________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
१९२
आत्मज्ञाननो योग भोग तो साचो भासे,
आतमज्ञाने रीजीए जन मन बीजे नहि दीजिए;
ज्ञान ध्याने जिवन गाळी शाश्वत शिवपुर लीजीए ॥ ६ ॥ चिदानंद भरपूर भरेला आतमज्ञानी, अंतरमां उपयोग ज्ञान छे गुणनी खाणीः आत्मिक शुद्ध स्वभाव ज्ञानथी सहेजे जागे. आतमज्ञाने सत्य लहाने जूठन त्यागे, चिदानन्द चेतनमयी घट आत्म व्यक्ति ध्याइएः बुद्धिसागर ज्ञानयोगे सर्व मंगल पाइए.
66
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
"
कर्मस्वरूप
छप्पय छंद चाल.
कर्म करे ते होय कर्मने शर्म न कोनी, कर्मे नृपति होय मळे नहि कर्म दोणीः कर्मे मागे भीख, कर्मथी नोक्त वागे, कर्मे धक्का खाय, कर्मथी पाये लागे.
॥ १ ॥
पुण्य पाप वे कर्म छे, जग पुण्य थकी शाता मळे: प्रगटे पापोदय तदा तो दुःखनी वल्ली फळे. चतुर्गतिमा फेर कर्मी सघळे भटके, कर्मगति विकराळ, कर्मथी प्राणी अटके: उच्च नीच अवतार कर्मथी जगमां देखो, पिता तणा बे पुत्र कर्मथी भिन्नज पेखो: शरीर कारण कर्म छे जग, कारण वण नहि काज छे; रागादिकथी कर्मबंधन, कर्मने शी लाज छे ? रागादिकनो कर्ता तेहज शरीर कर्त्ता,
।। २ ।
For Private And Personal Use Only
|| 19 ||