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दुग्धमां जल मळ्युं हंस जूढं करे, तादृशी दृष्टिने धार प्यारा; तत्त्वदृष्टि धरी तत्त्वने पारखो, योगविद्या लही सत्य धारा अलव. २ दृष्टि स्याद्वादनी वाद सहु टाळती, खाळती कर्मनो वेग ज्ञाने; शुद्ध उपयोगथो अनुभवे आतमा सत्य आनन्दने तत्त्वभाने.अलख.३ ज्ञेयने ध्येय आदेय छे आतमा, ज्ञानथी ज्ञेयवस्तु प्रकाशी; ज्ञेय ने ज्ञानरूपे सदा जे रहे, वस्तुधर्म सदा छे विलासी. अलख. ४ सविए आतमा सेविए आतमा, देह देवळ रहीने प्रकाशे; तारिये आतमा तारिए आतमा, जागतां कर्मनो फन्द नासे.अलख.५ बन्ध सद्भावथी मुक्ति छ जीवनी, वन्ध नहि त्यां लहो केम मुक्ति; मुक्तिनी युक्तिमां मुंझता मानवी,मोह अज्ञानथी करी कुयुक्ति अलख.६ अलखनो देश निर्भय सदा शोभतो, अलखना देशमां सत्य शान्ति; अलखना देशमा सत्य आनन्द छे, अलखना ज्ञानथी जाय भ्रान्ति.
अलख. ७ वीर वचनोथकी जाणिए अलखने, सात नयथी खरो अर्थ धारी त्यागि एकान्तने अर्थने धारिये,पामिए सत्यथी मुक्ति नारी अलख.८ अलखना खेलमां भेल नहि कर्मनो, खेलिए अलखनो खेल रागी; बुद्धिसागर सदा अलखनी धूनमां, सत्यचैतन्यनी ज्योति जागी.
अलख. ॥१॥
संसारनी असारता.
झुलणाछन्द: सर्व संसारना भाव छ कारमा, सार तेमां नथी सत्य भानु रूप जूदां धरे प्यार त्यां शुं करे, समजजे आतमा सत्य दाखं. सर्व. १ क्षणिक आनन्दमां मोहथी मुंझीने, भव्य मानवपणुं केम हारे; आजने काल करतां थकां मानवी,काळ आयुः हरे को विचारे. सर्व. २
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