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बाह्य आनन्दनो रङ्ग छे अभिनवो, नष्ट तेतो थशे चित्त धारा; आधिने व्याधियी मुक्त कर आतमा,समजिने सत्यने केम हारो. सर्व.३ लक्ष चोराशिमां विविध देहो धर्या, मोह अज्ञानथी पार नाव्यो; आतमा सत्य जाण्यो लही ज्ञानने,दीलमां ते सदा खूब भाव्यो. सर्व.४ जूठ संसारमा सार छे नहि कशें, तत्त्वदृष्टिथकी ले विचारी; वर्णने वेष लिङ्गादिके धर्म नहि, भ्रान्तिमां भूलतां छे खुवारी. सर्व. ५ सद्गुरु सङ्गथी समजरे धर्मने, धर्मथी पाप सघळां प्रणाशे; साधनन्ति स्थीति पामतो आतमा, धर्मथी शुद्ध रूप प्रकाशे. सर्व.६ वित्तना फन्दमां दुःखना कन्द छे, सत्य वैराग्यथी ते विचारोः सत्यानन्दमां रमणता राखवी, जाप अजपाथकी जीव तारो. सर्व.७ फोक झघडा करी धर्मना फन्दमां, केम. आयुः अरे भव्य गाळो; तत्त्व नहि अन्यथा कोइ काळे यतुं,सत्यसारांशथी धर्म पाो. सर्व. ८ वीर वचनो सदा सर्व सापेक्ष छे, समजिए ज्ञानने दील धारी; । बुद्धिसागर सदा मुक्तिना पन्थमा, वीरवचनो महा उपकारी. सर्व. ९
स्वार्थस्वरूप.
झुलणाछन्द. स्वार्थना फन्दमां सर्व दुनिया फसी, तत्त्वनी वात दीलमां न धारी; खेलता नाचता बोलता दोडता,पामता प्राणिया दुःख भारी.स्वार्थ.? स्वार्थना छंदमां सत्य स्वप्ने नहीं, स्वार्थना जलधिमां मीन प्यासी; स्वार्थनी छांयडी केरडा जेहवी,स्वार्थनी जगत्मां और फांसी.स्वार्थ.२ स्वार्थथी सत्य छानुं रहे छे सदा, स्वार्थथी दुःखनो पार नावे; स्वार्थना पाशमा प्रागिया जे पडया , विविध देही ग्रही दुःख पावे.
स्वार्थ. ३ जगतमां व्यापिया स्वार्थ छे महाबली, सर्व जगजंतुने ते नचावे;
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