेत सहु भागेरे; देवनी कोडी करने जोडी, प्रेमे पाये लागेरे. शीयल. १२९ चौदभुवनमां मारा जोरे, वर्ते सारी शांतिरे; मारी संगत थातां जननी, तृत टळे छे भ्रांतिरे. शीयल, १३० तोपो चालंती अटकावू, आग्निने थंभावुरे; समुद्रनी मर्यादा राखं, वायुने हंफावुरे. शीयल. १३१ जंगलमां मंगल हुं करतो, संकट वृन्द समाबुरे; मारा तेजे सुरवर व्हीता, महिमा सत्य रचावुरे. शीयल. १३२ मारा तेजे सिंहो थंभे, मरकीरोग शमारे; मोह सैन्यने सख्त वेगथी, जोतां वार हरारे. शीयल. १३३ मंत्रसिद्धियो मारा तेजे, धार्यु काम करावुरे; देव देवीने पाय पडावं, अनंत शक्ति धरावुरे. शीयल. १३४ बगडेलाने हुं सुधारू, तुर्तवारमा तारुरे; मन परिणामे झट सुधारु, विषयवेग संहारुरे. शीयल. १३५ चौदभुवनमां मारा तेजे, नारदजी छे चावारे; मृत्युने पण मारी नाखू, देख झपाटा आवारे. शीयल. १३६ देशोदयमां हुँ छ पहेलो, मारु भाषण पहेलुरे; मारी स्तुति ज्यां त्यां थावे, वचन मान आ वहेलंरे.शीयल.१३७
For Private And Personal Use Only
Page #290
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२८५
शीयल. १३८
बाळलगने दूर करु, तारुं जोर हटावीरे; ब्रह्मचारीने सुखी करतो, स्वर्गे तुर्त चढावीरे. त्रण भुवनमां मारी पूजा, माणी भावे करतारे; ध्याने गुफामां बेसीने, योगी जग जय वरतारे. शीयल. १३९ मननी स्थिरता मुजथी थावे, मुजथी ध्यान सुहावेरे; मुजी वैरागी छे साचो, मुजयी सिद्धि थावेरे. शीयल. १४० मारा संगी निर्धन जीवो, इन्द्र चंद्रथी मोटारे;
शीयल. १४१
शीयल. १४२
मारा वण जगमां अंधारू, धूमाडाना गोटारे, मारी आगळ रत्न नकामां, मारी आगळ देवारेः हरिहर ब्रह्मा मुजने पूजे, करता भावे सेवारे. चोसठ इन्द्रोथी पूजितश्री, तीर्थकर मुज सेवेरे; मारा वण मुक्ति नहि क्यार, समज समजी लेवेरे. शीयल. १४३ पडताने पण दया करीने, शिवसुख सत्य चखाडुंरे; परोपकारी स्वार्थ विना हुं, कांइ न लेतो भाईरे. शीयल. १४४ द्रव्यभावथी हुं हुं चावो, अकळ कळा छे मारीरे, मेरु पर्वतने डोलावं, जगमां हुं जयकारीरे. तेतर उपर बाज परे हुँ, तारी पाछळ भमतोरे, लाग ताकीने तु वारमां, तुजने सहेजे दमतोरे. शीयल. १४६ मारा संगे सुख सदा छे, बुट्टामां हुशियारीरे, मारा संगे शरीर सारु, शिवपुरनी तैयारीरे. चिंतामणि सम मारो महिमा, विष्ठा जेवो तारोरे, मारा तारामां खूब अंतर, तुं छे दुःखनो भारोरे. शीयल. १४८ बेउ जण एम वाद करता, जिनवर पासे आवेरे,
शीयल. १४५
शीयल. १४७
सर्व हकीकत शांत मगजथी, जिनवरने सुणावेरे बेड. १४९ माथी सारोने मोटो कोण कहो ते ज्ञानेरे,
For Private And Personal Use Only
Page #291
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२८६ तीर्थकरनी वाणी साची, त्रण भुवन तो मानेरे. बेउ. १५० केवल ज्ञाने जिनवर देवा, वाणी सत्य प्रकाशेरे, सत्य तत्त्वने ज्ञाने कहेवे, ज्ञाने सत्य तो भासेरे. केवल. १५१ पापी काम जगत्मां भारे, जन्म मरण दुःखदातारे, सर्व गुणोमां शीयल मोटो, आपे मुख ने शातारे. केवल. १५२ तीर्थकर शीयल आराये, क्षायिक गुणने साधेरे, द्रव्यभावथी शीयल साचुं, पाळे गुणगण वाधेरे. केवल. १५३ शीयल साचुं शुद्ध रमणता, द्रव्य ते भाव निमित्तरे, भाव शील शुद्धातम साधे, प्राणी होय पवित्ररे. केवल. १५४ निश्चयथी ब्रह्मचर्य धर्याथी, क्षणमा होवे मुक्तिरे, निश्चयथी निजगुणमा रमवू, ब्रह्मचर्यनी युक्तिरे. केवल. १५५ तप जप दान थकी पण शीयळ, जाण जगत्मां मोटरे, द्रव्य शीयल पण भाव शीयलनी, आगळ जाणो छोटुरे. केवल. केवली कोटी जीव्हाथी पण, ब्रह्मचर्यने गावेरे, तोपण महिमा पार न आवे, वस्तु सत्य जणावेरे. केवळ. १५१ सर्व गुणोमां ब्रह्मचर्यनो, महिमा जगमां भारेरे, द्रव्यभाव शीयल छे माटुं, भवजल पार उतारेरे. केवल. १५८ ब्रह्मचर्यनी त्रण भुवनमां, कीर्ति रही छे गाजीरे, सद्गुणदृष्टि दीलमां धारी, रहेशो मनमा राजीरे. केवल. १५९ जय जय बोलो ब्रह्मचर्यनी, होवे मंगलमालारे, ब्रह्मचर्यथी मुक्ति वधु झट, अर्षे कंठे माळारे. केवल. १६० धरजो मनमा सत्य वातने, अनुभव सुखना प्यासीरे, शिवसुंदरी पण ब्रह्मचर्यनी, जाणो जगमां दासीरे. केवल १६१ गाम माणसा सुंदर शोभे, मास कल्प करी भावरे, बुद्धिसागर गुरुभत्तिथी, मनमा आव्युं गावेरे, गाम. १६२
For Private And Personal Use Only
Page #292
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रीसंखेश्वर पार्थ जिनेश्वर, मंगल माला करशोरे, भणनारा सुणनारा भक्तो, परम प्रभुता वरशोरे. श्री. ।। १६३॥
आत्मज्योति.
धीरानो राग. जागी झळहळ ज्योतिरे, शोधी लीधुं सत्य मोति; खलकमा अलखनेरे, काठ्यो मेंतो झट गोती. जागी. अनंतज्ञानी असंख्यप्रदेशी, चिदानंद घनराय, अनुभव नयणे नीरखी नेहे, बीजाने न कहाय; कुमति तो नाठीरे, आघे जइ बहु रोती. जागी. ॥ १॥ प्रेम करीने प्रेमी परख्यो, परख्यो आपोआप, पंचभूतथी न्यारो नकी, शमिया सहु संताप; भ्रमणानी खोटीरे, उतरी छे पनोती. जागी. ॥ २ ॥ वीजके झबूक मोति, परोइ ले हुशियार, शुद्ध चेतना क्षयोपशमनी, वीजली चमके सार; बुद्धिसागर ज्ञानेरे, लोकालोक विष्णोति. जागी. ॥ ३ ॥
“संकटमां समता"
___ धीराना पदनो राग. संकट पडे समतारे, राख जीव धैर्य धरी; सुख दुःख कारणरे, कर्म एक दील धरी. टेक. सुख दुःख वादळछाया पेठे, क्षणमां आवे जाया निमित्त कारण अन्यजनो त्यां, क्रोध कहो केम थाय. धर्मीनी कसोटीरे संकट क्षण भव्य खरी; संकट. ॥ १ ॥ ताप पडयाथी मेघज वरसे, संकट समये धीर,
For Private And Personal Use Only
Page #293
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૨૮૮ संकटनी शाळामां भणतां, थावे प्राणी वीर; श्रद्धानी कसोटीरे, संकट पडे वीरे वरी. संकट. ॥ २॥ संकट वेळा उत्सव सरखी, गणता उत्तम जन; मेरु डगे पण दील डगे नही, श्रद्धा राखे मन, सुख दुःख वेळारे क्षणे क्षणे आवे फरी. संकट. ॥ ३ ॥ प्राण पडे पण तजो न समता, अंते भएं थनार, उच्चाशयथी उच्च थशो सहु, समजो नर ने नार; बुद्धिसागर समतारे, जग जय विजय करी. संकट. ॥ ४ ॥
देहमां दीवो.
ॐ नमः
राग धीरानापदनो. देहमा छे दीवारे, झळहळ ज्योत करनारो, अनादि प्रकाशीरे, अज्ञान तम हरनारो. टेक. असंख्यप्रदेशी नित्य स्वरुपी, अनंत गुण आधार, सहजानंदी शत्रुजय छे, देह पिंड करनार; जोगीनो पण ते जोगीरे, तारे ने पोते तरनारो. देह. ॥ १ ॥ अनंत नाम धरीने ध्यावे, दुनियां जेने खास; सर्वविष ने सहुथी अळगो, लोकालोक प्रकाश, एवो इश पोतेरे क्षायिकभाव वरनारो. देहमां. ॥ २ ॥ पिंडमां पिंडमां अनंत व्यक्ति, चिद्घन चेतन राय; क्षीर नीरनी पेठे व्याप्यो, योगीश्वर दिल ध्याय, प्रेमीनो पण ते प्रेमीरे, अनेक दुःख हरनारो. देहमां. ॥ ३ ॥ दिलमां ध्यावो देहे वसीयो, ज्ञाता ज्ञेयस्वरुप; बुद्धिसागर चिद्घन चेतन, वर्ते रुपारुप, अनादिनो योगीरे, प्रगटपणे योगी खरो. देहमां. ॥ ४ ॥
For Private And Personal Use Only
Page #294
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सर्व- सारु थाओ.
__ राग धीराना पदनो. सारं सहुर्नु थाशोरे, सर्वने लागो सत्य प्यारं, उच्च सर्वे थाशोरे, दुनियां कुटुंब मारूं; शान्तिमय दुनिया सहु थाओ, सुखिया थाओ सर्व, निन्दक जननी निंदा टळशो, नासो जनना गर्व. परोपकारे पगलुरे, भरो सहु अणधार्यु. सारं. ॥ १॥ दयागंगमां जगजन झीलो, टळजो सर्वे पाप, शत्रु मित्रपर समान बुद्धिनी, जन मन वर्तो छाप कलेश सहुटळशोरे, धर्मकृत्य करो सारूं. सारं. ॥ २॥ अनंत सुखडां पामो जगजन, थाशो जन कल्याण; धर्ममेघनी दृष्टि थाशो, ऊगो सत्यनो भाण. क्षमामय पृथ्वी थाशोरे, टळशो सर्वे नठार. सामं ॥ ३ ॥ अशुद्ध आचारो विचारो, टळशो वेगे खास, दुनिया धर्ममयी सहु थाशो, थाशो मिथ्यात्वनो नाश; सन्तजनोनी सेवारे, थाजो शुभ मन धार्यु. सालं. ॥४॥ धर्म भेदनो खेद टळो सहु, आत्मिक श्रद्धा थाओ, अनंतशक्ति जीवनी प्रगटो, मंगळपद सहु पाओ. बुद्धिसागर भावरे थाओ दील अजवाळु. सारु.॥५॥
मोह उंघ.
“ गग धीराना पदनो" मोह ऊंघ मोटीरे, जीवलडा तुं जो जागी; मोहे दुःख मोटो रे, विचार जीव वैरागी. शो पैशामां प्रेमज करवो, शो रामामां राग,
उका
For Private And Personal Use Only
Page #295
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
२९.०
नात जातमां कांइ न तारुं, घर दिलमां वैराग्य; विवेकी विचारीरे थातुं मनमांही त्यागी. मोह. ॥ १ ॥ शाने माठे पाप करेछे, फोगट भूले भव्य आतम ते परमातम साचो, करं ते कर्तव्य, चेतन चित्त चेतोरे, समजलें सोभागी. मोह. ॥ २ ॥ चोरी जारी चुगली निंदा, हिंसानो कर त्याग, दगा प्रपंचो सर्वे छंडी, धरशो धर्मनो राग; बुद्धिसागर मेमेरे, लय प्रभु गुण लागी.
मोह. ॥ ३ ॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चेतजीव.
जी० टेक.
" श्रीराना पदनो राग जोवलडा चेती लेजेरे, वखत वह्यो जाय छे; मोहमांशुं मुंझ्योरे, भूलण शुं भूलाय छे. आधि व्याधि उपाधिथी, जनमां वर्ते दुःख, लाख चोराशीमां बहु दुःखो, क्यांय न वर्ते सुख; भूली भूलेलारे भव भटकाय छे. पर वस्तुथी कदी न शान्ति, निश्चय मनमां धार; परने पोतानु मान्याथी, थाशे न सुख लगार, लाकडनो लाडु खातां तो पामर पस्ताय छे. जी० ॥ २ ॥
जीव० ॥ १ ॥
21
मृगनी नाभीमा कस्तुरी, पण शोधे छे बहार, अंतरमांहि सुख घणुं छे, भूले जीव गमार; भटके छे भारीरे, खत्ता घणा खाय छे. 'माडाना वाचक भरतां, कांइ न आवे हाथ; मृगजल तृष्णामां लोभातां, कां न आवे साथ, ज्ञानीयोए गायुंरे, समजुने समजाय छे.
For Private And Personal Use Only
जीव० ॥ ३ ॥
जीव० ॥ ४ ॥
Page #296
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२२१ भवजंजाळे मुखनी भ्रांति, राखे नाहक लोक, स्वमानी सुखलडी जेवी, दुनीयांबाजी फोक; बुद्धिसागर ज्ञानेरे परमपद पाय छे. जीव० ॥५॥
प्रमुखरूप.
धीराना पदनो राग. प्रभुनु रुप पेखीरे, सात धात रंगाणी; प्रभुनुं रुप न्यारं रे, जाणे प्रेम मस्तानी. टेक. असंख्यप्रदेशी निर्भय देशी, रुपारुप सुहाय, साकार साचो निराकार पण, अनुभवथी ए जणाय; प्रभुनी शक्ति साचीरे, लीधी ध्यान थकी ताणी. प्र० ॥१॥ काल अनादि देह सृष्टिनो, कर्त्ता पर प्रयोग, अनंत निजगुण सृष्टि कर्ता, चेतन शुद्ध प्रयोग; बुद्धिसागर प्रेमेरे, प्रभुनी वात परखाणी. प्र० ॥ २ ॥
उपाधिमां दुःख.
राग धीराना पदनो. उपाधि दुःखदायीरे, उपाधिथी छे गोटा उपाधिमां भ्रांतिरे, थाय नहि कोइ मोटा. उपाधिक उपाधि छे मोटी व्याधि, मन चंचल करनार, उपाधिथी अनेक वांका, शांति सुख हरनार; उपाधिथी मोटारे, जुओ जगमा छोटा. उ० ॥१॥ दुःख दावानळ छे उपाधि, भूलावे निज भान, दुनियादारीमां लपटावे, उपाधि दुःखखाण; उपाधि अंधारुरे, उपाधिना नहि जोटा. उ० ॥२॥
For Private And Personal Use Only
Page #297
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૨૧૨
उपाधिना योगे चिंता, कदी न सुखनी आश, राजा राणा धनीक भोगी, बनीया उपाधि दास; बुद्धिसागर त्यागीरे, योगी मुनिवर मोटा. उ० ॥ ३ ॥
झळहळ ज्योतिः
राग धीरानाः पदनो. झळहळ ज्योत जागीरे, गगन गढ ठेराणी; अलबेलाने परख्योरे, ज्योतिमा ज्योति समाणि. २० टेक. केवळ कुंभक प्राणायामे, करी शक्ति उत्थान, अवघटवाटे अवळीवाटे, कीधुं अमृत पान; पश्चिमद्वार खोल्यु रे, रही नं वात कांइ छानी. झ० ॥ १ ॥ त्रीपुटीथी ब्रह्मरंध्रनो, कीधो मारग शुद्ध, सुरता साधी त्राटक योगे, बनीयो चेतन बुद्ध अनहद नादेरे, खेल खेले मस्तानी. झळहळ० ॥ २ ॥ गुरुकृपाथी युक्ति पामे, ते भेदे षड्चक्र, आपमतिथी खत्ता खावे, बनतो चेतन वक्र; गुरुगम ज्ञानेरे, शिवपद ल्यो ताणी. झळहळ० ॥३॥ पोताने पोते देखे ते, योगी सत्य गणाय, हलको नहि भारे मन समजो, अजरामर कहेवाय; अनंत शक्ति स्वामीरे, भेट्यो अनंत ज्ञानी. झळहळ० ॥४॥ पोथां थोथां वांचो लाखो, कांइ न आवे हाथ, तर्क विचारे केइक भूल्या, पाम्या न त्रिभुवननाथ; दीवाथी दीवो थाशेरे, सत्य वात समजाणी. झळहळ० ॥५॥ मनुष्यभवमां थाशो नकी, इश्वर आपोआप, बुद्धिसागर घटमां शोधो, जपतो अजपाजाप;
For Private And Personal Use Only
Page #298
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२९३ कोइक जीव समजेरे, श्रद्धाथी गुरुवाणी. झळहळ ज्योत जागीरे, गगन गढ ठेराणी, अलबेलाने परख्योरे, ज्योतिमा ज्योति समाणी. झळ० ॥६॥
सदाचार.
· राग धीराना पदनो. सदाचार सेवेरे, मंगल पद पावे, दोषवृन्द नासेरे, परम पद सुख थावे, सदा. टेक. टीलां टपकां छाप लगावो, घालो कंठे माळ, नीतिना सद्गुण धर्या विण, कदी न थाय कल्याण; मननी सारी चालेरे, जीव शिवपुर जावे. सदा. ॥ १ ॥ मननी शुद्धि आपे रुद्धि, मननी शुद्धि सत्य मननी शुद्धि मुक्ति आपे, मन शुद्धि शुभ कृत्य. शुद्ध चित्त धारेरे, संवर पद झट आवे. सदा.॥२॥ मन सुधर्याथी सर्वे सुधरे, मन मरवाथी मुक्ति; आपोआप स्वरुपे खेले, ए अंतरनी युक्ति, खराखरीनी वातोरे, ज्ञानीयोना मन भावे. सदा.।। ३ ॥ शुद्ध चित्तथी निर्मळ भक्ति, शुद्ध चित्तथी ध्यान; बाहिर दृष्टि बाहिर शोधे, जेने नहि निज भान. खांड वेराणी धूळमारे, कीडी गण वींणी खावे. सदा॥४॥ बाहिर आशा परिहरिने, करवू निर्मळ चित्त अंतरनो अलबेलो सेवी, थावू शुद्ध पवित्र; बुद्धिसागर प्रेमेरे. वस्तु स्वरुप गावे. सदा. ॥५॥
For Private And Personal Use Only
Page #299
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२०४
करोड लाखोपति.
___“ धीराना पदनो राग” करोड लाखो पतिरे, पैसादारो पाप करे; स्वारथमां लपटायारे, कहो केम करी तरे. करोड टेक. हिंसा जूटुं बोली भारे, चूसे परना प्राणः । लक्ष्मीथी मोटाइ माने, थाशे नहि कल्याण, लक्ष्मीथी मोटा खोटारे, मोहे नहीं ठाम ठरे. करोड. ॥१॥ पत्थर पर पंकज नवी उगे, दिनकरथी अंधकार, लक्ष्मीना लोभे जेम जाणो, धर्म न होय लगार; धनवंतना धतींगेरे कदी नहि कार्य सरे. करोड. ॥ २॥ लक्ष्मीदारोनी हाजीमां, पामर जीव तणाय, आशा तृष्णाथी वाह्या जन, धनीकना गुण गाय; उपाधिमां शान्तिरे, कदी नहि कोइ वरे. करोड. ॥ ३ ॥ लक्ष्मीदारो आगेवानो, कर्म पन्थमां होय, धर्म पंथमां मुनिवर मोटा, आगेवानो जोय; केइक मोही साधुरे, धनीकने करगरे. करोड. ॥ ४ ॥ लक्ष्मीदारोनी रहेमां जे, भूले चेतन भान, लक्ष्मीवंत कहेवे ते साचुं, माने जन अज्ञान; बुद्धिसागर ज्ञानेरे, कोइक जीव सत्य बरे. करांड. ॥ ५ ॥
दृष्टिराग.
धीराना पदना राग. दृष्टि रागे मुंझ्यारे, जगत् जन देखाता, पोतानो मत ताणेरे, मनमांहि बहु माता; दृष्टि रागे भूल्या भारे, खरे दिवस अंधार,
For Private And Personal Use Only
Page #300
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२९५
अंधारे अथडाता ज्यां त्यां, लाख चोराशी मझार. मोहथी हठीलारे, झट दुरगति जाता. दृष्टिः ॥ १ ॥ अंधाधुंधी दृष्टिरागे, मगर टेकनी चाल, पकडयुं पोते ते छे साचुं, बाकी मिथ्या झाळ; माने एम जूटुंरे, वळी मन हरखाता. दृष्टि० ॥२॥ काम रागने स्नेह रागनो, होवे जल्दी नाश; दृष्टि राग तजवो दुष्कर जग, तेना अवळा पास, जाणे पण नहि मानेरे, मिथ्या मदमाहि माता. दृष्टिः ॥३॥ दृष्टि रागथी सत्य न जडशे, भूलाशे निज धर्म; दृष्टि रागमा घेराएला, बांधे उलटां कर्मः वस्तुना स्वभावरे, धर्म तेने नहि पाता. दृष्टिः ॥ ४ ॥ दृष्टि रागथी जे मूकाया, धन्य तेनो अवतार, सत्य विवेके साचुं परखे, संतो पामे सार; बुद्धिसागर भावेरे, ज्ञानी जन परखाता. दृष्टि० ॥५॥
“गाडरीयो प्रवाह"
__“ धीराना पदनो राग” गाडरीया प्रवाहेरे, लोक अरे चाले छे; पोतानी मति ताणीरे, मनमांहि म्हाले छे, सार असार न जाणे कांइक, करे न तत्त्वविचार; अंधाने दोर्यो अंधे जेम, चाले जगमां गमार, धामधूमे मोह्यारे, धर्म पन्थ खाळे छे. गाडरी. ॥ १ ॥ भाषा ज्ञाने भरमाता केइ, राखे पंडित डोळ, गंभीर जिन वचनो नहि जाणे, चलवे मोटी पोल; सामासामी निंदेरे, द्वेषे दिल बाळे छे. गाडरी. ॥ २ ॥
For Private And Personal Use Only
Page #301
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२९.६
अनुभव वण अंधानुं टोलु, चलवे छे पाखंड, मूर्खजनोनी आगळ फावे, राखे जूठ घमंड; दृष्टिरागे खूचीरे, पामर सुख हारे छे. गाडरी. ॥ ३ ॥ कपटी पाखंड चलवे भारे, अज्ञजनो सपडाय, कलियुगमां कपटीनी पूजा, ज्यां त्यां नजरे जणाय; संतोपर भाव ओछोरे, कोइक तो विचारे छ.गाडरी. ॥ ४ ॥ संतसमागम करशे जे जन, ते लेहेशे सुख सार, बुद्धिसागर चित्तमां चेती, पोताने तुं तार; अनुभव ज्ञानेरे, सत्य पन्थ भाळे छे. गाडरी. ॥५॥
ॐकार स्तुतिः
छप्पय छंद. औ नम; मंगल सुखकारी जग जयकारी, ओ नमः मंगलपदनी जगमा बलिहारी; औ नमः अजरामर अनंत शक्ति विलासी, ओ नमः परमेश्वर शक्ति सत्य प्रकाशी. ओकार ध्याने आत्म शक्ति प्रगटती जगमां खरी, बुद्धिसागर प्रणव मंगल ध्यानथी सिद्धि वरी. ॥१॥ अगम निगमनो सार प्रणव ओकार विचारो, परब्रह्मनी शक्ति खीलववा मनमा धारो चित्त दोषनो नाश करे छे जाप कर्याथी, सात्विक शक्ति प्रगटावे छे ध्यान धर्याथी. अलख अगोचर रुप वरवा प्रणव साचो मंत्र छे, बुद्धिसागर सत्य निर्भय देश वरवा यंत्र छे ॥२॥
For Private And Personal Use Only
Page #302
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
લ
सम्यग् लही वाच्यार्थ हृदयमां रटना धारो, अनंत कर्म कटाय मणत्रयी चित्त विचारो; सालंबन छे ध्यान मगवतुं शास्त्रे भाख्युं, धरी प्रणवनुं ध्यान योगियोर सुख चारुपुं. ओंकार मंगल आद्य छे जग श्वासोश्वासे ध्याइए, बुद्धिसागर शिव सनातन सिद्ध लीला पाइए. ॥ ३ ॥ हृदयकमलमां प्रणव स्थापना प्रेमे करीये, कोटी भवनां पाप घडीमां क्षण हरीए, भगटे लब्धि चित्र वचननी सिद्धि थावे, अन्तर त्राटक सिद्ध करे ते स्थिरता पावे. आत्मशक्ति खीलवाने, ॐकार अर्थ विवेक छे, बुद्धिसागर प्रणव मंगल ध्यान साची टेक छे. आनंद अपरंपार हृदयमां झळके ज्योति, असंख्यमदेशी चिघन चेतन परखे मोती; नाते माया हूर हृदयमां ब्रह्म प्रकाशे, परम भावनी ध्यान दशामां हंस विकासे; प्रेममशाला दीप्याला ब्रह्म अमृत पीजीए, बुद्धिमागर ब्रह्मलीला पामी निशदिन रोझीए. ॥ ५ ॥ प्रणवमंत्री निंदा विकथा दोष टळे छे,
प्रणवमंत्री अष्ट सिद्धिओ तुर्न मळे छे;
मंत्री संयम शक्ति प्रगटे सारी, प्रणवमंत्रथी झळहळ ज्योति जगजयकारी, मणवमंत्र ओंकारमा दिलमां ध्यातां सुख भासतं; बुद्धिसागर मण मंत्र सत्य तच प्रकाश. नाभिकमलमां प्रणव मंगने मेमे स्थापो, स्थिरता अंतर्मुहूर्त्त थवाथी टळे बळापो;
६८
For Private And Personal Use Only
॥ ४ ॥
8
॥ ६ ॥
Page #303
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अखंड ज्योति झळके झळहळ सुरता साधे, वरसे समता नूर आत्मनी शक्ति वाधे; अखंड स्थिर उपयोगमाहि चैतन्य शक्ति दिनमाण, बुद्धिसागर अनुभवे त्यां देह स्वामी जगधणी. ॥७॥ नाभिकमलमां असंख्यत्रदेशी चेतन ध्यावो, चिदानंद भगवान इशने भावे भावो; रुचक प्रदेशो अष्ट सिद्ध सम निर्मल सारा, अष्ट सिद्धि दातार धरो मनमा सुखकारा. आत्मसिद्धि प्राप्त करवा ओंकार मनमां ध्याइए, बुद्धिसागर प्रणवमंत्रे सिद्धलीला पाइए. ॥८ ॥ अगम्य शब्दातीत प्रणवथी सहेजे मळशे, रजस् तमो गुण दोष प्रणवथी सहेजे टळशे; सात्विक गुणनी वृद्धि परंपर शाश्वत लीला, निर्भय शुद्ध स्वरुप रंगमां भव्य रसीला. देव दानव भूत कोडी प्रणवथी पाये पड़े, बुद्धिसागर अकल निर्भय तत्व मौक्तिक कर चडे ॥९॥ प्रणवत्रना अर्थयकी चेतनने ध्यावो, पामी नरभव दुर्लभ लेशो आत्मिक ल्हाको; परम इश भगवान खरेखर चेतन परखो, प्रणवमंत्रथी चेतन ध्याने मनमा हरखो, परम इश्वर प्राप्त करवा प्रणव साचो ध्याइए; शुद्धिसागर ध्यान लोला प्रगवांत्रे पाइए. ॥१०॥ हृदय कमलमां प्रणवत्रने मे स्थापो, निजगुण शक्ति खोलवी निजने सहेजे आपो; विषय विकारो त्याग करी अंतर गुण धारो,
For Private And Personal Use Only
Page #304
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२९९
निर्विकल्प उपयोग धरी चानने तारो; आत्मजीवन उच्च करवा प्रणव सत्योपाय छे, बुद्धिसागर प्रणवमंत्रे सहज लीला थाय छे. ॥ ११ ॥ प्रणवमंत्रथी चित्ततणा सहु दोष टळे छे, प्रणवमंत्रथी सात्त्विक गुणमा चित्त मळे छे; प्रणवमंत्रथी संयमनी प्रगटे छे सिद्धि, प्रणवमंत्रथी आत्यंतिक सुखनी छे रुद्धि प्रणवमंत्र स्वप्न निर्मल देवं दर्शन थाय छ, मोहग्रंथी भेद थातां शक्ति झट परखाय छे. ॥१२॥ हृदयकमळमां स्थिरोपयोगे ध्यान खुमारी, हृदयकमळमां स्थिरोपयोगे शिव तैयारी हृदयकमळमां स्थिरता साधी शिवपद लीजे; प्रणवमंत्रने ह्रदयकमळमां नित्य वहीजे, असंख्यप्रदेशी आत्मदर्शन कीजीए प्रेमे सदा, बुद्धिसागर आत्मदर्शन स्थिरोपयोगे छे मुदा. ॥ १३ ॥ पश्यति प्रगटेछे त्राटक योगे साची, हृदय कमळमां ध्यान धरीने रहेशो राची; शुद्ध विचारो परातणा पण प्रगटे साचा, पश्यंति प्रगट्याथी निर्मल साची वाचा. असंख्यप्रदेशी ध्याववाथी पश्यति विकसे खरी, बुद्धिसागर परा पश्यति युक्ति झट दिलमां धरी. ॥१४॥ परा पश्यंतिमां तो प्रभुतुं रुप जणातुं, अनुभवथी योगीश्वर वचने सत्य ग्रहातुं शुद्ध स्वभावे आत्मिक दर्शन तुर्त पमातुं, आत्मिकभावे अनंत सुख तो दिलमां थातुं.
For Private And Personal Use Only
Page #305
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सहज चेतन ध्यान करवा प्रणव प्रथमोपाय छ, बुद्धिसागर सहज रुद्रि प्रणवमंत्र थाय छे. ॥ १५ ॥ परमेष्टि आधाक्षरथी ओंकार भण्यो छे, समंत्रमा आयमंत्र ओंकार गण्यो छः सर्व मंत्रमा प्रणवमंत्र के शिव सुखकारी,
आपक्षिक जिन वचनो समजो नर ने नारी. प्रणवमंत्रे सत्वशक्तिज प्रगटती दिलमां खरी, (द्धिसागर प्रणवमंत्रे शांतता मनमां दरी. ॥१६॥ प्रणवमंत्रमा सर्व मंत्रनो सार समातो, प्रणवमंत्रनो महिमा जगमां बहु वखणातो; प्रणवमंत्रो जगमा मुनिवर प्रेमे साधे, प्रणवमंत्रथी सूर्यसमो महिमा जग वाधे. कंठचक्रमां प्रणवमंत्रेज वचनसिद्धि थाय छ, टळे पिपासा प्रणवमंत्रे कंठसंयम थाय छे. ॥१७॥ त्रिपुटीमां प्रणवमंत्रनुं ध्यानज साधु, तंद्रावस्था जयकारी ओंकारे राचं; प्रणवमंत्रे दर्शन आपे अनेक देवो, सालंबन कार मंत्रने प्रेमे सेवो. सालंबन ओंकारमंत्र देवदर्शन थाय छे. बुद्धिसागर प्रणवमंत्रे सत्यशांति पमाय छ. ॥१८॥ दर्शन आच्छादन टनुं ओंकार प्रभावे, त्रिपुटीमां प्रणवमंत्रथी ज्ञानी गावे त्रिपुटीमां सालंबन संयमनी रीति, मन वश करवा माटे सालबननी नीति. त्रिपुटीमां प्रणवम यी द.प सघळा झट टळे,
For Private And Personal Use Only
Page #306
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बुद्धिसागर प्रणवमंत्रे इच्छीए ते झट मळे. ॥१९॥ ब्रह्मरंध्रमां प्रणवमंत्रने प्रेमे स्थापो, ब्रह्मरंध्रमां प्रणव मंत्रना करीए जापो ब्रह्मरंध्रमां परम समाधि मंगलकारी, उपादान निमित्त हेतुना पुष्ट थनारी. प्रणवमंत्रना ध्यान योगेज लब्धि रुद्धि प्रगटती, बुद्धिसागर गुरुकृपाथी प्रणवमंत्रे छे गति. ॥२०॥ गुरुकृपाथी प्रणवमंत्रनी सिद्धि थावे, गुरुकृपाथी सर्व सिद्धियो प्राणी पावे; सुगुरा जनने प्रणवमंत्र तो तुर्त फळे छे, सुगुरा जनने प्रणवमंत्र, सार मळे छे प्रणवमंत्रनो सत्य महिमा माणसा आवी रच्यो, सुखाब्धि गुरुना प्रतापे बुद्धिसागर मन पच्यो. ।। २१ ॥
दुनिया बगीचो.
गझल. जगत्नी बागने देखं, विवेके सत्यने पे, भ्रमर थइ बागमां रमतो, गमे त्यां चित्तथी भमतो. ॥ १ । जगत्ना वागनां पुष्पो, खीलेलां ते पडे छे तुर्त; खोलीने कोइ खरेछेरे, इतरने कोइ हरेछेरे. ॥२॥ जगत्नो बाग स्वमासम, नहि ते नित्य रहेनारो, भ्रमर तुं भूल नहि मिथ्या, जगत्थी सुख नहि क्यारे.॥३। जगत्ना बागमां कूवा, पडया ते भ्रांतिथी मुआ; जगत्ना बागमां दुःखो, मळे नहि मोही सुखो. ॥४॥ भ्रमर तुं भूल नहि भोळा, तगे छे मृत्युना डोळा; जगत्ना बागमां भ्रांति, मळे नहि सत्य के शांति. ॥५॥
For Private And Personal Use Only
Page #307
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३०२ भ्रमर तुं भूल नहि शाणा, ग्रही ले ज्ञान ने दाना; वखत आ वेगथी वहेतो, भ्रमरजी चित्तमा चेतो. ॥६॥ अलखना देशमां चालो, स्वरूपानंदमां म्हालो; बुद्धयन्धि धर्मनी वाडी, भ्रमर तुं थाव गुल्तानी. ॥७॥
॥ मनमानेलु मीलु.॥
पैला पैसा पैला तारा-ए राग. सहुथी मीटुं मन मानेलं, मन मानेखें प्यारंरे; साकर मीठी द्राक्षा मीठी, दूध ज लागे सारुंरे. सः ॥ १ ॥ नारी सारी यारी सारी, प्यारी घेवर घारीरे; सहुथी मन मानेली वस्तु, सारी जगमा धारीरे. स० ॥२॥ भणतर सारु गणतर सारु, सारु परहितकारीरे; सहुथी सारु मन मानेलं, समजो नर ने नारी. स० ॥ ३ ॥ साकर जगमा सहुने मीठी, रासभने छे अनीठीरे; लीबोळी मीठी वायसने, नजरे जगमां दीठीरे. स० ॥ ४॥ वाळकनेतो रम्मत व्हाली, वाममार्गीने काळीरे; व्यभिचारीने वेश्या व्हाली, मनहर बहु लटकाळीरे. स० ॥५॥ पपेयाने वर्षा प्यारी, पय व्हालुं मंजारीरे; पंडितने तो विद्या व्हाली, मुनि मन सपता सारीरे. स० ॥६॥ दगा प्रपंचो प्यारा दुर्जन, सज्जन गुण जयकारारे; पतिव्रतामन स्वामी व्हालो, शिवने सर्पना भारारे. स० ॥ ७ ॥ सन्तोना मन व्हाला ज्ञानी, योगिना मन ध्यानीर; मुसलमानने पातर व्हाली, जातर कणबी मानीरे. स०॥८॥ घुअडने मन रात्री व्हाली, दीवस जनने प्यारोरे; जमाइ काजल स्त्रीने प्यारू, पंखीना मन मालोरे. स० ॥ ९ ॥
For Private And Personal Use Only
Page #308
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
__३०३ तर्कवादीने चर्चा व्हाली, ब्राह्मण मोदक प्यारोरे; उंघणने मन शय्या व्हाली, पशुओने मन चारोरे. स० ॥१०॥ जेवी मननी वृत्ति तेवू, मीटुं सहुने लागेरे; वृत्ति फर्याथी प्यार फरे छे, वृत्ति मनथी जागेरे. स० ॥११॥ पुद्गलमां जो इष्टवुद्धि तो, पुद्गल लागे प्यारुरे; चेतनमां जो इष्टद्धि तो, चैतन्य सदा छे सारुरे. स० ॥१२॥ आत्मज्ञान विना तो जगमां, प्यारु नहि परखातुंरे; पुद्गल वस्तु प्यारी माने, विविध दुःख पमातुंरे. स०॥१३॥ मन मानेलं शुभ न अंते, मन भटकावे भारीरेः । राजन साजन महाजननी पण, थावे खूब खुमारीरे. स० ॥१४॥ अज्ञाने मन मान्युं खोटं, भव्यो जुवो विचारीरे; जुओ धवळशा दुःख बहु पाम्यो, उमर आखी हारीरे. स०॥१५॥ अज्ञाने लोभीए मनमां, धनने मान्युं पारुो; राग द्वेषमां बहु लपटातो, करतो खूब नठारुरे. स० ॥१६।। अज्ञानी दारुथी दुःखी, मांसाहारी पापीरे; अज्ञाने खोटाने सारु, मानी आण उथापीरे. स० ॥१७॥ पापकर्ममां इष्टबुद्धिथी, केइक नरके पडियारे; दुर्मतिने सारी मानी, पापकर्मथी नडियारे. स० ॥१८॥ हिंसामां पण धर्मनी बुद्धि, दुर्मतिथी प्रगटेरे; कुतकोथी पापने पोषे, धर्म कर्म सहु विघटेरे. स० ॥१९।। जिनवचनामृत पान कर्या वण, सत्यमति नहि सुझेरे, आपमतिथी अवळो चाले, ते प्राणी नहि बुझरे. स० ॥२०॥ पुद्गलथी न्यारो छे चेतन, अजरामर अविनाशीरे, रत्नत्रयीनो स्वामी पोते, सत्यानंद विलासीरे. स० ॥२१॥ परब्रह्मस्वरुपी पोते, निजगुण कर्ता भोक्तारे,
For Private And Personal Use Only
Page #309
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३०४ उपशम क्षयोपशम ने क्षायिक, भावे निजगुण योक्तारे. स० ॥२२॥ इष्टबुद्धि चेतनमा साची, सर्वज्ञे एम भाख्युरे, चेतनमा आनंद भर्यो छे, सत्य वचन ए दाख्युरे. स० ॥२३॥ मन माने ते करशे जे जन, ते जन खत्ता खाशेरे, सुज्ञाने साचं. ते प्यारु, माने ते मुख पाशेरे. स० ॥२४॥ सद्गुरु सुखसागर पदपंकज, भ्रमरसमो मुखवासीरे, बुद्धिसागर प्रभुगुण गातां, बनीयो विश्वविलासीरे. स० ॥२५॥
॥ आत्मसत्तागान ।।
ॐ नमः निशानी कहा वतावुरे-ए राग. चिदानंद शुद्ध स्वरुपीरे, असंख्य प्रदेशापार. चिदानंद. रुपारुपी तुं प्रभुरे, नित्यानित्य विचार; अस्ति नास्तिमय तुं प्रभुरे, एक अनेकाधार. चिदानंद. १ सच्चिदानंद तुं सदारे, अजरामर सुखकार; सिद्ध सनातन शोभतोरे, शुद्ध पर्यायाधार. चिदानंद. २ काळ अनादि अशुद्धतारे, तेनो तुं हरनार; आत्मज्ञान ध्याने प्रभुरे, आपोआप तरनार. चिदानंद.. अकळ अचळ निर्मल प्रभुरे, चेतन तुं भगवान् । निरुपाधि पद पामवारे, करतुं निर्मल ध्यान. चिदानंद. ४ आत्मिक परिणति ध्यावतारे, आत्मिकगुण प्रगटाय; उपशमादि धर्मनोरे, व्यक्तिभाव झट थाय. चिदानंद. ५ निर्भय नित्य स्वरुपमारे, आनंद अपरंपार; बुद्धिसागर ध्यानधारे, मंगल शर्म थनार. चिदानंद. ६
For Private And Personal Use Only
Page #310
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३०५
नवधाक्रिया भक्ति स्वाध्याय.
दुहा.
वर्धमान जिनवर नमुं, चोवीसमा सुखकार, शासन यति तति पति नं, क्षायिक गुण धरनार. ॥१॥ सद्गुरु पदपंकज नमी, गाशुं भक्ति स्वरूप; नवधा भक्ति इशनी, करतां विघंटे धूप. नवधा भक्ति ने करे, एक चित्तथी नित्य, परम महोदय पद वरी, होव शुद्ध पवित्र. अथ प्रथम श्रवणक्रिया.
11211
For Private And Personal Use Only
॥३॥
अनंत गुण पर्यायमय, चेतनद्रव्य सदाय; श्रवण करे बहु मानथी, प्रथम क्रिया सुखाय ॥ १ ॥ राग केदारी अथवा आशाउरी.
श्रवण करो सम्यक् चेतननुं, जिनभाषित जीव द्रव्यरे; त्रैकालिक स्थित चेतन अस्ति, नित्य द्रव्यार्थिक भव्यरे श्र. १ काल अनादि परपरिणामे, कर्त्ता भोक्ता कथायरे, भेदज्ञानी कर्त्ता भोक्ता, निजपरिणामनो थायरे. निज परिणामे परिणमवाथी, पर परिणमना नाशरे, आविर्भावे मोक्ष कहावे, सिद्धबुद्ध शिववासरे, मोक्ष उपायो छे जगमांहि, ज्ञानादिक ऋण रत्नरे, पट् स्थानकना श्रवणथी समकित औपशमादि प्रयत्नरे श्र. ४ समतिदेश ने सर्व विरतिनुं, कारण श्रवण छे सत्यरे, आत्मानुभव अमृत हेतु, प्रथमक्रिया शुभकृत्यरे. जेम जांगुली मंत्र श्रवणथी, सर्पादिक विष नाशरे, तेम जीवद्रव्य श्रवण महिमाथी, मोहाहिविष प्रणाशरे. श्रवण. ६
श्रवग. ५
३९
श्रवण. २
श्रवण. ३
Page #311
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आत्माऽसंख्य प्रदेशमयी छे, अक्रिय रूपारूपरे, प्रतिप्रदेशे अतगुणो छे, पर्यायानंत चिद्रुपरे. অষণ ও संग्रहनयथी सिद्धसमाना, चारगतिना जीवरे, भेदज्ञानथी व्यक्तिप्रकाशे, होवे जीव ते शीवरे. श्रवण. ८ एकतानता श्रवण प्रतापे, प्रगटे अनुभव तानरे, कर्मवर्गणा त्वरित क्षरंती, निर्मल हंस ज्यु भानुरे. श्रवण. ९
आण करी शुद्धात्म द्रव्यनु, पाम्या मोक्ष अनंतरे, श्रवण क्रिया छे चेतन पूना, राची रह्या त्यां संतरे. श्रवण १० चिदानन्द चेतन देह वसियो, तेनुं श्रवण सुखकाररे, बुद्धिसागर श्रवणक्रियाथी, धन्य धन्य अवताररेः श्रवण. ११
अथ द्वितीय कीर्तन क्रिया.
दुहा. कथन करे जीव द्रव्यर्नु, गुण पर्यायाधार, द्रव्य अने पर्यायथी, नित्यानित्य विचार.
व्हाला वीर जिनेश्वर ए-राग. जीवना कीर्तनथी शिव शाश्वतसुख पमायछेरे, बीजी कीर्तन क्रिया करवाथी दुःख जायछरे; कीर्तन करतां दुःख टळेछे, कामादिकनो वेग गळेछे, चेतन कीर्तन करतां समाकित निर्मल थायछेरे. जीवना. १ अनुभवसुखनी ल्हेरी प्रगटे, मोह मायादिक वेगे विघटे, चेतन कीर्तन योगे क्षायिक मुख पमायछेरे. जीवना. २ वचन क्रियाना दोषो नाशे, चेतन सूर्यसमान प्रकाशे, चेतन कीर्तनथी परने उपकार करायछेरे, जीवना. ३ परा पश्यंतीथी प्रभु गावो, करशो निर्मल प्रभु वधावो,
For Private And Personal Use Only
Page #312
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૩૦૭
दीजे,
जीवना. ६
जीवना. ७
परापश्यंतीथी कांडक परखायछेरे. मध्यमा वैखरी कीर्तन कीजे, अबळे पन्थे चित्त न आत्मिक गुणनं कीर्तन सत्य सदा निरखाय छेरे. जीव कीर्तनथी कर्म न लागे, चेतन आपस्वभावे जागे, भवसागरना कांठे झट उतरायछेरे. वचन वर्गणाथी जिन बोधे, कर्ममेलने वेगे रोधे, ज्ञानि वचनथकी तो सत्यासत्य जणायछेरे. झळहळ ज्योति झट प्रगटावे, मिध्यातमने दूर हठावे; चेतन कीर्तन योगे अर्पितधर्म ग्रहायछे रे. ब्रह्मस्तaani स्थिरोपयोगी, परपुदगल ग्रहतो नहि योगी; निर्भय अलखधूनमां परमानन्द पमाय छे रे. प्रगटे सत्यानन्दखुमारी, निजपरने कीर्तन उपकारी; कीधां अनंत भवनां पातिक क्षणमां जाय छे रे. जीवना. ॥ १० !! पुनः पुनः गावो चेतनने, स्थिर करी निजगुणमां मननेः सद्गुरु बुद्धिसागर कीर्तन भक्ति पमाय ले रे, जीवना. ॥११॥
जीवना ॥८॥
जीवना ॥९॥ !
अथ तृतीय सेवनक्रिया.
दुहा.
अर्हन्तादिक सेवना, निज सेवा संकेत; परमेश्वर पण जीव छे, निजसेवा गुण हेत. जीवद्रव्यनी सेवना, निज उपयोग थाय शुद्ध रमणता आत्ममां, सेवा शुद्ध कथाय. पुख्खल वह विजये जयोरे ए राग सेवा सुखकर आत्मनीरे, आत्मस्वभावे थाय, परपुल दूरे दलेरे, सेवा शुद्ध कायरे भविका:
For Private And Personal Use Only
जीवना. ४
जीवना. ५
॥ १ !!
॥ २ ॥
Page #313
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३०
सेवो चेतन द्रव्य, साचु एह कर्तव्यरे. भ० ॥१॥ पंच परमेष्ठिनी सेवनारे, तेना अनेक छे भेद; "जिन आणाथी सेवनारे, करतां नासे खेदरे. भ० ॥२॥ देव गुरु ने धर्मनीरे, निश्चय ने व्यवहार; सेवा करतां प्राणियारे, भवजलधि तरनाररे. भ० ॥ ३ ॥ उपादान निमित्त छेरे, सेवन मुख भरपूर सात नयोथी सेवतां रे, वाजे मंगल तूररे. भ०॥ ४ उपादेय चेतन प्रभुरे, सत्य सेवन परमार्थः । निज सेवन वण जाणजोर, बाकी सहु बाह्यार्थरे. भ० ॥५॥ वार अनंति सेवीयां रे, पुद्गल द्रव्य अनंत; तृप्ति न पाम्यो जीवडार, आव्यो नहि भवअंतरे. भ० ॥ ६॥ जड पुद्गल धन देहनीरे, सेवा दुःख देनार; निज जाति शुद्ध द्रव्यनीरे, सेवा मुख करनाररं. भ० ॥७॥ अनंतगुण पर्यायीरे, जीव द्रव्य जयकार; पदकारक शुद्ध जीवमारे, निजगुण कर्ता धारर. भ० ॥८॥ अवली परिणति परिणम्यां रे, षट्कारक जीवमाहि; काल अनादिथी जाणीने रे, कीजे उद्यम उत्साहरे. भ० ॥९॥ भेदज्ञानथी भावीयरे, स्थिर चित्ते करो सेवा जीव सेवे सहु सेवीयुरे, आनंद अनुभव मेवरे. भ० ॥१०॥ शुद्ध परिणति शक्तिथीरे, सेवो आपो आप; बुद्धिसागर सेवनारे, मुक्तिपुरीनी छापरे. भ० ॥ ११ ॥
अथ चतुर्थी वचनक्रिया स्वाध्याय.
आत्मप मनमां धरी, वचन भक्तिकर जीव; वचन भक्ति महिमा वडो, थावे जीवनो शिव. ॥१॥
For Private And Personal Use Only
Page #314
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
३०२
राग केदारी.
वचन थकी गावो चेतनने, शाणा नरने नारीरे;
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वचन भक्ति बहु पाप हरे छे, शिव मन्दिरनी बारीरे वचन ॥१॥ वचन भक्ति शक्ति प्रगटावे, अतिशय आनन्द थावेरे; शुद्ध प्रेमधी गावो चेतन, परम प्रभु परखावेरे. वचन. ।। २ ।। शुद्ध स्वरूपने क्षण क्षण गावो, वचन थकी ए बधावोरे; वचन भक्तिथी मननी स्थिरता, युक्ति एचित्त ठरावोरे. वचन. ॥३॥ वचन थकी गातां चेतनने, पर परिणमता नासेरे; परापश्यन्ती मध्यमा वैखरी, भाषा शक्ति प्रकाशेरें. वचन ॥ ४॥ नाद योगमां वचन भक्तिथी, सहेजे प्रवेश सुहावेर; अनहद तूर वजावे योगी, सूक्ष्म वचनना भावेरे. चेतन गातां स्थिरता होवे, मोहमायादि विघटेरे; देह तंबु वचनना खरथी, अनहद तानज प्रकटेरे. वचन. ६ ॥ वचन योगी होवे मन योगी, अंते थाय अयोगीरे; बुद्धिसागर वचन भक्तिथी, परम प्रभुता भोगीरे. वचन ॥ ७ ॥
वचन. ।। ५ ।।
अथ पंचमी वन्दनक्रिया.
दुहा.
शुद्ध चैतन्य स्वभावने, वन्दो वारंवार ज्ञानादिक आधारथी, चेतन पूज्य विचार. निज सरखा सहु जीवने, जाणी हर्षित होय; जाणी सिद्धसम जीवने, वन्दे भावे जोय. सिद्ध जगत् शिर शोभता - ए राग. इन्दु चेतन द्रव्यने, पुद्गल द्रव्यथी भिन्न; आनंदघन प्रभुप्रेममां, स्थिरोपयोगे हुं लीन. अर्हन्तादिक पंच जे, वंदन शुभ व्यवहार; अर्हन्तादिक रूप छे, जीव ते निश्चय धार.
For Private And Personal Use Only
१ ॥
॥ २ ॥
बंदु. ।। १ ।।
बंदु ॥ २ ॥
Page #315
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बंदु.॥३॥
वंदु. ।। ४ ॥
ज्ञानरविथी प्रकाशतो, दर्शन चन्द्र समान; चेतन द्रव्यने वन्दना, करतां नासे छे मान. चेतन त्रण्य प्रकार छे, बाहिर अन्तर जाण; परमेश्वर अवबोधथी, निश्चय समकित स्थान. स्वपर प्रकाशक जीवने, वंदन करतां कल्याण; संग्रहनय कृत दृष्टिथी, वंदन सर्व प्रमाण. चेतन लक्षण चेतना, सातनयोथी विचार; चेतननी शुद्धव्यक्तिथी, वन्दन वार हजार. निश्चय ने व्यवहारथी, चउनिक्षेप प्रमाण; द्रव्यने भावथी वंदना, चेतन गुणगण खाण. अन्तर्यामीने वंदना, करतां मंगलमाल; बुद्धिसागर वंदना, चेतन शुद्ध विशाल.
वंदु. ॥५॥
वंदु.॥ ६॥
वंदु. ॥ ७॥
वंदु.॥ ८॥
अथ षष्ठी ध्यानक्रिया.
दुहा. आर्त रौद्र वे त्यागीन, धरीए धर्मनुं ध्यानः शुकलध्यानने ध्यावतां, चिदानंद भगवान्.
___ सांभळजो मुनि संयमरागे-एराग. चेतन धर तुं ध्यान स्वरूपy, परपरिणति दूरवारीरे, ध्याने कर्म खरे छे सघळां, शुद्ध परिणति धारोरे. चेतन. १ पदस्थ पिंडस्थ रूपस्थ रूपातीत, चार ध्यान चित्त धरीएरे धर्मध्यान ने शुक्ल ध्यानथी, शाश्वत सुख झट वरीएरे. चे०२ सालंबन ध्याने चित्त ठारी, अशुभ विचारो हरीएरे; निरालंबन ध्यान धरीने, भवसागर झट तरीएरे. ०४ विक्षिप्त यातायात सुश्लिष्ट, मुलीनता मनभेदरे; अनुक्रमे अभ्यास करीने, टालो सघला खेदरे. चेतन. ॥ ५ ॥
For Private And Personal Use Only
Page #316
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३१६
चेतनध्याने निर्मलशक्ति, भवभय दुःख निवारेरे;
आत्मिक रुद्धि प्रगट करीने, कर्मकलंक विदारेरे. चेतनः ॥ ६ ॥ अंतरना उपयोगे रहीए, अनुभवसुखडां लीजेरे;
आपोआप स्वरूपे रमतां, अनुभवामृत पीजेरे चेतन ॥ ७ ॥ सहजस्वरूपी अन्तर्यामी, ध्याने चेतन परखारे;
अनंतगुणपर्याय विलासी, निरखी मनमां हरखोरे. चे० ।। ८ ।।
परममहोदय शिवमुख स्वामी, घटमां शोधो ध्यानीरे; बुद्धिसागर ध्यान दिवाकर, प्रगटे वात न छानीरे. चेतन ||९ ॥
अथ सातमी लघुतक्रिया.
दुहा. लघुता प्रभुता आपती, करे अहंता नाश, राग द्वेष दूरे टळे, मुक्तिपुरीमां वास;
॥ राग केदारो ॥
लघुतामां प्रभुता सुखकारी, लघुता गुण करनारीरे, चेतननी शक्ति केळववा, साची के जयकारीरे. लघुता. १ पुद्गल भारे चेतन हलको, उर्ध्व सात राज जावेरे, कादवथी न्यारी जेम तुंबडी, जल उपर जेम आवेरे. ल. २ पुद्गल ममता दीनभावयी, लघुता भवदुःखकारीरे, तेवी लघुता आत्मिकशक्ति, प्रगटपणे हरनारीरे. चेतनरूद्ध अनंती प्रगटे, तोपण गर्व न थायरे, पूर्णोदकभृत कुंभनी पेठे, जरा नहीं छलकायरे. जे देखे ते चेतन नहि तुं, नहि देखे ते तुजरे, आपस्वभावे खेले हंसा, पडशे अंतरनी सुझरे. ताळी लागी अनुभवयोगे, मभुता घटमां पेशीरे, कर्मवर्गणा खरती जे अंशे, लघुता ते अंशे प्रवेशीरे. ल. ६
For Private And Personal Use Only
ल. ३
ल. ४
ल. ५
Page #317
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३१२ क्षायिकभावे स्नातकचरणमा, लघुता पूर्ण प्रकाशेरे, निर्मलता लघुता चेतनमां, सहजोपयोगे विकाशेरे. ल. ७ उच्च नीवन लघुता करनारी, दोष मानादिक विघटेरे, बुद्धिसागर अनुभवभानु, झळहळ ज्योति प्रकटेरे. ल. ८
अथ अष्टमी एकताक्रिया.
दुहा. एकीले संसारमां, भटक्यो वार अनंत, कोइ न साथै आवतुं, चेत चेत जीव संत. ॥१॥ परभव जातां जीवनी, कोइ न आवे साथ, माया ममता त्यागीने, सेवो त्रिभुवननाथ.
नेमिजिन अरजी आ उरमा स्वीकारो-ए राग. चेतनजी कोइ न दुनियामां तारु, माने छे फोक मारु. मारु चे० सगां संबंधी कोइ न तारु, परभव जाय तुं एकीलो, कायानी माया साथ न आवे, चतुर चित्तमां चेती लो. चे०१ एकीलो पुण्य पाप ज्यां त्यां भोगवतो, एकीलो पुण्य पाप कर्ता, एकीलो आवतो ने एकीलो जावतो, एकीलो पुण्यपाप हर्ता.चे. शुद्ध चेतन तुं पुद्गलथी न्यारो, चेतन एक तुहि सारो, द्रव्यपणे तुं एकज नित्य छे, गुणपर्याय आधारो. चे. ३ पुद्गलभाव सहु भिन्न विचारी, विनति आ उरमां उतारी; एकत्व भावना भावो हृदयमां, पामशो भवजलपारी. चेतन. ४ एकत्व भावनाथी जीव अनंता, पाम्या छे शिवपद साचुं; पामे छे पामशे जीव अनंता, एकत्व भावमांहि राचुं. चेतन. ५ शुद्ध स्वरूप करनारी छे एकता, अंतरमां थाय उजियारी; बुद्धिसागर शुद्ध एकत्व भावना. मंगलपद करनारी. चेतन. ६
For Private And Personal Use Only
Page #318
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३१३
अथ नवमी समता क्रिया.
दुहा.
समता शिवसुख वेलडी, समता सुखनुं मूळ; समता संयम फल कर्तुं, समता वण सहु धूळ. समताथी शिवमुख मळे, समता आनंदपूर; परम महोदय प्राप्तिमां, समता मंगलतूर. राग केदारो. समता शाश्वत सुख करनारी, निजपरने उपकारीरे; समान वृत्ति शत्रु मित्रपर, भावदया जयकारीरे. समता. ॥ १ ॥ वस्तु स्वभावे चेतन स्थिति, वर्तन समता धारोरे; चेतनमा उपयोग रमणता, समता शुद्ध विचारोरे. समता . ||२|| केवलज्ञान ने केवल दर्शन, समताथी झट थावेरे;
१ ॥
For Private And Personal Use Only
॥ २ ॥
क्षपकश्रेणिए ध्याने चढतां, समता सुख परखावेरे. समता . ||३|| सर्वयोग शिरोमणि समता, समता छे त्यां मुक्तिरे;
अनुभवानंद लहरो प्रगटे, क्षायिक गुणगण युक्तिरे. समता. ॥४॥ षड्दर्शनम समता भावित, चेतन मुक्ति वरंशेरे;
समता. ||६||
धर्मक्षमा समता गुण मोटो, जे पामे ते तरशेरे. समता. ||५|| समता सरोवर मुनिवर हंसा, अनुभव जलमां झीलेरे; अनंत चेतननी शक्तियो, समतायोगे खीलेरे. समता स्पर्शमणिथी मोटी, समता सुखनी क्यारीरे; समता धारक संतजनोनी, हुँ जाउ बलीहारीरे. समता. ||७|| समता अनुभव योगे खुमारी, संतजनाने प्यारीरे; बुद्धिसागर समतासंगी संघ सकळ जयकारीरे, समता ॥८॥ कलश - राग धन्याश्री.
नवधा भक्ति रसाळ, करीए नवधा भक्तिरसाळ; निजपर आलंबन जयकारी, किरिया मंगलमाल. करीए. ॥१॥
४०
Page #319
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शुकलपक्षीयाजीवनेरे, नवधा किरिया भव्य किरिया भक्ति एकतारे, आत्मोन्नति कर्तव्यरे. करीए. ॥२॥ जिन पूजा ते निजभणीरे, चेतन भक्ति उदार; चेतन शक्तिं जगाववारे, निमित्त छे व्यवहाररे. करीए. ॥३॥ नवधा किरिया आत्मनीरे, क्षायिक सुख देनार; निशदिन कीजे भावधीरे, शाश्वतपद करनाररे. करीए. ॥ ४ ॥ नवधा किरिया भक्तिथीरे, नरनारी तरनार; किरिया साची सुख करीरे, कर्माष्टक हरनाररे. करीए. ॥ ५ ॥ रागद्वेष किरिया त्यजीरे, वारी मनना दोष नवधा किरिया जे करेरे, ते पामे सुख पोषरे. करीए. ॥६॥ ओगणीश चोसठ सालमारे, अषाडपंचमीदीन; शुकल पक्षमा शुक्ल जीवनी, किरिया गुणगणपीनरे. करीए. ७ माणसा ग्रामे भावधीरे, रचना कीधी बेश; सुखसागर गुरुभक्तिथीरे, आनंद होय हमेशरे. करीए. ॥ ८ ॥ अनेकान्तमत सेवनारे, नवधा भक्ति उदार; बुद्धिसागर भक्तिथीरे, जिनशासन जयकाररे. करीए.॥९॥
अथ चेतन स्वाध्याय.
राग केदारो. चेतना लक्षण चेतन परखो, परमानन्द स्वरूपी; जडथी न्यारो निजगुण भोगी, निर्भय रूपारूपीरे. चेतना. ॥१॥ बाह्य विभाव दशाथकी न्यारो, जूठी जगत् जड बाजीरे; उदयागत भावे जड संगी, रहाए शुं तेमां राजीरे. चेतना. ॥२॥ दह देवलमा त्रिभुवन स्वामी, औदायिक योगे फसियोरे;
For Private And Personal Use Only
Page #320
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
૩૬
मिथ्या परिणति भिन्न विचारी, बाह्यदशाथी खसियोरे. चेतना ॥ ३॥ जाग जाग झट चेतन प्यारा, वीर्योल्लास बधारीरे:
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पर परिणमता दूर निवारी, ध्यानदशा अवधारीरे. चेतना ||४|| हुं जडनो जड मारु ए भूली, तत्त्व रमण लय लावीरे; अनुभव आनंद भोगवजे जीव, कुमति दूर हठावीरे. चेतना. ||५|| अनुभव प्याला पी तुं व्हाला, त्यागी पुद्गल चाळारेः बुद्धिसागर ध्यान खुमारी, योगे मंगल मालारे. चेतना. ||३||
सहजानंद स्वाध्याय. राग केदारी.
चिद. ||२||
चिद्घन चेतन निर्भय देशी, व्यक्ति असंख्य मदेशीरे; जाति वचनने लिंगथी न्यारो, रागी नहि ने द्वेषीरे. चिद ॥१॥ आत्मस्वभावे सदा जे प्रकाशी, सत्यानंद विलासीरे; प्रतिप्रदेशे सुख अनंतु, शुद्ध रमणता वासी रे. जडता भावे चेतन मुंझ्यो, परम ब्रह्म नहि बुज्योरे; तेथी बाह्यरमणता खुंच्यो, परमभाव नहि सुज्योरे. चिद् ॥ ३ ॥ केवल ज्ञानने केवल दर्शन, क्षायिक सुख गुण भरियारे; आविर्भावे गुणगण दरियो, जाणे ते जीव तरियोरे. चि. ॥४॥ सत्ताए तूं सिद्ध समोवड, प्रगटपणे हवे था तुरे; बुद्धिसागर ब्रह्मदशामां, कांइ न था तुं न जा तुंरे. चि. ॥५॥
परमबोध स्वाध्याय.
श्रीरे सिद्धाचल भेटवा - ए राग.
शक्ति अनंति जीवमां, सत्ताए ज धारो; व्यक्तिभाव तेनो करो, पामो भवपारो.
For Private And Personal Use Only
शक्ति. ॥ १ ॥
Page #321
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
३१६
पुद्गल शक्तिथी भिन्न छे, शुद्ध चेतन शक्ति; आपस्वभावे रमणता, करतां होय व्यक्ति शक्ति. ॥ २ ॥ दीनभाव दूरे करी, परमातम भावो;
आपोआप प्रकाशतो, नहि कोइनो दावी. शक्ति. ॥ ३ ॥ आप आप परिणमे, उच्च जीवन वृद्धिः
समज शुद्धस्वभावथी, लहे आनंद रूद्धि. शक्ति. ॥ ४ ॥ पर परिणामे बंध छे, शुद्ध उपयोग मुक्ति;
आप बंधातो छूटतो, सत्य गुरुगम युक्ति शक्ति. ॥ ५ ॥ लागी ताळी ध्याननी, ज्योति अन्तर जागी; बुद्धिसागर ब्रह्ममां, लय लीनता लागी शक्ति. ॥ ६ ॥
आत्मरुद्धि स्वाध्याय,
श्रीरे सिद्धाचल भेटवा.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जे जोइए ते आत्ममां, बाकी बाह्यमां भ्रान्ति; बाह्य दशामां दोडतां, कदी होय न शान्ति. जे जाग्या निज भावमां, पाम्या क्षायिक देवा; औपशमादिक भावथी, साची प्रभु सेवा. अष्ट सिद्धि नवरूद्धयो, निज घटमांहि छाजे; मगटपणे शुद्ध चेतना, शुद्ध चेतन गाजे. मंगलनो मंगल प्रभु, शुद्ध चेतन दीवो; सहज स्वरूपी चेतना, ध्यानामृत पीवो. लवणनी पूतळी जलधिमा, त्याग लेतां समाणी; परमानंद शुं वर्णवे, तेम वैखरी वाणी : उग्यो दिनमाण झळहळे, रहे नहि जगछानो; बुद्धिसागर अनुभवे, परमात्मा मजानो.
For Private And Personal Use Only
जे. ॥ १ ॥
जे. ॥ २ ॥
जे. ॥ ३ ॥
जे. ॥ ४ ॥
जे. ॥ ५ ॥
जे. ॥ ६ ॥
Page #322
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३१७ जीवजागृति स्वाध्यायः जाग जाग अरे जीवडा, मोहमाया त्यागी साचा चेतन धर्मनो, थाजे चित्तरागी. जाग. ॥ १ ॥ काल अनादि मोहथी, भवमां भटकायो; परमानन्द न पारख्यो, ज्यां त्यां खूब धायो. जाग.॥२॥ परमानंद स्वभाव छ, शुद्ध चेतन धर्म; रत्नत्रयी निज धर्म छे, सिद्ध शाश्वत शर्म. जाग. ॥३॥ शुद्ध रमणता योगथी, शाश्वत सुख भोगी; बुद्धिसागर जागतो, समतागुण योगी. जाग. || ४ ॥
मोहत्याग सझाय. घाट घडो शुद्धात्मनो, बाह्यमा नहि दोडो; माण मूकीने पत्थरे, केम मस्तक फोडो. घाट. ॥ १ ॥ देह देवळमां जोगीडो, चेतन सुख भोगी; शक्ति अनंति शाश्वती, साधतो गुण योगी. घाट. ॥ २ ॥ खेले निजगुण जीवडो, मेले मोहमाया; परमप्रभुमां लीनता, शाश्वत सुखपाया. घाट. ॥ ३॥ द्रव्यार्थिकथी नित्य छ, ध्यावो प्रभु शक्ति बुद्धिसागर सत्य छ, शुद्ध चेतन शक्ति. घाट. ॥ ४ ॥
अमदावादमां पांचमी जैन श्वेतांबर कोन्फरन्स वखते गवायेलां गायनो.
शार्दूल विक्रिडित छंद. श्री संखेश्वर पार्श्वनाथ नमिये मांगल्य कार्ये सदा, श्री तीर्थकर सिद्ध सूरि सुखदा कापो सदा आपदा
For Private And Personal Use Only
Page #323
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३१८ तुर्या वाचक संज्ञका मुनिवरा प्रेमे नमो क्षेमदा, श्री श्वेतांबर कोन्फरन्स विजये आपो सदा संपदा ॥१॥
जागो जोगी अलख स्वरूपी-ए राग. जिनवर मन्दिरथी शोभितुं, राजनगर जयकारी, तत्र मळी पंचम श्वेतांबर कोन्फरन्स बहु भारी; आजे आनन्द रे मंगलमाला वरती, प्रगटी सुखसागर भरती.
आजे. ॥ १ ॥ श्री जिनशासन जग जयकारी, जैन धर्म बलीहारी; जैनोनी उन्नति अर्थे, सहु कीधी तैयारी, आजे. ॥ २ ॥ धीर वीर विवेकी विचक्षण, श्रावक गुण अधिकारी; रायवहादूर सीतावचन्द्रजी, प्रमुख पदवी धारी. आजे.॥३॥ धार्मिक व्यवहारिक केळवणी, शिक्षण भाषण था. देश काल अनुसरता ठरावो, प्रमुखना वंचाशे. आजे. ॥४॥ कजीया क्लेश ने कुलग्नोने देशवटो देवाशे धर्म शुरातन एक संपता, धर्म स्नेह सचवाशे. आजे. ॥५॥ भेदभाव सहु दूर निवारी, सत्य टेक निरधारी; विजयपताका जग वर्तावो, शाणा नर ने नारी. आजे.॥६|| जापानीझनी पेठे आर्यों, सत्य सुधारा करवा; बुद्धिसागर वीरना भक्तो, पाछा पग नहीं धरवा. आजे. ७
मनमायाना करनारारे-ए राग. शुभ धर्मना पन्थ सुधारीरे, करो सत्य सुधारा विचारी, ए टेक. संघ चतुर्विध उन्नति अर्थे, ज्ञानना ग्रन्थ वधारी; जीर्ण पुस्तक उद्धार करावी, सजो केळवणी शिख सारीरे.
करो० ॥१॥
For Private And Personal Use Only
Page #324
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३१०. बोर्डिंगस्कुलो स्थापीने ठेर ठेर, मानवभव ल्यो ल्हावो नकी उदय भाइ तेथी थनारो. खरी रीतिने दिलमां ठरावोरे.
करो०॥२॥ जैनशालाओ पढावो बालाओ, बाळक बाहोश करवा; । वाळलग्नने देशवटो द्यो, जैनाभ्युदयमां संचरवारे. करो. ॥३॥ कन्याविक्रय ने वृद्धविवाहथी, देखीती थाय खुवारी; कुबुद्धि त्यागी सद्गुणरागी, पड़ी टेव ते त्यागो नठारीरे.
करो० ॥४॥ पुण्यक्षेत्र शुभ सप्त सुधारो, धर्मीनो करो वधारो, साधर्मी भाइने साहाय्य आपो खुब, झट उदय तेथी थनारोरे.
करो० ॥५॥ लाखो रुपैया केळवणी अर्थे, खरचो सज्जन नरनारी; तन मन धनने अर्पण करीने, धरो धर्मसेवा सुखकारीरे.
करो० ॥६॥ महावीर शासन विजय रंगमां, करो न किंचित खामी; धर्मि विवेकि सज्जन बन्धुओ, करो उधम अवसर पामीरे.
करो० ॥ ७॥ जैन श्वेताम्बर कोन्फरन्सथी, शीघ्र उन्नति हि मानी; बुद्धिसागर श्री वीरना भक्तो, करो कदीय न पाछी पानीरे.
करो० ॥ ८॥ राग आशावरी. श्वेताम्बर कोन्फरन्स बीराजी, कीर्ति दशोदिश गाजी. श्वे० टेक. धरणेन्द्र पद्मावती सेविन. पार्श्वनाथ जयकारी; विघ्न विदारण मंगल कारण, सहाय्य करो सुखकारी. श्वे० १ अत्यानंद महोदय कारण, रचना बेश बनाइ; . मंगल वाजींत्रो वागीने, देतां विजय वधाइ. श्वेताम्बर० ॥२॥
For Private And Personal Use Only
Page #325
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३२०
धन्य दीवस ने धन्य घडी आ, बंधु सघम मळीया;
सत्य सुधारा करवा माटे, मनना मनोरथ फळीयाः खे० ॥३॥ करजोडी स्मरण करी जिन, प्रथम मंगल उच्चरीए; धर्म टेक ने एक सम्पथी, विजयपताका वरीए. विनय विवेकी सज्जन शुरा, कहेणी रहेणी करशो; बुद्धिसागर जैन श्वेताम्बर, श्रावक मंगल वरशो. वे० ॥ ५ ॥
श्वे० ॥ ४ ॥
॥ अथ पंचमी परभावपरिहारक्रिया ||
दुहा. रागद्वेष परभावथी, चेतन पामे दुःख; रागद्वेष परिहारथी, चेतन पामे सुख. रागद्वेष संसार छे, रागादिक परिहारः कीजे आत्मस्वभावथी, जगमां जयजयकार. चारित्रपद शुभ चित्तवस्यु - पराग, चेतन निजगुण राचए, दूर त्यागीएहो रागादिक भाव; चेतनवीर्य उल्लासथी, परपरिणतिनो थावे अटकाव, चेतन ॥१॥ काल अनादिथी जाणीए, परपरिणतिहो चेतन दुःखकार; रागादिक परभावथी, चारगतिमांहो नाना अवतार. चेतन ॥२॥ कर्माष्टकनी वर्गणा, ग्रहे चेतन हो अज्ञाने सदाय, परपुद्गलमां परिणम्यो, भव्य जाणो हो क्षीरनीरनो न्याय.चे. ३ भेद ज्ञान महिमाथकी, परपुदगलनी मूको सहु आश; परपरिणता त्यागीने, झट करशो हो चेतन पदवास. चेतन. ४ रागादिक वैरी हणी, पाम्या मुक्ति हो जग जीव अनंत; आत्मज्ञान जगदिनमणि, झटपामी हो शिवमांविलसंत. चेतन. १ कर्म संहारीने, ध्रुव लेवुं हो शाश्वतपद राज; बुद्धिसागर बोधथी, उपयोगी हो राखे निज लाज. चेतन. ६
For Private And Personal Use Only
॥ १ ॥
॥ २ ॥
Page #326
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३२१
श्री शंखेश्वर पार्श्व जिनेश्वर, जग जय मंगलकारी,
धरणेंद्र पद्मावती देवी, सहाय करो सुखकारी;
आजे. २
आजे आनंदरे धन्य घडी जयकारी, कोन्फरन्स बलिहारी, आजे. १ जैन श्वेताम्बर कोन्फरन्सनी, छठ्ठी बेठक आजे; गुर्जर सोरठ बंग मरुधर, दक्षिणना जन राजे. सोरठ देशे भावनगर शुभ, जैनपुरी अलबेली; जैन श्वेताम्बर कोन्फरन्से, बेठक लीधी पेहेली. जैनोनी उन्नति करवा, थाशे सरस सुधारा; व्यवहारिक धार्मिक केळवणी, तेना नियम थनारा. श्रद्धावंत विवेकी गंभीर, राजनगर अवतारी; मनसुखभाई भगुभाइ सुश्रावक, प्रमुख पद्वी धारी. तनमनधनथी जैनोन्नतिमां, प्रमुख पगलुं भरशे; कोन्फरन्सनुं काम बजावी, जय लक्ष्मी झट वरशे. जैनोन्नतिनुं भाषण सारु, प्रमुखतुं वंचाशे; कहेणी जेवी रहेणी रहेवा, सत्य ठरावो थाशे. वीर जिनेश्वर भक्तो थइने, पाछा पग नहि भरशो; बुद्धिसागर शूरा सज्जन, मंगळमाळा वरशो.
जैन कोन्फरन्स आज गाजी रही, गाजी रही जन, गजावी रही
साखी.
देश देशना श्रावको, आव्या घरी उल्लास, जैनधर्म दीपाववा, करता विविध प्रयास. धर्म झनुन दील धारीने गाजता, सुमति सदाय, चित्त शोभी रही.
For Private And Personal Use Only
आजे. ३
आजे. ४
आजे. ५
आजे. ३
आजे.
आजे.
७
जैन.
जैन० १
८
Page #327
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३१२ मंडप रचना बहु बनी, जाणे स्वर्गविमान;
विजयवावटा फरकता, फररर करना गान. सुखसागर भव्य ल्हेरो रे उछळे, शोभा संसदूनी न
जाय कही. जैन० २ दश दिक कीर्ति विस्तरी, कोन्फरन्सनी आज;
शासन देवनी स्हायथी, सुधरशे शुभ काज. सत्य विचार संघ मनमांहि आवशे, पुण्य उदय आज
प्रेमे लही. जैन० ३ ऋद्धि सिद्धि मुख मळो, पामो धार्मिक ज्ञान;
बुद्धिसागर संपथी, थाशे सहु कल्याण. जय जय बोलो जिन शासन देवनी, शांति कल्याणमयी
थावो मही. जैन०४ म्हाला वीर जीनेश्वर जन्म जरा नीवारजोरे-ए राग. जैनो सुखकर स्त्री केळवणी झट फेलावशोरे, जैनोन्नतिनुं कारण पहेलु मनमा लावशोरे. मास्तिक विद्यानी फेरवणी, धार्मिक विद्यानी मेळवणी, साची विज्ञप्ति आ निश्चय चित्त ठरावशोरे. जैनो ॥१॥ स्त्री केळवणी सहु दुःख हरणी, अंधकार नाशक जेम तरणि, घर सुधारो स्त्री सुधर्याथी पावशोरे. जैनो० ॥२॥ बच्चांनी सुधारक पहेली, केळवणी आपान बहली; विकथा व्हेमो सर्वे दूर हठावशोरे. जैनो० ॥ ३ ॥ देशोन्नतिनुं कारण पहेलं, स्त्री केळवणी जाणो सहेनु, विनति साची दिलमां भव्य वधावशोरे. जैना० ।। ४ ।। धर्म झनुनने अंगे धारी, देशोन्नतिनुं मूल विचारी; स्त्री केळवणी सरस नियम मुधरावशोरे. जैनो० ॥५॥
For Private And Personal Use Only
Page #328
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मुनिवर गुरुगम ज्ञान लहीने, सत्य नीतिमां चुस्त रहीने, बुद्धिसागर रचना श्रेष्ठ रचावशोरे. जैनो० ॥६॥
विमळाचळवासी म्हारा व्हाला सेवकने विसारो नहीं
विसारो नहीं-ए राग. करो सत्य सुधारा विचारी भला, सुखकारी सदा, (३) जशे संपे कुसंप दुःख नावे कदा, चित्त धारो मुदा. चित्तः जिन शासननी भक्ति करतां, तीर्थकर पद पाय;
जैन धर्म फेलावो करतां, अनंत सुख सदाय. सदा सुखकारी. ? व्यवहारिक ने धार्मिक विद्या, सर्वोन्नति आधार; बोर्डिंग स्कुलो स्थापन करतां, थाशे जग जयकार. सदा मु०२ जुनां पुस्तक फेर लखावो, शुद्ध छपावो बेश; सहाय करो साधुने भणतां; करशे सदा उपदेश. सदा सु०३ बाळकशान कन्याशाळा, जनतच विस्तार; साधर्मी बंधुनी भक्ति, करतां सफळ अवतार. सदा सु. ४ कुमारपाळने संपति नृपति, वस्तुपाळ तेजपाल धर्मी शूरा पूर्व जैन क्यां, हाल बन्या बेहाल. सदा सु. ५ बोलो तेवू पाळो भव्यो, थाशो जग जाहेर; बुद्धिसागर जय जय बोलो, कोन्फरन्स मुख ल्हेर. सदा सु०६
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
समाप्त.
For Private And Personal Use Only
Page #329
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
For Private And Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
Page #330
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir G 00000000000000000000056060000000000 For Private And Personal Use Only