________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
संघ. ॥ २५ ॥
संघ. ॥ २६ ॥
२३२ सर्व कालमा मुनिवर धर्म धुरंधरा, जैन धर्म पण मुनि गुरुना हाथजो; सूरिवाचक रत्नादिक संयत श्रेष्ट छ, वन्दु मुनिवर त्रण भुवनना नाथजो. मुनिना उदये जैनधर्मनी उन्नति; श्रावकथी मोटा छे मुनि कृपाळजो, जीवदया प्रतिपालक मुनिवर वंद्य छ; जेणे त्यागी दुःखदायि झंझाळजो. मुनिपर आळ चढावे ते महा पातकी; मुनिनिन्दाकर्ता चोथो चंडालजो, श्रावक सेवक स्वामी साधु जाणीए; सदुपदेशे छोडो बाळक चालजो. धर्मोद्धारक धर्मगुरुने वन्दताः मान टळे ने लघुता गुण प्रगटायजो, विधिपूर्वक मुनिवरने वन्दो भावथी; जन्म जरा आधि व्याधि दूर जायजो. वैरागी त्यागी सौभागी सद्गुणी; मुनिवर दीठे होवे मंगल मालजो, मुनिदर्शनथी धर्मलाभ झट संपजे; भव्य जीवने मुनिवर दीठे व्हालजो. धन्य देश कूळ गाम मुनि अवतार छे; धन्य धन्य ज्यां मुनिवर करे विहारजो, बुद्धिसागर सद्गुरु मुनिवर वन्दता; उतरे प्राणी भवसागरनी पारजो.
संघ. ॥ २७ ॥
संघ. ॥२८॥
संघ. ॥ २९ ॥
संघ. ॥ ३० ॥
For Private And Personal Use Only