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रागादिकनो हर्ता तेहज शरीर हर्ता;
कर्ता हर्ता एकज पण परिणाम विशेषे, निद्रामां जे होय सुणो जाग्रतमां ते छे; सुखे सूतो हुं कहीने जाग्रतमां जे जागतो; कर्ता हर्ता कर्मनो ते आतम एकज छाजतो. कर्ता भोक्ता कर्म तो आतम अज्ञाने, देह सृष्टिकर्ता हर्ता सूत्र वखाणे; शरीर व्यापक आतम इश्वर कर्म करे छे, शरीर व्यापक आम इश्वर कर्म हरे छे; आतम इश्वर कर्मनो तो बंधकर्ता जाणीये, शुद्धोपयोगे आत्म इश्वर कर्महर्ता मानीये. कर्माष्टको नाश कर्याथी सिद्ध स्वरूपी, सिद्ध सनातन निर्भय देशी रुपारुपी; कर्माच्छादन दूर गयाथी अनंत शक्ति, कर्माच्छादन दूर गयाथी निर्मल व्यक्ति; कर्म सहित संसार छे ने कर्मरहित भव पार छे; कर्म टाळे आत्म ध्याने सफल तस अवतार छे. ॥ ५ ॥
रागादिकथी कर्म कर्मी प्रगटे काया, पुद्गल रुपे अष्ट कर्म छे नहि पडछाया; कर्म योगथी रुपी आतम कर्म ग्रहे छे, स्थिति अनादि काल कर्मने एम लहे छे; पण विभाविक कर्म छे ते आतमध्याने झट बुद्धिसागर ध्यानयोगे चिदानंद मेळो मळे.
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टळे,
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॥ ६॥